यहेजकेल 20 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

यहेजकेल 20:1-49

विद्रोही इस्राएल का प्रायश्चित करना

1सातवें वर्ष के पांचवें महीने के दसवें दिन, इस्राएल के कुछ अगुए याहवेह की इच्छा जानने के लिये आये और वे मेरे सामने बैठ गये.

2तब याहवेह का वचन मेरे पास आया: 3“हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के अगुओं से बात करो और उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: क्या तुम मेरी इच्छा जानने आए हो? मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, मैं तुम्हें अपनी इच्छा नहीं बताऊंगा, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.’

4“क्या तुम उनका न्याय करोगे? हे मनुष्य के पुत्र, क्या तुम उनका न्याय करोगे? तब उनके पूर्वजों के द्वारा किए घृणित कार्य उन्हें बताओ 5और उनसे कहो: ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: जिस दिन मैंने इस्राएल को चुन लिया, मैंने अपना हाथ उठाकर याकोब के वंशजों से शपथ खाई और अपने आपको मिस्र देश में उन पर प्रकट किया. हाथ उठाकर मैंने उनसे कहा, “मैं याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं.” 6उस दिन मैंने उनसे शपथ खाई कि मैं उन्हें मिस्र देश से निकालकर एक ऐसे देश में ले आऊंगा, जिसे मैंने उनके लिये खोजा था, एक ऐसा देश जिसमें दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और जो सब देशों से सुंदर है. 7और मैंने उनसे कहा, “तुममें से हर एक उन निकम्मे मूर्तियों को निकाल फेंको, जिन पर तुम्हारी दृष्टि लगी रहती है, और मिस्र की मूर्तियों से अपने आपको अशुद्ध मत करो. मैं याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं.”

8“ ‘परंतु उन्होंने मेरे विरुद्ध विद्रोह किया और मेरी बातें नहीं सुनी; उन्होंने उन निकम्मी मूर्तियों को नहीं फेंका, जिन पर उनकी दृष्टि लगी हुई थी, और न ही उन्होंने मिस्र की मूर्तियों का परित्याग किया. इसलिये मैंने कहा कि मैं उन पर अपना कोप उंडेलूंगा और मिस्र देश में उनके विरुद्ध अपना क्रोध दिखाऊंगा. 9पर अपने नाम के निमित्त मैं उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया. मैंने ऐसा इसलिये किया ताकि मेरा नाम उन जातियों के दृष्टि में अपवित्र न ठहरे, जिनके बीच वे रहते थे और जिनके देखते में मैंने अपने आपको इस्राएलियों पर प्रकट किया था. 10इसलिये मैं उन्हें मिस्र देश से निकालकर निर्जन प्रदेश में ले आया. 11मैंने उन्हें अपने नियम दिये और उन्हें अपना कानून बताया, जिनका यदि कोई व्यक्ति पालन करता है, तो वह जीवित रहेगा. 12मैंने उनके लिये अपने शब्बाथ20:12 शब्बाथ सातवां दिन जो विश्राम का पवित्र दिन है भी ठहराए, जो मेरे और उनके बीच एक चिन्ह हो, ताकि वे जानें कि मैं याहवेह ने उन्हें पवित्र बनाया है.

