यशायाह 44 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

यशायाह 44:1-28

इस्राएल—याहवेह के चुने हुए

1“परंतु अब हे मेरे दास याकोब,

हे मेरे चुने हुए इस्राएल, सुन लो.

2याहवेह, जो तुम्हारे सहायक हैं,

जिन्होंने गर्भ में ही तुम्हारी रचना कर दी थी,

वे यों कहते हैं:

हे मेरे दास याकोब, हे मेरे चुने हुए यशुरून44:2 यशुरून अर्थ धर्मी अर्थात् इस्राएल मत डर,

तुम भी, जो मेरे मनोनीत हो.

3क्योंकि मैं प्यासी भूमि पर जल,

तथा सूखी भूमि पर नदियां बहाऊंगा;

मैं अपना आत्मा तथा अपनी आशीषें,

तुम्हारी संतान पर उंडेल दूंगा.

4वे घास के बीच अंकुरित होने लगेंगे,

और बहती जलधारा के किनारे लगाए गए वृक्ष के समान होंगे.

5कोई कहेगा, ‘मैं तो याहवेह का हूं’;

और याकोब के नाम की दोहाई देगा;

और कोई अपनी हथेली पर, ‘मैं याहवेह का’ लिख लेगा,

वह इस्राएल का नाम अपना लेगा.

प्रतिमा पूजन की मूर्खता

6“वह जो याहवेह हैं,

सर्वशक्तिमान44:6 सर्वशक्तिमान मूल में सेनाओं का याहवेह इस्राएल के राजा, अर्थात् उसको छुड़ाने वाला है:

वह यों कहता है, मैं ही पहला हूं और मैं ही अंत तक रहूंगा;

मेरे सिवाय कोई और परमेश्वर है ही नहीं.

7मेरे समान है कौन? जब से मैंने मनुष्यों को ठहराया

तब से किसने मेरे समान प्रचार किया?

या वह बताये, मेरी बातों को पहले ही से प्रकट करें.

8तुम डरो मत, क्या मैंने बहुत पहले बता न दिया था.

क्या मैंने उसकी घोषणा न कर दी थी?

याद रखो, तुम मेरे गवाह हो. क्या मेरे सिवाय कोई और परमेश्वर है?

या क्या कोई और चट्टान है? नहीं, मैं किसी और को नहीं जानता.”

9वे सभी जो मूर्तियां बनाते हैं वे व्यर्थ हैं,

उनसे कोई लाभ नहीं.

उनके साक्षी न कुछ देखते न कुछ जानते हैं;

उन्हें लज्जित होना पड़ेगा.

10कौन है ऐसा निर्बुद्धि जिसने ऐसे देवता की रचना की या ऐसी मूर्ति बनाई,

जो निर्जीव और निष्फल है?

11देख उसके सभी साथियों को लज्जा का सामना करना पड़ेगा;

क्योंकि शिल्पकार स्वयं मनुष्य है.

अच्छा होगा कि वे सभी एक साथ खड़े हो जाएं तो डर जाएंगे;

वे सभी एक साथ लज्जित किए जाएं.

12लोहार लोहे को अंगारों से गर्म करके

हथौड़ों से मारकर कोई रूप देता है;

अपने हाथों के बल से उस मूर्ति को बनाता है,

फिर वह भूखा हो जाता है, उसकी ताकत कम हो जाती है;

वह थक जाता है, वह पानी नहीं पीता और कमजोर होने लगता है.

13एक और शिल्पकार वह काठ को रूप देता है

वह माप का प्रयोग करके काठ पर निशान लगाता है;

वह काठ पर रन्दे चलाता है

तथा परकार से रेखा खींचता है,

तथा उसे एक सुंदर व्यक्ति का रूप देता है.

14वह देवदार वृक्षों को अपने लिए काटता है,

वह जंगलों से सनौवर तथा बांज को भी बढ़ाता है.

वह देवदार पौधा उगाता है,

और बारिश उसे बढ़ाती है.

15फिर इसे मनुष्य आग जलाने के लिए काम में लेता है;

आग से वह अपने लिए रोटी भी बनाता है,

और उसी से वह अपने लिए एक देवता भी गढ़ लेता है.

