उद्बोधक 11 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

उद्बोधक 11:1-10

कई उद्यमों में निवेश करें

1पानी के ऊपर अपनी रोटी डाल दो;

क्योंकि बहुत दिनों के बाद यह तुम्हें दोबारा मिल जाएगी.

2अपना अंश सात भागों बल्कि आठ भागों में बांट दो,

क्योंकि तुम्हें यह पता ही नहीं कि पृथ्वी पर क्या हो जाए!

3अगर बादल पानी से भरे होते हैं,

तो वे धरती पर जल बरसाते हैं.

और पेड़ चाहे दक्षिण की ओर गिरे या उत्तर की ओर,

यह उसी जगह पर पड़ा रहता है जहां यह गिरता है.

4जो व्यक्ति हवा को देखता है वह बीज नहीं बो पाएगा;

और जो बादलों को देखता है वह उपज नहीं काटेगा.

5जिस तरह तुम्हें हवा के मार्ग

और गर्भवती स्त्री के गर्भ में हड्डियों के बनने के बारे में मालूम नहीं,

उसी तरह सारी चीज़ों के बनानेवाले

परमेश्वर के काम के बारे में तुम्हें मालूम कैसे होगा?

6बीज सुबह-सुबह ही बो देना

और शाम में भी आराम न करना क्योंकि तुम्हें यह मालूम नहीं है,

कि सुबह या शाम का बीज बोना फलदायी होगा

या दोनों ही एक बराबर अच्छे होंगे.

जवानी में अपनी सृष्टिकर्ता की याद रखो

7उजाला मनभावन होता है,

और आंखों के लिए सूरज सुखदायी.

8अगर किसी व्यक्ति की उम्र बड़ी है,

तो उसे अपने जीवनकाल में आनंदित रहने दो.

किंतु वह अपने अंधकार भरे दिन भुला न दे क्योंकि वे बहुत होंगे.

ज़रूरी है कि हर एक चीज़ बेकार ही होगी.

9हे जवान! अपनी जवानी में आनंदित रहो,

इसमें तुम्हारा हृदय तुम्हें आनंदित करे.

अपने हृदय और अपनी आंखों की इच्छा पूरी करो.

किंतु तुम्हें यह याद रहे

कि परमेश्वर इन सभी कामों के बारे में तुम पर न्याय और दंड लाएंगे.

10अपने हृदय से क्रोध

और अपने शरीर से बुराई करना छोड़ दो क्योंकि बचपन,

और जवानी भी बेकार ही हैं.

New Arabic Version

الجامعة 11:1-10

استثمر في مواضع عدة

1اطْرَحْ خُبْزَكَ عَلَى وَجْهِ الْمِيَاهِ، فَإِنَّكَ تَجِدُهُ بَعْدَ أَيَّامٍ كَثِيرَةٍ. 2وَزِّعْ أَنْصِبَةً عَلَى سَبْعَةٍ بَلْ عَلَى ثَمَانِيَةٍ، لأَنَّكَ لَا تَدْرِي أَيَّةَ بَلِيَّةٍ تَحُلُّ عَلَى الأَرْضِ. 3إِذَا كَانَتِ السُّحُبُ مُثْقَلَةً بِالْمِيَاهِ فَإِنَّهَا تَصُبُّ الْمَطَرَ عَلَى الأَرْضِ، وَإِنْ سَقَطَتْ شَجَرَةٌ بِاتِّجَاهِ الشِّمَالِ أَوِ الْجَنُوبِ فَإِنَّهَا تَظَلُّ مُسْتَقِرَّةً حَيْثُ سَقَطَتْ. 4مَنْ يَرْصُدِ الرِّيحَ لَا يَزْرَعْ، وَمَنْ يُرَاقِبِ السُّحُبَ لَا يَحْصُدْ. 5كَمَا تَجْهَلُ اتِّجَاهَ مَسَارِ الرِّيحِ، أَوْ كَيْفَ تَتَكَوَّنُ عِظَامُ الْجَنِينِ فِي رَحِمِ الأُمِّ، كَذَلِكَ لَا تُدْرِكُ أَعْمَالَ اللهِ الَّتِي يُجْرِيهَا كُلَّهَا. 6ازْرَعْ زَرْعَكَ فِي الصَّبَاحِ، وَلا تَكُفَّ يَدَكَ عَنِ الْعَمَلِ فِي الْمَسَاءِ، لأَنَّكَ لَا تَدْرِي أَيُّهُمَا يُفْلِحُ: أَهَذَا الْمَزْرُوعُ فِي الصَّبَاحِ أَمْ ذَاكَ الَّذِي فِي الْمَسَاءِ، أَمْ كِلاهُمَا عَلَى حَدٍّ سَوَاءٍ؟

اذكر خالقك في شبابك

7النُّورُ مُبْهِجٌ، وَكَمْ يَلَذُّ لِلْعَيْنَيْنِ أَنْ تَرَيَا الشَّمْسَ. 8إِنْ عَاشَ الإِنْسَانُ سِنِينَ كَثِيرَةً وَتَمَتَّعَ فِيهَا جَمِيعاً، فَلْيَتَذَكَّرِ الأَيَّامَ السَّوْدَاءَ، لأَنَّهَا سَتَكُونُ عَدِيدَةً. وَبَاطِلٌ كُلُّ مَا هُوَ آتٍ! 9افْرَحْ أَيُّهَا الشَّابُّ فِي حَدَاثَتِكَ، وَلْيُمَتِّعْكَ قَلْبُكَ فِي أَيَّامِ شَبَابِكَ، وَاتْبَعْ أَهْوَاءَ قَلْبِكَ، وَكُلَّ مَا تَشْهَدُهُ عَيْنَاكَ. وَلَكِنِ اعْلَمْ أَنَّهُ بِسَبَبِ هَذِهِ الأُمُورِ كُلِّهَا يَأْتِي اللهُ بِكَ إِلَى كُرْسِيِّ الْقَضَاءِ. 10فَأَزِلِ الْغَمَّ مِنْ صَدْرِكَ، وَأقْصِ الشَّرَّ عَنْ جَسَدِكَ، لأَنَّ الْحَدَاثَةَ وَالشَّبَابَ بَاطِلانِ.