एस्तेर 8 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

एस्तेर 8:1-17

यहूदियों के पक्ष में राजा का अध्यादेश

1उसी दिन राजा अहषवेरोष ने यहूदियों के शत्रु हामान की संपूर्ण संपत्ति रानी एस्तेर के नाम कर दी. मोरदकय को राजा के सामने लाया गया, क्योंकि एस्तेर ने मोरदकय से अपने संबंध स्पष्ट कर दिए थे. 2राजा ने हामान से ली गयी राजकीय अंगूठी अपनी उंगली से उतारकर मोरदकय को सौंप दी. एस्तेर ने मोरदकय को हामान की संपत्ति का अधिकारी नियुक्त दिया.

3इसके बाद एस्तेर फिर राजा से बोली. और राजा के चरणों पर जा गिरी तथा रोते हुए उसने राजा से निवेदन किया, कि वह अगागी और हामान की दुष्ट योजना को खत्म कर दें, उस षड़्‍यंत्र को, जो उसने यहूदियों के विरुद्ध रचा था. 4राजा ने अपना स्वर्ण राजदंड एस्तेर की ओर बढ़ाया. यह देख एस्तेर उठकर राजा के सामने खड़ी हो गई.

5उसने राजा से आग्रह किया, “यदि यह राजा की दृष्टि में संतोषप्रद है, यदि मुझ पर आपकी कृपादृष्टि हुई है, यह विषय राजा की दृष्टि में ठीक है तथा मैं महाराज की दृष्टि में उत्तम हूं, तो अगागी हम्मेदाथा के पुत्र हामान द्वारा रचे पत्रों को, जिसमें उसने उन सभी यहूदियों को जो राजा के सारे साम्राज्य में बसे हुए हैं, नष्ट करने के लिए लिखा था, रद्द करने के लिए चिट्ठियां लिखी जाएं 6क्योंकि अपने सजातियों पर आ पड़े संकट को देखते हुए मैं कैसे सह सकती हूं, मैं अपने परिवार के विनाश को देखते हुए कैसे सहन कर सकती हूं?”

7तब राजा ने रानी एस्तेर तथा यहूदी मोरदकय से कहा, “मैंने हामान की संपत्ति एस्तेर के नाम कर दी है, हामान को उन्होंने मृत्यु दंड पर लटका दिया है, क्योंकि उसने यहूदियों के विरुद्ध हाथ उठाया था. 8मोरदकय, अब तुम राजा की ओर से जैसा भी भला समझो, यहूदियों को संबोधित राजाज्ञा लिखो और उस पर राजा की राजमुद्रा मुद्रित लगा दो; क्योंकि वह राजाज्ञा, जिस पर राजा की राजमुद्रा की मोहर लगी हुई होती है, बदली नहीं जा सकती.”

9यह तृतीय माह अर्थात् सिवान की तेईसवीं तिथि थी. राजा के सचिवों को बुलवाया गया. उन्होंने समस्त 127 राज्यों में, जो हिंद से कूश तक फैले थे, उनमें निवास कर रहे यहूदियों, वहां नियुक्त राज्यपालों, उपराज्यपालों, हाकिमों को संबोधित मोरदकय के आदेश की चिट्ठियां उन राज्यों की अक्षरों एवं भाषाओं में लिख दी गई. 10मोरदकय ने यह आज्ञा राजा अहषवेरोष की ओर से लिखकर उस पर अंगूठी की मुहर लगा दी तथा ये चिट्ठी घोड़े पर सवार संदेशवाहकों के द्वारा भेज दी गई. ये सभी घोड़े उच्च कोटि के राजकीय सुरक्षा के घोड़े थे.

11इन चिट्ठियों के द्वारा राजा ने उन यहूदियों को, जो साम्राज्य के हर एक नगर में रहते थे, यह अनुमति प्रदान कर दी थी, कि वे एकत्र होकर अपने प्राणों की रक्षा के उपक्रम में किसी भी समुदाय वा राज्य की सशस्त्र सेना को, जो उन पर, उनकी स्त्रियों तथा बालकों पर आक्रमण करें, उनको घात और नष्ट करें, एवं उनकी संपत्ति को लूट लें और उनका अस्तित्व ही मिटा दें. 12यह राजा अहषवेरोष के अखिल साम्राज्य के समस्त राज्यों में एक ही दिन-बारहवें महीना अदार की तेरहवीं तिथि पर किया जाए. 13इस पत्र की एक प्रति राजा के आदेश के साथ हर प्रांत को भेजी जानी थी. यह एक नियम बन गया. हर प्रांत में इसे नियम के रूप में ले लिया. राज्य में रहनेवाली प्रत्येक जाति के लोगों के बीच इसका प्रचार किया गया. उन्होंने ऐसा इसलिये किया जिससे उस विशेष दिन के लिये यहूदी तैयार हो जायें जब यहूदियों को अपने शत्रुओं से बदला लेने की अनुमति दे दी जाएगी.

