मत्तियाह 9 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

मत्तियाह 9:1-38

लकवा पीड़ित को चंगाई

1इसलिये येशु नाव में सवार होकर झील पार करके अपने ही नगर में आ गए. 2कुछ लोग एक लकवा पीड़ित को बिछौने पर उनके पास लाए. उनका विश्वास देख येशु ने रोगी से कहा, “तुम्हारे लिए यह आनंद का विषय है: तुम्हारे पाप क्षमा हो गए हैं.”

3कुछ शास्त्री आपस में कहने लगे, “यह तो परमेश्वर की निंदा कर रहा है!”

4उनके विचारों का अहसास होने पर येशु उन्हें संबोधित कर बोले, “क्यों अपने मनों में बुरा विचार कर रहे हो? 5क्या कहना सरल है, ‘तुम्हारे पाप क्षमा हो गए’ या ‘उठो, चलने लगो?’ 6किंतु इसका उद्देश्य यह है कि तुम्हें यह मालूम हो जाए कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा का अधिकार सौंपा गया है.” तब रोगी से येशु ने कहा, “उठो, अपना बिछौना उठाओ और अपने घर जाओ.” 7वह उठा और घर चला गया. 8यह देख भीड़ हैरान रह गई और परमेश्वर का गुणगान करने लगी, जिन्होंने मनुष्यों को इस प्रकार का अधिकार दिया है.

मत्तियाह का बुलाया जाना

9वहां से जाने के बाद येशु ने चुंगी लेनेवाले के आसन पर बैठे हुए एक व्यक्ति को देखा, जिसका नाम मत्तियाह था. येशु ने उसे आज्ञा दी, “मेरे पीछे हो ले.” मत्तियाह उठकर येशु के साथ हो लिए.

10जब येशु भोजन के लिए बैठे थे, अनेक चुंगी लेनेवाले तथा अपराधी व्यक्ति भी उनके साथ शामिल थे. 11यह देख फ़रीसियों ने आपत्ति उठाते हुए येशु के शिष्यों से कहा, “तुम्हारे गुरु चुंगी लेनेवाले और अपराधी व्यक्तियों के साथ भोजन क्यों करते हैं?”

12यह सुन येशु ने स्पष्ट किया, “चिकित्सक की ज़रूरत स्वस्थ व्यक्ति को नहीं परंतु रोगी व्यक्ति को होती है. 13अब जाओ और इस कहावत का अर्थ समझो: ‘मैं बलिदान से नहीं, पर दया से प्रसन्‍न होता हूं,’9:13 होशे 6:6 क्योंकि मैं धर्मियों को नहीं परंतु पापियों को बुलाने के लिए इस पृथ्वी पर आया हूं.”

उपवास के प्रश्न का उत्तर

14बपतिस्मा देनेवाले योहन के शिष्य येशु के पास आए और उनसे प्रश्न किया, “क्या कारण है कि फ़रीसी और हम तो उपवास करते हैं किंतु आपके शिष्य नहीं?”

15येशु ने उन्हें समझाया: “क्या यह संभव है कि दुल्हे के होते हुए बाराती विलाप करें? हां, ऐसा समय आएगा जब दूल्हा उनसे अलग कर दिया जाएगा—तब वे उपवास करेंगे.

16“पुराने वस्त्र में कोई भी नये कपड़े का जोड़ नहीं लगाता, नहीं तो कोरा वस्त्र का जोड़ सिकुड़ कर वस्त्र से अलग हो जाता है और वस्त्र और भी अधिक फट जाता है. 17वैसे ही लोग नए दाखरस को पुरानी मशकों में नहीं रखते; अन्यथा वे फट जाती हैं और दाखरस तो बहकर नाश हो ही जाता है, साथ ही मशके भी. नया दाखरस नई मशकों में ही रखा जाता है. परिणामस्वरूप दोनों ही सुरक्षित रहते हैं.”

