मत्तियाह 4 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

मत्तियाह 4:1-25

जंगल में शैतान द्वारा मसीह येशु की परख

1इसके बाद पवित्र आत्मा के निर्देश में येशु को बंजर भूमि ले जाया गया कि वह शैतान द्वारा परखे जाएं. 2उन्होंने चालीस दिन और चालीस रात उपवास किया. उसके बाद जब उन्हें भूख लगी, 3परखने वाले ने उनके पास आकर कहा, “यदि तुम परमेश्वर-पुत्र हो तो इन पत्थरों को आज्ञा दो कि ये रोटी बन जाएं.”

4येशु ने उसे उत्तर दिया, “मनुष्य का जीवन सिर्फ भोजन पर नहीं, बल्कि परमेश्वर के मुख से निकले हुए हर एक शब्द पर भी निर्भर है.”4:4 व्यव 8:3

5तब शैतान ने येशु को पवित्र नगर में ले जाकर मंदिर के शीर्ष पर खड़ा कर दिया 6और उनसे कहा, “यदि तुम परमेश्वर-पुत्र हो तो यहां से नीचे कूद जाओ, क्योंकि लिखा है,

“वह अपने स्वर्गदूतों को तुम्हारे संबंध में

आज्ञा देंगे तथा वे तुम्हें हाथों-हाथ उठा लेंगे

कि तुम्हारे पैर को पत्थर से चोट न लगे.”4:6 स्तोत्र 91:11, 12

7उसके उत्तर में येशु ने उससे कहा, “यह भी तो लिखा है तुम प्रभु अपने परमेश्वर को न परखो.”4:7 व्यव 6:16

8तब शैतान येशु को अत्यंत ऊंचे पर्वत पर ले गया और विश्व के सारे राज्य और उनका सारा ऐश्वर्य दिखाते हुए उनसे कहा, 9“मैं ये सब तुम्हें दे दूंगा यदि तुम मेरी दंडवत-वंदना करो.”

10इस पर येशु ने उसे उत्तर दिया, “हट, शैतान! दूर हो! क्योंकि लिखा है, तुम सिर्फ प्रभु अपने परमेश्वर की ही आराधना और सेवा किया करो.”4:10 व्यव 6:13

11तब शैतान उन्हें छोड़कर चला गया और स्वर्गदूत आए और उनकी सेवा करने लगे.

सेवकाई का प्रारंभ गलील प्रदेश से

12यह मालूम होने पर कि बपतिस्मा देनेवाले योहन को बंदी बना लिया गया है, येशु गलील प्रदेश में चले गए, 13और नाज़रेथ नगर को छोड़ कफ़रनहूम नगर में बस गए, जो झील तट पर ज़ेबुलून तथा नफताली नामक क्षेत्र में था. 14ऐसा इसलिये हुआ कि भविष्यवक्ता यशायाह की यह भविष्यवाणी पूरी हो:

15यरदन नदी के पार समुद्रतट पर बसे ज़ेबुलून तथा नफताली प्रदेश

अर्थात् गलील प्रदेश में,

जहां गैर-इस्राएली बसे हुए हैं,

16अंधकार में जी रहे लोगों ने

एक बड़ी ज्योति को देखा;

गहन अंधकार के निवासियों पर

ज्योति चमकी.4:16 यशा 9:1, 2

17उस समय से येशु ने यह उपदेश देना प्रारंभ कर दिया, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग-राज्य पास आ गया है.”

पहले चार शिष्यों का बुलाया जाना

18एक दिन गलील झील के किनारे चलते हुए येशु ने दो भाइयों को देखा: शिमओन, जो पेतरॉस कहलाए तथा उनके भाई आन्द्रेयास को. ये समुद्र में जाल डाल रहे थे क्योंकि वे मछुआरे थे. 19येशु ने उनसे कहा, “मेरा अनुसरण करो—मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुआरे बनाऊंगा.” 20वे उसी क्षण अपने जाल छोड़कर येशु का अनुसरण करने लगे.

21जब वे वहां से आगे बढ़े तो येशु ने दो अन्य भाइयों को देखा—ज़ेबेदियॉस के पुत्र याकोब तथा उनके भाई योहन को. वे दोनों अपने पिता के साथ नाव में अपने जाल ठीक कर रहे थे. येशु ने उन्हें बुलाया. 22उसी क्षण वे नाव और अपने पिता को छोड़ येशु के पीछे हो लिए.

