सूक्ति संग्रह 14 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 14:1-35

1बुद्धिमान स्त्री एक सशक्त परिवार का निर्माण करती है,

किंतु मूर्ख अपने ही हाथों से उसे नष्ट कर देती है.

2जिस किसी के जीवन में याहवेह के प्रति श्रद्धा है, उसके जीवन में सच्चाई है;

परंतु वह जो प्रभु को तुच्छ समझता है, उसका आचरण छल से भरा हुआ है!

3मूर्ख के मुख से निकले शब्द ही उसके दंड के कारक बन जाते हैं,

किंतु बुद्धिमानों के होंठों से निकले शब्द उनकी रक्षा करते हैं.

4जहां बैल ही नहीं हैं, वहां गौशाला स्वच्छ रहती है,

किंतु बैलों की शक्ति से ही धन की भरपूरी निहित है.

5विश्वासयोग्य साक्षी छल नहीं करता,

किंतु झूठे साक्षी के मुख से झूठ ही झूठ बाहर आता है.

6छिछोरा व्यक्ति ज्ञान की खोज कर सकता है, किंतु उसे प्राप्‍त नहीं कर पाता,

हां, जिसमें समझ होती है, उसे ज्ञान की उपलब्धि सरलतापूर्वक हो जाती है.

7मूर्ख की संगति से दूर ही रहना,

अन्यथा ज्ञान की बात तुम्हारी समझ से परे ही रहेगी.

8विवेकी की बुद्धिमता इसी में होती है, कि वह उपयुक्त मार्ग की विवेचना कर लेता है,

किंतु मूर्खों की मूर्खता धोखा है.

9दोष बलि मूर्खों के लिए ठट्ठा का विषय होता है,

किंतु खरे के मध्य होता है अनुग्रह.

10मनुष्य को स्वयं अपने मन की पीडा का बोध रहता है

और अज्ञात व्यक्ति हृदय के आनंद में सम्मिलित नहीं होता.

11दुष्ट के घर-परिवार का नष्ट होना निश्चित है,

किंतु धर्मी का डेरा भरा-पूरा रहता है.

12एक ऐसा भी मार्ग है, जो उपयुक्त जान पड़ता है,

किंतु इसका अंत है मृत्यु-द्वार.

13हंसता हुआ व्यक्ति भी अपने हृदय में वेदना छुपाए रख सकता है,

और हर्ष के बाद शोक भी हो सकता है.

14विश्वासहीन व्यक्ति अपनी ही नीतियों का परिणाम भोगेगा,

किंतु धर्मी अपनी नीतियों का.

15मूर्ख जो कुछ सुनता है उस पर विश्वास करता जाता है,

किंतु विवेकी व्यक्ति सोच-विचार कर पैर उठाता है.

16बुद्धिमान व्यक्ति वह है, जो याहवेह का भय मानता, और बुरी जीवनशैली से दूर ही दूर रहता है;

किंतु निर्बुद्धि अहंकारी और असावधान होता है.

17वह, जो शीघ्र क्रोधी हो जाता है, मूर्ख है,

तथा वह जो बुराई की युक्ति करता है, घृणा का पात्र होता है.

18निर्बुद्धियों को प्रतिफल में मूर्खता ही प्राप्‍त होती है,

किंतु बुद्धिमान मुकुट से सुशोभित किए जाते हैं.

19अंततः बुराई को भलाई के समक्ष झुकना ही पड़ता है,

तथा दुष्टों को भले लोगों के द्वार के समक्ष.

20पड़ोसियों के लिए भी निर्धन घृणा का पात्र हो जाता है,

किंतु अनेक हैं, जो धनाढ्य के मित्र हो जाते हैं.

21वह, जो अपने पड़ोसी से घृणा करता है, पाप करता है,

किंतु वह धन्य होता है, जो निर्धनों के प्रति उदार एवं कृपालु होता है.

22क्या वे मार्ग से भटक नहीं गये, जिनकी अभिलाषा ही दुष्कर्म की होती है?

वे, जो भलाई का यत्न करते रहते हैं. उन्हें सच्चाई तथा निर्जर प्रेम प्राप्‍त होता है.

23श्रम किसी भी प्रकार का हो, लाभांश अवश्य प्राप्‍त होता है,

किंतु मात्र बातें करते रहने का परिणाम होता है गरीबी.

24बुद्धिमान समृद्धि से सुशोभित होते हैं,

किंतु मूर्खों की मूर्खता और अधिक गरीबी उत्पन्‍न करती है.

25सच्चा साक्षी अनेकों के जीवन को सुरक्षित रखता है,

किंतु झूठा गवाह धोखेबाज है.

26जिसके हृदय में याहवेह के प्रति श्रद्धा होती है, उसे दृढ़ गढ़ प्राप्‍त हो जाता है,

उसकी संतान सदैव सुरक्षित रहेगी.

27याहवेह के प्रति श्रद्धा ही जीवन का सोता है,

उससे मानव मृत्यु के द्वारा बिछाए गए जाल से बचता जाएगा.

28प्रजा की विशाल जनसंख्या राजा के लिए गौरव का विषय होती है,

किंतु प्रजा के अभाव में प्रशासक नगण्य रह जाता है.

29वह बुद्धिमान ही होता है, जिसका अपने क्रोधावेग पर नियंत्रण होता है,

किंतु जिसे शीघ्र ही क्रोध आ जाता है, वह मूर्खता की वृद्धि करता है.

30शांत हृदय देह के लिए संजीवनी सिद्ध होता है,

किंतु ईर्ष्या अस्थियों में लगे घुन-समान है.

31वह, जो निर्धन को उत्पीड़ित करता है, उसके सृजनहार को अपमानित करता है,

किंतु वह, जो निर्धन के प्रति उदारता प्रदर्शित करता है, उसके सृजनहार को सम्मानित करता है.

32दुष्ट के विनाश का कारण उसी के कुकृत्य होते हैं,

किंतु धर्मी अपनी मृत्यु के अवसर पर निराश्रित नहीं छूट जाता.

33बुद्धिमान व्यक्ति के हृदय में ज्ञान का निवास होता है,

किंतु मूर्खों के हृदय में ज्ञान गुनहगार अवस्था में रख दिया जाता है.

34धार्मिकता ही राष्ट्र को उन्‍नत बनाती है,

किंतु किसी भी समाज के लिए पाप निंदनीय ही होता है.

35चतुर सेवक राजा का प्रिय पात्र होता है,

किंतु वह सेवक, जो लज्जास्पद काम करता है, राजा का कोप को भड़काता है.