उद्बोधक 12 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

उद्बोधक 12:1-14

1जवानी में अपने बनानेवाले को याद रख:

अपनी जवानी में अपने बनानेवाले को याद रखो,

इससे पहले कि बुराई

और वह समय आए जिनमें तुम्हारा कहना यह हो,

“मुझे इनमें ज़रा सी भी खुशी नहीं,”

2इससे पहले कि सूरज, चंद्रमा

और तारे अंधियारे हो जाएंगे,

और बादल बारिश के बाद लौट आएंगे;

3उस दिन पहरेदार कांपने लगेंगे,

बलवान पुरुष झुक जाएंगे,

जो पीसते हैं वे काम करना बंद कर देंगे, क्योंकि वे कम हो गए हैं,

और जो झरोखों से झांकती हैं वे अंधी हो जाएंगी;

4चक्की की आवाज धीमी होने के कारण

नगर के फाटक बंद हो जाएंगे;

और कोई व्यक्ति उठ खड़ा होगा,

तथा सारे गीतों की आवाज शांत हो जाएगी.

5लोग ऊंची जगहों से डरेंगे

और रास्ते भी डरावने होंगे;

बादाम के पेड़ फूलेंगे

और टिड्डा उनके साथ साथ घसीटता हुआ चलेगा

और इच्छाएं खत्म हो जाएंगी.

क्योंकि मनुष्य तो अपने सदा के घर को चला जाएगा

जबकि रोने-पीटने वाले रास्तों में ही भटकते रह जाएंगे.

6याद करो उनको इससे पहले कि चांदी की डोर तोड़ी जाए,

और सोने का कटोरा टूट जाए,

कुएं के पास रखा घड़ा फोड़ दिया जाए

और पहिया तोड़ दिया जाए;

7धूल जैसी थी वैसी ही भूमि में लौट जाएगी,

और आत्मा परमेश्वर के पास लौट जाएगी जिसने उसे दिया था.

8“बेकार! ही बेकार है!” दार्शनिक कहता है,

“सब कुछ बेकार है!”

दार्शनिक का उद्देश्य

9बुद्धिमान होने के साथ साथ दार्शनिक ने लोगों को ज्ञान भी सिखाया उसने खोजबीन की और बहुत से नीतिवचन को इकट्ठा किया. 10दार्शनिक ने मनभावने शब्दों की खोज की और सच्चाई की बातों को लिखा.

11बुद्धिमानों की बातें छड़ी के समान होती हैं तथा शिक्षकों की बातें अच्छे से ठोकी गई कीलों के समान; वे एक ही चरवाहे द्वारा दी गईं हैं. 12पुत्र! इनके अलावा दूसरी शिक्षाओं के बारे में चौकस रहना;

बहुत सी पुस्तकों को लिखकर रखने का कोई अंत नहीं है और पुस्तकों का ज्यादा पढ़ना भी शरीर को थकाना ही है.

13इसलिये इस बात का अंत यही है:

कि परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और भय की भावना रखो

और उनकी व्यवस्था और विधियों का पालन करो,

क्योंकि यही हर एक मनुष्य पर लागू होता है.

14क्योंकि परमेश्वर हर एक काम को,

चाहे वह छुपी हुई हो,

भली या बुरी हो, उसके लिए न्याय करेंगे.