यशायाह 63 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

यशायाह 63:1-19

बदला और उद्धार का दिन

1कौन है वह जो एदोम के बोज़राह से चला आ रहा है,

जो बैंगनी रंग के कपड़े पहने हुए हैं?

जो बलवान और बहुत

भड़कीला वस्त्र पहने हुए आ रहा है?

“मैं वही हूं, जो नीति से बोलता,

और उद्धार करने की शक्ति रखता हूं.”

2तुम्हारे वस्त्र लाल क्यों है,

तुम्हारे वस्त्र हौद में दाख रौंदने वाले के समान क्यों है?

3“मैंने अकेले ही दाख को रौंदा;

जनताओं से कोई भी मेरे साथ न था.

अपने क्रोध में ही मैंने दाख रौंदा

और उन्हें कुचल दिया था;

उनके लहू का छींटा मेरे वस्त्रों पर पड़ा,

और मेरे वस्त्र में दाग लग गया.

4मेरे मन में बदला लेने का दिन निश्चय था;

मेरी छुड़ाई हुई प्रजा का वर्ष आ गया है.

5मैंने ढूंढ़ा, तब कोई नहीं मिला सहायता के लिए,

कोई संभालने वाला भी;

तब मैंने अपने ही हाथों से उद्धार किया,

और मेरी जलजलाहट ने ही मुझे संभाला.

6मैंने अपने क्रोध में जनताओं को कुचल डाला;

तथा अपने गुस्से में उन्हें मतवाला कर दिया

और उनके लहू को भूमि पर बहा दिया.”

स्तुति और प्रार्थना

7जितनी दया याहवेह ने हम पर की,

अर्थात् इस्राएल के घराने पर,

दया और अत्यंत करुणा करके जितनी भलाई हम पर दिखाई—

उन सबके कारण मैं याहवेह के करुणामय कामों का वर्णन

और उसका गुण गाऊंगा.

8क्योंकि याहवेह ही ने उनसे कहा, “वे मेरी प्रजा हैं,

वे धोखा न देंगे”;

और वह उनका उद्धारकर्ता हो गए.

9उनके संकट में उसने भी कष्ट उठाया,

उनकी उपस्थिति के स्वर्गदूत ने ही उनका उद्धार किया.

अपने प्रेम एवं अपनी कृपा से उन्होंने उन्हें छुड़ाया;

और पहले से उन्हें उठाए रखा.

10तो भी उन्होंने विद्रोह किया

और पवित्रात्मा को दुःखी किया.

इस कारण वे उनके शत्रु हो गए

और खुद उनसे लड़ने लगे.

11तब उनकी प्रजा को बीते दिन,

अर्थात् मोशेह के दिन याद आए: कहां हैं वह,

जिन्होंने उन्हें सागर पार करवाया था,

जो उनकी भेड़ों को चरवाहे समेत पार करवाया?

कहां हैं वह जिन्होंने अपना पवित्रात्मा उनके बीच में डाला,

12जिन्होंने अपने प्रतापी हाथों को

मोशेह के दाएं हाथ में कर दिया,

जिन्होंने सागर को दो भाग कर दिया,

और अपना नाम सदा का कर दिया,

13जो उन्हें सागर तल की गहराई पर से दूसरे पार ले गए?

वे बिलकुल भी नहीं घबराए,

जिस प्रकार मरुस्थल में घोड़े हैं;

14याहवेह के आत्मा ने उन्हें इस प्रकार शांति दी,

जिस प्रकार पशु घाटी से उतरते हैं.

आपने इस प्रकार अपनी प्रजा की अगुवाई की

कि आपकी महिमा हो क्योंकि आप हमारे पिता हैं.

15स्वर्ग से अपने पवित्र एवं

वैभवशाली उन्‍नत निवास स्थान से नीचे देखिए.

कहां है आपकी वह खुशी तथा आपके पराक्रम के काम?

आपके दिल का उत्साह तथा आपकी कृपा मेरे प्रति अब नहीं रह गई.

16आप हमारे पिता हैं,

यद्यपि अब्राहाम हमें नहीं जानता

और इस्राएल भी हमें ग्रहण नहीं करता;

तो भी, हे याहवेह, आप ही हमारे पिता हैं,

हमारा छुड़ानेवाले हैं, प्राचीन काल से यही आपका नाम है.

17हे याहवेह आपने क्यों हमें आपके मार्गों से भटक जाने के लिए छोड़ दिया हैं,

आप क्यों हमारे दिल को कठोर हो जाने देते हैं कि हम आपका भय नहीं मानते?

अपने दास के लिए लौट आइए,

जो आप ही की निज प्रजा है.

18आपका पवित्र स्थान आपके लोगों को कुछ समय के लिये ही मिला था,

लेकिन हमारे शत्रुओं ने इसे रौंद डाला.

19अब तो हमारी स्थिति ऐसी हो गई है;

मानो हम पर कभी आपका अधिकार था ही नहीं,

और जो आपके नाम से कभी जाने ही नहीं गए थे.