सूक्ति संग्रह 15 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 15:1-33

1मृदु प्रत्युत्तर कोप शांत कर देता है,

किंतु कठोर प्रतिक्रिया से क्रोध भड़कता है.

2बुद्धिमान के मुख से ज्ञान निकलता है,

किंतु मूर्ख का मुख मूर्खता ही उगलता है.

3याहवेह की दृष्टि सब स्थान पर बनी रहती है,

उनके नेत्र उचित-अनुचित दोनों पर निगरानी रखते हैं.

4सांत्वना देनेवाली बातें जीवनदायी वृक्ष है,

किंतु कुटिलतापूर्ण वार्तालाप उत्साह को दुःखित कर देता है.

5मूर्ख पुत्र की दृष्टि में पिता के निर्देश तिरस्कारीय होते हैं,

किंतु विवेकशील होता है वह पुत्र, जो पिता की डांट पर ध्यान देता है.

6धर्मी के घर में अनेक-अनेक बहुमूल्य वस्तुएं पाई जाती हैं,

किंतु दुष्ट की आय ही उसके संकट का कारण बन जाती है.

7बुद्धिमान के होंठों से ज्ञान का प्रसरण होता है,

किंतु मूर्ख के हृदय से ऐसा कुछ नहीं होता.

8दुष्ट द्वारा अर्पित की गई बलि याहवेह के लिए घृणास्पद है,

किंतु धर्मी द्वारा की गई प्रार्थना उन्हें स्वीकार्य है.

9याहवेह के समक्ष बुराई का चालचलन घृणास्पद होता है,

किंतु जो धर्मी का निर्वाह करता है वह उनका प्रिय पात्र हो जाता है.

10उसके लिए घातक दंड निर्धारित है, जो सन्मार्ग का परित्याग कर देता है और वह;

जो डांट से घृणा करता है, मृत्यु आमंत्रित करता है.

11जब मृत्यु और विनाश याहवेह के समक्ष खुली पुस्तक-समान हैं,

तो मनुष्य के हृदय कितने अधिक स्पष्ट न होंगे!

12हंसी मजाक करनेवाले को डांट पसंद नहीं है,

इसलिए वे ज्ञानी से दूर रखते हैं.

13प्रसन्‍न हृदय मुखमंडल को भी आकर्षक बना देता है,

किंतु दुःखित हृदय आत्मा तक को निराश कर देता है.

14विवेकशील हृदय ज्ञान की खोज करता रहता है,

किंतु मूर्खों का वार्तालाप उत्तरोत्तर मूर्खता विकसित करता है.

15गरीबी-पीड़ित के सभी दिन क्लेशपूर्ण होते हैं,

किंतु उल्‍लसित हृदय के कारण प्रतिदिन उत्सव सा आनंद रहता है.

16याहवेह के प्रति श्रद्धा में सीमित धन ही उत्तम होता है,

इसकी अपेक्षा कि अपार संपदा के साथ विपत्तियां भी संलग्न हों.

17प्रेमपूर्ण वातावरण में मात्र सादा साग का भोजन ही उपयुक्त होता है,

इसकी अपेक्षा कि अनेक व्यंजनों का आमिष भोज घृणा के साथ परोसा जाए.

18क्रोधी स्वभाव का व्यक्ति कलह उत्पन्‍न करता है,

किंतु क्रोध में विलंबी व्यक्ति कलह को शांत कर देता है.

19मूर्खों की जीवनशैली कंटीली झाड़ी के समान होती है,

किंतु धर्मी के जीवन का मार्ग सीधे-समतल राजमार्ग समान होता है.

20बुद्धिमान पुत्र अपने पिता के लिए आनंद एवं गर्व का विषय होता है,

किंतु मूर्ख होता है वह, जिसे अपनी माता से घृणा होती है.

21समझ रहित व्यक्ति के लिए मूर्खता ही आनन्दप्रदायी मनोरंजन है,

किंतु विवेकशील व्यक्ति धर्मी के मार्ग पर सीधा आगे बढ़ता जाता है.

22उपयुक्त परामर्श के अभाव में योजनाएं विफल हो जाती हैं,

किंतु अनेक परामर्शक उसे विफल नहीं होने देते.

23अवसर के अनुकूल दिया गया उपयुक्त उत्तर हर्ष का विषय होता है.

कैसा मनोहर होता है, अवसर के अनुकूल दिया गया सुसंगत शब्द!

24बुद्धिमान और विवेकी व्यक्ति का जीवन मार्ग ऊपर की तरफ जाता है,

कि वह नीचे, अधोलोक-उन्मुख मृत्यु के मार्ग से बच सके.

25याहवेह अहंकारी के घर को चिथड़े-चिथड़े कर देते हैं,

किंतु वह विधवा की सीमाएं सुरक्षित रखते हैं.

26दुष्ट का विचार मंडल ही याहवेह के लिए घृणित है,

किंतु करुणामय बातें उन्हें सुखद लगती हैं.

27लालची अपने ही परिवार में विपत्ति ले आता है.

किंतु वह, जो घूस से घृणा करता है, जीवित रहता है.

28उत्तर देने के पूर्व धर्मी अपने हृदय में अच्छी रीति से विचार कर लेता है,

किंतु दुष्ट के मुख से मात्र दुर्वचन ही निकलते हैं.

29याहवेह धर्मी की प्रार्थना का उत्तर अवश्य देते हैं,

किंतु वह दुष्टों से दूरी बनाए रखते हैं.

30संदेशवाहक की नेत्रों में चमक सभी के हृदय में आनंद का संचार करती है,

तथा शुभ संदेश अस्थियों तक में नवस्फूर्ति ले आता है.

31वह व्यक्ति, जो जीवन-प्रदायी ताड़ना को स्वीकार करता है,

बुद्धिमान के साथ निवास करेगा.

32वह जो अनुशासन का परित्याग करता है, स्वयं से छल करता है,

किंतु वह, जो प्रताड़ना स्वीकार करता है, समझ प्राप्‍त करता है.

33वस्तुतः याहवेह के प्रति श्रद्धा ही ज्ञान उपलब्धि का साधन है,

तथा विनम्रता महिमा की पूर्ववर्ती है.