प्रकाशन 12 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

प्रकाशन 12:1-17

स्त्री तथा परों वाला सांप

1तब स्वर्ग में एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया: एक स्त्री, सूर्य जिसका वस्त्र, चंद्रमा जिसके चरणों के नीचे तथा जिसके सिर पर बारह तारों का एक मुकुट था, 2गर्भवती थी तथा पीड़ा में चिल्ला रही थी क्योंकि उसका प्रसव प्रारंभ हो गया था. 3उसी समय स्वर्ग में एक और दृश्य दिखाई दिया: लाल रंग का एक विशालकाय परों वाला सांप, जिसके सात सिर तथा दस सींग थे. हर एक सिर पर एक-एक मुकुट था. 4उसने आकाश के एक तिहाई तारों को अपनी पूंछ से समेटकर पृथ्वी पर फेंक दिया और तब वह परों वाला सांप उस स्त्री के सामने, जो शिशु को जन्म देने को थी, खड़ा हो गया कि शिशु के जन्म लेते ही वह उसे निगल जाए. 5उस स्त्री ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका सभी राष्ट्रों पर लोहे के राजदंड से राज्य करना तय था.12:5 स्तोत्र 2:9 इस शिशु को तुरंत ही परमेश्वर तथा उनके सिंहासन के पास पहुंचा दिया गया. 6किंतु वह स्त्री बंजर भूमि की ओर भाग गई, जहां परमेश्वर द्वारा उसके लिए एक स्थान तैयार किया गया था कि वहां 1,260 दिन तक उसकी देखभाल और भरण-पोषण किया जा सके.

7तब स्वर्ग में दोबारा युद्ध छिड़ गया: स्वर्गदूत मीख़ाएल और उसके अनुचरों ने परों वाले सांप पर आक्रमण किया. परों वाले सांप और उसके दूतों ने उनसे बदला लिया 8किंतु वे टिक न सके इसलिये अब स्वर्ग में उनका कोई स्थान न रहा. 9तब उस परों वाले सांप को—उस आदि सांप को, जो दियाबोलॉस तथा शैतान कहलाता है और जो पृथ्वी के सभी वासियों को भरमाया करता है, पृथ्वी पर फेंक दिया गया—उसे तथा उसके दूतों को भी.

10तब मुझे स्वर्ग में एक ऊंचा शब्द यह घोषणा करता हुआ सुनाई दिया:

“अब उद्धार, प्रताप,

हमारे परमेश्वर का राज्य,

तथा उनके मसीह का राज्य करने का अधिकार प्रकट हो गया है.

हमारे भाई बहनों पर दोष लगानेवाले को,

जो दिन-रात परमेश्वर के सामने उन पर दोष लगाता रहता है,

निकाल दिया गया है.

11उन्होंने मेमने के लहू

तथा अपने गवाही के वचन के द्वारा,

उसे हरा दिया है.

अंतिम सांस तक

उन्होंने अपने जीवन का मोह नहीं किया.

12इसलिये सारे स्वर्ग तथा उसके वासियों,

आनंदित हो!

धिक्कार है तुम पर भूमि और समुद्र!

क्योंकि शैतान तुम तक पहुंच चुका है.

वह बड़े क्रोध में भर गया है,

क्योंकि उसे मालूम हो चुका है कि उसका समय बहुत कम है.”

13जब परों वाले सांप को यह अहसास हुआ कि उसे पृथ्वी पर फेंक दिया गया है, तो वह उस स्त्री को, जिसने उस पुत्र को जन्म दिया था, ताड़ना देने लगा. 14उस स्त्री को एक विशालकाय गरुड़ के दो पंख दिए गए कि वह उड़कर उस सांप से दूर, बंजर भूमि में अपने निर्धारित स्थान को चली जाए, जहां समय, समयों तथा आधे समय तक उसकी देखभाल तथा भरण-पोषण किया जाना तय हुआ था. 15इस पर उस सांप ने अपने मुंह से नदी के समान जल इस रीति से बहाया कि वह स्त्री उस बहाव में बह जाए. 16किंतु उस स्त्री की सहायता के लिए भूमि ने अपना मुंह खोलकर परों वाले सांप द्वारा बहाए पानी के बहाव को अपने में समा लिया. 17इस पर परों वाला सांप उस स्त्री पर बहुत ही क्रोधित हो गया. वह स्त्री की बाकी संतानों से, जो परमेश्वर के आदेशों का पालन करती है तथा जो मसीह येशु के गवाह हैं, युद्ध करने निकल पड़ा.