सूक्ति संग्रह 19 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 19:1-29

1वह निर्धन व्यक्ति, जिसका चालचलन खराई है,

उस व्यक्ति से उत्तम है, जो कुटिल है और मूर्ख भी.

2ज्ञान-रहित इच्छा निरर्थक होती है

तथा वह, जो किसी भी कार्य के लिए उतावली करता है, लक्ष्य प्राप्‍त नहीं कर पाता!

3जब किसी व्यक्ति की मूर्खता के परिणामस्वरूप उसकी योजनाएं विफल हो जाती हैं,

तब उसके हृदय में याहवेह के प्रति क्रोध भड़क उठता है.

4धन-संपत्ति अनेक नए मित्रों को आकर्षित करती है,

किंतु निर्धन व्यक्ति के मित्र उसे छोड़कर चले जाते हैं.

5झूठे साक्षी का दंड सुनिश्चित है,

तथा दंडित वह भी होगा, जो झूठा है.

6उदार व्यक्ति का समर्थन अनेक व्यक्ति चाहते हैं,

और उस व्यक्ति के मित्र सभी हो जाते हैं, जो उपहार देने में उदार है.

7निर्धन व्यक्ति तो अपने संबंधियों के लिए भी घृणा का पात्र हो जाता है.

उसके मित्र उससे कितने दूर हो जाते हैं!

वह उन्हें मनाता रह जाता है,

किंतु इसका उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.

8बुद्धि प्राप्‍त करना स्वयं से प्रेम करना है;

तथा ज्ञान को सुरक्षित रखना समृद्धि है.

9झूठे साक्षी का दंड सुनिश्चित है तथा जो झूठा है,

वह नष्ट हो जाएगा.

10सुख से रहना मूर्ख को शोभा नहीं देता,

ठीक जिस प्रकार दास का शासकों पर शासन करना.

11सद्बुद्धि मनुष्य को क्रोध पर नियंत्रण रखने योग्य बनाती है;

और जब वह अपराध को भुला देता है, उसकी प्रतिष्ठा होती है.

12राजा का क्रोध सिंह के गरजने के समान होता है,

किंतु उसकी कृपा घास पर पड़ी ओस समान.

13मूर्ख संतान पिता के विनाश का कारक होती है,

और झगड़ालू पत्नी नित

टपक रहे जल समान.

14घर और संपत्ति पूर्वजों का धन होता है,

किंतु बुद्धिमती पत्नी याहवेह की ओर से प्राप्‍त होती है.

15आलस्य का परिणाम होता है गहन नींद,

ढीला व्यक्ति भूखा रह जाता है.

16वह, जो आदेशों को मानता है, अपने ही जीवन की रक्षा करता है,

किंतु जो अपने चालचलन के विषय में असावधान रहता है, मृत्यु अपना लेता है.

17वह, जो निर्धनों के प्रति उदार मन का है, मानो याहवेह को ऋण देता है;

याहवेह उसे उत्तम प्रतिफल प्रदान करेंगे.

18यथासंभव अपनी संतान पर अनुशासन रखो उसी में तुम्हारी आशा निहित है;

किंतु ताड़ना इस सीमा तक न की जाए, कि इसमें उसकी मृत्यु ही हो जाए.

19अति क्रोधी व्यक्ति को इसका दंड भोगना होता है;

यदि तुम उसे दंड से बचाओगे तो तुम समस्त प्रक्रिया को दोहराते रहोगे.

20परामर्श पर विचार करते रहो और निर्देश स्वीकार करो,

कि तुम उत्तरोत्तर बुद्धिमान होते जाओ.

21मनुष्य के मन में अनेक-अनेक योजनाएं उत्पन्‍न होती रहती हैं,

किंतु अंततः याहवेह का उद्देश्य ही पूरा होता है.

22मनुष्य में खराई की अपेक्षा की जाती है;

तथा झूठ बोलनेवाले की अपेक्षा निर्धन अधिक उत्तम है.

23याहवेह के प्रति श्रद्धा ही जीवन का मार्ग है;

तथा जिस किसी में यह भय है, उसका ठिकाना सुखी रहता है, अनिष्ट उसको स्पर्श नहीं करता.

24एक आलसी ऐसा भी होता है, जो अपना हाथ भोजन की थाली में डाल तो देता है;

किंतु आलस्य में भोजन को मुख तक नहीं ले जाता.

25ज्ञान के ठट्ठा करनेवाले पर प्रहार करो कि सरल-साधारण व्यक्ति भी बुद्धिमान बन जाये;

विवेकशील व्यक्ति को डांटा करो कि उसका ज्ञान बढ़ सके.

26जो व्यक्ति अपने पिता के प्रति हिंसक हो जाता तथा अपनी माता को घर से बाहर निकाल देता है,

ऐसी संतान है, जो परिवार पर लज्जा और निंदा ले आती है.

27मेरे पुत्र, यदि तुम शिक्षाओं को सुनना छोड़ दो,

तो तुम ज्ञान के वचनों से दूर चले जाओगे.

28कुटिल साक्षी न्याय का उपहास करता है,

और दुष्ट का मुख अपराध का समर्थन करता है.

29ठट्ठा करनेवालों के लिए दंड निर्धारित है,

और मूर्ख की पीठ के लिए कोड़े हैं.