13“ ‘तो भी इस्राएल के लोगों ने निर्जन प्रदेश में मेरे विरुद्ध विद्रोह किया. वे मेरे नियमों पर नहीं चले और मेरे कानूनों को अस्वीकार किया—जिनका यदि कोई व्यक्ति पालन करता है, तो वह जीवित रहेगा—और उन्होंने पूरी तरह से मेरे विश्राम दिन को अपवित्र किया. इसलिये मैंने कहा कि मैं उन पर अपना कोप उंडेलूंगा और निर्जन प्रदेश में उन्हें नाश कर दूंगा. 14पर अपने नाम के निमित्त मैंने वह किया जिससे मेरा नाम उन जनताओं की दृष्टि में अपवित्र न ठहरे, जिनके देखते मैं उन्हें निकाल लाया था. 15अपना हाथ उठाकर निर्जन प्रदेश में, मैंने शपथ भी खाई कि मैं उन्हें उस देश में नहीं लाऊंगा, जिसे मैंने उन्हें दिया था—एक ऐसा देश जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, जो सब देशों से सुंदर है— 16इसका कारण यह था कि उन्होंने मेरे कानूनों को अस्वीकार किया और मेरे नियमों पर नहीं चले और मेरे विश्राम दिन को अपवित्र किया. क्योंकि उनका मन उनकी मूर्तियों पर लगा हुआ था. 17तौभी मैंने उन पर दया की और उन्हें नाश नहीं किया या निर्जन प्रदेश में उनका अंत नहीं किया. 18निर्जन प्रदेश में मैंने उनके बच्चों से कहा, “अपने माता-पिता के विधियों पर या उनके कानूनों पर मत चलो या उनके मूर्तियों से अपने आपको अशुद्ध मत करो. 19मैं याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं; मेरे नियमों पर चलो और ध्यानपूर्वक मेरे कानूनों का पालन करो. 20मेरे विश्राम दिनों को पवित्र मानो, कि वे मेरे और तुम्हारे बीच एक चिन्ह ठहरें. तब तुम जानोगे कि मैं याहवेह तुम्हारा परमेश्वर हूं.”

21“ ‘परंतु उनके बच्चों ने भी मेरे विरुद्ध विद्रोह किया: वे मेरे नियमों पर नहीं चले, उन्होंने मेरे कानूनों का पालन करने में सावधानी नहीं बरती, जिनके बारे में मैंने कहा था, “वह व्यक्ति जो उनका पालन करेगा, वह जीवित रहेगा,” और उन्होंने मेरे विश्राम दिनों को अपवित्र किया. इसलिये मैंने कहा मैं उन पर अपना कोप उंडेलूंगा और निर्जन प्रदेश में उनको अपना क्रोध दिखाऊंगा. 22परंतु मैंने अपना हाथ रोके रखा, और अपने नाम के निमित्त मैंने वह किया, जिससे मेरा नाम उन जनताओं के दृष्टि में अपवित्र न ठहरे, जिनके देखते में, मैं उन्हें निकाल लाया था. 23निर्जन प्रदेश में, मैंने अपना हाथ उठाकर उनसे शपथ भी खाई कि मैं उन्हें जाति-जाति के लोगों के बीच छितरा दूंगा और विभिन्‍न देशों में तितर-बितर कर दूंगा, 24क्योंकि उन्होंने मेरे कानूनों का पालन नहीं किया और मेरे नियमों को अस्वीकार किया और मेरे विश्राम दिनों को अपवित्र किया, और उनकी आंखें उनके माता-पिता के मूर्तियों पर लगी रहीं. 25इसलिये मैंने उन्हें दूसरे विधि विधान दिये जो अच्छे नहीं थे और उन्हें ऐसे कानून दिये जिसके द्वारा वे जीवित नहीं रह सकते थे; 26मैंने उन्हें उनके ही उपहारों के द्वारा अशुद्ध किया—हर पहलौठा का बलिदान किया जाना—जिससे वे अत्यंत भयभीत हों और वे जानें कि मैं याहवेह हूं.’

27“इसलिये, हे मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के लोगों से बात करो और उनसे कहो, ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: इस पर भी तुम्हारे पूर्वजों ने मुझसे विश्वासघात करके मेरी निंदा की. 28जब मैं उन्हें उस देश में ले आया, जिसे मैंने उन्हें देने की शपथ खाई थी तो वे किसी ऊंची पहाड़ी या किसी पत्तीवाले पेड़ को देखकर, वहां अपना बलिदान और भेंट चढ़ाने लगे, और अपना सुगंधित धूप जलाकर पेय बलिदान देने लगे, जिससे मेरा क्रोध भड़का. 29तब मैंने उनसे कहा: यह ऊंचा स्थान क्या है जो तुम वहां जाते हो?’

