व्यवस्था 28 – HCV & CCB

Hindi Contemporary Version

व्यवस्था 28:1-68

आज्ञाकारिता जनित सुख

1अब भविष्य यह होगा, कि यदि तुम सावधानीपूर्वक याहवेह, अपने परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी रहोगे, जो आदेश मैं आज तुम्हें सौंप रहा हूं, याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर तुम्हें पृथ्वी के सारे राष्ट्रों से अति महान बनाए रखेंगे. 2तुम इन सभी सुख समृद्धि से अभिभूत हो जाओगे, ये तुम तक पहुंच जाएंगी, सिर्फ यदि तुम याहवेह, अपने परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी बने रहोगे:

3याहवेह तुम्हारे नगरों और खेतों को आशीष प्रदान करेंगे.

4याहवेह तुम्हारे बच्चों को आशीर्वाद देंगे. वे तुम्हारी भूमि की फसल आशीषित होगी, और तुम्हारे जानवरों के बच्‍चे आशीषित होंगे.

5आशीषित रहेगी तुम्हारी टोकरी और तुम्हारा आटा गूंथने का कटोरा.

6आशीषित रहोगे तुम, जब तुम कुछ करोगे और धन्य रहोगे तुम, जब तुम लौटकर आओगे.

7याहवेह तुम्हारे उठे हुए शत्रुओं को हराने की योजना करेंगे; वे एक मार्ग से तुम पर हमला करने तो आएंगे. मगर तुम्हारे सामने भागते हुए सात दिशाओं में बिखर जाएंगे.

8याहवेह तुम्हारे अन्‍नभण्डारों को, तुम्हारे हर एक उपक्रम को और उस देश को, जो याहवेह तुम्हारे परमेश्वर तुम्हें प्रदान कर रहे हैं, समृद्धि का आदेश देंगे.

9याहवेह तुम्हें अपने ही लिए पवित्र प्रजा-स्वरूप प्रतिष्ठित करेंगे; जैसी प्रतिज्ञा वह तुमसे खुद कर चुके हैं, यदि तुम याहवेह अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन करते हुए उनकी नीतियों का पालन करते रहोगे. 10परिणामस्वरूप सारी पृथ्वी के लोग इस बात के गवाह होंगे कि तुम वह प्रजा हो, जिसका सम्मान याहवेह के नाम से है. इससे उन पर तुम्हारा आतंक स्थापित हो जाएगा. 11याहवेह, तुम्हारी संतान में, तुम्हारे पशुओं की सन्तति में और तुम्हारी भूमि के उत्पाद में, तुम्हारी समृद्धि को उस देश में, जो याहवेह ने तुम्हारे पूर्वजों को देने की प्रतिज्ञा की थी, पूरा करेंगे.

12याहवेह अपने बड़े भंडार को तुम्हारे लिए उपलब्ध कर देंगे; आकाश अपनी तय ऋतु में भूमि पर वृष्टि करेगा, तुम्हारे सारे काम सफल होंगे और तुम अनेक राष्ट्रों को ऋण दोगे, मगर खुद तुम्हें किसी से ऋण लेने की ज़रूरत न होगी. 13याहवेह तुम्हें सबसे ऊंचा ही बनाए रखेंगे, पूंछ नहीं; तुम ऊंचाई पर ही रहोगे, अधीन कभी नहीं, यदि तुम याहवेह, अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन करोगे, जो आज मैं तुम्हें सौंप रहा हूं; कि तुम सावधानीपूर्वक उनका पालन करते रहो, 14कि तुम इनसे, इनमें से किसी के मर्म से ज़रा भी विचलित न होओ, और पराए देवताओं की उपासना-सेवा में लीन हो जाओ.

अनाज्ञाकारिता के लिए शाप

15मगर यदि स्थिति यह हो जाए, कि आज तुम मेरे द्वारा दिए जा रहे, याहवेह तुम्हारे परमेश्वर के आदेशों और नियमों का पालन न करो, तो ये सारे शाप तुम्हें आ घेरेंगे, और तुम पर प्रभावी हो जाएंगे:

16तुम अपने नगर में शापित होंगे, तुम अपने देश में शापित होंगे.

17शापित होंगी तुम्हारी टोकरी और तुम्हारे गूंथने का पात्र.

