उत्पत्ति 31 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

उत्पत्ति 31:1-55

याकोब का गुप्‍त रूप से पलायन

1याकोब के कानों में यह समाचार पड़ा कि लाबान के पुत्र बड़बड़ा रहे थे, “याकोब ने तो वह सब हड़प लिया है, जो हमारे पिता का था और अब वह हमारे पिता ही की संपत्ति के आधार पर समृद्ध बना बैठा है.” 2यहां याकोब ने पाया कि लाबान की अभिवृत्ति उनके प्रति अब पहले जैसी नहीं रह गई थी.

3इस स्थिति के प्रकाश में याहवेह ने याकोब को आदेश दिया, “अपने पिता एवं अपने संबंधियों के देश को लौट जाओ. मैं इसमें तुम्हारे पक्ष में हूं.”

4इसलिये याकोब ने राहेल तथा लियाह को वहीं बुला लिया, जहां वे भेड़-बकरियों के साथ थे. 5उन्होंने उनसे कहा, “मैं तुम्हारे पिता की अभिवृत्ति स्पष्ट देख रहा हूं; अब यह मेरे प्रति पहले जैसी सौहार्दपूर्ण नहीं रह गई; किंतु मेरे पिता के परमेश्वर मेरे साथ रहे हैं. 6तुम दोनों को ही यह उत्तम रीति से ज्ञात है कि मैंने यथाशक्ति तुम्हारे पिता की सेवा की है. 7इतना होने पर भी तुम्हारे पिता ने मेरे साथ छल किया और दस अवसरों पर मेरे पारिश्रमिक में परिवर्तन किए हैं; फिर भी परमेश्वर ने उन्हें मेरी कोई हानि न करने दी. 8यदि उन्होंने कहा, ‘चित्तीयुक्त पशु तुम्हारे पारिश्रमिक होंगे,’ तो सभी भेड़ चित्तीयुक्त मेमने ही पैदा करने लगे; यदि उन्होंने कहा, ‘अच्छा, धारीयुक्त पशु तुम्हारा पारिश्रमिक होंगे,’ तो भेड़ धारीयुक्त मेमने उत्पन्‍न करने लगे. 9यह तो परमेश्वर का ही कृत्य था, जो उन्होंने तुम्हारे पिता के ये पशु मुझे दे दिए हैं.

10“तब पशुओं के समागम के अवसर पर मैंने एक स्वप्न देखा कि वे बकरे, जो संभोग कर रहे थे, वे धारीयुक्त, चित्तीयुक्त एवं धब्बे युक्त थे. 11परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझसे कहा, ‘याकोब,’ मैंने कहा, ‘क्या आज्ञा है, प्रभु?’ 12और उसने कहा, ‘याकोब, देखो-देखो, जितने भी बकरे इस समय संभोग कर रहे हैं, वे धारीयुक्त हैं, चित्तीयुक्त हैं तथा धब्बे युक्त हैं; क्योंकि मैंने वह सब देख लिया है, जो लाबान तुम्हारे साथ करता रहा है. 13मैं बेथेल का परमेश्वर हूं, जहां तुमने उस शिलाखण्ड का अभ्यंजन किया था, जहां तुमने मेरे समक्ष संकल्प लिया था; अब उठो. छोड़ दो इस स्थान को और अपने जन्मस्थान को लौट जाओ.’ ”

14राहेल तथा लियाह ने उनसे कहा, “क्या अब भी हमारे पिता की संपत्ति में हमारा कोई अंश अथवा उत्तराधिकार शेष रह गया है? 15क्या अब हम उनके आंकलन में विदेशी नहीं हो गई हैं? उन्होंने हमें बेच दिया है, तथा हमारे अंश की धनराशि भी हड़प ली है. 16निःसंदेह अब तो, जो संपत्ति परमेश्वर ने हमारे पिता से छीन ली है, हमारी तथा हमारी संतान की हो चुकी है. तो आप वही कीजिए, जिसका निर्देश आपको परमेश्वर दे चुके हैं.”