विद्रोही इस्राएल का नवीकरण

30“इसलिये इस्राएलियों से कहो: ‘परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: क्या तुम लोग अपने पूर्वजों की तरह अपने आपको अशुद्ध करोगे और उनकी निकम्मी मूर्तियों के पीछे भागोगे? 31जब तुम अपनी भेटें चढ़ाते हो—अपने बच्चों का आग में बलिदान करते हो—तो ऐसा करने के द्वारा तुम आज तक अपने आपको अपनी सब मूर्तियों के द्वारा अशुद्ध करते आ रहे हो. तो हे इस्राएलियो, क्या मैं तुमको मुझसे पूछताछ करने दूंगा? मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, मैं तुमको मुझसे पूछताछ करने नहीं दूंगा, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.

32“ ‘तुम कहते हो, “हम उन जाति-जाति और संसार के लोगों के समान होना चाहते हैं, जो लकड़ी और पत्थर की सेवा करते हैं.” पर तुम्हारे मन में जो है, वह कभी पूरा न होगा. 33मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूं, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है, मैं शक्तिशाली हाथ और बढ़ाए हुए भुजा और भड़के हुए कोप से तुम्हारे ऊपर शासन करूंगा. 34मैं तुम्हें उन जाति-जाति के लोगों और देशों से लाकर इकट्ठा करूंगा, जहां तुम बिखरे हुए हो—मैं तुम्हें शक्तिशाली हाथ और बढ़ाए हुए भुजा और भड़के हुए कोप से इकट्ठा करूंगा. 35मैं तुम्हें जनताओं के निर्जन प्रदेश में ले आऊंगा और वहां, आमने-सामने मैं तुम्हारा न्याय करूंगा. 36जैसा कि मैंने मिस्र देश के निर्जन प्रदेश में तुम्हारे पूर्वजों का न्याय किया था, वैसा ही मैं तुम्हारा न्याय करूंगा, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है. 37जब तुम मेरी लाठी के अधीन चलोगे, तो मेरा ध्यान तुम पर रहेगा, और मैं तुम्हें वाचा के बंधन में लाऊंगा. 38मैं तुम्हें उनमें से हटाकर शुद्ध करूंगा, जो मेरे विरुद्ध विद्रोह और अपराध करते हैं. यद्यपि मैं उन्हें उस देश से निकालकर लाऊंगा, जहां वे रह रहे हैं, तौभी वे इस्राएल देश में प्रवेश न कर पाएंगे. तब तुम जानोगे कि मैं याहवेह हूं.

39“ ‘हे इस्राएल के लोगों, जहां तक तुम्हारा संबंध है, परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: तुममें से हर एक जन जाए और अपनी-अपनी मूर्तियों की सेवा करे! परंतु बाद में तुम निश्चित रूप से मेरी सुनोगे और फिर मेरे पवित्र नाम को अपने उपहारों और मूर्तियों से अशुद्ध नहीं करोगे. 40क्योंकि परम प्रधान याहवेह की घोषणा है, मेरे पवित्र पर्वत, इस्राएल के ऊंचे पर्वत पर, वहां देश में, इस्राएल के सारे लोग मेरी सेवा करेंगे, और वहां मैं उन्हें स्वीकार करूंगा. तब वहां मैं तुम्हारी भेंट और उत्तम उपहारों20:40 उत्तम उपहारों पहले फल का उपहार को तुम्हारे सब पवित्र बलिदानों सहित ग्रहण करूंगा. 41मैं तुम्हें एक सुगंधित धूप के रूप में ग्रहण करूंगा जब मैं तुम्हें जनताओं के बीच से निकाल लाऊंगा और उन देशों से तुम्हें इकट्ठा करूंगा, जहां तुम तितर-बितर हो गये हो, और मैं जाति-जाति के लोगों के दृष्टि में तुम्हारे द्वारा पवित्र ठहराया जाऊंगा. 42तब तुम जानोगे कि मैं याहवेह हूं, जब मैं तुम्हें इस्राएल देश में ले आऊंगा, वह देश जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को देने की हाथ उठाकर शपथ खाई थी. 43वहां तुम अपने चालचलन और उन सब कामों को याद करोगे, जिनके द्वारा तुमने अपने आपको अशुद्ध किया है, और अपने द्वारा किए गए सब बुरे कामों के कारण, तुम अपने आपसे घृणा करोगे. 44हे इस्राएल के लोगों, जब मैं तुम्हारे बुरे कार्यों और तुम्हारे भ्रष्‍ट आचरण के अनुसार नहीं, परंतु अपने नाम के निमित्त तुमसे व्यवहार करूंगा, तब तुम जानोगे कि मैं याहवेह हूं, परम प्रधान याहवेह की घोषणा है.’ ”

