यशायाह 66 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

यशायाह 66:1-24

न्याय और आशा

1याहवेह यों कहते हैं:

“स्वर्ग मेरा सिंहासन है,

तथा पृथ्वी मेरे चरणों की चौकी है.

तुम मेरे लिये कैसा भवन बनाओगे?

कहां है वह जगह जहां मैं आराम कर सकूंगा?

2क्योंकि ये सब मेरे ही हाथों से बने,

और ये सब मेरे ही हैं.”

यह याहवेह का वचन है.

“परंतु मैं उसी का ध्यान रखूंगा:

जो व्यक्ति दीन और दुःखी हो,

तथा जो मेरे आदेशों का पालन सच्चाई से करेगा.

3जो बैल की बलि करता है

वह उस व्यक्ति के समान है जो किसी मनुष्य को मार डालता है,

और जो मेमने की बलि चढ़ाता है

वह उस व्यक्ति के समान है जो किसी कुत्ते की गर्दन काटता है;

जो अन्‍नबलि चढ़ाता है

वह उस व्यक्ति के समान है जो सूअर का लहू चढ़ाता है,

और जो धूप जलाता है

उस व्यक्ति के समान है जो किसी मूर्ति की उपासना करता है.

क्योंकि उन्होंने तो अपना अपना मार्ग चुन लिया है,

और वे अपने आपको संतुष्ट करते हैं;

4अतः उनके लिए दंड मैं निर्धारित करके उन्हें वही दंड दूंगा,

जो उनके लिए कष्ट से भरा होगा.

क्योंकि जब मैंने बुलाया, तब किसी ने उत्तर नहीं दिया,

जब मैंने उनसे बात की, तब उन्होंने सुनना न चाहा.

उन्होंने वही किया जो मेरी दृष्टि में बुरा है,

और उन्होंने वही चुना जो मुझे अच्छा नहीं लगता.”

5तुम सभी जो याहवेह के वचन को मानते हो सुनो:

“तुम्हारे भाई बंधु जो तुमसे नफरत करते हैं,

जो तुम्हें मेरे नाम के कारण अलग कर देते हैं,

‘वे यह कह रहे हैं कि याहवेह की महिमा तो बढ़े,

जिससे हम देखें कि कैसा है तुम्हारा आनंद.’

किंतु वे लज्जित किए जाएंगे.

6नगर से हलचल तथा मंदिर से

एक आवाज सुनाई दे रही है!

यह आवाज याहवेह की है

जो अपने शत्रुओं को उनके कामों का बदला दे रहे हैं.

7“प्रसववेदना शुरू होने के पहले ही,

उसका प्रसव हो गया;

पीड़ा शुरू होने के पहले ही,

उसे एक पुत्र पैदा हो गया.

8क्या कभी किसी ने ऐसा सुना है?

किसकी दृष्टि में कभी ऐसा देखा गया है?

क्या यह हो सकता है कि एक ही दिन में एक देश उत्पन्‍न हो जाए?

क्या यह संभव है कि एक क्षण में ही राष्ट्र बन जायें?

जैसे ही ज़ियोन को प्रसव पीड़ा शुरू हुई

उसने अपने पुत्रों को जन्म दे दिया.

9क्या मैं प्रसव बिंदु तक लाकर

प्रसव को रोक दूं?”

याहवेह यह पूछते हैं!

“अथवा क्या मैं जो गर्भ देता हूं,

क्या मैं गर्भ को बंद कर दूं?” तुम्हारा परमेश्वर कहते हैं!

10“तुम सभी जिन्हें येरूशलेम से प्रेम है,

येरूशलेम के साथ खुश होओ, उसके लिए आनंद मनाओ;

तुम सभी जो उसके लिए रोते थे,

अब खुश हो जाओ.

11कि तुम उसके सांत्वना देनेवाले स्तनों से

स्तनपान कर तृप्‍त हो सको;

तुम पियोगे

तथा उसकी बहुतायत तुम्हारे आनंद का कारण होगा.”