सारे गलील प्रदेश में येशु द्वारा प्रचार और चंगाई की सेवा

23येशु सारे गलील प्रदेश की यात्रा करते हुए, उनके यहूदी सभागृहों में शिक्षा देते हुए, स्वर्ग-राज्य के ईश्वरीय सुसमाचार का उपदेश देने लगे. वह लोगों के हर एक रोग तथा हर एक व्याधि को दूर करते जा रहे थे. 24सारे सीरिया प्रदेश में उनके विषय में समाचार फैलता चला गया और लोग उनके पास उन सबको लाने लगे, जो रोगी थे तथा उन्हें भी, जो विविध रोगों, पीड़ाओं, दुष्टात्मा, मूर्च्छा रोगों तथा पक्षाघात से पीड़ित थे. येशु इन सभी को स्वस्थ करते जा रहे थे. 25गलील प्रदेश, देकापोलिस4:25 देकापोलिस अथवा दस नगर क्षेत्र, येरूशलेम, यहूदिया प्रदेश और यरदन नदी के पार से बड़ी भीड़ उनके पीछे-पीछे चली जा रही थी.

New Arabic Version

إنجيل متى 4:1-25

تجربة يسوع في البرية

1ثُمَّ صَعِدَ الرُّوحُ بِيَسُوعَ إِلَى الْبَرِّيَّةِ، لِيُجَرَّبَ مِنْ قِبَلِ إِبْلِيسَ. 2وَبَعْدَمَا صَامَ أَرْبَعِينَ نَهَاراً وَأَرْبَعِينَ لَيْلَةً، جَاعَ أَخِيراً، 3فَتَقَدَّمَ إِلَيْهِ الْمُجَرِّبُ وَقَالَ لَهُ: «إِنْ كُنْتَ ابْنَ اللهِ، فَقُلْ لِهَذِهِ الْحِجَارَةِ أَنْ تَتَحَوَّلَ إِلَى خُبْزٍ!» 4فَأَجَابَهُ قَائِلاً: «مَكْتُوبٌ: لَيْسَ بِالْخُبْزِ وَحْدَهُ يَحْيَا الإِنْسَانُ، بَلْ بِكُلِّ كَلِمَةٍ تَخْرُجُ مِنْ فَمِ اللهِ!» 5ثُمَّ أَخَذَهُ إِبْلِيسُ إِلَى الْمَدِينَةِ الْمُقَدَّسَةِ، وَأَوْقَفَهُ عَلَى حَافَةِ سَطْحِ الْهَيْكَلِ، 6وَقَالَ لَهُ: «إِنْ كُنْتَ ابْنَ اللهِ، فَاطْرَحْ نَفْسَكَ إِلَى أَسْفَلُ، لأَنَّهُ مَكْتُوبٌ: يُوصِي مَلائِكَتَهُ بِكَ، فَيَحْمِلُونَكَ عَلَى أَيْدِيهِمْ لِكَيْ لَا تَصْدِمَ قَدَمَكَ بِحَجَرٍ!» 7فَقَالَ لَهُ يَسُوعُ: «وَمَكْتُوبٌ أَيْضاً: لَا تُجَرِّبِ الرَّبَّ إِلهَكَ!»

8ثُمَّ أَخَذَهُ إِبْلِيسُ أَيْضاً إِلَى قِمَّةِ جَبَلٍ عَالٍ جِدّاً، وَأَرَاهُ جَمِيعَ مَمَالِكِ الْعَالَمِ وَعَظَمَتَهَا، 9وَقَالَ لَهُ: «أُعْطِيكَ هَذِهِ كُلَّهَا إِنْ جَثَوْتَ وَسَجَدْتَ لِي!» 10فَقَالَ لَهُ يَسُوعُ: «اذْهَبْ يَا شَيْطَانُ! لأَنَّهُ مَكْتُوبٌ: لِلرَّبِّ إِلهِكَ تَسْجُدُ، وَإِيَّاهُ وَحْدَهُ تَعْبُدُ!»

11فَتَرَكَهُ إِبْلِيسُ، وَإذَا بَعْضُ الْمَلائِكَةِ جَاءُوا إِلَيْهِ وَأَخَذُوا يَخْدِمُونَهُ.