17तब याकोब ने अपने बालकों एवं पत्नियों को ऊंटों पर बैठा दिया, 18याकोब ने अपने समस्त पशुओं को, अपनी समस्त संपत्ति को, जो उनके वहां रहते हुए संकलित होती गई थी तथा वह पशु धन, जो पद्दन-अराम में उनके प्रवासकाल में संकलित होता चला गया था, इन सबको लेकर अपने पिता यित्सहाक के आवास कनान की ओर प्रस्थान किया.

19जब लाबान ऊन कतरने के लिए बाहर गया हुआ था, राहेल ने अपने पिता के गृहदेवता—प्रतिमाओं की चोरी कर ली. 20तब याकोब ने भी अरामी लाबान के साथ प्रवंचना की; याकोब ने लाबान को सूचित ही नहीं किया कि वे पलायन कर रहे थे. 21इसलिये याकोब अपनी समस्त संपत्ति को लेकर पलायन कर गए. उन्होंने फरात नदी पार की और पर्वतीय प्रदेश गिलआद की दिशा में आगे बढ़ गए.

लाबान द्वारा याकोब का पीछा करना

22तीसरे दिन जब लाबान को यह सूचना दी गई कि याकोब पलायन कर चुके हैं, 23तब लाबान ने अपने संबंधियों को साथ लेकर याकोब का पीछा किया. सात दिन पीछा करने के बाद वे गिलआद के पर्वतीय प्रदेश में उनके निकट पहुंच गए. 24परमेश्वर ने अरामी लाबान पर रात्रि में स्वप्न में प्रकट होकर उसे चेतावनी दी, “सावधान रहना कि तुम याकोब से कुछ प्रिय-अप्रिय न कह बैठो.”

25लाबान याकोब तक जा पहुंचा. याकोब के शिविर पर्वतीय क्षेत्र में थे तथा लाबान ने भी अपने शिविर अपने संबंधियों सदृश गिलआद के पर्वतीय क्षेत्र में खड़े किए हुए थे. 26लाबान ने याकोब से कहा, “यह क्या कर रहे हो तुम? यह तो मेरे साथ छल है! तुम तो मेरी पुत्रियों को ऐसे लिए जा रहे हो, जैसे युद्धबन्दियों को तलवार के आतंक में ले जाया जाता है. 27क्या आवश्यकता थी ऐसे छिपकर भागने की, मुझसे छल करने की? यदि तुमने मुझे इसकी सूचना दी होती, तो मैं तुम्हें डफ तथा किन्‍नोर की संगत पर गीतों के साथ सहर्ष विदा करता! 28तुमने तो मुझे सुअवसर ही न दिया कि मैं अपने पुत्र-पुत्रियों को चुंबन के साथ विदा कर सकता. तुम्हारा यह कृत्य मूर्खतापूर्ण है. 29मुझे यह अधिकार है कि तुम्हें इसके लिए प्रताड़ित करूं; किंतु तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने कल रात्रि मुझ पर प्रकट होकर मुझे आदेश दिया है कि मैं तुमसे कुछ भी प्रिय-अप्रिय न कहूं. 30ठीक है, तुम्हें अपने पिता के निकट रहने की इच्छा है, मान लिया; किंतु क्या आवश्यकता थी तुम्हें मेरे गृह-देवताओं की चोरी करने की?”

31तब याकोब ने लाबान को उत्तर दिया, “मेरे इस प्रकार आने का कारण थी मेरी यह आशंका, कि आप मुझसे अपनी पुत्रियां बलात छीन लेते. 32किंतु आपको जिस किसी के पास से वे गृहदेवता प्राप्‍त होंगे, उसे जीवित न छोड़ा जाएगा. आपके ही संबंधियों की उपस्थिति में आप हमारी संपत्ति में से जो कुछ आपका है, ले लीजिए.” याकोब को इस तथ्य का कोई संज्ञान न था कि राहेल ने उन गृह-देवताओं की मूर्तियों को चुराई हैं.