लहूस्राव-पीड़ित स्त्री की चंगाई तथा मरी हुई बालिका का नया जीवन

18जब येशु उन लोगों से इन विषयों पर बातचीत कर रहे थे, यहूदी सभागृह का एक अधिकारी उनके पास आया और उनके सामने झुककर विनती करने लगा, “कुछ देर पहले ही मेरी पुत्री की मृत्यु हुई है. आप कृपया आकर उस पर हाथ रख दीजिए और वह जीवित हो जाएगी.” 19येशु और उनके शिष्य उसके साथ चले गए.

20मार्ग में बारह वर्ष से लहूस्राव-पीड़ित एक स्त्री ने पीछे से आकर येशु के वस्त्र के छोर को छुआ, 21क्योंकि उसने अपने मन में यह कहा था: “यदि मैं उनके वस्त्र को भी छू लूं, तो मैं रोगमुक्त हो जाऊंगी.”

22येशु ने पीछे मुड़कर उसे देखा और उससे कहा, “तुम्हारे लिए यह आनंद का विषय है: तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ कर दिया.” उसी क्षण वह स्त्री स्वस्थ हो गई.

23जब येशु यहूदी सभागृह के अधिकारी के घर पर पहुंचे तो उन्होंने भीड़ का कोलाहल और बांसुरी वादक शोक-संगीत बजाते हुए भी सुना. 24इसलिये उन्होंने आज्ञा दी, “यहां से चले जाओ क्योंकि बालिका की मृत्यु नहीं हुई है—वह सो रही है.” इस पर वे येशु का ठट्ठा करने लगे, 25किंतु जब भीड़ को बाहर निकाल दिया गया, येशु ने कक्ष में प्रवेश कर बालिका का हाथ पकड़ा और वह उठ बैठी. 26यह समाचार सारे क्षेत्र में फैल गया.

अंधों को आंखों की रोशनी तथा गूंगों को आवाज

27जब येशु वहां से विदा हुए, दो अंधे व्यक्ति यह पुकारते हुए उनके पीछे चलने लगे, “दावीद-पुत्र, हम पर कृपा कीजिए!”

28जब येशु ने घर में प्रवेश किया वे अंधे भी उनके पास पहुंच गए. येशु ने उनसे प्रश्न किया, “क्या तुम्हें विश्वास है कि मुझमें यह करने का सामर्थ्य है?”

उन्होंने उत्तर दिया, “जी हां, प्रभु.”

29तब येशु ने यह कहते हुए उनके नेत्रों का स्पर्श किया, “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारी इच्छा पूरी हो,” 30और उन्हें दृष्टि प्राप्‍त हो गई. येशु ने उन्हें कड़ी चेतावनी दी, “यह ध्यान रखना कि इसके विषय में किसी को मालूम न होने पाए!” 31किंतु उन्होंने जाकर सभी क्षेत्र में येशु के विषय में यह समाचार प्रसारित कर दिया.

32जब वे सब वहां से बाहर निकल रहे थे, उनके सामने एक गूंगा व्यक्ति, जो दुष्टात्मा से पीड़ित था, लाया गया. 33दुष्टात्मा के निकल जाने के बाद वह बातें करने लगा. यह देख भीड़ चकित रह गई और कहने लगी, “इससे पहले इस्राएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया.”

34जबकि फ़रीसी कह रहे थे, “यह दुष्टात्मा का निकालना दुष्टात्मा के प्रधान की सहायता से करता है.”

भीड़ की वेदना

35येशु नगर-नगर और गांव-गांव की यात्रा कर रहे थे. वह उनके यहूदी सभागृहों में शिक्षा देते, स्वर्ग-राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते तथा हर एक प्रकार के रोग और दुर्बलताओं को स्वस्थ करते जा रहे थे. 36भीड़ को देख येशु का हृदय करुणा से दुःखित हो उठा क्योंकि वे बिन चरवाहे की भेड़ों के समान व्याकुल और निराश थे. 37इस पर येशु ने अपने शिष्यों से कहा, “उपज तो बहुत है किंतु मज़दूर कम, 38इसलिये उपज के स्वामी से विनती करो कि इस उपज के लिए मज़दूर भेज दें.”