दक्षिण के विरुद्ध भविष्यवाणी

45याहवेह का वचन मेरे पास आया: 46“हे मनुष्य के पुत्र, अपना चेहरा दक्षिण की ओर करो; दक्षिण के विरुद्ध प्रचार करो और दक्षिण देश के बंजर भूमि के विरुद्ध भविष्यवाणी करो. 47दक्षिण के बंजर भूमि से कहो: ‘याहवेह के वचन को सुनो. परम प्रधान याहवेह का यह कहना है: मैं तुम पर आग लगाने ही वाला हूं, और यह तुम्हारे हरे और सूखे सब पेड़ों को जलाकर नष्ट कर देगी. धधकती ज्वाला नहीं बुझेगी, और दक्षिण से लेकर उत्तर तक हर चेहरा इससे झुलस जाएगा. 48हर एक जन देखेगा कि मैं याहवेह ने ही यह आग लगायी है; यह नहीं बुझेगी.’ ”

49तब मैंने कहा, “हे परम प्रधान याहवेह, वे लोग मेरे विषय में कह रहे हैं, ‘क्या वह मात्र दृष्टांत नहीं कह रहे हैं?’ ”

New Arabic Version

حزقيال 20:1-49

إسرائيل المتمردة

1وَفِي الْيَوْمِ الْعَاشِرِ مِنَ الشَّهْرِ الْخَامِسِ (أَيْ تَمُّوزَ – يُولْيُو) مِنَ السَّنَةِ السَّابِعَةِ أَقْبَلَ إِلَيَّ بَعْضُ شُيُوخِ إِسْرَائِيلَ لِيَسْتَشِيروا الرَّبَّ، فَجَلَسُوا أَمَامِي. 2فَأَوْحَى إِلَيَّ الرَّبُّ بِكَلِمَتِهِ قَائِلاً: 3«يَا ابْنَ آدَمَ، قُلْ لِشُيُوخِ إِسْرَائِيلَ: هَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: هَلْ جِئْتُمْ لِتَسْتَشِيرُونِي؟ حَيٌّ أَنَا، لَنْ أُتِيحَ لَكُمْ طَلَبَ الْمَشُورَةِ مِنِّي. 4أَتَدِينُهُمْ يَا ابْنَ آدَمَ؟ أَتُحَاكِمُهُمْ؟ أَطْلِعْهُمْ عَلَى رَجَاسَاتِ آبَائِهِمْ، 5وَقُلْ لَهُمْ: هَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: فِي الْيَوْمِ الَّذِي اصْطَفَيْتُ فِيهِ إِسْرَائِيلَ، وَحَلَفْتُ لِذُرِّيَّةِ بَيْتِ يَعْقُوبَ وَأَعْلَنْتُ لَهُمْ عَنْ نَفْسِي فِي دِيَارِ مِصْرَ، حَلَفْتُ لَهُمْ قَائِلاً: أَنَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ. 6فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ أَقْسَمْتُ لَهُمْ أَنْ أُخْرِجَهُمْ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ إِلَى الأَرْضِ الَّتِي اسْتَكْشَفْتُهَا لَهُمْ، الَّتِي تَفِيضُ لَبَناً وَعَسَلاً، فَخْرِ كُلِّ الأَرَاضِي، 7وَقُلْتُ لَهُمْ: لِيَنْبِذْ كُلٌّ مِنْكُمُ الأَرْجَاسَ الَّتِي تُنَجِّسُ عَيْنَيْهِ، وَلا تَتَدَنَّسُوا بِأَصْنَامِ مِصْرَ؛ أَنَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ. 8وَلَكِنَّهُمْ تَمَرَّدُوا عَلَيَّ وَلَمْ يَسْمَعُوا لِي، وَلَمْ يَتْرُكُوا الأَرْجَاسَ الَّتِي تُنَجِّسُ عُيُونَهُمْ، وَلَمْ يَهْجُرُوا أَصْنَامَ مِصْرَ. فَقُلْتُ: سَأَسْكُبُ عَلَيْهِمْ غَضَبِي وَأَنْفُثُ فِيهِمْ كَامِلَ سَخَطِي فِي وَسَطِ دِيَارِ مِصْرَ. 9غَيْرَ أَنِّي تَصَرَّفْتُ عَلَى غَيْرِ ذَلِكَ إِكْرَاماً لاسْمِي، لِئَلّا يَتَنَجَّسَ أَمَامَ عُيُونِ الأُمَمِ الَّتِي يَسْكُنُ شَعْبُ إِسْرَائِيلَ بَيْنَهَا. إِذْ أَعْلَنْتُ نَفْسِي أَمَامَ عُيُونِ الأُمَمِ حِينَ أَخْرَجْتُ شَعْبَ إِسْرَائِيلَ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ. 10وَهَكَذَا أَخْرَجْتُهُمْ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ، وَأَتَيْتُ بِهِمْ إِلَى الْبَرِّيَّةِ، 11وَأَعْطَيْتُهُمْ فَرَائِضِي، وَأَعْلَنْتُ لَهُمْ أَحْكَامِي الَّتِي إِنْ مَارَسَهَا إِنْسَانٌ يَحْيَا بِها، 12وَأَعْطَيْتُهُمْ كَذَلِكَ سُبُوتِي لِتَكُونَ عَلامَةً بَيْنِي وَبَيْنَهُمْ لِيُدْرِكُوا أَنِّي أَنَا الرَّبُّ الَّذِي أُقَدِّسُهُمْ.

