गणना 21 – HCV & JCB

Hindi Contemporary Version

गणना 21:1-35

अराद की पराजय

1जब नेगेव निवासी कनानी अराद के राजा ने यह सुना कि इस्राएली अथारीम मार्ग से बढ़े चले आ रहे हैं, तब उसने इस्राएल पर आक्रमण कर दिया, तथा कुछ को बंदी बना लिया. 2फिर इस्राएल ने याहवेह के सामने यह शपथ की: “यदि आप वास्तव में शत्रुओं को हमारे अधीन कर देंगे, तो हम इनके नगरों को पूरी तरह से नाश कर देंगे.” 3याहवेह ने उनकी दोहाई स्वीकार कर ली और कनानियों को उनके अधीन कर दिया. इस्राएलियों ने उनके नगरों को पूरी तरह से नाश कर दिया. परिणामस्वरूप वह स्थान होरमाह21:3 होरमाह अर्थ: विनाश के नाम से मशहूर हो गया.

कांस्य सर्प

4इसके बाद उन्होंने होर पर्वत से कूच किया और लाल सागर का मार्ग लिया कि उन्हें एदोम से होते हुए जाना न पड़े. इस यात्रा ने प्रजा का धीरज खत्म कर दिया. 5प्रजा ने परमेश्वर एवं मोशेह के विरुद्ध बड़बड़ाना शुरू कर दिया, “आपने हमें मिस्र देश से क्यों निकाला है, कि हम इस निर्जन प्रदेश में अपने प्राण गवां दें? यहां तो न भोजन है न जल! और जो नीरस भोजन हमें दिया जा रहा है, वह हमारे लिए घृणित हो चुका है.”

6याहवेह ने उन लोगों के बीच में विषैले सांप भेज दिए, जिनके द्वारा डसे जाने पर अनेक इस्राएलियों की मृत्यु हो गई. 7तब वे लोग मोशेह के पास आकर कहने लगे, “हमने पाप किया है, क्योंकि हमने याहवेह तथा आपके विरुद्ध बड़बड़ाया है. आप उनसे हमारे लिए विनती कीजिए कि वह इन सांपों को हमसे दूर कर दें.” मोशेह ने लोगों के लिए विनती की.

8तब याहवेह ने मोशेह को आज्ञा दी, “विषैले सांप की प्रतिमा बनाकर एक खंभे पर खड़ी कर दो तब होगा यह, कि जो कोई सांप का डसा हुआ व्यक्ति आकर इस प्रतिमा को देखेगा, वह जीवन प्राप्‍त करेगा.” 9मोशेह ने सांप की प्रतिमा गढ़ कर एक खंभे पर खड़ी कर दी. तब यह होने लगा कि यदि कोई सांप का डसा हुआ व्यक्ति आकर उस कांसे के सांप की ओर देख लेता था, तो मृत्यु से बच जाता था.

मोआब की ओर यात्रा

10फिर इस्राएलियों ने यात्रा शुरू की और ओबोथ नामक स्थान पर शिविर डाल दिया. 11ओबोथ से कूच कर उन्होंने इये-आबारिम के निर्जन प्रदेश में डेरा डाला, जो पूर्व दिशा की ओर मोआब के सामने है. 12वहां से कूच कर उन्होंने ज़ेरेद की वादी में डेरा डाल दिया. 13वहां से यात्रा करते हुए उन्होंने आरनोन के दूसरी ओर डेरा डाला. यह वह स्थान था, जो अमोरियों की सीमा पर निर्जन प्रदेश में है. आरनोन मोआब की सीमा तय करता है, मोआबियों एवं अमोरियों के बीच की. 14इस बात का वर्णन याहवेह के युद्ध, नामक ग्रंथ में इस रीति से किया गया है:

“सूफाह वाहेब

तथा आरनोन की वादियां, 15तथा वादियों की वे ढलान,

जो आर के क्षेत्र तक फैली होती है,

तथा जो मोआब की सीमा तक पहुंची हुई है.”

16वहां से वे बीर तक पहुंचे, उस कुएं तक, जहां याहवेह ने मोशेह को आज्ञा दी थी, “इकट्ठा करो लोगों को, कि मैं उनके लिए जल दे सकूं.”

17फिर इस्राएलियों ने यह गीत गाया:

“कुएं भरने लगो, सभी!

यह गाएं.

18वह कुंआ, जिसको प्रधानों ने खोदा था,

जिसे कुलीन व्यक्तियों ने खोदा है,

जिसके लिए राजदंड तथा उनकी लाठियों का प्रयोग किया गया था.”