يسوع يبدأ في التبشير

12وَلَمَّا سَمِعَ يَسُوعُ أَنَّهُ قَدْ أُلْقِيَ الْقَبْضُ عَلَى يُوحَنَّا، عَادَ إِلَى مِنْطَقَةِ الْجَلِيلِ. 13وَإِذْ تَرَكَ النَّاصِرَةَ، تَوَجَّهَ إِلَى كَفْرَنَاحُومَ الْوَاقِعَةِ عَلَى شَاطِئِ الْبُحَيْرَةِ ضِمْنَ حُدُودِ زَبُولُونَ وَنَفْتَالِيمَ، وَسَكَنَ فِيهَا، 14لِيَتِمَّ مَا قِيلَ بِلِسَانِ النَّبِيِّ إِشَعْيَاءَ الْقَائِلِ: 15«أَرْضُ زَبُولُونَ وَأَرْضُ نَفْتَالِيمَ، عَلَى طَرِيقِ الْبُحَيْرَةِ مَا وَرَاءَ نَهْرِ الأُرْدُنِّ، بِلادُ الْجَلِيلِ الَّتِي يَسْكُنُهَا الأَجَانِبُ، 16الشَّعْبُ الْجَالِسُ فِي الظُّلْمَةِ، أَبْصَرَ نُوراً عَظِيماً، وَالْجَالِسُونَ فِي أَرْضِ الْمَوْتِ وَظِلالِهِ، أَشْرَقَ عَلَيْهِمْ نُورٌ!»

17مِنْ ذلِكَ الْحِينِ بَدَأَ يَسُوعُ يُبَشِّرُ قَائِلاً: «تُوبُوا، فَقَدِ اقْتَرَبَ مَلَكُوتُ السَّمَاوَاتِ!»

دعوة التلاميذ الأولين

18وَبَيْنَمَا كَانَ يَسُوعُ يَمْشِي عَلَى شَاطِئِ بُحَيْرَةِ الْجَلِيلِ، رَأَى أَخَوَيْنِ، هُمَا سِمْعَانُ الَّذِي يُدْعَى بُطْرُسَ وَأَنْدَرَاوُسُ أَخُوهُ، يُلْقِيَانِ الشَّبَكَةَ فِي الْبُحَيْرَةِ، إِذْ كَانَا صَيَّادَيْنِ. 19فَقَالَ لَهُمَا: «هَيَّا اتْبَعَانِي، فَأَجْعَلَكُمَا صَيَّادَيْنِ لِلنَّاسِ!» 20فَتَرَكَا الشِّبَاكَ وَتَبِعَاهُ حَالاً. 21وَسَارَ مِنْ هُنَاكَ فَرَأَى أَخَوَيْنِ آخَرَيْنِ، هُمَا يَعْقُوبُ بْنُ زَبَدِي وَيُوحَنَّا أَخُوهُ، فِي الْقَارِبِ مَعَ أَبِيهِمَا يُصْلِحَانِ شِبَاكَهُمَا، فَدَعَاهُمَا لِيَتْبَعَاهُ. 22فَتَركَا الْقَارِبَ وَأَبَاهُمَا، وَتَبِعَاهُ حَالاً.

يسوع يشفي المرضى

23وَكَانَ يَسُوعُ يَتَنَقَّلُ فِي مِنْطَقَةِ الْجَلِيلِ كُلِّهَا، يُعَلِّمُ فِي مَجَامِعِ الْيَهُودِ، وَيُنَادِي بِبِشَارَةِ الْمَلَكُوتِ، وَيَشْفِي كُلَّ مَرَضٍ وَعِلَّةٍ فِي الشَّعْبِ، 24فَذَاعَ صِيتُهُ فِي سُورِيَّةَ كُلِّهَا. فَحَمَلُوا إِلَيْهِ مَرْضَاهُمُ الْمُصَابِينَ بِأَمْرَاضٍ وَأَوْجَاعٍ مُخْتَلِفَةٍ، وَالْمَسْكُونِينَ بِالشَّيَاطِينِ، وَالْمَصْرُوعِينَ، وَالْمَشْلُولِينَ، فَشَفَاهُمْ جَمِيعاً. 25فَتَبِعَتْهُ جُمُوعٌ كَبِيرَةٌ مِنْ مَنَاطِقِ الْجَلِيلِ، وَالْمُدُنِ الْعَشْرِ، وَأُورُشَلِيمَ، وَالْيَهُودِيَّةِ، وَمَا وَرَاءَ الأُرْدُنِّ.