18शापित होंगी तुम्हारी अपनी संतान, तुम्हारी भूमि की उपज, तुम्हारे पशुओं और भेड़ों की वृद्धि.

19शापित होगा तुम्हारा कूच और तुम्हारा लौटकर आना.

20तुम्हारे सारे कामों में तुम्हारे कामों के दुराचार और तुम्हारे द्वारा याहवेह का त्याग किए जाने के कारण याहवेह तुम पर शाप, डर और कुंठा डाल देंगे, कि तुम नाश हो जाओ और तेजी से तुम्हारा विनाश हो जाए. 21याहवेह तुम पर महामारी सम्बद्ध कर देंगे, जब तक वह तुम्हें उस देश से नाश न कर दें, जिसमें अधिकार करने के लिये तुम उसमें प्रवेश कर रहे हो. 22याहवेह तुम पर क्षय रोग, बुखार, सूजन, बड़ी जलन और तलवार का प्रहार प्रभावी करेंगे, जब तक तुम मिट न जाओ. 23तुम्हारे सिर के ऊपर विशाल आकाश कांसे और पांवों के नीचे की धरती लोहा हो जाएगी. 24याहवेह, तुम पर बालू और धूल की बारिश करेंगे; ये आकाश से तुम पर ये तब तक बरसते रहेंगे जब तक तुम नाश न हो जाओ.

25याहवेह, ऐसा करेंगे, कि तुम अपने शत्रुओं द्वारा हरा दिए जाओगे. उन पर हमला करने तो तुम एक मार्ग से जाओगे, मगर तुम सात दिशाओं में पलायन करोगे. सारी पृथ्वी के राज्यों के लिए तुम आतंक का पर्याय हो जाओगे. 26तुम्हारे शव आकाश के सारे पक्षियों और पृथ्वी के पशुओं का आहार हो जाएंगे और उन्हें खदेड़ने के लिए वहां कोई भी न रहेगा. 27मिस्र देश के समान याहवेह तुम पर फोड़ों, बतौरियों का वार करेंगे और उसके अलावा चकत्ते और खुजली का भी, जिनसे तुम्हें छुड़ौती प्राप्‍त हो ही न सकेगी. 28याहवेह तुम पर पागलपन, अंधेपन और हृदय की घबराहट का वार कर देंगे. 29परिणामस्परूप तुम दिन-दोपहरी टटोलते रहोगे, जिस प्रकार अंधा टटोलता रहता है. तुम्हारे कामों से तुम्हें कोई लाभ न मिलेगा, बल्कि तुम लगातार उत्पीड़ित भी किए जाओगे और लूटते जाओगे, मगर वहां तुम्हारी रक्षा के लिए कोई भी न रह जाएगा.

30जिस कन्या से तुम्हारी सगाई होगी, कोई अन्य पुरुष शीलभंग करेगा; तुम अपने घर का निर्माण तो करोगे, मगर उसमें निवास न कर सकोगे. तुम अंगूर के बगीचे तो लगाओगे मगर अंगूरों का उपभोग न कर सकोगे. 31तुम्हारे बछड़े का वध तुम्हारे सामने तो होगा मगर तुम उसका उपभोग न कर सकोगे. तुम्हारा गधा तुमसे छीन लिया जाएगा. और तुम उसे पुनः प्राप्‍त न कर सकोगे. तुम्हारी भेड़ें तुम्हारे शत्रुओं की संपत्ति हो जाएंगी और कोई भी तुम्हारी रक्षा के लिए वहां न रहेगा. 32तुम्हारे पुत्र-पुत्रियां तुम्हारे देखते-देखते बंधुआई में चले जाएंगे और तुम हमेशा उनकी लालसा करते रह जाओगे, मगर इसके लिए तुम कुछ भी न कर सकोगे. 33तुम्हारी भूमि का उत्पाद विदेशियों का आहार हो जाएगा और तुम आजीवन उत्पीड़ित और दमित किए जाते रहोगे. 34तुम्हारे सामने जो कुछ आएगा उसे देख तुम विक्षिप्‍त हो जाओगे. 35याहवेह तुम्हारे पैरों और घुटनों में ऐसे पीड़ादायक फोड़े उत्पन्‍न कर देंगे, जिनसे तुम स्वस्थ नहीं हो सकोगे, वस्तुतः तुम सिर से पांव तक घावों से भर जाओगे.