13لَكِنَّ شَعْبَ إِسْرَائِيلَ تَمَرَّدُوا عَلَيَّ فِي الْبَرِّيَّةِ وَلَمْ يُمَارِسُوا فَرَائِضِي، وَتَنَكَّرُوا لأَحْكَامِي الَّتِي إِنْ عَمِلَ بِها إِنْسَانٌ يَحْيَا، وَنَجَّسُوا أَيَّامَ سُبُوتِي كَثِيراً. فَقُلْتُ: سَأَسْكُبُ غَضَبِي عَلَيْهِمْ فِي الْبَرِّيَّةِ لأُمِيتَهُمْ. 14لَكِنَّنِي تَصَرَّفْتُ عَلَى غَيْرِ ذَلِكَ إِكْرَاماً لاسْمِي، لِئَلّا يَتَنَجَّسَ أَمَامَ عُيُونِ الأُمَمِ الَّتِي أَخْرَجْتُ شَعْبَ إِسْرَائِيلَ عَلَى مَشْهَدٍ مِنْهَا. 15وَحَلَفْتُ لَهُمْ فِي الْبَرِّيَّةِ بِأَنِّي لَنْ أَقُودَهُمْ إِلَى الأَرْضِ الَّتِي وَهَبْتُهَا لَهُمْ، الَّتِي تَفِيضُ لَبَناً وَعَسَلاً، فَخْرِ الأَرَاضِي كُلِّهَا، 16لأَنَّهُمْ تَنَكَّرُوا لأَحْكَامِي وَلَمْ يُمَارِسُوا فَرَائِضِي، بَلْ دَنَّسُوا أَيَّامَ سُبُوتِي وَضَلَّ قَلْبُهُمْ وَرَاءَ أَصْنَامِهِمْ. 17وَلَكِنْ عَيْنِي تَرَأَّفَتْ عَلَيْهِمْ فَلَمْ أُهْلِكْهُمْ وَلَمْ أُفْنِهِمْ فِي الْبَرِّيَّةِ. 18وَأَوْصَيْتُ أَبْنَاءَهُمْ فِي الْبَرِّيَّةِ أَلّا يَسْلُكُوا فِي طُرُقِ آبَائِهِمْ وَلا يُمَارِسُوا أَعْمَالَهُمْ وَلا يَتَنَجَّسُوا بِأَصْنَامِهِمْ. 19أَنَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ فَاسْلُكُوا فِي فَرَائِضِي وَاحْفَظُوا أَحْكَامِي وَاعْمَلُوا بِها. 20وَقَدِّسُوا سُبُوتِي فَتَكُونَ عَلامَةً بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ لِتَعْلَمُوا أَنِّي أَنَا الرَّبُّ إِلَهُكُمْ 21فَتَمَرَّدَ الأَبْنَاءُ عَلَيَّ. لَمْ يَسْلُكُوا فِي فَرَائِضِي وَلَمْ يَحْفَظُوا أَحْكَامِي لِيَعْمَلُوهَا الَّتِي إِنْ عَمِلَهَا إِنْسَانٌ يَحْيَا بِها، وَنَجَّسُوا سُبُوتِي. فَقُلْتُ إِنِّي أَسْكُبُ غَضَبِي عَلَيْهِمْ لأُتِمَّ سَخَطِي عَلَيْهِمْ فِي الْبَرِّيَّةِ. 22وَلَكِنِّي كَفَفْتُ يَدِي عَنْهُمْ وَتَصَرَّفْتُ عَلَى غَيْرِ ذَلِكَ إِكْرَاماً لاسْمِي، لِئَلّا يَتَنَجَّسَ أَمَامَ عُيُونِ الأُمَمِ الَّتِي أَخْرَجْتُ شَعْبَ إِسْرَائِيلَ عَلَى مَشْهَدٍ مِنْهَا. 23وَحَلَفْتُ لَهُمْ فِي الْبَرِّيَّةِ أَنْ أُفَرِّقَهُمْ بَيْنَ الأُمَمِ وَأُشَتِّتَهُمْ عَبْرَ الْبُلْدَانِ. 24لأَنَّهُمْ لَمْ يُطَبِّقُوا أَحْكَامِي بَلْ تَنَكَّرُوا لِفَرَائِضِي وَدَنَّسُوا أَيَّامَ سُبُوتِي وَتَعَلَّقَتْ عُيُونُهُمْ بِأَصْنَامِ آبَائِهِمْ. 25لِذَلِكَ أَعْطَيْتُهُمْ فَرَائِضَ غَيْرَ صَالِحَةٍ وَأَحْكَاماً لَا يَحْيَوْنَ بِها. 26وَجَعَلْتُهُمْ يَتَنَجَّسُونَ بِعَطَايَاهُمْ إِذْ أَجَازُوا فِي النَّارِ كُلَّ بِكْرٍ لأُبِيدَهُمْ، حَتَّى يُدْرِكُوا أَنِّي أَنَا الرَّبُّ.