33इसलिये लाबान याकोब के शिविर के भीतर गया, उसके बाद लियाह के शिविर में, और उसके बाद परिचारिकाओं के शिविर में. किंतु वह देवता उसे वहां प्राप्‍त न हुआ. तब वह लियाह के शिविर से निकलकर राहेल के शिविर में गया. 34राहेल ने ही वे गृहदेवता छिपाए हुए थे, जिन्हें उसने ऊंट की काठी में रखा हुआ था. वह स्वयं उन पर बैठ गई थी. लाबान ने समस्त शिविर में खोज कर ली थी, किंतु उसे कुछ प्राप्‍त न हुआ था.

35उसने अपने पिता से आग्रह किया, “पिताजी, आप क्रुद्ध न हों. मैं आपके समक्ष खड़ी होने के असमर्थ हूं; क्योंकि इस समय मैं रजस्वला हूं.” तब लाबान के खोजने पर भी उसे वे गृह-देवताओं की मूर्तियां नहीं मिलीं.

36तब याकोब का क्रोध उद्दीप्‍त हो उठा. वह लाबान से तर्क-वितर्क करने लगे, “क्या अपराध है मेरा?” क्या पाप किया है मैंने, जो आप इस प्रकार मेरा पीछा करते हुए आ रहे हैं? 37आपने मेरी समस्त वस्तुओं में उन देवताओं की खोज कर ली है, किंतु आपको कोई भी अपनी वस्तु प्राप्‍त हुई है? आपके तथा मेरे संबंधियों के समक्ष यह स्पष्ट हो जाए, कि वे हम दोनों के मध्य अपना निर्णय दे सकें.

38“इन बीस वर्षों तक मैं आपके साथ रहा हूं. आपकी भेड़ों एवं बकरियों में कभी गर्भपात नहीं हुआ. अपने भोजन के लिए मैंने कभी आपके पशुवृन्द में से मेढ़े नहीं उठाए. 39जब कभी किसी वन्य पशु ने हमारे पशु को फाड़ा, मैंने उसे कभी आपके वृन्द में सम्मिलित नहीं किया; इसे मैंने अपनी ही हानि में सम्मिलित किया था. चाहे कोई पशु दिन में चोरी हुआ अथवा रात्रि में, आपने मुझसे भुगतान की मांग की. 40मेरी स्थिति तो ऐसी रही कि दिन में मुझ पर ऊष्मा का प्रहार होता रहा तथा रात्रि में ठंड का. मेरे नेत्रों से निद्रा दूर ही दूर रही. 41इन बीस वर्षों में मैं आपके परिवार में रहा हूं; चौदह वर्ष आपकी पुत्रियों के लिए तथा छः वर्ष आपके भेड़-बकरियों के लिए. इन वर्षों में आपने दस बार मेरा पारिश्रमिक परिवर्तित किया है. 42यदि मेरे पिता के परमेश्वर, अब्राहाम तथा यित्सहाक के परमेश्वर का भय मेरे साथ न होता, तो आपने तो मुझे रिक्त हस्त ही विदा कर दिया होता. परमेश्वर ने मेरे कष्ट एवं मेरे हाथों के परिश्रम को देखा है, और उसका प्रतिफल उन्होंने मुझे कल रात में प्रदान कर दिया है.”

43यह सब सुनकर लाबान ने याकोब को उत्तर दिया, “ये स्त्रियां मेरी पुत्रियां हैं, ये बालक मेरे बालक हैं, ये भेड़-बकरियां भी मेरी ही हैं, तथा जो कुछ तुम्हें दिखाई दे रहा है, वह मेरा ही है; किंतु अब मैं अपनी पुत्रियों एवं इन बालकों का क्या करूं, जो इनकी सन्तति हैं? 44इसलिये आओ, हम परस्पर यह वाचा स्थापित कर लें, तुम और मैं, और यही हमारे मध्य साक्ष्य हो जाए.”