New Arabic Version

إنجيل متى 9:1-38

يسوع يشفي مشلولًا

1ثُمَّ رَكِبَ يَسُوعُ الْقَارِبَ، وَعَبَرَ الْبُحَيْرَةَ رَاجِعاً إِلَى بَلْدَتِهِ (كَفْرَنَاحُومَ)، 2فَجَاءَهُ بَعْضُهُمْ يَحْمِلُونَ مَشْلُولاً مَطْرُوحاً عَلَى فِرَاشٍ. فَلَمَّا رَأَى يَسُوعُ إِيمَانَهُمْ، قَالَ لِلْمَشْلُولِ: «اِطْمَئِنَّ يَا بُنَيَّ! قَدْ غُفِرَتْ لَكَ خَطَايَاكَ» 3فَقَالَ بَعْضُ الْكَتَبَةِ فِي أَنْفُسِهِمْ: «إِنَّهُ يُجَدِّفُ!» 4وَأَدْرَكَ يَسُوعُ مَا يُفَكِّرُونَ فِيهِ، فَسَأَلَهُمْ: «لِمَاذَا تُفَكِّرُونَ بِالشَّرِّ فِي قُلُوبِكُمْ؟ 5أَيُّهُمَا الأَسْهَلُ: أَنْ يُقَالَ: قَدْ غُفِرَتْ لَكَ خَطَايَاكَ، أَمْ أَنْ يُقَالَ: قُمْ وَامْشِ؟ 6وَلَكِنِّي (قُلْتُ ذَلِكَ) لِكَيْ تَعْلَمُوا أَنَّ لابْنِ الإِنْسَانِ عَلَى الأَرْضِ سُلْطَةَ غُفْرَانِ الْخَطَايَا». عِنْدَئِذٍ قَالَ لِلْمَشْلُولِ: «قُمِ احْمِلْ فِرَاشَكَ، وَاذْهَبْ إِلَى بَيْتِكَ!» 7فَقَامَ، وَذَهَبَ إِلَى بَيْتِهِ. 8فَلَمَّا رَأَتِ الْجُمُوعُ ذَلِكَ، اسْتَوْلَى عَلَيْهِمِ الْخَوْفُ، وَمَجَّدُوا اللهَ الَّذِي أَعْطَى النَّاسَ مِثْلَ هَذِهِ السُّلْطَةِ.

دعوة متى

9وَفِيمَا كَانَ يَسُوعُ مَارّاً بِالْقُرْبِ مِنْ مَكْتَبِ جِبَايَةِ الضَّرَائِبِ، رَأَى جَابِياً اسْمُهُ مَتَّى جَالِساً هُنَاكَ. فَقَالَ لَهُ: «اتْبَعْنِي!» فَقَامَ وَتَبِعَهُ. 10وَبَيْنَمَا كَانَ يَسُوعُ مُتَّكِئاً فِي بَيْتِ مَتَّى، حَضَرَ كَثِيرُونَ مِنَ جُبَاةِ الْضَرَائِبِ وَالْخَاطِئِينَ، وَاتَّكَأُوا مَعَ يَسُوعَ وَتَلامِيذِهِ. 11وَعِنْدَمَا رَأَى الْفَرِّيسِيُّونَ ذَلِكَ، قَالُوا لِتَلامِيذِهِ: «لِمَاذَا يَأْكُلُ مُعَلِّمُكُمْ مَعَ جُبَاةِ الْضَرَائِبِ وَالْخَاطِئِينَ؟» 12وَإِذْ سَمِعَ يَسُوعُ كَلامَهُمْ، قَالَ: «لا يَحْتَاجُ الأَصِحَّاءُ إِلَى الطَّبِيبِ، بَلِ الْمَرْضَى! 13اِذْهَبُوا وَتَعَلَّمُوا مَعْنَى الْقَوْلِ: إِنِّي أَطْلُبُ رَحْمَةً لَا ذَبِيحَةً. فَإِنِّي مَا جِئْتُ لأَدْعُوَ صَالِحِينَ بَلْ خَاطِئِينَ!»