14राजा की आज्ञा के कारण संदेशवाहक राजकीय घोड़ों पर तुरंत, द्रुत गति से निकल गए. राजधानी शूशन नगर में राजाज्ञा भेज दी गई थी.

यहूदियों की विजय

15मोरदकय नीले और सफेद राजकीय वस्त्र धारण हुए, एक गोलाकार स्वर्ण मुकुट धारण किए हुए, तथा उत्कृष्ट मलमल का बैंगनी राजसी पोशाक धारण हुए राजा के उपस्थिति से निकलकर बाहर नगर में आ गया. संपूर्ण राजधानी शूशन नगर के लोग उल्लास से भरकर जयघोष कर रहे थे, 16क्योंकि इस समय समस्त यहूदी इस सम्मान के कारण विमुक्ति एवं उल्लास में मगन हो चुके थे. 17यहीं नहीं, हर एक राज्य के हर एक नगर में जैसे जैसे राजा की राजाज्ञा तथा उसका आदेश चिट्ठियां पहुंच गयी, यहूदियों में हर्ष तथा उल्लास फैलता चला गया, एक उत्सव तथा महोत्सव जैसे. इस अवसर पर जनसाधारण पर यहूदियों का आतंक ऐसा गहन हो गया कि राज्यों में अनेकों ने यहूदी मत अंगीकार कर लिया.

New Arabic Version

أستير 8:1-17

مرسوم الملك لصالح اليهود

1فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ وَهَبَ الْمَلِكُ أَحَشْوِيرُوشُ لِلْمَلِكَةِ أَسْتِيرَ بَيْتَ هَامَانَ عَدُوِّ الْيَهُودِ. وَمَثَلَ مُرْدَخَايُ أَمَامَ الْمَلِكِ لأَنَّ أَسْتِيرَ أَطْلَعَتْهُ عَلَى قَرَابَتِهِ مِنْهَا، 2فَنَزَعَ الْمَلِكُ خَاتَمَهُ الَّذِي اسْتَرَدَّهُ مِنْ هَامَانَ وَأَعْطَاهُ لِمُرْدَخَايَ، وَطَلَبَتْ أَسْتِيرُ مِنْ مُرْدَخَايَ أَنْ يُشْرِفَ عَلَى مُمْتَلَكَاتِ هَامَانَ.

3ثُمَّ عَادَتْ أَسْتِيرُ وَكَلَّمَتِ الْمَلِكَ، وَانْطَرَحَتْ عِنْدَ قَدَمَيْهِ، وَتَوَسَّلَتْ إِلَيْهِ بَاكِيَةً لِيُبْطِلَ مُؤَامَرَةَ هَامَانَ الأَجَاجِيِّ وَتَدْبِيرَاتِهِ الَّتِي خَطَّطَهَا ضِدَّ الْيَهُودِ، 4فَمَدَّ الْمَلِكُ لأَسْتِيرَ صَوْلَجَانَ الذَّهَبِ، فَنَهَضَتْ وَوَقَفَتْ أَمَامَهُ 5وَقَالَتْ: «إِذَا طَابَ لِلْمَلِكِ وَحَظِيتُ بِرِضَاهُ، وَاسْتَصْوَبَ الْمَلِكُ الرَّأْيَ، وَرُقْتُ أَنَا فِي عَيْنَيْهِ، فَلْيُصْدِرِ الْمَلِكُ أَوَامِرَ تُلْغِي رَسَائِلَ تَدْبِيرَاتِ هَامَانَ بْنِ هَمَدَاثَا الأَجَاجِيِّ، الَّتِي بَعَثَ بِها لإِبَادَةِ الْيَهُودِ الْمُقِيمِينَ فِي كُلِّ أَقَالِيمِ الْمَلِكِ، 6إِذْ كَيْفَ يُمْكِنُ أَنْ أَرَى الشَّرَّ يَحِيقُ بِشَعْبِي؟ وَكَيْفَ يُمْكِنُ أَنْ أَشْهَدَ هَلاكَ أَبْنَاءِ جِنْسِي؟»

7فَقَالَ الْمَلِكُ أَحَشْوِيرُوشُ لِلْمَلِكَةِ أَسْتِيرَ وَلِمُرْدَخَايَ الْيَهُودِيِّ: «لَقَدْ أَعْطَيْتُ مُمْتَلَكَاتِ هَامَانَ لأَسْتِيرَ، وَصَلَبْتُهُ هُوَ عَلَى خَشَبَةٍ، لأَنَّهُ حَاوَلَ أَنْ يَمُسَّ الْيَهُودَ بِسُوءٍ. 8فَاكْتُبَا أَنْتُمَا إِلَى الْيَهُودِ بِكُلِّ مَا تَرَيَانِهِ مُنَاسِباً بِاسْمِ الْمَلِكِ، وَاخْتُمَاهُ بِخَاتَمِهِ، لأَنَّ الْمَرَاسِيمَ الَّتِي تُسَنُّ بِاسْمِ الْمَلِكِ وَتُخْتَمُ بِخَاتَمِهِ لَا تُبْطَلُ».