45इसलिये याकोब ने एक शिलाखण्ड को स्तंभ स्वरूप खड़ा किया. 46याकोब ने अपने संबंधियों से कहा, “पत्थर एकत्र करो.” इसलिये उन्होंने पत्थर एकत्र कर एक ढेर बना दिया तथा उस ढेर के निकट बैठ उन्होंने भोजन किया. 47लाबान ने तो इसे नाम दिया येगर-सहदूथा31:47 येगर-सहदूथा अरामी भाषा में साक्षी का ढेर किंतु याकोब ने इसे गलएद31:47 गलएद हिब्री भाषा में साक्षी का ढेर कहकर पुकारा.

48लाबान ने कहा, “पत्थरों का यह ढेर आज मेरे तथा तुम्हारे मध्य एक साक्ष्य है.” इसलिये इसे गलएद तथा मिज़पाह31:48 मिज़पाह अर्थ पहरे की मीनार नाम दिया गया, 49क्योंकि उनका कथन था, “जब हम एक दूसरे की दृष्टि से दूर हों, याहवेह ही तुम्हारे तथा मेरे मध्य चौकसी बनाए रखें. 50यदि तुम मेरी पुत्रियों के साथ दुर्व्यवहार करो अथवा मेरी पुत्रियों के अतिरिक्त पत्नियां ले आओ, यद्यपि कोई मनुष्य यह देख न सकेगा, किंतु स्मरण रहे, तुम्हारे तथा मेरे मध्य परमेश्वर साक्ष्य हैं.”

51लाबान ने याकोब से कहा, “इस ढेर को तथा इस स्तंभ को देखो, जो मैंने तुम्हारे तथा मेरे मध्य में स्थापित किया है. 52यह स्तंभ तथा पत्थरों का ढेर साक्ष्य है, कि मैं इसके निकट से होकर तुम्हारी हानि करने के लक्ष्य से आगे नहीं बढ़ूंगा, वैसे ही तुम भी इस ढेर तथा इस स्तंभ के निकट से होकर मेरी हानि के उद्देश्य से आगे नहीं बढ़ोगे. 53इसके लिए अब्राहाम के परमेश्वर, नाहोर के परमेश्वर तथा उनके पिता के परमेश्वर हमारा न्याय करें.”

इसलिये याकोब ने अपने पिता यित्सहाक के प्रति भय-भाव में शपथ ली. 54फिर याकोब ने उस पर्वत पर ही बलि अर्पित की तथा अपने संबंधियों को भोज के लिए आमंत्रित किया. उन्होंने भोजन किया तथा पर्वत पर ही रात्रि व्यतीत की.

55बड़े तड़के लाबान उठा, अपने पुत्र-पुत्रियों का चुंबन लिया तथा उन्हें आशीर्वाद दिया. फिर लाबान स्वदेश लौट गया.

New Arabic Version

التكوين 31:1-55

يعقوب يهرب من لابان

1وَسَمِعَ يَعْقُوبُ مَا يُرَدِّدُهُ أَبْنَاءُ لابَانَ قَائِلِينَ: «لَقَدِ اسْتَوْلَى يَعْقُوبُ عَلَى كُلِّ مَا لأَبِينَا، وَجَمَعَ ثَرْوَتَهُ مِمَّا يَمْلِكُهُ وَالِدُنَا». 2وَرَأَى يَعْقُوبُ أَنَّ مُعَامَلَةَ لابَانَ لَهُ قَدْ طَرَأَ عَلَيْهَا تَغْيِيرٌ فَاخْتَلَفَتْ عَمَّا كَانَتْ عَلَيْهِ سَابِقاً. 3وَقَالَ الرَّبُّ لِيَعْقُوبَ: «عُدْ إِلَى أَرْضِ آبَائِكَ وَإِلَى قَوْمِكَ وَأَنَا أَكُونُ مَعَكَ».

