व्यवस्था 31 – HCV & JCB

Hindi Contemporary Version

व्यवस्था 31:1-30

मोशेह के अंतिम निर्देश

1इन सबके बाद मोशेह ने सारे इस्राएल से यह कहा: 2“मेरी उम्र एक सौ बीस साल की हो चुकी है; अब मुझमें वह पहले के समान क्षमता नहीं रह गई है. याहवेह ने मुझे आदेश दिया है, ‘तुम इस यरदन नदी को पार नहीं करोगे.’ 3याहवेह तुम्हारे परमेश्वर ही तुम्हारे आगे हो यरदन नदी को पार करेंगे. तुम्हारे वहां पहुंचने के पहले वह इन जनताओं को नाश कर देंगे और तुम उन्हें उनके देश से वंचित कर दोगे. जो तुम्हारा अगुआ हो यरदन नदी पार करेगा, वह व्यक्ति यहोशू है ठीक जैसा याहवेह ने तय कर दिया है. 4याहवेह का व्यवहार उनके साथ वही होगा, जो अमोरियों के राजा सीहोन और ओग के साथ था, जब उन्होंने उन्हें और उनके देश को नाश किया था. 5याहवेह उन्हें तुम्हारे सामने समर्पित कर देंगे. उनके साथ तुम्हारी नीति वही होगी, जो मेरे द्वारा स्पष्ट किए गए सारे आदेशों में है. 6दृढ़ और साहसी बने रहना. तुम उनसे न भयभीत होना, न कांपने लगना; क्योंकि जो तुम्हारे साथ चल रहे होंगे, वह याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हैं. वह न तो तुम्हें निराश करेंगे और न ही तुम्हारा त्याग करेंगे.”

7इसके बाद मोशेह ने यहोशू को समस्त इस्राएल के सामने बुलाकर उन्हें आदेश दिया, “सुदृढ़ होकर साहसी बन जाओ, क्योंकि तुम्हीं इन लोगों के साथ उस देश में जाओगे, जिसे प्रदान करने की प्रतिज्ञा याहवेह ने तुम्हारे पूर्वजों से की थी, और तुम्हीं वह देश इन्हें मीरास के रूप में प्रदान करोगे. 8वह, याहवेह ही हैं, जो तुम्हारे अगुए होंगे. वह तुम्हारे साथ साथ रहेंगे, वह न तुम्हें निराश करेंगे और न ही तुम्हारा साथ छोड़ेंगे. तुम न तो भयभीत होना और न हतोत्साहित.”

व्यवस्था का सार्वजनिक वाचन

9इसके बाद मोशेह ने इस व्यवस्था को लिखकर पुरोहितों को, जो लेवी वंशज थे, जो याहवेह की वाचा का संदूक उठाने के लिए तय किए गए थे, और इस्राएल के सारी पुरनियों को सौंप दिया. 10इसके बाद मोशेह ने उन्हें यह आदेश दिया, “हर एक सात साल के बीतने पर, जो ऋण-माफ़ करने का साल होता है, कुटीर उत्सव के अवसर पर, 11जब सारा इस्राएल याहवेह तुम्हारे परमेश्वर के सामने उस स्थान पर उपस्थित होता है, जिसे वह खुद चुनेंगे, तब तुम यह व्यवस्था इस ढंग से पढ़ोगे, कि इसे सारा इस्राएल सुन ले. 12पुरुषों, स्त्रियों, बालकों और तुम्हारे नगरों में निवास कर रहे उस विदेशी को एकत्र करो, कि वे इसे सुनें और याहवेह तुम्हारे परमेश्वर के प्रति श्रद्धा धारण करना सीख लें, और इस व्यवस्था के समग्र मर्म का सावधानीपूर्वक पालन किया करें. 13इसके अलावा उनके वे बालक, जिन्हें इस विषय का कोई बोध नहीं है, यह सुनकर तुम जिस देश पर अधिकार करने के लिए यरदन नदी पार करने पर हो, उस देश में तुम जब तक जीवित रहोगे तब तक याहवेह तुम्हारे परमेश्वर के प्रति श्रद्धा रखना सीख सकें.”

इस्राएल के विद्रोह की भविष्यवाणी

14इसके बाद याहवेह ने मोशेह को सूचित किया, “सुनो, तुम्हारे प्राण त्यागने का समय निकट है; यहोशू को अपने साथ लेकर मिलनवाले तंबू में उपस्थित हो जाओ, कि मैं उसे तेरे स्थान पर नियुक्त कर सकूं.” तब मोशेह और यहोशू ने स्वयं को वहां मिलनवाले तंबू में प्रस्तुत किया.

