यशायाह 6 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

यशायाह 6:1-13

यशायाह का आयोग

1यशायाह का दर्शन है उस वर्ष जब राजा उज्जियाह की मृत्यु हुई, उस वर्ष मैंने प्रभु को ऊंचे सिंहासन पर बैठे देखा, उनके वस्त्र से मंदिर ढंक गया है. 2और उनके ऊपर स्वर्गदूत दिखाई दिए जिनके छः-छः पंख थे: सबने दो पंखों से अपना मुंह ढंक रखा था, दो से अपने पैर और दो से उड़ रहे थे. 3वे एक दूसरे से इस प्रकार कह रहे थे:

“पवित्र, पवित्र, पवित्र हैं सर्वशक्तिमान याहवेह;

सारी पृथ्वी उनके तेज से भरी है.”

4उनकी आवाज से द्वार के कक्ष हिल गए और भवन धुएं से भरा हुआ हो गया.

5तब मैंने कहा, “हाय मुझ पर! क्योंकि मैं नष्ट हो गया हूं! मैं एक ऐसा व्यक्ति हूं, जिसके होंठ अशुद्ध हैं और मैं उन व्यक्तियों के बीच रहता हूं जिनके होंठ अशुद्ध हैं; क्योंकि मैंने अपनी आंखों से महाराजाधिराज, सर्वशक्तिमान याहवेह को देख लिया है.”

6तब एक स्वर्गदूत उड़कर मेरी ओर आया और उसके हाथ में अंगारा था, जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से उठाया था. 7उसने इस अंगारे से मेरे मुंह पर छूते हुए कहा, “देखो, तुम्हारे होंठों से अधर्म दूर कर दिया और तुम्हारे पापों को क्षमा कर दिया गया है.”

8तब मैंने प्रभु को यह कहते हुए सुना, “मैं किसे भेजूं और कौन जाएगा हमारे लिए?”

तब मैंने कहा, “मैं यहां हूं. मुझे भेजिए!”

9प्रभु ने कहा, “जाओ और इन लोगों से कहो:

“ ‘सुनते रहो किंतु समझो मत;

देखते रहो किंतु ग्रहण मत करो.’

10इन लोगों के हृदय कठोर;

कान बहरे

और आंख से अंधे हैं.

कहीं ऐसा न हो कि वे अपनी आंखों से देखकर,

अपने कानों से सुनकर,

और मन फिराकर मेरे पास आएं,

और चंगे हो जाएं.”

11तब मैंने पूछा, “कब तक, प्रभु, कब तक?”

प्रभु ने कहा:

“जब तक नगर सूना न हो जाए

और कोई न बचे,

और पूरा देश सुनसान न हो जाएं,

12याहवेह लोगों को दूर ले जाएं

और देश में कई जगह निर्जन हो जाएं.

13फिर इसमें लोगों का दसवां भाग रह जाए,

तो उसे भी नष्ट किया जाएगा.

जैसे बांझ वृक्ष को काटने के बाद भी ठूंठ बच जाता है,

उसी प्रकार सब नष्ट होने के बाद,

जो ठूंठ समान बच जाएगा, वह पवित्र बीज होगा.”