4فَأَرْسَلَ يَعْقُوبُ وَاسْتَدْعَى رَاحِيلَ وَلَيْئَةَ إِلَى الْحَقْلِ حَيْثُ يَرْعَى الْمَاشِيَةَ. 5وَقَالَ لَهُمَا: «إِنِّي أَرَى أَنَّ أَبَاكُمَا لَمْ يَعُدْ يُعَامِلُنِي كَالْعَهْدِ بِهِ مِنْ قَبْلُ، وَلَكِنْ إِلَهُ أَبَائِي كَانَ وَمَازَالَ مَعِي. 6أَنْتُمَا تَعْلَمَانِ أَنَّنِي خَدَمْتُ أَبَاكُمَا بِكُلِّ قُوَايَ. 7أَمَّا أَبُوكُمَا فَقَدْ غَدَرَ بِي وَغَيَّرَ أُجْرَتِي عَشْرَ مَرَّاتٍ. لَكِنَّ اللهَ لَمْ يَسْمَحْ لَهُ بِأَنْ يُسِيءَ إِلَيَّ. 8فَإِنْ قَالَ: لِتَكُنِ الْغَنَمُ الرُّقْطُ أُجْرَتَكَ، وَلَدَتْ كُلُّ الْغَنَمِ رُقْطاً. وَإِنْ قَالَ: لِتَكُنِ الْغَنَمُ الْمُخَطَّطَةُ أُجْرَتَكَ، وَلَدَتْ كُلُّ الْغَنَمِ مُخَطَّطَةً. 9لَقَدْ سَلَبَ اللهُ مَوَاشِي أَبِيكُمَا وَأَعْطَانِي إِيَّاهَا. 10وَرَأَيْتُ فِي مَوْسِمِ تَلاقُحِ الْغَنَمِ حُلْماً: أَنَّ جَمِيعَ الْفُحُولِ الصَّاعِدَةِ عَلَى الْغَنَمِ مُخَطَّطَةٌ وَرَقْطَاءُ وَمُنَمَّرَةٌ. 11وَقَالَ لِي مَلاكُ اللهِ فِي الْحُلْمِ: يَا يَعْقُوبُ، 12تَطَلَّعْ حَوْلَكَ وَانْظُرْ، فَتَرَى أَنَّ جَمِيعَ الْفُحُولِ الصَّاعِدَةِ عَلَى الْغَنَمِ هِيَ مُخَطَّطَةٌ وَرَقْطَاءُ وَمُنَمَّرَةٌ. فَإِنِّي رَأَيْتُ مَا يَصْنَعُهُ بِكَ لابَانُ. 13أَنَا إِلَهُ بَيْتِ إِيلَ، حَيْثُ مَسَحْتَ عَمُوداً، وَحَيْثُ نَذَرْتَ لِي نَذْراً. الآنَ قُمْ وَامْضِ مِنْ هَذِهِ الأَرْضِ وَارْجِعْ إِلَى أَرْضِ مَوْلِدِكَ».

14فَقَالَتْ رَاحِيلُ وَلَيْئَةُ: «هَلْ بَقِيَ لَنَا نَصِيبٌ وَمِيرَاثٌ فِي بَيْتِ أَبِينَا؟ 15أَلَمْ يُعَامِلْنَا كَأَجْنَبِيَّتَيْنِ لأَنَّهُ بَاعَنَا وَأَكَلَ ثَمَنَنَا أَيْضاً؟ 16إِنَّ كُلَّ الثَّرْوَةِ الَّتِي سَلَبَهَا اللهُ مِنْ أَبِينَا هِيَ لَنَا وَلأَوْلادِنَا، وَالآنَ افْعَلْ كُلَّ مَا قَالَهُ اللهُ لَكَ».

