मीकाह 7 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

मीकाह 7:1-20

इस्राएल की दुर्गति

1मेरी क्या दुर्गति है!

मैं उस मनुष्य के जैसा हूं,

जो अंगूर की बारी में लवनी के छूटे अंगूर को धूपकाल में बटोरता है;

खाने के लिये अंगूर का कोई गुच्छा नहीं बचा है,

मैंने शुरू के अंजीर के फलों की जो लालसा की थी, वे भी नहीं हैं.

2विश्वासयोग्य लोग देश से नाश हो गये हैं;

एक भी ईमानदार व्यक्ति नहीं बचा है.

हर एक जन खून बहाने के घात में लगा रहता है;

वे जाल बिछाकर एक दूसरे को फंसाने के चक्कर में रहते हैं.

3उनके हाथ बुराई के काम करने में माहिर हैं;

शासन करनेवाले उपहार की मांग करते हैं,

न्यायाधीश घूस लेते हैं,

शक्तिशाली लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति बलपूर्वक करते हैं,

वे सब मिलकर षड़्‍यंत्र रचते हैं.

4उनमें जो सर्वोत्तम माना जाता है, वह एक कंटीली झाड़ी के जैसा है,

उनमें जो सबसे ज्यादा ईमानदार समझा जाता है, वह एक कंटीले बाड़े से भी बुरा है.

तुम्हारे पास परमेश्वर के आने का समय आ गया है,

अर्थात् तुम्हारे पहरेदार के खतरे के घंटी बजाने का दिन आ गया है.

अब तुम्हारे घबराने का समय है.

5किसी पड़ोसी पर विश्वास न करना

और न ही अपने किसी मित्र पर भरोसा करना.

यहां तक कि अपनी अर्द्धागिनी से भी

संभलकर बात करना.

6क्योंकि पुत्र अपने पिता का अनादर करता है,

पुत्री उसकी माता के विरुद्ध तथा

बहू उसकी सास के विरुद्ध, उठ खड़ी होती है,

मनुष्य के शत्रु उसके परिवार के सदस्य ही होते हैं.

7पर जहां तक मेरी बात है, मेरी आशा याहवेह पर लगी रहती है,

मैं अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर की बाट जोहता हूं;

मेरे परमेश्वर मेरी सुनेंगे.

इस्राएल उठ खड़ा होगा

8हे मेरे शत्रु, मेरी स्थिति पर आनंद मत मना!

यद्यपि मैं गिर गया हूं, पर मैं उठ खड़ा होऊंगा.

यद्यपि मैं अंधकार में बैठा हुआ हूं,

पर याहवेह मेरी ज्योति होंगे.

9क्योंकि मैंने उनके विरुद्ध पाप किया है,

इसलिये मैं तब तक याहवेह के क्रोध सहता रहूंगा,

जब तक कि वे मेरा मामला सुनकर

मुझे न्याय प्रदान न करें.

वही मुझे उस उजियाले में ले आएंगे;

और मैं उनकी धार्मिकता को देखूंगा.

10तब मेरा शत्रु यह देखेगा

और लज्जा से अपना मुंह ढांप लेगा,

यह शत्रु वही है, जिसने मुझसे कहा था,

“कहां है याहवेह तुम्हारा परमेश्वर?”

तब मैं उस शत्रु के पतन को देखूंगा;

यहां तक की वह गली के कीचड़ की तरह

पैरों तले रौंदा जाएगा.

11तुम्हारे दीवारों को बनाने का दिन,

और तुम्हारी सीमाओं का बढ़ाने का दिन आएगा.

12उस दिन लोग तुम्हारे पास

अश्शूर और मिस्र देश के शहरों से आएंगे,

यहां तक कि मिस्र देश से लेकर इफरात नदी तक से,

और समुद्र से समुद्र के बीच

और पहाड़ से पहाड़ के बीच के देशों से लोग तुम्हारे पास आएंगे.

13पृथ्वी के निवासियों के कारण, उनके कामों के फलस्वरूप,

पृथ्वी उजाड़ और निर्जन हो जाएगी.

प्रार्थना और प्रशंसा

14अपने लोगों की रखवाली,

अपने उत्तराधिकार में पाये झुंड की रखवाली अपनी लाठी से करना,

जो बंजर भूमि में,

और उपजाऊ चरागाह में अपने बूते रहते हैं.

उन्हें बहुत पहले के समय जैसे

बाशान और गिलआद में चरने दो.

15“जब तुम मिस्र देश से निकलकर आए, उन दिनों के जैसे,

मैं उन्हें आश्चर्यकर्म दिखाऊंगा.”

16जाति-जाति के लोग यह देखेंगे

और अपने शक्ति से वंचित लज्जित होंगे.

वे लज्जा के मारे अपना मुंह अपने हाथों से ढंक लेंगे

और उनके कान बहरे हो जाएंगे.

17वे सांप के समान,

और भूमि पर रेंगनेवाले जंतु के समान धूल चाटेंगे.

वे अपने मांद से कांपते हुए निकलेंगे;

वे याहवेह हमारे परमेश्वर से डरेंगे

और तुमसे भयभीत होंगे.

18आपके जैसा और कौन परमेश्वर है,

जो अपने निज भाग के बचे हुओं के

पापों और अपराधों को क्षमा करते हैं?

आपका क्रोध हमेशा के लिये नहीं होता

पर आप दया दिखाने में प्रसन्‍न होते हैं.

19आप हम पर फिर दया करेंगे;

आप अपने पैरों तले हमारे पापों को कुचल देंगे

और हमारे दुष्टता के कामों को गहरे समुद्र में फेंक देंगे.

20आप उस शपथ के अनुरूप,

जो आपने वर्षों पहले हमारे पूर्वजों से की थी,

याकोब के लोगों के प्रति विश्वासयोग्य बने रहेंगे,

और अब्राहाम के वंशजों को अपना प्रेम दिखाएंगे.