वह इसके काठ को गढ़ते हुए उसे मूर्ति का रूप देता है;

और फिर इसी के समक्ष दंडवत भी करता है.

16इसका आधा तो जला देता है;

जिस आधे पर उसने अपना भोजन बनाया,

मांस को पकाता, जिससे उसकी भूख मिटाये.

“इसी आग से उसने अपने लिए गर्मी भी पायी.”

17बचे हुए काठ से वह एक देवता का निर्माण कर लेता है, उस देवता की गढ़ी गई मूर्ति;

वह इसी के समक्ष दंडवत करता है.

और प्रार्थना करके कहता है,

“मेरी रक्षा कीजिए! आप तो मेरे देवता हैं!”

18वे न तो कुछ जानते हैं और न ही कुछ समझते हैं;

क्योंकि परमेश्वर ने उनकी आंखों को अंधा कर दिया है,

तथा उनके हृदय से समझने की शक्ति छीन ली है.

19उनमें से किसी को भी यह बात उदास नहीं करती,

न कोई समझता है,

“मैंने आधे वृक्ष को तो जला दिया है;

उसी के कोयलों पर मैंने भोजन तैयार किया,

अपना मांस को भूंजता,

अब उसके बचे हुए से गलत काम किया.”

20उसने तो राख को अपना भोजन बना लिया है; उसे एक ऐसे दिल ने बहका दिया है, जो स्वयं भटक चुका है;

स्वयं को तो वह मुक्त कर नहीं सकता,

“जो वस्तु मैंने अपने दाएं हाथ में पकड़ रखी है, क्या वह सच नहीं?”

21“हे याकोब, हे इस्राएल, इन सब बातों को याद कर,

क्योंकि तुम तो मेरे सेवक हो.

मैंने तुम्हारी रचना की है;

हे इस्राएल, यह हो नहीं सकता कि मैं तुम्हें भूल जाऊं.

22तुम्हारे अपराधों को मैंने मिटा दिया है जैसे आकाश से बादल,

तथा तुम्हारे पापों को गहरे कोहरे के समान दूर कर दिया है.

तुम मेरे पास आ जाओ,

क्योंकि मैंने तुम्हें छुड़ा लिया है.”

23हे आकाश, आनंदित हो, क्योंकि याहवेह ने यह कर दिखाया है;

हे अधोलोक के पाताल भी खुश हो.

हे पहाड़ों,

आनंद से गाओ,

क्योंकि याहवेह ने याकोब को छुड़ा लिया है,

तथा इस्राएल में उन्होंने अपनी महिमा प्रकट की है.

येरूशलेम नगर फिर बसाया जाएगा

24“याहवेह तुम्हें उद्धार देनेवाले हैं,

जिन्होंने गर्भ में ही तुम्हें रूप दिया था, वह यों कहता है:

“मैं ही वह याहवेह हूं,

सबको बनानेवाला,

मैंने आकाश को बनाया,

तथा मैंने ही पृथ्वी को अपनी शक्ति से फैलाया,

25मैं झूठे लोगों की बात को व्यर्थ कर देता हूं

और भविष्य कहने वालों को खोखला कर देता हूं,

बुद्धिमान को पीछे हटा देता

और पंडितों को मूर्ख बनाता हूं.

26इस प्रकार याहवेह अपने दास के वचन को पूरा करता हैं,

तथा अपने दूतों की युक्ति को सफल करता है वह मैं ही था,

“जिसने येरूशलेम के विषय में यह कहा था कि, ‘येरूशलेम नगर फिर बसाया जाएगा,’

तथा यहूदिया के नगरों के लिए, ‘उनका निर्माण फिर किया जाएगा,’

मैं उनके खंडहरों को ठीक करूंगा,

27मैं ही हूं, जो सागर की गहराई को आज्ञा देता हूं, ‘सूख जाओ,

मैं तुम्हारी नदियों को सूखा दूंगा,’

28मैं ही हूं वह, जिसने कोरेश के बारे में कहा था कि,

‘वह मेरा ठहराया हुआ चरवाहा है जो मेरी इच्छा पूरी करेगा;

येरूशलेम के बारे में उसने कहा, “उसको फिर से बसाया जायेगा,”

मंदिर के बारे में यह आश्वासन देगा, “तुम्हारी नींव डाली जाएगी.” ’ ”