प्रशासक 15 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

प्रशासक 15:1-20

शिमशोन द्वारा उपज को भस्म करना

1कुछ समय बाद, गेहूं की कटनी के समय पर शिमशोन एक मेमना लेकर अपनी पत्नी से भेंटकरने गया: उसने उसके पिता से कहा, “मुझे अपनी पत्नी के कमरे में जाने की अनुमति दीजिए.” किंतु उसके ससुर ने उसे अनुमति नहीं दी.

2उसके ससुर ने उससे कहा, “मुझे तो यह लगा कि तुम्हें उससे घोर नफरत हो गई है; इसलिये मैंने उसे तुम्हारे साथी को दे दिया है. सुनो, क्या उसकी छोटी बहन उससे अधिक सुंदर नहीं है? अपनी पत्नी के स्थान पर तुम उसकी छोटी बहन को ले लो.”

3इस पर शिमशोन ने कहा, “अब यदि फिलिस्तीनियों का कोई नुकसान होता है, तो मुझे दोष न देना.” 4शिमशोन ने जाकर तीन सौ लोमड़ियां पकड़ी, दो-दो लोमड़ियों की पूछो को बांधकर उनके बीच एक-एक मशाल बांध दी. 5जब उसने मशालों को जला लिया, उसने लोमड़ियों को फिलिस्तीनियों की खड़ी उपज में छोड़ दिया. इससे उनकी पुलियां तथा खड़ी हुई उपज जल गई. इसके अलावा उनके अंगूर के बगीचे और जैतून के बगीचे भी नष्ट होते गए.

6फिलिस्तीनी पूछताछ करने लगे, “किसने किया है यह?” और उन्हें बताया गया, “शिमशोन, तिमनी के दामाद ने, क्योंकि तिमनी ने उसकी पत्नी उसके साथी को दे दी है.”

इसलिये फिलिस्तीनी आए और उसकी पत्नी और ससुर को जला दिया. 7शिमशोन ने उनसे कहा, “तुमने जो कदम उठाया है, उसके कारण मैं शपथ खाता हूं कि जब तक मैं तो इसका बदला नहीं लूंगा, तब तक मैं शांति से नहीं बैठूंगा.” 8फिर उसने बड़ी निर्दयता से उनको मार डाला और उसके बाद जाकर एथाम की चट्टान की गुफा में रहने लगा.

9फिलिस्तीनियों ने यहूदिया में पड़ाव डाल दिए, और उधर के लेही नगर पर हमला कर दिया. 10यहूदिया के रहनेवालों ने उनसे पूछा, “हम पर हमला क्यों?”

उन्होंने उत्तर दिया, “शिमशोन को बांधकर ले जाने के लिए हम आए हैं, ताकि हम उससे बदला लें.”

11इसलिये यहूदिया के रहनेवाले तीन हज़ार लोग एथाम की चट्टान पर जाकर शिमशोन से कहने लगे, “क्या तुम भूल गए कि फिलिस्तीनी हमारे शासक हैं? तुमने हमारे साथ यह क्या कर डाला है?” शिमशोन ने उन्हें उत्तर दिया,

“जैसा उन्होंने मेरे साथ किया, वैसा ही मैंने भी उनके साथ किया है.”

12यहूदिया के रहनेवालों ने उससे कहा, “तुम्हें बंदी बनाकर फिलिस्तीनियों को सौंप देने के लिए हम यहां आए हैं.”

शिमशोन ने उनसे कहा, “बस, मुझसे शपथ लो, कि तुम मेरी हत्या न करोगे.”

13उन्होंने उसे आश्वासन दिया, “नहीं, नहीं, हम तुम्हें अच्छी तरह से बांधकर फिलिस्तीनियों को सौंप देंगे. मगर हम तुम्हारी हत्या नहीं करेंगे.” तब उन्होंने शिमशोन को दो नई रस्सियां लेकर बांध दिया और उसे गुफा में से बाहर ले आए. 14जब वे लेही पहुंचे, फिलिस्तीनी उससे मिलने के लिए चिल्लाते हुए आ गए. याहवेह का आत्मा सामर्थ्य में शिमशोन पर उतरा. उसकी बांधी गई रस्सियां ऐसी हो गईं जैसे आग में जला हुआ सन. उसके बंधन उसके हाथों से गिर पड़े. 15उसे वहीं एक गधे के जबड़े की हड्डी मिली, जिसे उसने उठा लिया और उससे एक हज़ार फिलिस्तीनियों को मार डाला.

16तब शिमशोन ने कहा,

“गधे के जबड़े की हड्डी से

मैंने उनके ढेर पर ढेर लगा दिए.