फिर उन्होंने निर्जन प्रदेश से मत्तानाह की ओर कूच किया और 19मत्तानाह से नाहालिएल की ओर और फिर वहां से बामोथ की ओर, 20बामोथ से उस घाटी की ओर, जो मोआब देश में है तथा पिसगाह पर्वत शिखर, जो निर्जन प्रदेश के सामने है.

दो हारी हुई सेनाएं

21यहां पहुंचकर इस्राएल ने अमोरियों के राजा सीहोन के लिए अपने संदेशवाहक को इस संदेश के साथ भेजे:

22“हमें अपने देश में से होकर जाने की अनुमति दे दीजिए. हम न तो मार्ग के खेतों में प्रवेश करेंगे और न अंगूर के बगीचों में. हम कुंओं का जल भी न पियेंगे. हम आपके देश को पार करते हुए सिर्फ राजमार्ग का ही प्रयोग करेंगे.”

23किंतु राजा सीहोन ने इस्राएल को अपनी सीमा में से होकर जाने की अनुमति ही न दी, बल्कि उसने अपनी सारी प्रजा को इकट्ठा कर निर्जन प्रदेश में इस्राएल पर आक्रमण कर दिया. याहज़ नामक स्थान पर दोनों में युद्ध छिड़ गया. 24इस्राएल ने उन पर तलवार के प्रहार से अम्मोन देश की सीमा तक, आरनोन से यब्बोक तक के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया, क्योंकि जाज़ेर अम्मोन के घराने की सीमा पर था. 25इस्राएल ने इन सभी नगरों पर अधिकार कर लिया तथा हेशबोन एवं इसके सभी गांवों में, जो अमोरियों के नगर थे, इस्राएली वहां रहने लगे. 26हेशबोन अमोरियों के राजा सीहोन का मुख्यालय था, जिसने मोआब के पहले के राजा से युद्ध कर उससे आरनोन तक उसका सारा देश छीन लिया था.

27तब यह कहावत मशहूर हो गई:

“हेशबोन आ जाइए! हम इसको दोबारा बनाएंगे;

कि सीहोन का नगर स्थापित कर दिया जाए.

28“हेशबोन से एक आग की लपट निकली,

सीहोन के नगर से एक आग की लौ.

इसने मोआब के आर को भस्म कर लिया,

उन्हें, जो आरनोन के प्रमुख शिखर थे.

29मोआब, धिक्कार है तुम पर!

तुम तो खत्म हो चुके, खेमोश के निवासियो!

उसने अमोरी राजा सीहोन को

अपने पुत्रों को भगौड़े बनाकर

तथा पुत्रियों को बंदी बनाकर उसे सौंप दिया है.

30“किंतु हमने उन्हें धूल में मिला दिया है;

दीबोन तक हेशबोन नाश होकर खंडहर बन चुके हैं,

इसके बाद हमने नोपाह तक,

जो मेदेबा की सीमा तक फैला हुआ क्षेत्र का है, उजाड़ दिया है.”

31इस प्रकार इस्राएल अमोरियों के देश में बस गया.

32मोशेह ने याज़र की जासूसी करने की आज्ञा दी. उन्होंने जाकर वहां के गांवों को अपने अधिकार में कर लिया, तथा वहां निवास कर रहे अमोरियों को वहां से खदेड़ दिया. 33तब वे मुड़कर बाशान के मार्ग से आगे बढ़ गए. बाशान का राजा ओग अपनी सारी सेना लेकर उनसे युद्ध करने एद्रेइ पहुंच गया.

34याहवेह की ओर से मोशेह को यह आश्वासन मिला, “तुम्हें उससे डरने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने उसे, उसकी सारी सेना तथा प्रजा को, तुम्हारे अधीन कर दिया है. तुम उसके साथ वही सब करोगे, जो तुमने हेशबोन निवासी अमोरियों के राजा सीहोन के साथ किया था.”

35फिर उन्होंने बाशान के राजा ओग को, उसके पुत्रों तथा उसकी सारी प्रजा का नाश कर दिया, जिससे वहां कोई भी बचा न रह गया, और इस्राएलियों ने उस देश पर अधिकार कर लिया.

