अय्योब 9 – HCV & JCB

Hindi Contemporary Version

अय्योब 9:1-35

अय्योब के साथ में मनुष्य एवं परमेश्वर के मध्य मध्यस्थ कोई नहीं

1तब अय्योब ने और कहा:

2“वस्तुतः मुझे यह मालूम है कि सत्य यही है.

किंतु मनुष्य भला परमेश्वर की आंखों में निर्दोष कैसे हो सकता है?

3यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर से वाद-विवाद करना चाहे,

तो वह परमेश्वर को एक हजार में से एक प्रश्न का भी उत्तर नहीं दे सकेगा.

4वह तो मन से बुद्धिमान तथा बल के शूर हैं.

कौन उनकी हानि किए बिना उनकी उपेक्षा कर सका है?

5मात्र परमेश्वर ही हैं, जो विचलित कर देते हैं,

किसे यह मालूम है कि अपने क्रोध में वह किस रीति से उन्हें पलट देते हैं.

6कौन है जो पृथ्वी को इसके स्थान से हटा देता है,

कि इसके आधार-स्तंभ थरथरा जाते हैं.

7उसके आदेश पर सूर्य निष्प्रभ हो जाता है,

कौन तारों पर अपनी मोहर लगा देता है?

8कौन अकेले ही आकाशमंडल को फैला देता है,

कौन सागर की लहरों को रौंदता चला जाता है;

9किसने सप्‍त ऋषि, मृगशीर्ष, कृतिका

तथा दक्षिण नक्षत्रों की स्थापना की है?

10कौन विलक्षण कार्य करता है?

वे कार्य, जो अगम्य, आश्चर्यजनक एवं असंख्य भी हैं.

11यदि वे मेरे निकट से होकर निकलें, वह दृश्य न होंगे;

यदि वह मेरे निकट से होकर निकलें, मुझे उनका बोध भी न होगा.

12यदि वह कुछ छीनना चाहें, कौन उन्हें रोक सकता है?

किसमें उनसे यह प्रश्न करने का साहस है, ‘यह क्या कर रहे हैं आप?’

13परमेश्वर अपने कोप को शांत नहीं करेंगे;

उनके नीचे राहाब9:13 राहाब एक पौराणिक समुद्री राक्षस जो प्राचीन साहित्य में अराजकता का प्रतिनिधित्व करता है के सहायक दुबके बैठे हैं.

14“मैं उन्हें किस प्रकार उत्तर दे सकता हूं?

मैं कैसे उनके लिए दोषी व निर्दोष को पहचानूं?

15क्योंकि यदि मुझे धर्मी व्यक्ति पहचाना भी जाए, तो उत्तर देना मेरे लिए असंभव होगा;

मुझे अपने न्याय की कृपा के लिए याचना करनी होगी.

16यदि वे मेरी पुकार सुन लेते हैं,

मेरे लिए यह विश्वास करना कठिन होगा, कि वे मेरी पुकार को सुन रहे थे.

17क्योंकि वे तो मुझे तूफान द्वारा घायल करते हैं,

तथा अकारण ही मेरे घावों की संख्या में वृद्धि करते हैं.

18वे मुझे श्वास भी न लेने देंगे,

वह मुझे कड़वाहट से परिपूर्ण कर देते हैं.

19यदि यह अधिकार का विषय है, तो परमेश्वर बलशाली हैं!

यदि यह न्याय का विषय है, तो कौन उनके सामने ठहर सकता है?

20यद्यपि मैं ईमानदार हूं, मेरे ही शब्द मुझे दोषारोपित करेंगे;

यद्यपि मैं दोषहीन हूं, मेरा मुंह मुझे दोषी घोषित करेंगे.

21“मैं दोषहीन हूं,

यह स्वयं मुझे दिखाई नहीं देता;

मुझे तो स्वयं से घृणा हो रही है.

22सभी समान हैं; तब मेरा विचार यह है,

‘वे तो निर्दोष तथा दुर्वृत्त दोनों ही को नष्ट कर देते हैं.’

23यदि एकाएक आई विपत्ति महामारी ले आती है,

तो परमेश्वर निर्दोषों की निराशा का उपहास करते हैं.

24समस्त को दुष्ट के हाथों में सौप दिया गया है,

वे अपने न्यायाधीशों के चेहरे को आवृत्त कर देते हैं.

अगर वे नहीं हैं, तो वे कौन हैं?

25“मेरे इन दिनों की गति तो धावक से भी तीव्र है;

वे उड़े चले जा रहे हैं, इन्होंने बुरा समय ही देखा है.

26ये ऐसे निकले जा रहे हैं, कि मानो ये सरकंडों की नौकाएं हों,

मानो गरुड़ अपने शिकार पर झपटता है.

27यद्यपि मैं कहूं: मैं अपनी शिकायत प्रस्तुत नहीं करूंगा,

‘मैं अपने चेहरे के विषाद को हटाकर उल्लास करूंगा.’