36याहवेह तुम्हें और उस राजा को, जो तुम्हारे द्वारा प्रतिष्ठित किया गया होगा, एक ऐसे राष्ट्र में भेज देंगे, जिसे न तो तुम जानते हो और न ही जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने जाना था. उस राष्ट्र में तुम काठ और पत्थर की मूर्तियों की सेवा-उपासना करोगे. 37तब तुम उन लोगों के बीच, जिनके बीच में याहवेह तुम्हें हकाल देंगे, भय, लोकोक्ति और उपहास का विषय होकर रह जाओगे.

38तुम विपुल बीज बोओगे, मगर फसल काटने के अवसर पर तुम बहुत अल्प एकत्र कर सकोगे, क्योंकि टिड्डियां इसे चट कर जाएंगी. 39तुम द्राक्षा उद्यानों का रोपण और कृषि ज़रूर करोगे, मगर तुम न तो द्राक्षा एकत्र कर सकोगे और न ही द्राक्षारस का सेवन कर सकोगे, इन्हें कीट चट कर जाएंगे. 40तुम्हारे देश की सारी सीमा में ज़ैतून वृक्ष तो होंगे, मगर तुम ज़ैतून तेल का प्रयोग अभ्यंजन के लिए नहीं कर सकोगे, क्योंकि ज़ैतून फलों का अवपात हो जाएगा. 41तुम्हारे पुत्र-पुत्रियां पैदा ज़रूर होंगे, मगर वे तुम्हारे होकर न रह सकेंगे, क्योंकि उन्हें बन्दीत्व में ले जाया जाएगा. 42कीट तुम्हारे सारे वृक्षों और भूमि की उपज में समा जाएंगे.

43तुम्हारे बीच प्रवास कर रहा विदेशी तुमसे अधिक उन्‍नत होता जाएगा, मगर खुद तुम्हारा ह्रास ही ह्रास होता चला जाएगा. 44वह विदेशी ही तुम्हें ऋण देने की स्थिति में होगा, मगर तुम उसे ऋण देने की स्थिति में न रहोगे. वह तो शीर्ष पर पहुंच जाएगा, मगर तुम निम्नतम स्तर पर रह जाओगे.

45इस प्रकार ये सारे शाप तुम पर प्रभावी हो जाएंगे, तुम्हारा पीछा करते रहेंगे, तुम्हें पकड़ लेंगे, कि तुम पूरी तरह नाश हो जाओ, क्योंकि तुमने याहवेह तुम्हारे परमेश्वर के आदेशों का पालन नहीं किया, उनके अध्यादेशों को पूरा नहीं किया, जो खुद उन्हीं ने तुम्हें प्रदान किए हैं. 46ये शाप तुम्हारे और तुम्हारे वंशजों के लिए चिन्ह और अलौकिक घटनाएं होकर रह जाएंगे. 47इसलिये कि तुमने इन सारी समृद्धि के लिए याहवेह, अपने परमेश्वर की वंदना न तो सहर्ष भाव में की और न सच्चे हृदय के साथ, 48इसलिये तुम याहवेह द्वारा उत्प्रेरित अपने शत्रुओं के सेवक होकर रह जाओगे; जब तुम भूख, प्यास, नंगाई और सब प्रकार के अभाव की स्थिति में रहोगे. याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर तुम्हारी गर्दन पर लोहे का जूआ तब तक रखे रहेंगे, जब तक वह तुम्हें नाश न कर दें.

49याहवेह दूरस्त देश को तुम पर हमला के लिए प्रेरित करेंगे; हां, पृथ्वी के छोर से, जिस प्रकार गरुड़ झपटता है, वह ऐसा राष्ट्र होगा, जिसकी भाषा तुम समझ नहीं पाओगे, 50वह रौद्र स्वरूप राष्ट्र होगा. उसके हृदय में न तो वृद्धों के प्रति सम्मान होगा, न बालकों के प्रति करुणा. 51इसके अलावा वह राष्ट्र तब तक तुम्हारे पशुओं के बच्चों और भूमि की उपज का उपभोग करता रहेगा, जब तक तुम नाश न हो जाओ. अर्थात् वह राष्ट्र तुम्हारे उपभोग के लिए न तो अन्‍न छोड़ेगा, न नया द्राक्षारस न नया तेल, न तुम्हारे पशुओं की सन्तति और न ही भेड़ों के मेमने, जिससे तुम नाश हो ही जाओगे. 52वह राष्ट्र तुम्हारे सारे नगरों में की घेराबंदी कर लेगा और उसके हमला के परिणामस्वरूप वे उस पूरे देश में, जो तुम्हें याहवेह तुम्हारे परमेश्वर द्वारा प्रदान किया गया था, जिन शहरपनाहों पर तुम्हें पूरा भरोसा रहा था, भंग कर देंगे.

