अय्योब 5 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

अय्योब 5:1-27

1“इसी समय पुकारकर देख. है कोई जो इसे सुनेगा?

तुम किस सज्जन व्यक्ति से सहायता की आशा करोगे?

2क्रोध ही मूर्ख व्यक्ति के विनाश का कारण हो जाता है,

तथा जलन भोले के लिए घातक होती है.

3मैंने मूर्ख को जड़ पकडे देखा है,

किंतु तत्काल ही मैंने उसके घर को शाप दे दिया.

4उसकी संतान सुरक्षित नहीं है, नगर चौक में वे कष्ट के लक्ष्य बने हुए हैं,

कोई भी वहां नहीं, जो उनको छुड़वाएगा,

5उसकी कटी हुई उपज भूखे लोग खा जाते हैं,

कंटीले क्षेत्र की उपज भी वे नहीं छोड़ते.

लोभी उसकी संपत्ति हड़पने के लिए प्यासे हैं.

6कष्ट का उत्पन्‍न धूल से नहीं होता

और न विपत्ति भूमि से उपजती है.

7जिस प्रकार चिंगारियां ऊपर दिशा में ही बढ़ती हैं

उसी प्रकार मनुष्य का जन्म होता ही है यातनाओं के लिए.

8“हां, मैं तो परमेश्वर की खोज करूंगा;

मैं अपना पक्ष परमेश्वर के सामने प्रस्तुत करूंगा.

9वही विलक्षण एवं अगम्य कार्य करते हैं,

असंख्य हैं आपके चमत्कार.

10वही पृथ्वी पर वृष्टि बरसाते

तथा खेतों को पानी पहुंचाते हैं.

11तब वह विनम्रों को ऊंचे स्थान पर बैठाते हैं,

जो विलाप कर रहे हैं, उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं.

12वह चालाक के षड़्‍यंत्र को विफल कर देते हैं,

परिणामस्वरूप उनके कार्य सफल हो ही नहीं पाते.

13वह बुद्धिमानों को उन्हीं की युक्ति में उलझा देते हैं

तथा धूर्त का परामर्श तत्काल विफल हो जाता है.

14दिन में ही वे अंधकार में जा पड़ते हैं

तथा मध्याह्न पर उन्हें रात्रि के समान टटोलना पड़ता है.

15किंतु प्रतिरक्षा के लिए परमेश्वर का वचन है उनके मुख की तलवार;

वह बलवानों की शक्ति से दीन की रक्षा करते हैं.

16तब निस्सहाय के लिए आशा है,

अनिवार्य है कि बुरे लोग चुप रहें.

17“ध्यान दो, कैसा प्रसन्‍न है वह व्यक्ति जिसको परमेश्वर ताड़ना देते हैं;

तब सर्वशक्तिमान के द्वारा की जा रही ताड़ना से घृणा न करना.

18चोट पहुंचाना और मरहम पट्टी करना, दोनों ही उनके द्वारा होते हैं;

वही घाव लगाते और स्वास्थ्य भी वही प्रदान करते हैं.

19वह छः कष्टों से तुम्हारा निकास करेंगे,

सात में भी अनिष्ट तुम्हारा स्पर्श नहीं कर सकेगा.

20अकाल की स्थिति में परमेश्वर तुम्हें मृत्यु से बचाएंगे,

वैसे ही युद्ध में तलवार के प्रहार से.

21तुम चाबुक समान जीभ से सुरक्षित रहोगे,

तथा तुम्हें हिंसा भयभीत न कर सकेगी.

22हिंसा तथा अकाल तुम्हारे लिए उपहास के विषय होंगे,

तुम्हें हिंसक पशुओं का भय न होगा.

23तुम खेत के पत्थरों के साथ रहोगे

तथा वन-पशुओं से तुम्हारी मैत्री हो जाएगी.

24तुम्हें यह तो मालूम हो जाएगा कि तुम्हारा डेरा सुरक्षित है;

तुम अपने घर में जाओगे और तुम्हें किसी भी हानि का भय न होगा.

25तुम्हें यह भी बोध हो जाएगा कि तुम्हारे वंशजों की संख्या बड़ी होगी,

तुम्हारी सन्तति भूमि की घास समान होगी.

26मृत्यु की बेला में भी तुम्हारे शौर्य का ह्रास न हुआ होगा,

जिस प्रकार परिपक्व अन्‍न एकत्र किया जाता है.

27“इस पर ध्यान दो: हमने इसे परख लिया है यह ऐसा ही है.

इसे सुनो तथा स्वयं इसे पहचान लो.”