गधे के जबड़े की हड्डी से

मैंने एक हज़ार व्यक्तियों को मार दिया.”

17यह कहकर उसने गधे के जबड़े की हड्डी फेंक दी. वह स्थान रामात-लेही15:17 रामात-लेही अर्थ जबड़े की हड्डी की पहाड़ी नाम से मशहूर हो गया.

18तब वह बहुत ही प्यासा हो गया. उसने इन शब्दों में याहवेह की दोहाई दी, “आपने अपने सेवक को यह महान विजय दी है; अब क्या मैं इस प्यास के कारण इन खतना-रहित लोगों द्वारा मारा जाऊंगा?” 19तब परमेश्वर ने लेही की भूमि के उस गड्ढे को ऐसा फाड़ दिया, कि उसमें से जल निकलने लगा. जब शिमशोन ने उसे पिया, उसमें दोबारा बल आ गया और वह फिर से ताजा हो गया. इस घटना के कारण उसने उस स्थान को एन-हक्कोरे15:19 एन-हक्कोरे अर्थ: पुकारने वालों का झरना नाम दिया. लेही में यह आज तक बना हुआ है.

20फिलिस्तीनियों के शासनकाल में शिमशोन ने बीस साल तक इस्राएल पर शासन किया.

New Arabic Version

القضاة 15:1-20

انتقام شمشون

1وَحَدَثَ بَعْدَ مُدَّةٍ فِي مَوْسِمِ حَصَادِ الْقَمْحِ، أَنَّ شَمْشُونَ أَخَذَ جَدْياً وَذَهَبَ لِيَزُورَ زَوْجَتَهُ، 2وَقَالَ لِحَمِيهِ: «أَنَا دَاخِلٌ إِلَى مُخْدَعِ زَوْجَتِي». وَلَكِنَّ أَبَاهَا مَنَعَهُ وَقَالَ: «لَقَدْ ظَنَنْتُ أَنَّكَ كَرِهْتَهَا فَزَوَّجْتُهَا لِنَدِيمِكَ. فَلِمَاذَا لَا تَتَزَوَّجُ أُخْتَهَا الأَصْغَرَ مِنْهَا عِوَضاً عَنْهَا؟ أَلَيْسَتْ هِيَ أَجْمَلَ مِنْهَا؟» 3فَأَجَابَهُ شَمْشُونُ: «لا لَوْمَ عَلَيَّ هَذِهِ الْمَرَّةَ إِذَا انْتَقَمْتُ مِنَ الْفِلِسْطِينِيِّينَ». 4وَانْطَلَقَ شَمْشُونُ وَاصْطَادَ ثَلاثَ مِئَةِ ثَعْلَبٍ وَرَبَطَ ذَيْلَيْ كُلِّ ثَعْلَبَيْنِ مَعاً وَوَضَعَ بَيْنَهُمَا مَشْعَلاً، 5ثُمَّ أَضْرَمَ الْمَشَاعِلَ بِالنَّارِ وَأَطْلَقَ الثَّعَالِبَ بَيْنَ زُرُوعِ الْفِلِسْطِينِيِّينَ، فَأَحْرَقَتْ حُقُولَ الْقَمْحِ وَأَكْدَاسَ الْحُبُوبِ وَأَشْجَارَ الزَّيْتُونِ. 6فَسَأَلَ الْفِلِسْطِينِيُّونَ: «مَنِ الْجَانِي؟» فَقِيلَ لَهُمْ: «شَمْشُونُ صِهْرُ التِّمْنِيِّ، لأَنَّهُ أَخَذَ امْرَأَةَ شَمْشُونَ وَزَوَّجَهَا لِنَدِيمِه»، فَصَعِدَ الْفِلِسْطِينِيُّونَ وَأَحْرَقُوهَا مَعَ أَبِيهَا بِالنَّارِ. 7فَقَالَ شَمْشُونُ: «لأَنَّكُمْ هَكَذَا تَتَصَرَّفُونَ فَإِنَّنِي لَنْ أَكُفَّ حَتَّى أَنْتَقِمَ مِنْكُمْ». 8وَهَجَمَ عَلَيْهِمْ بِضَرَاوَةٍ وَقَتَلَ مِنْهُمْ كَثِيرِينَ، ثُمَّ ذَهَبَ إِلَى مَغَارَةِ صَخْرَةِ عِيطَمَ وَأَقَامَ فِيهَا.