15छावनी में याहवेह बादल के खंभे में प्रकट हुए. यह मेघ-स्तंभ छावनी के प्रवेश पर ठहर गया. 16याहवेह ने मोशेह से कहा, “सुनो, तुम अपने पूर्वजों के साथ हमेशा के लिए मिल जाने पर हो. ये लोग तो उस देश के पराए देवताओं से प्रभावित हो, मेरे साथ मेरे द्वारा स्थापित की गई वाचा भंग कर, मेरा त्याग कर देंगे, और मेरे साथ वैवाहिक विश्वासघात कर देंगे. 17उस स्थिति में उनके विरुद्ध मेरा कोप भड़क जाएगा. उस स्थिति में मैं उनसे अपना मुखमंडल छिपाकर उनका त्याग कर दूंगा, और वे काल का कौर हो जाएंगे. उन पर अनेक अनिष्ट और कष्ट आ पड़ेंगे, परिणामस्वरूप, वे कह उठेंगे, ‘क्या, हमारे बीच हमारे परमेश्वर की अनुपस्थिति नहीं, हम पर इन विपत्तियां आने की वजह?’ 18मगर इतना तो निश्चित है, कि इस स्थिति में मैं उनसे विमुख हो ही जाऊंगा, क्योंकि उन्होंने परकीय देवताओं की ओर उन्मुख होने का कुकर्म किया है.

19“इसलिए अब, इस गीत की रचना करो और यह सारे इस्राएलियों को सिखा दो, कि यह गीत उनके होंठों पर बस जाए, कि यह गीत इस्राएलियों के प्रति मेरे लिए गवाह हो जाए. 20क्योंकि जब वे मेरे साथ इस देश में प्रवेश करेंगे, जहां, दुग्ध और मधु का बाहुल्य है, जिसकी प्रतिज्ञा मैंने उनके पूर्वजों से की थी, जब वे वहां इनके उपभोग से तृप्‍त हो जाएंगे, जहां वे समृद्ध हो जाएंगे, तब वे पराए देवताओं की ओर उन्मुख होकर उनकी उपासना करने लगेंगे, मेरी उपेक्षा करते हुए मेरी वाचा को भंग कर देंगे. 21फिर होगा यह कि अनेक विपत्तियां और आपदाएं उन्हें छा लेंगी, तब यह गीत उनके सामने एक गवाह हो जाएगा, क्योंकि उनके वंशज इस गीत को भुला न पाएंगे. मुझे तो आज ही यह मालूम है कि कौन सी योजना उनके मन में अंकुरित हो रही है, जबकि अभी तक मैंने उन्हें पराए देश में प्रवेश नहीं करवाया है.” 22तब मोशेह ने उसी दिन इस गीत की रचना की और इसे इस्राएलियों को सिखा दिया.

23इसके बाद याहवेह ने नून के पुत्र यहोशू को आदेश दिया, “मजबूत हो जाओ और साहस बनाए रखो, क्योंकि तुम्हीं हो, जो इन इस्राएलियों को उस देश में लेकर जाओगे, जिसकी प्रतिज्ञा मैंने उनसे की थी. मैं तुम्हारे साथ रहूंगा.”

24जब मोशेह ने व्यवस्था के इन शब्दों को एक पुस्तक में लिखना समाप्‍त कर लिया, 25मोशेह ने उन लेवियों को, जो याहवेह की वाचा के संदूक को उठाने के लिए चुने गए हैं, यह आदेश दिया, 26“व्यवस्था के इस ग्रंथ को लेकर याहवेह, अपने परमेश्वर की वाचा के संदूक के पास रख दो, कि यह वहां तुम्हारे लिए गवाह के रूप में बना रहे. 27मुझे तुम्हारा विद्रोह और तुम्हारा हठ मालूम है. अब यह समझ लो: जब आज मैं तुम्हारे बीच जीवित हूं, तुम याहवेह के प्रति इस प्रकार विद्रोही रहे हो; तो मेरी मृत्यु के बाद और कितने अधिक न हो जाओगे! 28अब अपने-अपने गोत्रों के सारे पुरनियों और अधिकारियों को मेरे सामने ले आओ, कि मैं उन्हें यह बातें सुना दूं और आकाश और पृथ्वी को उनके विरुद्ध गवाह बना दूं. 29क्योंकि मुझे यह मालूम है कि मेरी मृत्यु के बाद तुम भ्रष्‍ट हो जाओगे और उस नीति से दूर हो जाओगे, जिसका मैंने तुम्हें आदेश दिया है. अंततः तुम पर कष्ट आ ही पड़ेगा; क्योंकि तुम वही कर रहे होगे, जो याहवेह की दृष्टि में गलत है. तुम अपने हाथों के कामों के द्वारा याहवेह के क्रोध को भड़का दोगे.”

