सूक्ति संग्रह 24 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 24:1-34

बीसवां सूत्र

1दुष्टों से ईर्ष्या न करना,

उनके साहचर्य की कामना भी न करना;

2उनके मस्तिष्क में हिंसा की युक्ति तैयार होती रहती है,

और उनके मुख से हानिकर शब्द ही निकलते हैं.

इक्‍कीसवां सूत्र

3गृह-निर्माण के लिए विद्वत्ता आवश्यक होती है,

और इसकी स्थापना के लिए चतुरता;

4ज्ञान के द्वारा घर के कक्षों में सभी प्रकार की बहुमूल्य

तथा सुखदाई वस्तुएं सजाई जाती हैं.

बाईसवां सूत्र

5ज्ञानवान व्यक्ति शक्तिमान व्यक्ति होता है,

विद्वान अपनी शक्ति में वृद्धि करता जाता है.

6क्योंकि कुशल दिशा-निर्देश के द्वारा ही युद्ध में तुम आक्रमण कर सकते हो,

अनेक परामर्शदाताओं के परामर्श से विजय सुनिश्चित हो जाती है.

तेईसवां सूत्र

7मूर्ख के लिए ज्ञान पहुंच के बाहर होता है;

बुद्धिमानों की सभा में वह चुप रह जाता है.

चौबीसवां सूत्र

8वह, जो अनर्थ की युक्ति करता है

वह षड़्‍यंत्रकारी के रूप में कुख्यात हो जाता है.

9मूर्खतापूर्ण योजना वस्तुतः पाप ही है,

और ज्ञान का ठट्ठा करनेवाला सभी के लिए तिरस्कार बन जाता है.

पच्चीसवां सूत्र

10कठिन परिस्थिति में तुम्हारा हताश होना

तुम्हारी सीमित शक्ति का कारण है.

11जिन्हें मृत्यु दंड के लिए ले जाया जा रहा है, उन्हें विमुक्त कर दो;

और वे, जो लड़खड़ाते पैरों से अपने ही वध की ओर बढ़ रहे हैं, उन्हें वहीं रोक लो.

12यदि तुम यह कहो, “देखिए, इस विषय में हमें तो कुछ भी ज्ञात नहीं था.”

क्या वे, परमेश्वर जो मन को जांचनेवाले हैं, यह सब नहीं समझते?

क्या उन्हें, जो तुम्हारे जीवन के रक्षक हैं, यह ज्ञात नहीं?

क्या वह सभी को उनके कार्यों के अनुरूप प्रतिफल न देंगे?

छब्बीसवां सूत्र

13मेरे प्रिय बालक, मधु का सेवन करो क्योंकि यह भला है;

छत्ते से टपकता हुआ मधु स्वादिष्ट होता है.

14यह भी समझ लो, कि तुम्हारे जीवन में ज्ञान भी ऐसी ही है:

यदि तुम इसे अपना लोगे तो उज्जवल होगा तुम्हारा भविष्य,

और तुम्हारी आशाएं अपूर्ण न रह जाएंगी.

सत्ताईसवां सूत्र

15दुष्ट व्यक्ति! धर्मी व्यक्ति के घर पर घात लगाकर न बैठ

और न उसके विश्रामालय को नष्ट करने की युक्ति कर;

16क्योंकि सात बार गिरने पर भी धर्मी व्यक्ति पुनः उठ खड़ा होता है,

किंतु दुष्टों को विपत्ति नष्ट कर जाती है.

अट्ठाइसवां सूत्र

17तुम्हारे विरोधी का पतन तुम्हारे हर्ष का विषय न हो;

और उन्हें ठोकर लगने पर तुम आनंदित न होना,

18ऐसा न हो कि यह याहवेह की अप्रसन्‍नता का विषय हो जाए

और उन पर से याहवेह का क्रोध जाता रहे.

उन्तीसवां सूत्र

19दुष्टों के वैभव को देख कुढ़ने न लगाना

और न बुराइयों की जीवनशैली से ईर्ष्या करना,

20क्योंकि दुष्ट का कोई भविष्य नहीं होता,

उनके जीवनदीप का बुझना निर्धारित है.

तीसवां सूत्र

21मेरे पुत्र, याहवेह तथा राजा के प्रति श्रद्धा बनाए रखो, उनसे दूर रहो,

जिनमें विद्रोही प्रवृत्ति है,

22सर्वनाश उन पर अचानक रूप से आ पड़ेगा और इसका अनुमान कौन लगा सकता है,

कि याहवेह और राजा द्वारा उन पर भयानक विनाश का रूप कैसा होगा?

बुद्धिमानों की कुछ और सूक्तियां

23ये भी बुद्धिमानों द्वारा बोली गई सूक्तियां हैं:

न्याय में पक्षपात करना उचित नहीं है:

24जो कोई अपराधी से कहता है, “तुम निर्दोष हो,”

वह लोगों द्वारा शापित किया जाएगा तथा अन्य राष्ट्रों द्वारा घृणास्पद समझा जाएगा.

25किंतु जो अपराधी को फटकारते हैं उल्‍लसित रहेंगे,

और उन पर सुखद आशीषों की वृष्टि होगी.

26सुसंगत प्रत्युत्तर

होंठों पर किए गए चुम्बन-समान सुखद होता है.

27पहले अपने बाह्य कार्य पूर्ण करके

खेत को तैयार कर लो

और तब अपना गृह-निर्माण करो.

28बिना किसी संगत के कारण अपने पड़ोसी के विरुद्ध साक्षी न देना,

और न अपनी साक्षी के द्वारा उसे झूठा प्रमाणित करना.

29यह कभी न कहना, “मैं उसके साथ वैसा ही करूंगा, जैसा उसने मेरे साथ किया है;

उसने मेरे साथ जो कुछ किया है, मैं उसका बदला अवश्य लूंगा.”

30मैं उस आलसी व्यक्ति की वाटिका के पास से निकल रहा था,

वह मूर्ख व्यक्ति था, जिसकी वह द्राक्षावाटिका थी.

31मैंने देखा कि समस्त वाटिका में,

कंटीली झाड़ियां बढ़ आई थीं,

सारी भूमि पर बिच्छू बूटी छा गई थी.

32यह सब देख मैं विचार करने लगा,

जो कुछ मैंने देखा उससे मुझे यह शिक्षा प्राप्‍त हुई:

33थोड़ी और नींद, थोड़ा और विश्राम,

कुछ देर और हाथ पर हाथ रखे हुए विश्राम,

34तब देखना निर्धनता कैसे तुझ पर डाकू के समान टूट पड़ती है

और गरीबी, सशस्त्र पुरुष के समान.