Japanese Contemporary Bible

民数記 21:1-35

21

アラデを滅ぼす

1人々は、先の偵察隊の一行と同じ道を通り、アラデの近くに来ました。それを知ったカナン人アラデの王はイスラエル人を攻撃し、何人かを捕虜にしました。 2そこでイスラエルの民は、「アラデの国を征服させてください。国中の町を必ず全滅させます」と主に誓願しました。 3願いは聞かれ、彼らはカナン人と彼らの町を滅ぼしました。そこをホルマ〔「全滅」の意〕と呼ぶようになったのは、この時からです。

青銅の蛇

4このあと彼らはホル山に帰り、そこから南へ行き、エドムの国をぐるりと回って、紅海へ通じる道に出ました。ところが、途中で我慢できなくなり、 5また文句を言い始めたのです。不平不満はモーセに集中しました。「何の恨みがあって、われわれをエジプトから連れ出し、こんな荒野で飢え死にさせるのか。食べ物も飲み物もないではないか。あんなまずいマナは、もうたくさんだ。」

6これに主は怒り、彼らを毒蛇にかませたので、多くの者が死にました。 7人々は困り果ててモーセに泣きつきました。「赦してください。私たちが間違っていました。主とあなたのおっしゃるとおりにしていればよかったのです。お願いですから、毒蛇がいなくなるように主に祈ってください。」モーセは民のために祈りました。

8主の答えはこうでした。「銅で毒蛇の複製を作り、竿の先に掲げなさい。かまれた者で、わたしの言うとおり、それを見上げる者は助けよう。」

9モーセはさっそく蛇の複製を作り、竿の先につけました。かまれた者で、それを見上げた者は一人残らず治りました。

モアブへの旅

10このあと一行はオボテに行き、そこで野営しました。 11そこからさらに、モアブに近い荒野にあるイエ・ハアバリム、 12ゼレデの谷へと進み、そこに野営しました。 13それから、モアブとエモリとの国境沿いを流れるアルノン川の向こう岸に移りました。 14アルノン川のことは、『主の戦いの書』(折々に作られたイスラエルの戦いの歌)に、ワヘブの町を通り、 15モアブとエモリの国境を流れている、と記されています。

16次に向かったのはベエル〔「井戸」の意〕です。そこは主がモーセに、「水を与えるから、みなを集めなさい」と命じた場所でした。 17-18その時のことは、次のようなイスラエルの歌になっています。

「水よ、どんどんわき上がれ。

喜びの歌を歌おう。

おお、すばらしい井戸。

指導者たちが杖とシャベルで掘った井戸。」

一行はそこで荒野を離れ、マタナ、 19ナハリエル、バモテを通って、 20モアブ平原の谷まで行きました。そこはピスガ山のふもとで、山頂からは荒野がはるかに見渡せました。

シホン王とオグ王を打つ

21イスラエルは、エモリ人の王シホンに使者を送りました。 22「どうか、領内を通らせてください。国境を越えるまでは、決して街道からそれたりしません。畑を踏み荒らしたり、ぶどう園に入ったり、水を飲んだりもしません。」

23しかし、王は承知しませんでした。それどころか軍を集め、わざわざ荒野に出て、ヤハツで戦いをしかけてきたのです。 24ところが王は戦死し、勝ったのはイスラエル人のほうでした。結局、アルノン川から、北はヤボク川、東はアモンとの国境までを占領しました。アモンとの国境は地形が険しく、それ以上は進めなかったのです。

25-26こうしてイスラエルはエモリ人の国を占領し、そこに住みつきました。首都だったヘシュボンもイスラエル人のものになりました。シホン王は以前にモアブを治めていた王と戦って勝ち、アルノン川までの全土を占領していたのです。 27-30昔の詩人が歌っているとおりです。

「シホン王の都、ヘシュボンに来てみるがいい。

岩のように堅い都に。

王は炎のような勢いでモアブの町アルに攻め上り、

完全に滅ぼしてしまった。

アルノン川の高地にそびえるあのアルを。

気の毒なモアブ、ケモシュの神を拝む人たち。

とうとう最期が来たのだ。

息子は外国へ逃げ、

娘はエモリ人の王シホンに捕らえられた。

しかし、今やわれわれが彼らの子孫を滅ぼした。

ヘシュボンからディボンに至るまで、

メデバの近くのノファフまで。」

31-32エモリ人の国にいる間に、モーセはヤゼルのあたりに偵察を送り込みました。よく調べてから攻めようとしたのです。そして、とうとう町々を占領し、エモリ人を追い出しました。

33次の目標はバシャンの都でした。バシャンの王オグはこれに対抗し、エデレイに兵を集めました。 34主はモーセを励ましました。「恐れるな。勝敗はもう決まっている。ヘシュボンでシホン王と戦ったように、オグ王と戦いなさい。」

35そして、イスラエルは勝利を収めたのです。オグ王とその子らから部下に至るまですべて打ったので、バシャンもイスラエル人のものとなりました。