सूक्ति संग्रह 21 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 21:1-31

1याहवेह के हाथों में राजा का हृदय जलप्रवाह-समान है;

वही इसे ईच्छित दिशा में मोड़ देते हैं.

2मनुष्य की दृष्टि में उसका हर एक कदम सही ही होता है,

किंतु याहवेह उसके हृदय को जांचते रहते हैं.

3याहवेह के लिए सच्चाई तथा न्याय्यता

कहीं अधिक स्वीकार्य है.

4घमंडी आंखें, दंभी हृदय

तथा दुष्ट का दीप पाप हैं.

5यह सुनिश्चित होता है कि परिश्रमी व्यक्ति की योजनाएं लाभ में निष्पन्‍न होती हैं,

किंतु हर एक उतावला व्यक्ति निर्धन ही हो जाता है.

6झूठ बोलने के द्वारा पाया गया धन

इधर-उधर लहराती वाष्प होती है, यह मृत्यु का फंदा है.

7दुष्ट अपने ही हिंसक कार्यों में उलझ कर विनष्ट हो जाएंगे,

क्योंकि वे उपयुक्त और सुसंगत विकल्प को ठुकरा देते हैं.

8दोषी व्यक्ति कुटिल मार्ग को चुनता है,

किंतु सात्विक का चालचलन धार्मिकतापूर्ण होता है.

9विवादी पत्नी के साथ घर में निवास करने से

कहीं अधिक श्रेष्ठ है छत के एक कोने में रह लेना.

10दुष्ट के मन की लालसा ही बुराई की होती है;

उसके पड़ोसी तक भी उसकी आंखों में कृपा की झलक नहीं देख पाते.

11जब ज्ञान के ठट्ठा करनेवालों को दंड दिया जाता है, बुद्धिहीनों में ज्ञानोदय हो जाता है;

जब बुद्धिमान को शिक्षा दी जाती है, उसमें ज्ञानवर्धन होता जाता है.

12धर्मी दुष्ट के घर पर दृष्टि बनाए रखता है,

और वह दुष्ट को विनाश गर्त में डाल देता है.

13जो कोई निर्धन की पुकार की अनसुनी करता है,

उसकी पुकार के अवसर पर उसकी भी अनसुनी की जाएगी.

14गुप्‍त रूप से दिया गया उपहार

और चुपचाप दी गई घूस कोप शांत कर देती है.

15बिना पक्षपात न्याय को देख धर्मी हर्षित होते हैं,

किंतु यही दुष्टों के लिए आतंक प्रमाणित होता है.

16जो ज्ञान का मार्ग छोड़ देता है,

उसका विश्रान्ति स्थल मृतकों के साथ निर्धारित है.

17यह निश्चित है कि विलास प्रिय व्यक्ति निर्धन हो जाएगा तथा वह;

जिसे दाखमधु तथा शारीरिक सुखों का मोह है, निर्धन होता जाएगा.

18धर्मी के लिए दुष्ट फिरौती हो जाता है,

तथा विश्वासघाती खराई के लिए.

19क्रोधी, विवादी और चिड़चिड़ी स्त्री के साथ निवास करने से

उत्तम होगा बंजर भूमि में निवास करना.

20अमूल्य निधि और उत्कृष्ट भोजन बुद्धिमान के घर में ही पाए जाते हैं,

किंतु मूर्ख इन्हें नष्ट करता चला जाता है.

21धर्म तथा कृपा के अनुयायी को प्राप्‍त होता है

जीवन, धार्मिकता और महिमा.

22बुद्धिमान व्यक्ति ही योद्धाओं के नगर पर आक्रमण करके उस सुरक्षा को ध्वस्त कर देता है,

जिस पर उन्होंने भरोसा किया था.

23जो कोई अपने मुख और जीभ को वश में रखता है,

स्वयं को विपत्ति से बचा लेता है.

24अहंकारी तथा दुष्ट व्यक्ति, जो ठट्ठा करनेवाले के रूप में कुख्यात हो चुका है,

गर्व और क्रोध के भाव में ही कार्य करता है.

25आलसी की अभिलाषा ही उसकी मृत्यु का कारण हो जाती है,

क्योंकि उसके हाथ कार्य करना ही नहीं चाहते.

26सारे दिन वह लालसा ही लालसा करता रहता है,

किंतु धर्मी उदारतापूर्वक दान करता जाता है.

27याहवेह के लिए दुष्ट द्वारा अर्पित बलि घृणास्पद है और उससे भी कहीं अधिक उस स्थिति में,

जब यह बलि कुटिल अभिप्राय से अर्पित की जाती है.

28झूठा साक्षी तो नष्ट होगा ही,

किंतु वह, जो सच्चा है, सदैव सुना जाएगा.

29दुष्ट व्यक्ति अपने मुख पर निर्भयता का भाव ले आता है,

किंतु धर्मी अपने चालचलन के प्रति अत्यंत सावधान रहता है.

30याहवेह के समक्ष न तो कोई ज्ञान,

न कोई समझ और न कोई परामर्श ठहर सकता है.

31युद्ध के दिन के लिए घोड़े को सुसज्जित अवश्य किया जाता है,

किंतु जय याहवेह के ही अधिकार में रहती है.