अय्योब 7 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

अय्योब 7:1-21

1“क्या ऐहिक जीवन में मनुष्य श्रम करने के लिए बंधा नहीं है?

क्या उसका जीवनकाल मज़दूर समान नहीं है?

2उस दास के समान, जो हांफते हुए छाया खोजता है,

उस मज़दूर के समान, जो उत्कण्ठापूर्वक अपनी मज़दूरी मिलने की प्रतीक्षा करता है.

3इसी प्रकार मेरे लिए निरर्थकता के माह

तथा पीड़ा की रातें निर्धारित की गई हैं.

4मैं इस विचार के साथ बिछौने पर जाता हूं, ‘मैं कब उठूंगा?’

किंतु रात्रि समाप्‍त नहीं होती. मैं प्रातःकाल तक करवटें बदलता रह जाता हूं.

5मेरी खाल पर कीटों एवं धूल की परत जम चुकी है,

मेरी खाल कठोर हो चुकी है, उसमें से स्राव बहता रहता है.

6“मेरे दिनों की गति तो बुनकर की धड़की की गति से भी अधिक है,

जब वे समाप्‍त होते हैं, आशा शेष नहीं रह जाती.

7यह स्मरणीय है कि मेरा जीवन मात्र श्वास है;

कल्याण अब मेरे सामने आएगा नहीं.

8वह, जो मुझे आज देख रहा है, इसके बाद नहीं देखेगा;

तुम्हारे देखते-देखते मैं अस्तित्वहीन हो जाऊंगा.

9जब कोई बादल छुप जाता है, उसका अस्तित्व मिट जाता है,

उसी प्रकार वह अधोलोक में प्रवेश कर जाता है, पुनः यहां नहीं लौटता.

10वह अपने घर में नहीं लौटता;

न ही उस स्थान पर उसका अस्तित्व रह जाता है.

11“तब मैं अपने मुख को नियंत्रित न छोड़ूंगा;

मैं अपने हृदय की वेदना उंडेल दूंगा,

अपनी आत्मा की कड़वाहट से भरके कुड़कुड़ाता रहूंगा.

12परमेश्वर, क्या मैं सागर हूं, अथवा सागर का विकराल जल जंतु,

कि आपने मुझ पर पहरा बैठा रखा है?

13यदि मैं यह विचार करूं कि बिछौने पर तो मुझे सुख संतोष प्राप्‍त हो जाएगा,

मेरे आसन पर मुझे इन पीड़ाओं से मुक्ति प्राप्‍त हो जाएगी,

14तब आप मुझे स्वप्नों के द्वारा भयभीत करने लगते हैं

तथा दर्शन दिखा-दिखाकर आतंकित कर देते हैं;

15कि मेरी आत्मा को घुटन हो जाए,

कि मेरी पीड़ाएं मेरे प्राण ले लें.

16मैं अपने जीवन से घृणा करता हूं; मैं सर्वदा जीवित रहना नहीं चाहता हूं.

छोड़ दो मुझे अकेला; मेरा जीवन बस एक श्वास तुल्य है.

17“प्रभु, मनुष्य है ही क्या, जिसे आप ऐसा महत्व देते हैं,

जिसका आप ध्यान रखते हैं,

18हर सुबह आप उसका परीक्षण करते,

तथा हर पल उसे परखते रहते हैं?

19क्या आप अपनी दृष्टि मुझ पर से कभी न हटाएंगे?

क्या आप मुझे इतना भी अकेला न छोड़ेंगे, कि मैं अपनी लार को गले से नीचे उतार सकूं?

20प्रभु, आप जो मनुष्यों पर अपनी दृष्टि लगाए रखते हैं, क्या किया है मैंने आपके विरुद्ध?

क्या मुझसे कोई पाप हो गया है?

आपने क्यों मुझे लक्ष्य बना रखा है?

क्या, अब तो मैं अपने ही लिए एक बोझ बन चुका हूं?

21तब आप मेरी गलतियों को क्षमा क्यों नहीं कर रहे,

क्यों आप मेरे पाप को माफ नहीं कर रहे?

क्योंकि अब तो तुझे धूल में मिल जाना है;

आप मुझे खोजेंगे, किंतु मुझे नहीं पाएंगे.”