9فَاسْتُدْعِيَ كُتَّابُ الْمَلِكِ عَلَى التَّوِّ، فِي الْيَوْمِ الثَّالِثِ وَالْعِشْرِينَ مِنَ شَهْرِ سِيوَانَ، (تَمُّوزَ – يُولْيُو) وَكَتَبُوا مَا أَمْلاهُ عَلَيْهِمْ مُرْدَخَايُ إِلَى الْيَهُودِ وَالْحُكَّامِ وَالْوُلاةِ وَرُؤَسَاءِ الأَقَالِيمِ، الَّتِي تَمْتَدُّ مِنَ الْهِنْدِ إِلَى كُوشٍ، وَالْبَالِغُ عَدَدُهَا مِئَةً وَسَبْعَةً وَعِشْرِينَ إِقْلِيماً إِلَى كُلِّ إِقْلِيمٍ بِلُغَتِهِ وَلَهْجَةِ شَعْبِهِ، وَإِلَى الْيَهُودِ بِلُغَتِهِمْ وَلَهْجَتِهِمْ. 10وَهَكَذَا كُتِبَتْ هَذِهِ الْمَرَاسِيمُ بِاسْمِ الْمَلِكِ، وَخُتِمَتْ بِخَاتَمِهِ، وَحَمَلَهَا رُكَّابُ الْجِيَادِ وَالْبِغَالِ عَلَى بَرِيدِ خَيْلِ الْمَلِكِ الأَصِيلَةِ، 11وَفِيهَا خَوَّلَ الْمَلِكُ الْيَهُودَ فِي كُلِّ مَدِينَةٍ أَنْ يَتَآزَرُوا لِلدِّفَاعِ عَنْ أَنْفُسِهِمْ، وَيُهْلِكُوا وَيَقْتُلُوا وَيَسْتَأْصِلُوا أَيَّةَ قُوَّةٍ مُسَلَّحَةٍ تَابِعَةٍ لأَيِّ شَعْبٍ أَوْ إِقْلِيمٍ تُهَاجِمُهُمْ مَعَ أَطْفَالِهِمْ وَنِسَائِهِمْ، وَأَنْ يَسْتَوْلُوا عَلَى غَنَائِمِهِمْ، 12فِي يَوْمٍ وَاحِدٍ، هُوَ الْيَوْمُ الثَّالِثَ عَشَرَ مِنَ الشَّهْرِ الثَّانِي عَشَرَ، (آذَارَ – مَارِسَ)، وَذَلِكَ فِي جَمِيعِ أَقَالِيمِ الْمَلِكِ أَحَشْوِيرُوشَ. 13وَقَدْ وُزِّعَتْ نُسَخٌ مِنَ الْمَرْسُومِ الصَّادِرِ عَلَى كُلِّ أَرْجَاءِ الْبِلادِ، وَأُذِيعَتْ بَيْنَ كُلِّ الأُمَمِ، وَكَانَ عَلَى الْيَهُودِ أَنْ يَتَأَهَّبُوا لِهَذَا الْيَوْمِ لِلانْتِقَامِ مِنْ أَعْدَائِهِمْ. 14فَحَمَلَ رُكَّابُ الْجِيَادِ وَالْبِغَالِ الْبَرِيدَ وَانْطَلَقُوا مُسْرِعِينَ يَحُثُّهُمْ أَمْرُ الْمَلِكِ، كَمَا أُذِيعَ الْمَرْسُومُ فِي الْعَاصِمَةِ شُوشَنَ.

15وَخَرَجَ مُرْدَخَايُ مِنْ حَضْرَةِ الْمَلِكِ بِثِيَابٍ مُلَوَّنَةٍ بِأَلْوَانٍ زَرْقَاءَ وَبَيْضَاءَ، وَعَلَى هَامَتِهِ تَاجٌ ذَهَبِيٌّ عَظِيمٌ، وَعَلَى كَتِفَيْهِ عَبَاءَةٌ مِنْ كَتَّانٍ وَأُرْجُوَانٍ، وَغَمَرَتِ الْبَهْجَةُ وَالْفَرْحَةُ مَدِينَةَ شُوشَنَ، 16وَعَمَّتِ الْيَهُودَ الْغِبْطَةُ وَالسَّعَادَةُ وَنُورُ الْفَرَحِ الْمُتَأَلِّقُ، وَنَالَهُمُ الإِكْرَامُ. 17وَسَادَ الْفَرَحُ يَهُودَ كُلِّ بِلادِ الْمَمْلَكَةِ وَمُدُنِهَا عِنْدَمَا وَصَلَهُمْ مَرْسُومُ الْمَلِكِ وَأَمْرُهُ، فَأَقَامُوا الْوَلائِمَ وَاحْتَفَلُوا. وَكَثِيرُونَ مِنْ أَبْنَاءِ أُمَمِ الأَقَالِيمِ تَهَوَّدُوا لأَنَّ الْخَوْفَ مِنَ الْيَهُودِ طَغَى عَلَيْهِمْ.