9فَتَقَدَّمَ جَيْشُ الْفِلِسْطِينِيِّينَ وَاحْتَلُّوا أَرْضَ يَهُوذَا وَانْتَشَرُوا فِي لَحْيٍ 10فَسَأَلَهُمْ رِجَالُ يَهُوذَا: «لِمَاذَا جِئْتُمْ لِمُحَارَبَتِنَا؟» فَأَجَابُوهُمْ: «جِئْنَا لِكَيْ نَأْسِرَ شَمْشُونَ وَنَفْعَلَ بِهِ مِثْلَمَا فَعَلَ بِنَا». 11فَذَهَبَ ثَلاثَةُ آلافِ رَجُلٍ مِنْ سِبْطِ يَهُوذَا إِلَى مَغَارَةِ صَخْرَةِ عِيطَمَ وَقَالُوا لِشَمْشُونَ: «أَلا تَعْلَمُ أَنَّ الْفِلِسْطِينِيِّينَ مُتَسَلِّطُونَ عَلَيْنَا، فَمَاذَا فَعَلْتَ بِنَا؟» فَأَجَابَهُمْ: «كَمَا فَعَلُوا بِي هَكَذَا فَعَلْتُ بِهِمْ». 12فَقَالُوا لَهُ: «لَقَدْ جِئْنَا لِنُوْثِقَكَ وَنُسَلِّمَكَ إِلَى الْفِلِسْطِينِيِّينَ». فَقَالَ لَهُمْ شَمْشُونُ: «احْلِفُوا لِي أَنْ لَا تَقْتُلُونِي بِأَنْفُسِكُمْ». 13فَأَجَابُوهُ: «لا، لَنْ نَقْتُلَكَ نَحْنُ، إِنَّمَا نُوْثِقُكَ وَنُسَلِّمُكَ إِلَيْهِمْ». فَأَوْثَقُوهُ بِحَبْلَيْنِ جَدِيدَيْنِ وَأَخْرَجُوهُ مِنَ الْمَغَارَةِ. 14فَلَمَّا وَصَلَ إِلَى لَحْيٍ هَبَّ الْفِلِسْطِينِيُّونَ صَارِخِينَ لِلِقَائِهِ، فَحَلَّ عَلَيْهِ رُوحُ الرَّبِّ، وَقَطَعَ الْحَبْلَيْنِ اللَّذَيْنِ عَلَى ذِرَاعَيْهِ وَكَأَنَّهُمَا خُيُوطُ كَتَّانٍ مُحْتَرِقَةٌ. 15وَعَثَرَ عَلَى فَكِّ حِمَارٍ طَرِيٍّ، تَنَاوَلَهُ وَقَتَلَ بِهِ أَلْفَ رَجُلٍ. 16ثُمَّ قَالَ شَمْشُونُ: «بِفَكِّ حِمَارٍ كَوَّمْتُ أَكْدَاساً فَوْقَ أَكْدَاسٍ، بِفَكِّ حِمَارٍ قَضَيْتُ عَلَى أَلْفِ رَجُلٍ». 17وَعِنْدَمَا كَفَّ عَنِ الْكَلامِ أَلْقَى فَكَّ الْحِمَارِ مِنْ يَدِهِ، وَدَعَا ذَلِكَ الْمَوْضِعَ رَمَتَ لَحْيٍ (وَمَعْنَاهُ تَلُّ عَظْمَةِ الْفَكِّ).

18وَعَطِشَ شَمْشُونُ عَطَشاً شَدِيداً، فَاسْتَغَاثَ بِالرَّبِّ قَائِلاً: «لَقَدْ مَنَحْتَ هَذَا الْخَلاصَ الْعَظِيمَ عَلَى يَدِ عَبْدِكَ، فَهَلْ أَمُوتُ الآنَ مِنَ الْعَطَشِ وَأَقَعُ أَسِيراً فِي يَدِ الْغُلْفِ؟» 19فَفَجَّرَ اللهُ لَهُ يَنْبُوعَ مَاءٍ مِنْ فَتْحَةٍ فِي الأَرْضِ فِي لَحْيٍ، فَشَرِبَ مِنْهَا وَانْتَعَشَتْ نَفْسُهُ. لِذَلِكَ دَعَا اسْمَ الْمَوْضِعِ عَيْنَ هَقُّورِي (وَمَعْنَاهُ يَنْبُوعُ الَّذِي دَعَا). وَمَازَالَ الْيَنْبُوعُ فِي لَحْيٍ إِلَى يَوْمِنَا هَذَا. 20وَظَلَّ شَمْشُونُ قَاضِياً لإِسْرَائِيلَ عِشْرِينَ سَنَةً فِي أَثْنَاءِ حُكْمِ الْفِلِسْطِينِيِّينَ.