الحوار حول الصوم

14ثُمَّ تَقَدَّمَ تَلامِيذُ يُوحَنَّا إِلَى يَسُوعَ يَسْأَلُونَهُ: «لِمَاذَا نَصُومُ نَحْنُ وَالْفَرِّيسِيُّونَ، وَلا يَصُومُ تَلامِيذُكَ؟» 15فَقَالَ لَهُمْ يَسُوعُ: «هَلْ يَقْدِرُ أَهْلُ الْعُرْسِ أَنْ يَحْزَنُوا مَادَامَ الْعَرِيسُ بَيْنَهُمْ؟ وَلَكِنْ، سَتَأْتِي أَيَّامٌ يَكُونُ فِيهَا الْعَرِيسُ قَدْ رُفِعَ مِنْ بَيْنِهِمْ، فَعِنْدَئِذٍ يَصُومُونَ! 16لَا أَحَدَ يَرْقَعُ ثَوْباً عَتِيقاً بِقُمَاشٍ جَدِيدٍ، لأَنَّ الرُّقْعَةَ الْجَدِيدَةَ تَنْكَمِشُ، فَتَأْكُلُ مِنَ الثَّوْبِ الْعَتِيقِ، وَيَصِيرُ الْخَرْقُ أَسْوَأَ! 17وَلا يَضَعُ النَّاسُ الْخَمْرَ الْجَدِيدَةَ فِي قِرَبٍ عَتِيقَةٍ؛ وَإلَّا، فَإِنَّ الْقِرَبَ تَنْفَجِرُ، فَتُرَاقُ الْخَمْرُ وَتَتْلَفُ الْقِرَبُ. وَلَكِنَّهُمْ يَضَعُونَ الْخَمْرَ الْجَدِيدَةَ فِي قِرَبٍ جَدِيدَةٍ، فَتُحْفَظُ الْخَمْرُ وَالْقِرَبُ مَعاً!»

طفلة ميتة وامرأة مريضة

18وَبَيْنَمَا كَانَ يَقُولُ هَذَا، إِذَا رَئِيسٌ لِلْمَجْمَعِ قَدْ تَقَدَّمَ وَسَجَدَ لَهُ قَائِلاً: 19«ابْنَتِي الْآنَ مَاتَتْ. وَلَكِنْ تَعَالَ وَالْمُسْهَا بِيَدِكَ فَتَحْيَا» فَقَامَ يَسُوعُ وَتَبِعَهُ وَمَعَهُ تَلامِيذُهُ.

20وَإذَا امْرَأَةٌ مُصَابَةٌ بِنَزِيفٍ دَمَوِيٍّ مُنْذُ اثْنَتَيْ عَشَرَةَ سَنَةً، قَدْ تَقَدَّمَتْ إِلَيْهِ مِنْ خَلْفٍ، وَلَمَسَتْ طَرَفَ رِدَائِهِ، 21لأَنَّهَا قَالَتْ فِي نَفْسِهَا: «يَكْفِي أَنْ أَلْمَسَ وَلَوْ ثِيَابَهُ لأُشْفَى!» 22فَالْتَفَتَ يَسُوعُ وَرَآهَا، فَقَالَ: «اطْمَئِنِّي يَا ابْنَةُ. إِيمَانُكِ قَدْ شَفَاكِ!» فَشُفِيَتِ الْمَرْأَةُ مِنْ تِلْكَ السَّاعَةِ. 23وَلَمَّا دَخَلَ يَسُوعُ بَيْتَ رَئِيسِ الْمَجْمَعِ، وَرَأَى النَّادِبِينَ بِالْمِزْمَارِ وَالْجَمْعَ فِي اضْطِرَابٍ، 24قَالَ: «انْصَرِفُوا! فَالصَّبِيَّةُ لَمْ تَمُتْ، وَلكِنَّهَا نَائِمَةٌ!» فَضَحِكُوا مِنْهُ. 25فَلَمَّا أُخْرِجَ الْجَمْعُ، دَخَلَ وَأَمْسَكَ بِيَدِ الصَّبِيَّةِ، فَنَهَضَتْ. 26وَذَاعَ خَبَرُ ذَلِكَ فِي تِلْكَ الْبِلادِ كُلِّهَا.