12क्योंकि याहवेह यों कहते हैं:

“तुम यह देखोगे, कि मैं उसमें शांति नदी के समान,

और अन्यजातियों के धन को बाढ़ के समान बहा दूंगा;

और तुम उसमें से पियोगे तथा तुम गोद में उठाए जाओगे

तुम्हें घुटनों पर बैठाकर पुचकारा जाएगा.

13तुम्हें मेरे द्वारा उसी तरह तसल्ली दी जाएगी,

जिस तरह माता तसल्ली देती है;

यह तसल्ली येरूशलेम में ही दी जाएगी.”

14तुम यह सब देखोगे, तथा तुम्हारा मन आनंद से भर जाएगा

और तुम्हारी हड्डियां नई घास के समान हो जाएंगी;

याहवेह का हाथ उनके सेवकों पर प्रकट होगा,

किंतु वह अपने शत्रुओं से क्रोधित होंगे.

15याहवेह आग में प्रकट होंगे,

तथा उनके रथ आंधी के समान होंगे;

उनका क्रोध जलजलाहट के साथ,

तथा उनकी डांट अग्नि ज्वाला में प्रकट होगी.

16क्योंकि आग के द्वारा ही याहवेह का न्याय निष्पक्ष होगा

उनकी तलवार की मार सब प्राणियों पर होगी,

याहवेह द्वारा संहार किए गये अनेक होंगे.

17याहवेह ने कहा, “वे जो अपने आपको पवित्र और शुद्ध करते हैं ताकि वे उन बागों में जाएं, और जो छुपकर सूअर या चूहे का मांस तथा घृणित वस्तुएं खाते हैं उन सभी का अंत निश्चित है.

18“क्योंकि मैं, उनके काम एवं उनके विचार जानता हूं; और मैं सब देशों तथा भाषा बोलने वालों को इकट्ठा करूंगा, वे सभी आएंगे तथा वे मेरी महिमा देखेंगे.

19“उनके बीच मैं एक चिन्ह प्रकट करूंगा, तथा उनमें से बचे हुओं को अन्यजातियों के पास भेजूंगा. तरशीश, पूत, लूद, मेशेख, तूबल तथा यावन के देशों में, जिन्होंने न तो मेरा नाम सुना है, न ही उन्होंने मेरे प्रताप को देखा है, वहां वे मेरी महिमा को दिखाएंगे. 20तब वे सब देशों में से तुम्हारे भाई-बन्धु याहवेह के लिए अर्पण समान अश्वों, रथों, पालकियों, खच्चरों एवं ऊंटों को लेकर येरूशलेम में मेरे पवित्र पर्वत पर आएंगे. जिस प्रकार इस्राएल वंश याहवेह के भवन में शुद्ध पात्रों में अन्‍नबलि लेकर आएंगे.” याहवेह की यही वाणी है. 21“तब उनमें से मैं कुछ को पुरोहित तथा कुछ को लेवी होने के लिए अलग करूंगा,” यह याहवेह की घोषणा है.

22“क्योंकि ठीक जिस प्रकार नया आकाश और नई पृथ्वी जो मैं बनाने पर हूं मेरे सम्मुख बनी रहेगी,” याहवेह की यही वाणी है, “उसी प्रकार तुम्हारा वंश और नाम भी बना रहेगा. 23यह ऐसा होगा कि एक नये चांद से दूसरे नये चांद के दिन तक और एक विश्राम दिन से दूसरे विश्राम दिन तक सभी लोग मेरे सामने दंडवत करने आएंगे,” यह याहवेह का वचन है. 24“तब वे बाहर जाएंगे तथा उन व्यक्तियों के शवों को देखेंगे, जिन्होंने मेरे विरुद्ध अत्याचार किया था; क्योंकि उनके कीड़े नहीं मरेंगे और उनकी आग कभी न बुझेगी, वे सभी मनुष्यों के लिए घृणित बन जाएंगे.”