53शत्रुओं द्वारा की गई घेराबंदी और उसके द्वारा दी गई प्रताड़ना के कारण तुम अपनी निज संतान को खाने लगोगे, तुम्हारे अपने पुत्र-पुत्रियों के मांस को, जो तुम्हें याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर द्वारा प्रदान किए गए हैं. 54उस समय वह व्यक्ति, जो तुम्हारे बीच में बहुत शालीन और संवेदनशील माना जाता है, वही अपने सहनागरिकों, अपनी प्रिय पत्नी और अपनी शेष संतान के प्रति निर्मम हो जाएगा, 55वह अपनी संतान के मांस में से किसी को कुछ न देगा, क्योंकि अभाव इतना ज्यादा हो जाएगा. ऐसी भयावह हो जाएगी वह स्थिति, जब तुम्हारे वे शत्रु तुम्हारे सारे नगरों में तुम पर अत्याचार करते रहें. 56तुम्हारे बीच वह स्त्री, जो बहुत शालीन और सुकुमारी मानी जाती है, जो इतनी परिष्कृत और सुकुमारी है, कि वह अपने पांव तक भूमि पर नहीं पड़ने देती, वही अपने प्रिय पति और पुत्र-पुत्री के प्रतिकूल हो जाएगी. 57वह उन्हें न तो अपने गर्भ की ममता दिखाएगी और न नवजात शिशु की, क्योंकि शत्रुओं द्वारा घेरे गए तुम्हारे नगर की स्थिति ऐसी शोचनीय हो चुकी होगी, कि वह खुद इन्हें छिप-छिप कर खाती रहना चाहेगी.

58यदि तुम इस व्यवस्था में लिखित विधि के सब वचनों का पालन के प्रति सावधान न रहोगे, इस सम्मान्य और उदात्त नाम याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के प्रति श्रद्धा न रखो, 59तब याहवेह तुम पर और तुम्हारे वंशजों पर अभूतपूर्व महामारियां ले आएंगे. ये महामारियां बहुत पीड़ादायी और स्थायी प्रकृति की और चिरकालिक और दयनीय व्याधियां होंगी. 60याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर मिस्र देश पर प्रभावी की गई सारी व्याधियां तुम पर प्रभावी कर देंगे, जो तुम्हारे लिए भयावह बनी हुई थीं, वे तुम पर संलग्न हो जाएंगी. 61यहां तक कि वे सारी व्याधियां और वे सारी महामारियां, जिनका उल्लेख इस विधान अभिलेख में नहीं किया गया है, याहवेह तुम पर प्रभावी कर देंगे, कि तुम्हारा विनाश हो जाए. 62तब तुम्हारी गिनती कम रह जाएगी, जबकि एक समय तुम ऐसे अनगिनत थे, जैसे आकाश के तारे. कारण यह है, कि तुम याहवेह तुम्हारे परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारी हो गए थे. 63जिस प्रकार एक समय याहवेह की तुष्टि तुम्हारे जनसंख्या के बढ़ने और समृद्धि में थी, उसी प्रकार याहवेह की तुष्टि होगी तुम्हें नाश कर देने और मिटा देने में. तुम जिस देश पर अधिकार करने के उद्देश्य से उसमें प्रवेश कर रहे हो, तुम वहां से निकाल दिए जाओगे.