27لِهَذَا، يَا ابْنَ آدَمَ، قُلْ لِشَعْبِ إِسْرَائِيلَ: بِهَذِهِ الأُمُورِ جَدَّفَ عَلَيَّ آبَاؤُكُمْ إِذْ خَانُونِي أَشَدَّ خِيَانَةٍ. 28عِنْدَمَا جِئْتُ بِهِمْ إِلَى الأَرْضِ الَّتِي أَقْسَمْتُ أَنْ أَهَبَهَا لَهُمْ، وَرَأَوْا كُلَّ أَكَمَةٍ مُرْتَفِعَةٍ وَكُلَّ شَجَرَةٍ وَارِفَةٍ، فَذَبَحُوا قَرَابِينَهُمْ هُنَاكَ وَقَرَّبُوا ذَبَائِحَهُمُ الْمُغِيظَةَ، وَأَصْعَدُوا تَقْدِمَاتٍ، رَوَائِحَ الرِّضَى وَسَكَبُوا سَكَائِبَ خَمْرِهِمْ، 29فَسَأَلْتُهُمْ: مَا هَذِهِ الْمُرْتَفَعَةُ الَّتِي تَأْتُونَ إِلَيْهَا؟ فَدُعِيَتْ مَرْتَفَعَةً إِلَى هَذَا الْيَوْمِ.

