फ़िलिप्पॉय 3 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

फ़िलिप्पॉय 3:1-21

मसीह में विश्वास की धार्मिकता

1इसलिये, प्रिय भाई बहनो, प्रभु में आनंदित रहो. इस विषय पर तुम्हें दोबारा लिखने से मुझे कष्ट नहीं होता परंतु यह तुम्हारी सुरक्षा की योजना है. 2कुत्तों, बुरे काम करनेवालों तथा अंगों के काट-कूट करनेवालों से सावधान रहो. 3क्योंकि वास्तविक ख़तना वाले हम ही हैं, जो परमेश्वर के आत्मा में आराधना करते, मसीह येशु पर गर्व करते तथा शरीर संबंधी कामों पर निर्भर नहीं रहते 4यद्यपि स्वयं मेरे पास शरीर पर भी निर्भर रहने का कारण हो सकता था.

यदि किसी की यह धारणा है कि उसके लिए शरीर पर भरोसा करने का कारण है तो मेरे पास तो कहीं अधिक है: 5आठवें दिन ख़तना, इस्राएली राष्ट्रीयता, बिन्यामिन का गोत्र, इब्रियों में से इब्री, व्यवस्था के अनुसार फ़रीसी; 6उन्माद3:6 उन्माद अत्यधिक अनुराग, उत्साहपूर्ण लगन. में कलीसिया का सतानेवाला और व्यवस्था में बताई गई धार्मिकता के मापदंडों के अनुसार, निष्कलंक.

7जो कुछ मेरे लिए लाभदायक था, मैंने उसे मसीह के लिए अपनी हानि मान लिया है. 8इससे कहीं अधिक बढ़कर मसीह येशु मेरे प्रभु को जानने के उत्तम महत्व के सामने मैंने सभी वस्तुओं को हानि मान लिया है—वास्तव में मैंने इन्हें कूड़ा मान लिया है कि मैं मसीह को प्राप्‍त कर सकूं और मैं उनमें स्थिर हो जाऊं, जिनके लिए मैंने सभी वस्तुएं खो दीं हैं. 9अब मेरी अपनी धार्मिकता वह नहीं जो व्यवस्था के पालन से प्राप्‍त होती है परंतु वह है, जो मसीह में विश्वास द्वारा प्राप्‍त होती है—परमेश्वर की ओर से विश्वास की धार्मिकता. 10ताकि मैं उनकी मृत्यु की समानता में होकर उन्हें, उनके पुनरुत्थान का सामर्थ्य तथा उनकी पीड़ा की सहभागिता को जानूं, 11कि मैं, किसी रीति से, मरे हुओं के पुनरुत्थान का भागी बन जाऊं.

12इसका अर्थ यह नहीं कि मुझे यह सब उपलब्ध हो चुका है या मैंने सिद्धता प्राप्‍त कर ली है, परंतु मैं कोशिश के साथ आगे बढ़ता चला जा रहा हूं कि मुझे वह प्राप्‍त हो जाए, जिसके लिए मसीह येशु ने मुझे पकड़ लिया है. 13मेरे भाइयों और बहनों, मेरे विचार से मैं इसे अब तक पा नहीं सका हूं किंतु हां, मैं यह अवश्य कर रहा हूं: बीती बातों को भुलाते हुए, आगे की ओर बढ़ते हुए, 14मसीह येशु में परमेश्वर की स्वर्गीय बुलावे के ईनाम को प्राप्‍त करने के लिए निशाने की ओर बढ़ता जाता हूं.

स्वर्ग की नागरिकता

15इसलिये हममें से जितने भी आत्मिक क्षेत्र में सिद्ध कहलाते हैं, उनका भी यही विचार हो; किंतु यदि किसी विषय में तुम्हारा मानना अलग है, परमेश्वर उसे तुम पर प्रकट कर देंगे. 16फिर भी हमारा स्वभाव उसी नमूने के अनुसार हो, जहां तक हम पहुंच चुके हैं.

17प्रिय भाई बहनो, अन्यों के साथ मिलकर मेरी सी चाल चलो और उनको पहचानो जिनका स्वभाव उस आदर्श के अनुसार है, जो तुम हममें देखते हो. 18बहुत हैं जिनके विषय में मैंने पहले भी स्पष्ट किया है और अब आंसू बहाते हुए प्रकट कर रहा हूं कि वे मसीह के क्रूस के शत्रु होकर जीते हैं. 19नाश होना ही उनका अंत है, उनका पेट ही उनका ईश्वर है, वे अपनी निर्लज्जता पर गौरव करते हैं, उन्होंने अपना मन पृथ्वी की वस्तुओं में लगा रखा है. 20इसके विपरीत हमारी नागरिकता स्वर्ग में है, जहां से उद्धारकर्ता प्रभु येशु मसीह के आने का हम उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं. 21मसीह येशु अपने उसी सामर्थ्य के प्रयोग के द्वारा, जिससे उन्होंने हर एक वस्तु को अपने अधीन किया है, हमारे कमजोर नश्वर शरीर का रूप बदलकर अपने महिमा के शरीर के समान कर देंगे.