64इसके अलावा, याहवेह ही तुम्हें हर जगह बिखरा देंगे; पृथ्वी के एक छोर से अन्य छोर तक. वहां तुम पराए देवताओं—पत्थर और लकड़ी के देवताओं के सेवक बन जाओगे, तुम्हारे पूर्वजों से सर्वथा अज्ञात देवताओं के. 65इन जनताओं के बीच निवास करते हुए तुम्हें ज़रा भी शांति प्राप्‍त न होगी. मगर हां, वहां याहवेह तुम्हें एक चिंतित हृदय प्रदान करेंगे. तुम्हारी दृष्टि क्षीण होती जाएगी और तुममें साहस न रह जाएगा. 66तुम हमेशा संशय की स्थिति में रहोगे, तुम दिन में और रात में आतंक से भरे रहोगे, तुम्हारे जीवन का कोई निश्चय न रह जाएगा. 67प्रातः तुम विचार करोगे, “उत्तम होगा यह प्रातः नहीं, संध्या होती!” वैसे ही तुम संध्याकाल में यह कामना करते रहोगे: “उत्तम होता कि यह प्रभात होता!” यह उस आतंक के कारण होगा, जिसने तुम्हें भर रखा है, उस दृश्य के कारण, जो तुम्हारे सामने छाया रहता है. 68याहवेह, जो तुम्हें जलयानों में मिस्र देश में लौटा ले जाएंगे; उस मार्ग से जिसके विषय में मैंने कहा था, अब तुम इसे फिर कभी न देखोगे. तब तुम वहां खुद को अपने शत्रुओं के सामने पुरुष और स्त्री, दास-दासियों स्वरूप बिकने के लिए प्रस्तुत कर दोगे, मगर तुम्हें वहां कोई खरीददार प्राप्‍त न होगा.

Chinese Contemporary Bible 2022 (Simplified)

申命记 28:1-68

遵守诫命蒙祝福

1“你们若全心顺服你们的上帝耶和华,谨遵祂今天借我吩咐你们的一切诫命,祂必使你们超越天下万国。 2你们若听从你们的上帝耶和华的话,以下这些福气必临到你们,追随你们。

3“无论你们在城里还是乡间,都必蒙福。

4“你们必子孙昌盛,五谷丰登,牛羊成群。

5“你们的篮子和揉面盆都必蒙福。

6“你们出入都必蒙福。

7“耶和华必使来犯之敌败在你们面前、溃不成军、四散逃命。

8“耶和华必使你们凡事蒙福、五谷满仓。你们的上帝耶和华必在祂赐给你们的土地上赐福你们。

9“你们若遵守你们上帝耶和华的诫命,遵行祂的旨意,祂必按自己的誓言立你们作祂圣洁的子民。 10天下万民将看出你们是耶和华名下的子民,并惧怕你们。

11“在耶和华向你们祖先起誓要赐给你们的土地上,祂必使你们子孙昌盛、牛羊成群、五谷丰登。 12耶和华要为你们打开天上的宝库,使你们风调雨顺、凡事蒙福。你们必借贷给多国,却无需向别国借贷。 13-14你们若听从你们的上帝耶和华借我今天吩咐你们的诫命,谨慎遵行,毫不偏离,也不随从、供奉其他神明,祂必使你们做首不做尾,居上不居下。