17فَقَامَ يَعْقُوبُ وَحَمَلَ أَوْلادَهُ وَنِسَاءَهُ عَلَى الْجِمَالِ، 18وَسَاقَ كُلَّ مَاشِيَتِهِ أَمَامَهُ وَجَمِيعَ مُقْتَنَيَاتِهِ الَّتِي اقْتَنَاهَا فِي سَهْلِ أَرَامَ وَاتَّجَهَ إِلَى إِسْحاقَ أَبِيهِ فِي أَرْضِ كَنْعَانَ. 19وَكَانَ لابَانُ قَدْ مَضَى لِيَجُزَّ غَنَمَهُ، فَسَرَقَتْ رَاحِيلُ أَصْنَامَ أَبِيهَا. 20وَكَذَلِكَ خَدَعَ يَعْقُوبُ لابَانَ الأَرَامِيَّ فَلَمْ يُخْبِرْهُ بِقَرَارِهِ 21فَهَرَبَ هُوَ وَكُلُّ مَا مَعَهُ، وَانْطَلَقَ عَابِراً النَّهْرَ مُتَوَجِّهاً نَحْوَ جَبَلِ جِلْعَادَ.

لابان يطارد يعقوب

22فَأُخْبِرَ لابَانُ فِي الْيَوْمِ الثَّالِثِ أَنَّ يَعْقُوبَ قَدْ هَرَبَ. 23فَصَحِبَ إِخْوَتَهُ مَعَهُ وَتَعَقَّبَهُ مَسِيرَةَ سَبْعَةِ أَيَّامٍ حَتَّى أَدْرَكَهُ فِي جَبَلِ جِلْعَادَ. 24فَتَجَلَّى اللهُ لِلابَانَ الأَرَامِيِّ فِي حُلْمٍ لَيْلاً وَقَالَ لَهُ: «إِيَّاكَ أَنْ تُخَاطِبَ يَعْقُوبَ بِخَيْرٍ أَوْ بِشَرٍّ». 25وَحِينَ أَدْرَكَ لابَانُ يَعْقُوبَ كَانَ يَعْقُوبُ قَدْ ضَرَبَ خَيْمَتَهُ فِي الْجَبَلِ، فَخَيَّمَ لابَانُ وَإخْوَتُهُ فِي جَبَلِ جِلْعَادَ.

26وَقَالَ لابَانُ لِيَعْقُوبَ: «مَاذَا دَهَاكَ حَتَّى إِنَّكَ خَدَعْتَنِي وَسُقْتَ ابْنَتَيَّ كَسَبَايَا السَّيْفِ؟ 27لِمَاذَا هَرَبْتَ خِفْيَةً وَخَدَعْتَنِي؟ لِمَاذَا لَمْ تُخْبِرْنِي فَكُنْتُ أُشَيِّعُكَ بِفَرَحٍ وَغِنَاءٍ وَدُفٍّ وَعُودٍ؟ 28وَلَمْ تَدَعْنِي أُقَبِّلُ أَحْفَادِي وَابْنَتَيَّ؟ إِنَّكَ بِغَبَاوَةٍ تَصَرَّفْتَ. 29إنَّ فِي مَقْدُورِي أَنْ أُؤْذِيَكَ، وَلِكِنَّ إِلَهَ أَبِيكَ أَمَرَنِي لَيْلَةَ أَمْسٍ قَائِلاً: إِيَّاكَ أَنْ تُخَاطِبَ يَعْقُوبَ بِخَيْرٍ أَوْ بِشَرٍّ. 30وَالآنَ أَنْتَ تَمْضِي لأَنَّكَ اشْتَقْتَ إِلَى بَيْتِ أَبِيكَ، وَلَكِنْ لِمَاذَا سَرَقْتَ آلِهَتِي؟».

31فَأَجَابَ يَعْقُوبُ: «لأَنَّنِي خِفْتُ أَنْ تَغْتَصِبَ ابْنَتَيْكَ مِنِّي. 32وَالآنَ، مَنْ تَجِدُ آلِهَتَكَ مَعَهُ فَالْمَوْتُ عِقَابُهُ. فَتِّشْ أَمَامَ إِخْوَتِنَا كُلَّ مَا مَعِي. إِنْ وَجَدْتَ لَكَ شَيْئاً فَخُذْهُ». وَلَمْ يَكُنْ يَعْقُوبُ يَعْلَمُ أَنَّ رَاحِيلَ قَدْ سَرَقَتِ الآلِهَةَ.