تجديد إسرائيل المتمردة

30لِذَلِكَ قُلْ لِشَعْبِ إِسْرَائِيلَ هَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: هَلْ دَنَّسْتُمْ أَنْفُسَكُمْ كَمَا فَعَلَ آبَاؤُكُمْ وَغَوَيْتُمْ وَرَاءَ أَصْنَامِكُمُ الرَّجْسَةِ؟ 31إِنَّكُمْ تَتَنَجَّسُونَ مَعَ كُلِّ أَصْنَامِكُمْ إِلَى هَذَا الْيَوْمِ، حِينَ تُقَدِّمُونَ عَطَايَاكُمْ لِلأَوْثَانِ وَتُجِيزُونَ أَبْنَاءَكُمْ فِي النَّارِ. فَهَلْ بَعْدَ هَذَا تَأْتُونَ إِلَيَّ لِطَلَبِ مَشُورَتِي يَا شَعْبَ إسْرَائِيلَ؟ حَيٌّ أَنَا يَقُولُ السَّيِّدُ الرَّبُّ، لَنْ أُتِيحَ لَكُمْ طَلَبَ مَشُورَتِي. 32إِذْ لَنْ يَتَحَقَّقَ مَا يَخْطُرُ بِبَالِكُمْ إِذْ تَقُولُونَ، لِنَكُنْ كَسَائِرِ قَبَائِلِ الأَرْضِ فَنَعْبُدَ الْخَشَبَ وَالْحَجَرَ. 33حَيٌّ أَنَا، يَقُولُ السَّيِّدُ الرَّبُّ، إِنِّي بِيَدٍ قَوِيَّةٍ وَذِرَاعٍ قَدِيَرةٍ وَغَضَبٍ مَصْبُوبٍ أَمْلِكُ عَلَيْكُمْ، 34وَأُخْرِجُكُمْ مِنْ بَيْنِ الشُّعُوبِ وَأَجْمَعُكُمْ مِنَ الْبُلْدَانِ الَّتِي تَشَتَّتُّمْ فِيهَا، بِيَدٍ قَويَّةٍ وَذِرَاعٍ قَدِيرَةٍ وَغَضَبٍ مَصْبُوبٍ، 35وَآتِي بِكُمْ إِلَى بَرِّيَّةِ الأُمَمِ فَأُحَاكِمُكُمْ هُنَاكَ مُوَاجَهَةً، 36وَكَمَا حَاكَمْتُ أَسْلافَكُمْ فِي بَرِّيَّةِ دِيَارِ مِصْرَ، أُحَاكِمُكُمْ أَنْتُمْ أَيْضاً. 37وَأُحْصِيكُمْ، وَأُدْخِلُكُمْ فِي مِيثَاقِ الْعَهْدِ، 38وَأَعْزِلُ مِنْ بَيْنِكُمُ الْمُتَمَرِّدِينَ وَالْعُصَاةَ عَلَيَّ، وَأُخْرِجُهُمْ مِنْ أَرْضِ غُرْبَتِهِمْ، وَلَكِنَّهُمْ لَنْ يَدْخُلُوا أَرْضَ إِسْرَائِيلَ، فَتُدْرِكُونَ آنَئِذٍ أَنِّي أَنَا الرَّبُّ.

