उद्बोधक 6 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

उद्बोधक 6:1-12

1मैंने सूरज के नीचे एक बुरी बात देखी जो मनुष्य पर बहुत अधिक हावी है. 2एक व्यक्ति जिसे परमेश्वर ने धन-संपत्ति और सम्मान दिया है जिससे उसे उस किसी भी वस्तु की कमी न हो जिसे उसका मन चाहता है; मगर परमेश्वर ने उसे उनको इस्तेमाल करने की समझ नहीं दी, उनका आनंद तो एक विदेशी लेता है. यह बेकार और बड़ी ही बुरी बात है.

3यदि एक व्यक्ति सौ पुत्रों का पिता है और वह बहुत साल जीवित रहता है, चाहे उसकी आयु के साल बहुत हों, पर अगर वह अपने जीवन भर में अच्छी वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करता और उसे क्रिया-कर्म ही नहीं किया गया तो मेरा कहना तो यही है कि एक मरा हुआ जन्मा बच्चा उस व्यक्ति से बेहतर है, 4क्योंकि वह बच्चा बेकार में आता है और अंधेरे में चला जाता है. अंधेरे में उसका नाम छिपा लिया जाता है. 5उस बच्‍चे ने सूरज को नहीं देखा और न ही उसे कुछ मालूम ही हुआ था. वह बच्चा उस व्यक्ति से कहीं अधिक बेहतर है. 6दो बार जिसका जीवन दो हज़ार साल का हो मगर उस व्यक्ति ने किसी अच्छी वस्तु का इस्तेमाल न किया हो, क्या सभी लोग एक ही जगह पर नहीं जाते?

7मनुष्य की सारी मेहनत उसके भोजन के लिए ही होती है,

मगर उसका मन कभी संतुष्ट नहीं होता.

8बुद्धिमान को निर्बुद्धि से क्या लाभ?

और गरीब को यह मालूम होने से

क्या लाभ कि उसे बुद्धिमानों के सामने कैसा व्यवहार करना है?

9आंखों से देख लेना

इच्छा रखने से कहीं अधिक बेहतर है.

मगर यह भी बेकार ही है,

सिर्फ हवा को पकड़ने की कोशिश.

10जो हो चुका है उसका नाम भी रखा जा चुका है,

और यह भी मालूम हो चुका है कि मनुष्य क्या है?

मनुष्य उस व्यक्ति पर हावी नहीं हो सकता

जो उससे बलवान है.

11शब्द जितना अधिक है,

अर्थ उतना कम होता है.

इससे मनुष्य को क्या फायदा?

12जिसे यह मालूम है कि उसके पूरे जीवन में मनुष्य के लिए क्या अच्छा है, अपने उस व्यर्थ जीवन के थोड़े से सालों में. वह एक परछाई के समान उन्हें बिता देगा. मनुष्य को कौन बता सकता है कि सूरज के नीचे उसके बाद क्या होगा?