33فَدَخَلَ لابَانُ خَيْمَةَ كُلٍّ مِنْ يَعْقُوبَ وَلَيْئَةَ وَالْجَارِيَتَيْنِ فَلَمْ يَجِدْ شَيْئاً. ثُمَّ خَرَجَ مِنْ خِبَاءِ لَيْئَةَ وَدَخَلَ إِلَى خَيْمَةِ رَاحِيلَ. 34وَكَانَتْ رَاحِيلُ قَدْ أَخَذَتِ الأَصْنَامَ وَأَخْفَتْهَا فِي رَحْلِ الْجَمَلِ وَجَلَسَتْ عَلَيْهَا، فَبَحَثَ فِي كُلِّ الْخَيْمَةِ دُونَ أَنْ يَعْثُرَ عَلَى شَيْءٍ. 35وَقَالَتْ لأَبِيهَا «لا يُسِئْكَ يَا سَيِّدِي عَدَمُ اسْتِطَاعَتِي الْوُقُوفَ أَمَامَكَ لأَنَّ عَادَةَ النِّسَاءِ قَدْ عَرَضَتْ لِي». وَعِنْدَمَا بَحَثَ لابَانُ وَلَمْ يَجِدْ شَيْئاً 36اغْتَاظَ يَعْقُوبُ وَخَاصَمَ لابَانَ قَائِلاً: «مَا هُوَ ذَنْبِي وَمَا هِيَ خَطِيئَتِي حَتَّى تَعَقَّبْتَنِي بِغَيْظٍ؟ 37وَهَا أَنْتَ قَدْ فَتَّشْتَ جَمِيعَ أَثَاثِ بَيْتِي، فَمَاذَا وَجَدْتَ مِنْ جَمِيعِ أَثَاثِ بَيْتِكَ؟ اعْرِضْهُ هُنَا أَمَامَ أَقْرِبَائِنَا فَيَحْكُمُوا بَيْنَنَا كِلَيْنَا. 38لَقَدْ مَكَثْتُ مَعَكَ عِشْرِينَ سَنَةً، فَمَا أَسْقَطَتْ نِعَاجُكَ وَعِنَازُكَ، وَلَمْ آكُلْ مِنْ كِبَاشِ غَنَمِكَ. 39أَشْلاءَ فَرِيسَةٍ لَمْ أُحْضِرْ لَكَ بَلْ كُنْتُ أَتَحَمَّلُ خَسَارَتَهَا، وَمِنْ يَدِي كُنْتَ تَطْلُبُهَا، سَوَاءٌ كَانَتْ مَخْطُوفَةً فِي النَّهَارِ أَمْ فِي اللَّيْلِ. 40كُنْتُ فِي النَّهَارِ يَأْكُلُنِي الْحَرُّ وَفِي اللَّيْلِ الْجَلِيدُ، وَفَارَقَ نَوْمِي عَيْنَيَّ. 41لَقَدْ صَارَ لِي عِشْرُونَ سَنَةً فِي بَيْتِكَ. أَرْبَعَ عَشْرَةَ سَنَةً مِنْهَا خَدَمْتُكَ لِقَاءَ زَوَاجِي بِابْنَتَيْكَ، وَسِتَّ سَنَوَاتٍ مُقَابِلَ غَنَمِكَ، وَقَدْ غَيَّرْتَ أُجْرَتِي عَشْرَ مَرَّاتٍ. 42وَلَوْلا أَنَّ إِلَهَ أَبِي، إِلَهَ إِبْرَاهِيمَ وَهَيْبَةَ إِسْحاقَ كَانَا مَعِي لَكُنْتَ الآنَ قَدْ صَرَفْتَنِي فَارِغاً. لَكِنِ الرَّبُّ قَدْ رَأَى مَذَلَّتِي وَتَعَبَ يَدَيَّ فَوَبَّخَكَ لَيْلَةَ أَمْسِ».