يسوع يشفي أعميين وأخرس

27وَفِيمَا كَانَ يَسُوعُ رَاحِلاً مِنْ هُنَاكَ، تَبِعَهُ أَعْمَيَانِ يَصْرُخَانِ قَائِلَيْنِ: «ارْحَمْنَا يَا ابْنَ دَاوُدَ!» 28وَعِنْدَ دُخُولِهِ الْبَيْتَ تَقَدَّمَا إِلَيْهِ. فَسَأَلَهُمَا يَسُوعُ: «أَتُؤْمِنَانِ بِأَنِّي أَقْدِرُ أَنْ أَفْعَلَ هَذَا؟» أَجَابَا: «نَعَمْ يَا سَيِّدُ!» 29فَلَمَسَ أَعْيُنَهُمَا قَائِلاً: «لِيَكُنْ لَكُمَا بِحَسَبِ إِيمَانِكُمَا!» 30فَانْفَتَحَتْ أَعْيُنُهُمَا. وَأَنْذَرَهُمَا يَسُوعُ بِشِدَّةٍ قَائِلاً: «اِنْتَبِهَا! لَا تُخْبِرَا أَحَداً!» 31وَلَكِنَّهُمَا انْطَلَقَا وَأَذَاعَا صِيتَهُ فِي تِلْكَ الْبِلادِ كُلِّهَا.

32وَمَا إِنْ خَرَجَا، حَتَّى جَاءَهُ بَعْضُهُمْ بِأَخْرَسَ يَسْكُنُهُ شَيْطَانٌ. 33فَلَمَّا طُرِدَ الشَّيْطَانُ، تَكَلَّمَ الأَخْرَسُ. فَتَعَجَّبَتِ الْجُمُوعُ، وَقَالُوا: «لَمْ نُشَاهِدْ مِثْلَ هَذَا قَطُّ فِي إِسْرَائِيلَ». 34أَمَّا الْفَرِّيسِيُّونَ فَقَالُوا: «إِنَّهُ يَطْرُدُ الشَّيَاطِينَ بِرَئِيسِ الشَّيَاطِينِ!».

العمال قليلون

35وَأَخَذَ يَسُوعُ يَتَنَقَّلُ فِي الْمُدُنِ وَالْقُرَى كُلِّهَا، يُعَلِّمُ فِي مَجَامِعِ الْيَهُودِ وَيُنَادِي بِبِشَارَةِ الْمَلَكُوتِ، وَيَشْفِي كُلَّ مَرَضٍ وَعِلَّةٍ. 36وَعِنْدَمَا رَأَى الْجُمُوعَ، أَخَذَتْهُ الشَّفَقَةُ عَلَيْهِمْ، إِذْ كَانُوا مُعَذَّبِينَ وَمُشَرَّدِينَ كَغَنَمٍ لَا رَاعِيَ لَهَا. 37عِنْدَئِذٍ قَالَ لِتَلامِيذِهِ: «الْحَصَادُ كَثِيرٌ، وَالْعُمَّالُ قَلِيلُونَ. 38فَاطْلُبُوا مِنْ رَبِّ الْحَصَادِ أَنْ يُرْسِلَ عُمَّالاً إِلَى حَصَادِهِ!»