الله يُظهر رحمته للطائع

39أَمَّا أَنْتُمْ يَا شَعْبَ إِسْرَائِيلَ فَامْضُوا وَلْيَعْبُدْ كُلُّ إِنْسَانٍ أَصْنَامَهُ، وَلَكِنْ فِيمَا بَعْدُ، سَتَسْتَمِعُونَ حَتْماً لِي، وَلَنْ تُدَنِّسُوا اسْمِي الْقُدُّوسَ بَعْدُ بِعَطَايَاكُمْ وَأَوْثَانِكُمْ. 40لأَنَّهُ فِي جَبَلِ قُدْسِي، جَبَلِ إِسْرَائِيلَ الشَّامِخِ، هُنَاكَ يَعْبُدُنِي فِي الأَرْضِ شَعْبُ إِسْرَائِيلَ كُلُّهُمْ. هُنَاكَ أَرْضَى عَنْهُمْ وَأَلْتَمِسُ تَقْدِمَاتِكُمْ وَبَاكُورَةَ غَلّاتِكُمْ مَعَ جَمِيعِ مُقَدَّسَاتِكُمْ. 41وَأَرْضَى عَنْكُمْ كَرَائِحَةِ سُرُورٍ حِينَ أُخْرِجُكُمْ مِنْ بَيْنِ الشُّعُوبِ، وَأَجْمَعُكُمْ مِنَ الْبُلْدَانِ الَّتِي تَشَتَّتُّمْ إِلَيْهَا، وَأَتَجَلَّى بِقَدَاسَتِي بَيْنَكُمْ عَلَى مَشْهَدٍ مِنَ الأُمَمِ. 42فَتُدْرِكُونَ أَنِّي أَنَا الرَّبُّ حِينَ أَرُدُّكُمْ إِلَى أَرْضِ إِسْرَائِيلَ، إِلَى الأَرْضِ الَّتِي أَقْسَمْتُ لِآبَائِكُمْ أَنْ أَهَبَهَا لَهُمْ. 43هُنَاكَ تَذْكُرُونَ طُرُقَ شَرِّكُمْ وَأَعْمَالَكُمُ الَّتِي تَدَنَّسْتُمْ بِها، وَتَمْقُتُونَ أَنْفُسَكُمْ مِنْ أَجْلِ مَا ارْتَكَبْتُمُوهُ مِنْ شُرُورٍ. 44فَتُدْرِكُونَ أَنِّي أَنَا الرَّبُّ حِينَ أُعَامِلُكُمْ، إِكْرَاماً لاسْمِي، لَا بِمُقْتَضَى طُرُقِكُمُ الشِّرِّيرَةِ وَلا بِمُوْجِبِ أَعْمَالِكُمُ السَّيِّئَةِ يَا شَعْبَ إِسْرَائِيلَ، يَقُولُ السَّيِّدُ الرَّبُّ».

نبوءة على الجنوب

45وَأَوْحَى إِلَيَّ الرَّبُّ بِكَلِمَتِهِ قَائِلاً: 46«يَا ابْنَ آدَمَ، الْتَفِتْ نَحْوَ الْجَنُوبِ وَأَنْذِرْهُ، وَتَنَبَّأْ عَلَى أَرْضِ الْغَابَاتِ فِي النَّقَبِ 47وَقُلْ لِغَابَاتِ النَّقَبِ: اسْمَعُوا قَضَاءَ الرَّبِّ، فَهَذَا مَا يُعْلِنُهُ السَّيِّدُ الرَّبُّ: هَا أَنَا أُضْرِمُ نَاراً فِيكِ فَتَلْتَهِمُ كُلَّ شَجَرَةٍ خَضْرَاءَ وَيَابِسَةٍ، وَلا يَنْطَفِئُ لَهِيبُهَا الْمُتَأَجِّجُ، فَتَحْتَرِقُ بِها كُلُّ الْوُجُوهِ مِنَ الْجَنُوبِ إِلَى الشِّمَالِ. 48فَيَرَى كُلُّ بَشَرٍ أَنِّي أَنَا الرَّبُّ الَّذِي أَضْرَمْتُهَا، وَلا يُمْكِنُ أَنْ تَنْطَفِئَ». 49عِنْدَئِذٍ قُلْتُ: «آهٍ يَا سَيِّدُ الرَّبُّ: هُمْ يَقُولُونَ عَنِّي: أَمَا يَضْرِبُ هُوَ أَمْثَالاً فَقَطْ؟»