मोशेह का गीत

30तब मोशेह ने इस्राएल की सारी प्रजा को सुनाते हुए इस गीत के सारे शब्द पढ़ दिए:

Japanese Contemporary Bible

申命記 31:1-30

31

後継者ヨシュアの任命と律法朗読の指示

1-2モーセはさらにことばを続けました。「私はすでに百二十歳です。これ以上あなたがたを指導することはできません。それに、ヨルダン川を渡ってはならないと主から言われています。 3これからは、主ご自身があなたがたを導き、川向こうの国々を滅ぼされます。そこを征服するための新しい司令官は、主が告げられたようにヨシュアです。 4エモリ人の王シホンやオグと戦った時のことは忘れていないでしょう。主はその国々にも同じようにされます。 5完全にあなたがたの自由になるようにしてくださるので、命令どおり、必ず滅ぼしなさい。 6心を強くもち、勇敢に戦いなさい。恐れてはいけません。おじけづいてはいけません。主が味方なのです。主は絶対に、あなたを裏切ったり見捨てたりなさいません。」

7ここで、モーセはヨシュアを呼び、イスラエル全国民の前で命じました。「心を強くもち、勇敢にふるまいなさい。あなたに、約束の地へ民を導き入れる務めを与えよう。そこを征服するのを見届けなさい。 8主が味方だから、恐れてはならない。主はいつも先頭に立ち、途中で見放すことも見捨てることもなさらないのだ。」

9それから、モーセは以上の律法を書き記し、十戒の入った箱(契約の箱)をかつぐレビ人の祭司と、長老とに渡しました。 10-11この律法を、七年目ごとの負債免除の年の仮庵の祭りに、全国民が聖所で主の前に集まった時、読み聞かせるのです。 12そのことについて、主はモーセにこう命じました。「男も、女も、子どもも、在留外国人も全員集めて、主の律法を読み聞かせなさい。どのように生きることをわたしが望んでいるかを彼らに学ばせるのだ。こうして、わたしを大切にし、忠実に律法を守ることをくり返し教えれば、 13今この教えを知らない子どもたちも、約束の地に住む間、主をどのように敬うかを学ぶだろう。」

14このあと主はモーセに、「いよいよあなたの最期が来た。これからのことを指示するから、ヨシュアを幕屋(神がイスラエルの民と会う場所)に来させなさい」と告げました。二人は命じられたとおり、主の前に立ちました。

15すると、幕屋の入口に大きな雲が現れ、その中から主の声がありました。 16「モーセよ、あなたは死んで先祖の仲間に加えられる。そのあとこの民は、約束の地で外国の神々を拝むようになる。わたしのことなどすっかり忘れ、平気で契約を破るだろう。 17そうなれば、黙っているわけにはいかない。彼らを見捨て、顔をそむけてしまおう。次々と恐ろしい目に会い、もうだめだという時、ようやく彼らは気がつき、『神様はもう私たちの味方ではない』と言うだろうが、すでに手遅れだ。 18あれほど禁じたのに外国の神々を拝む者には、わたしもきっぱりと背を向けるだけである。

19その警告のために、次の歌を書き記しなさい。 20彼らの先祖に約束した乳とみつの流れる地で順調にいき、ぜいたくに慣れてくると、彼らはわたしをうとみ、平然と契約を破り、外国の神々を拝むようになるからだ。 21そしてついに、大きな災いが襲うのだ。その時、代々歌い続けられたこの歌を聞き、どうしてそんなことが起こったのか思い知るだろう。この民がどんな民か、約束の地に入る前からわたしははっきり知っている。」

22その日モーセは、歌を書き記し、イスラエルの国民に教えました。

23それから主は、ヌンの子ヨシュアに、「強く、勇敢な者でありなさい。約束の地にイスラエルの民を導き入れなさい。わたしはいつもあなたと共にいる。」と命じました。

24モーセはすべての律法を書き終えると、 25十戒の入った箱をかつぐレビ人に、 26この律法を箱のそばに置き、民への厳粛な警告とするよう指示しました。

27「あなたがたが反抗的で強情であることはわかっている。こうして私がいっしょにいてさえ主に反抗するのだから、私が死んだらどうなることかわかったものではない。 28さあ、部族の長老、高官を全員集めなさい。天と地とを証人に立てて、言っておきたいことがある。 29私の死後、あなたがたはきっと堕落し、主の命令に背くだろう。主を怒らせるような悪いことをし、その報いで結局は破滅を招くのだ。」

30それでモーセは、イスラエルのすべての民に聞こえるように、次の歌を初めから終わりまで歌いました。