इस्राएल की विमुक्ति
1उस दिन,
याहवेह अपनी बड़ी और भयानक तलवार से,
टेढ़े चलनेवाले सांप लिवयाथान को दंड दिया करेंगे,
टेढ़े चलनेवाले सांप लिवयाथान;
वह उसको मार देंगे जो समुद्र में रहता है.
2उस दिन—
“आप दाख की बारी के विषय में एक गीत गाओगे:
3मैं, याहवेह इसका रक्षक हूं;
हर क्षण मैं इसकी सिंचाई करता हूं.
मैं दिन-रात इसका पहरा देता हूं
कि कोई इसको नुकसान न पहुंचाएं.
4मैं कठोर नहीं हूं.
किंतु यदि कंटीले झाड़ मेरे विरुद्ध खड़े होंगे!
तो मैं उन्हें पूर्णतः भस्म कर दूंगा.
5या मेरे साथ मिलकर मेरी शरण में
आना चाहे तो वे मेरे पास आए.”
6उस दिन याकोब अपनी जड़ मजबूत करेगा,
इस्राएल और पूरा संसार
इसके फल से भर जाएगा.
7क्या याहवेह ने उन पर वैसा ही आक्रमण किया है,
जैसा उनके मारने वालों पर आक्रमण करता है?
या उनका वध उस प्रकार कर दिया गया,
जिस प्रकार उनके हत्यारों का वध किया गया था?
8जब तूने उसे निकाला तब सोच समझकर उसे दुःख दिया,
पूर्वी हवा के समय उसको आंधी से उड़ा दिया.
9जब याकोब वेदियों के पत्थरों को चूर-चूर कर देगा,
फिर न कोई अशेराह और न कोई धूप वेदी खड़ी रहेगी:
तब इसके द्वारा याकोब का अपराध क्षमा किया जाएगा;
यह उसके पापों का प्रायश्चित होगा.
10क्योंकि नगर निर्जन हो गया है,
घर मरुभूमि, छोड़ी हुई और बंजर भूमि समान कर दिया गया है;
वहां बछड़े चरेंगे,
और आराम करेंगे;
और इसकी शाखाओं से भोजन करेंगे.
11जब इसकी शाखाएं सूख जाएंगी,
तब महिलाएं आकर इन्हें आग जलाने के लिए काम में लेंगी.
क्योंकि ये निर्बुद्धि लोग हैं;
इसलिये उनका सृष्टि करनेवाला उन पर अनुग्रह नहीं करेगा,
जिन्होंने उन्हें सृजा, वे उन पर दया नहीं करेंगे.
12उस दिन याहवेह फरात नदी से मिस्र की घाटी तक अपने अनाज को झाड़ेंगे और इस्राएल, तुम्हें एक-एक करके एकत्र किया जाएगा. 13उस दिन नरसिंगा फूंका जाएगा. वे जो अश्शूर देश में नष्ट किए गए थे और वे जो मिस्र देश में तितर-बितर कर दिए गए थे, वे सब आएंगे और येरूशलेम में पवित्र पर्वत पर याहवेह की आराधना करेंगे.
خلاص إسرائيل
1فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ يُعَاقِبُ الرَّبُّ بِسَيْفِهِ الْقَاسِي الْعَظِيمِ الْمَتِينِ لَوِيَاثَانَ الْحَيَّةَ الْهَارِبَةَ الْمُتَلَوِّيَةَ، وَيَقْتُلُ التِّنِّينَ الَّذِي فِي الْبَحْرِ.
2فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ غَنُّوا لِشَعْبِي، الْكَرْمَةِ الْمُشْتَهَاةِ، 3فَأَنَا الرَّبُّ رَاعِيهَا أُرْوِيهَا فِي كُلِّ لَحْظَةٍ، وَأَحْرُسُهَا لَيْلَ نَهَارَ لِئَلَّا يُتْلِفَهَا أَحَدٌ. 4لَسْتُ أُضْمِرُ غَيْظاً، وَمَنْ قَاوَمَنِي بِالْشَّوْكِ وَالْحَسَكِ فَإِنَّنِي أَهْجُمُ عَلَيْهِمْ جَمِيعاً وَأَحْرِقُهُمْ. 5أَوْ لِيَسْتَجِيرُوا بِحِمَايَتِي وَلْيَعْقِدُوا مَعِي سَلاماً؛ أَجَلْ! لِيَعْقِدُوا مَعِي سَلاماً.
6وَيَتَأَصَّلُ يَعْقُوبُ فِي الأَيَّامِ الْمُقْبِلَةِ وَيُزْهِرُ إِسْرَائِيلُ، وَيُنْبِتُ فُرُوعاً تَمْلَأُ الأَرْضَ كُلَّهَا بِالثِّمَارِ. 7هَلْ ضَرَبَهُ الرَّبُّ كَمَا ضَرَبَ ضَارِبِيهِ، أَمْ هَلَكَ كَمَا هَلَكَ قَاتِلُوهُ؟ 8عَاقَبْتَهُ إِذْ خَاصَمْتَهُ وَنَفَيْتَهُ بِنَفْخَةٍ عَاصِفَةٍ فِي يَوْمِ هُبُوبِ رِيحٍ شَرْقِيَّةٍ. 9لِهَذَا يُكَفَّرُ عَنْ إِثْمِ يَعْقُوبَ، وَيَكُونُ هَذَا هُوَ كُلُّ ثَمَرِ مَحْوِ خَطِيئَتِهِ، عِنْدَمَا يَجْعَلُ جَمِيعَ حِجَارَةِ الْمَذْبَحِ كَحِجَارَةِ الْكِلْسِ الْمَسْحُوقَةِ، وَلا يَبْقَى تِمْثَالٌ لِعَشْتَارُوثَ أَوْ مَذْبَحٌ قَائِماً.
10لأَنَّ الْمَدِينَةَ الْمَنِيعَةَ تُصْبِحُ مُقْفِرَةً، وَيُصْبِحُ الْمَسْكِنُ مَهْجُوراً مَتْرُوكاً كَالْقَفْرِ. وَهُنَاكَ يَرْعَى الْعِجْلُ وَيَرْبِضُ وَيَقْرِضُ أَغْصَانَهَا. 11وَمَتَى يَبِسَتْ فُرُوعُهَا تَتَكَسَّرُ، فَتُقْبِلُ النِّسَاءُ وَيَسْتَخْدِمْنَهَا وَقُوداً لِلنَّارِ. لأَنَّ هَذَا شَعْبٌ جَاهِلٌ، لِذَلِكَ لَا يَرْحَمُهُ صَانِعُهُ وَلا يَرْفُقُ بِهِ خَالِقُهُ.
12فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ يَنْتَقِيكُمُ الرَّبُّ مِنْ مَجْرَى الْفُرَاتِ إِلَى وَادِي النِّيلِ، كَمَا يُنْتَقَى الْقَمْحُ، وَيَجْمَعُكُمْ وَاحِداً فَوَاحِداً يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ. 13فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ يَنْفُخُ فِي بُوقٍ عَظِيمٍ فَيَأْتِي التَّائِهُونَ فِي أَرْضِ أَشُورَ، وَالْمَنْفِيُّونَ إِلَى دِيَارِ مِصْرَ، لِيَسْجُدُوا لِلرَّبِّ فِي جَبَلِ قُدْسِهِ، فِي أُورُشَلِيمَ.