违背诫命受咒诅

15“你们若不听从你们的上帝耶和华,不谨遵祂今天借我吩咐你们的一切诫命和律例,祂必使以下的咒诅临到你们,追随你们。

16“无论你们在城里还是乡间,都必受咒诅。

17“你们的篮子和揉面盆都必受咒诅。

18“妇女所生的,土地所产的,牛羊所生的都必受咒诅。

19“你们出入都必受咒诅。

20“因为你们作恶、背弃耶和华,祂要使你们凡事受咒诅、混乱不堪、饱受责罚,直到你们被毁灭,迅速灭亡。

21“耶和华要使瘟疫紧紧跟随你们,直到你们在将要占领的土地上被灭绝。

22“耶和华要使你们遭受痨病、热症、炎症、炙热、刀剑、干旱和霉烂之灾。这些要危害你们,直到你们灭亡。

23“耶和华要使你们头顶的天如铜,脚下的地如铁。

24“耶和华要使雨水变为尘土,降在你们身上,直到你们灭亡。

25“耶和华要使你们被敌人击败、溃不成军、四散逃命,下场令天下万国惊惧。 26你们的尸体要成为飞禽走兽的食物,必无人赶走它们。

27“耶和华要使你们患埃及的脓疮、肿瘤和癣疥,无药可治。

28“耶和华要使你们发疯、瞎眼、心智错乱。

29“你们必在大白天摸索,就像盲人在黑暗中摸索一样,你们的道路必不得亨通,你们要终日受人欺压抢掠,无人搭救。

30“你们聘了妻子,别人必占有她们;你们盖了房屋,必不能住在里面;你们栽种葡萄园,必吃不到园中的出产。

31“你们必看着自己的牛被宰杀却吃不到肉,自己的驴被抢走后一去不还,自己的羊被敌人掳走却无人搭救, 32自己的儿女被外族人掳走,你们终日望眼欲穿,却无能为力。

33“与你们素不相识的民族必吃光你们土地的出产和劳碌所得,你们必常受欺压, 34以致眼前的一切令你们发疯。

35“耶和华要使你们从头到脚长满毒疮,无药可治。

36“耶和华要带你们和你们立的王,到一个你们和你们祖先都不知道的国家,你们要在那里供奉木石神像。

37“在耶和华驱逐你们去的列国,你们的下场令人惊骇,被人嘲笑和讥讽。

38“你们种的多,却收的少,因为庄稼必被蝗虫吃掉。

39“你们栽种、修剪葡萄园,却吃不到葡萄,也喝不到葡萄酒,因为葡萄必被虫子吃掉。

40“你们境内长满橄榄树,却没有橄榄油抹身,因为橄榄必未熟先落。

41“你们生儿育女,却留不住一个,因为他们必被掳走。

42“蝗虫要吃光你们的树木和地上的出产。

43“你们中间的外族人要日益兴旺,你们却要日渐衰微。

44“他们要借贷给你们,你们却不能借贷给他们。他们要做首,你们要做尾。

45“因为你们不听从你们上帝耶和华的话,不遵守祂吩咐你们的诫命和律例,这些咒诅都必临到你们、追赶你们,直到毁灭你们。 46这些咒诅要永远作为你们和你们子孙的神迹奇事。 47因为你们在富足时不心甘情愿地事奉你们的上帝耶和华, 48所以你们必饥饿干渴、赤身裸体、一无所有地侍奉耶和华派来攻击你们的敌人。祂要把铁轭加在你们的颈上,直到消灭你们。

49“耶和华要使一国从遥远的地极兴起,他们要如鹰飞来袭击你们。你们不懂他们的语言。 50他们面目狰狞,不尊重年老的,也不怜悯年少的。 51他们要吃光你们的牛羊、五谷、新酒和油,直到消灭你们。 52在你们的上帝耶和华所赐给你们的整片土地上,他们要把你们围困在各个城邑中,直到你们所依赖的高大坚固的城墙都倒塌。

53“当你们被敌人围困、陷入绝境时,你们必吃自己的亲生骨肉,就是你们的上帝耶和华赐给你们的儿女。 54-55你们被敌人围困在各城中,陷入绝境时,连你们中间最温柔体贴的男人也要独自吞吃子女的肉,不肯分给自己的兄弟、爱妻和剩下的儿女,因为他别无所有。 56-57你们被敌人困在各城中,陷入绝境时,连你们中间最温柔、娇嫩得连脚也不肯踏在地上的妇女,都要偷偷吃掉自己生的婴儿和胎胞,不肯分给所爱的丈夫和子女。

58“如果你们不谨遵这书上所写的一切律法,不敬畏你们的上帝耶和华那荣耀、可畏的名, 59祂必使你们及子孙遭遇严重而长久的灾难和疾病, 60使你们所惧怕的埃及人的一切疾病都降在你们身上,缠住你们, 61还使各种未记在这律法书上的疾病和灾难降在你们身上,直到消灭你们。 62因为你们不听从你们的上帝耶和华的话,即使你们的人数多如天上的星,也将所剩无几。 63正如耶和华喜欢赐福你们,使你们人丁兴旺,祂也同样会不惜消灭你们,使你们在将要占领的土地上被铲除。

64“耶和华要把你们分散到天下万邦,你们要在那里供奉祖祖辈辈素不认识的木石神像。 65你们在万邦中将不得安宁,没有落脚之地,耶和华必使你们胆战心惊、目光呆滞、精神颓废。 66你们必惴惴不安,昼夜恐惧,生死难料。 67你们必看见可怕之事,以致心中充满恐惧,早上盼望天黑,晚上盼望天亮。 68耶和华必沿着我曾说你们再不会走的路线,用船把你们送回埃及。你们将在那里卖身做敌人的仆婢,却无人买。”