43فَأَجَابَ لابَانُ: «الْبَنَاتُ بَنَاتِي، وَالأَبْنَاءُ أَبْنَائِي وَالْغَنَمُ غَنَمِي، وَكُلُّ مَا تَرَاهُ هُوَ لِي. وَلَكِنْ مَاذَا أَفْعَلُ بِبَنَاتِي وَأَوْلادِهِنَّ الآنَ؟ 44فَلْنَقْطَعْ عَهْداً بَيْنَنَا الْيَوْمَ، فَيَكُونَ شَاهِداً بَيْنِي وَبَيْنَكَ».

45فَأَخَذَ يَعْقُوبُ حَجَراً وَنَصَبَهُ عَمُوداً، 46وَقَالَ لأَقْرِبَائِهِ: «اجْمَعُوا حِجَارَةً». فَأَخَذُوا الْحِجَارَةَ وَجَعَلُوهَا رُجْمَةً وَأَكَلُوا هُنَاكَ فَوْقَهَا. 47وَدَعَاهَا لابَانُ «يَجَرْ سَهْدُوثَا» (وَمَعْنَاهَا: رُجْمَةُ الشَّهَادَةِ بِلُغَةِ لابَانَ) وَأَمَّا يَعْقُوبُ فَدَعَاهَا «جَلْعِيدَ» (وَمَعْنَاهَا: رُجْمَةُ الشَّهَادَةِ بِلُغَةِ يَعْقُوبَ). 48وَقَالَ لابَانُ: «هَذِهِ الرُّجْمَةُ شَاهِدَةٌ الْيَوْمَ بَيْنِي وَبَيْنَكَ». لِذَلِكَ دُعِيَ اسْمُهَا جَلْعِيدَ. 49وَكَذَلِكَ دُعِيَتْ بِالْمِصْفَاةِ أَيْضاً لأَنَّهُ قَالَ: «لِيَكُنِ الرَّبُّ رَقِيباً بَيْنِي وَبَيْنَكَ حِينَ يَغِيبُ كُلٌّ مِنَّا عَنِ الآخَرِ. 50إِنْ أَسَأْتَ مُعَامَلَةَ ابْنَتَيَّ، أَوْ تَزَوَّجْتَ عَلَيْهِمَا، فَإِنَّ اللهَ يَرَاكَ وَيَكُونُ حَاكِماً بَيْنِي وَبَيْنَكَ حَتَّى لَوْ لَمْ أَعْرِفْ أَنَا». 51وَأَضَافَ: «لِتَكُنِ الرُّجْمَةُ، وَهَذَا الْعَمُودُ الَّذِي أَقَمْتُهُ بَيْنِي وَبَيْنَكَ 52شَاهِدَيْنِ أَنْ لَا أَتَجَاوَزَ هَذِهِ الرُّجْمَةَ لإِيقَاعِ الأَذَى بِكَ، أَوْ تَتَجَاوَزَ أَنْتَ الرُّجْمَةَ وَهَذَا الْعَمُودَ لإِلْحَاقِ الضَّرَرِ بِي. 53وَلْيَكُنْ إِلَهُ إِبْرَاهِيمَ وَإِلَهُ نَاحُورَ وَإِلَهُ أَبِيهِمَا حَاكِماً بَيْنَنَا». فَحَلَفَ يَعْقُوبُ بِهَيْبَةِ أَبِيهِ إِسْحاقَ. 54ثُمَّ قَدَّمَ يَعْقُوبُ قُرْبَاناً فِي الْجَبَلِ وَدَعَا أَقْرِبَاءَهُ لِيَأْكُلُوا طَعَاماً، فَأَكَلُوا وَقَضَوْا لَيْلَتَهُمْ فِي الْجَبَلِ.

55وَفِي الصَّبَاحِ الْمُبَكِّرِ نَهَضَ لابَانُ وَقَبَّلَ أَحْفَادَهُ وَابْنَتَيْهِ وَبَارَكَهُمْ، ثُمَّ انْصَرَفَ رَاجِعاً، إِلَى مَحَلِّ إِقَامَتِهِ.