28मेरे समस्त कष्टों ने मुझे भयभीत कर रखा है,

मुझे यह मालूम है कि आप मुझे निर्दोष घोषित नहीं करेंगे.

29मेरी गणना दुर्वृत्तों में हो चुकी है,

तो फिर मैं अब व्यर्थ परिश्रम क्यों करूं?

30यदि मैं स्वयं को बर्फ के निर्मल जल से साफ कर लूं,

अपने हाथों को साबुन से साफ़ कर लूं,

31यह सब होने पर भी आप मुझे कब्र में डाल देंगे.

मेरे वस्त्र मुझसे घृणा करने लगेंगे.

32“परमेश्वर कोई मेरे समान मनुष्य तो नहीं हैं, कि मैं उन्हें वाद-विवाद में सम्मिलित कर लूं,

कि मैं उनके साथ न्यायालय में प्रवेश करूं.

33हम दोनों के मध्य कोई भी मध्यस्थ नहीं,

कि वह हम दोनों के सिर पर हाथ रखे.

34परमेश्वर ही मुझ पर से अपना नियंत्रण हटा लें,

उनका आतंक मुझे भयभीत न करने पाए.

35इसी के बाद मैं उनसे बिना डर के वार्तालाप कर सकूंगा,

किंतु स्वयं मैं अपने अंतर में वैसा नहीं हूं.

Japanese Contemporary Bible

ヨブ 記 9:1-35

9

ヨブのことば

1ヨブの答え。

2「そのようなことぐらい、私も知っている。

ちっとも耳新しいものはない。

しかし、答えてもらいたいものだ。

人はどうしたら神の目から見て、

正しい者となれるのか。

3神と正面から議論しようと思ったら、

人は千の質問のうち、一つも答えることはできまい。

4神の知恵と力は底知れないのだ。

今まで、神に反抗して

成功した者など、いないのだから。

5神は突然怒って山を動かし、ひっくり返す。

6大地さえ土台から揺り動かす。

7神が命令すると、

太陽は昇らず、星も光らない。

8神はただひとりで天を張り広げ、

海の上をゆったりと歩いた。

9牡牛座、オリオン座、スバル座、

それに、南の星座も、みな神が造った。

10ほかにも、目をみはるような奇跡はいっぱいある。

あまりに多くて数えきれないほどだ。

11神がそばを通り過ぎても、

私には、そのお姿は見えない。

12神が人のいのちを奪うとき、

だれもその手をとどめることはできない。

『何をするのですか』と抗議できる者もいない。

13しかも、神は怒りを静めず、

高慢で屈強な人間をも地にひれ伏させる。

14私には、全能の神を相手どって議論し、

説き伏せることなどできない。

15たとい私が正しくても、自分を弁護しない。

ただただ、あわれみを求めるだけだ。

16たとえ祈りが答えられても、

神が私の叫びを聞いたとは思えない。

17神は、これほどまで私を打ちのめし、

理由もないのに傷口を広げるからだ。

18次から次へと、息もつかせず、

非常な悲しみで私の心を満たしている。

19強くて正しいのは、この世に神だけではないか。

20しかし、私は正しいだろうか。

そうでないことは自分がよく知っている。

たとえ一点の非の打ちどころもないとしても、

神は私を悪い者とする。

21自分が完全に潔白な人間であるかどうか

私は考えようとも思わない。

つくづく自分がいやになった。

22潔白であるにせよ、悪人であるにせよ、

神にとっては同じこと。

どちらにしても滅ぼされるのだ。

23神は、罪のない者が

災難に押しつぶされるのを見て笑う。

24全地は悪者どもの手中にある。

神は裁判官の判断力を奪い、

不公平な裁判を行わせる。

そうするのが神でないとしたら、

いったいだれが張本人なのか。

25私の一生は悲劇をはらんだまま、

矢のように飛び去る。

26私の歳月は船足の速い舟のように遠ざかり、

獲物に襲いかかる鷲のように飛び去る。

27神への不満を忘れ、

悲しむのをやめて明るく振る舞おうとしても、

28神は今まで以上の悲しみを与えるばかりです。

ああ神よ、私にはわかっています。

あなたは私を罪ある者となさいます。

29罪人扱いするに違いありません。

だから何を言ってもむだなのです。

30たとえ、水晶のような水で体を洗い、

灰汁で手の汚れをすっかり落としても、

31神は私をどぶに突き落とします。

そのため泥まみれになった着物でさえ、

神の目には、私よりきれいに見えるでしょう。

32-33神は人間ではないので、

私は自分を弁護することができません。

もし神が人間なら、

対等な立場で話し合えるでしょう。

私たちの間には仲裁人がいません。

仲を取り持つ者がいないのです。

34これ以上、神の刑罰の恐ろしさに

おびえなくてすむよう、

私を打ちたたくのをやめてください。

35そうすれば、遠慮なくお話しし、

身の潔白を堂々と主張できるのです。