अय्योब 32 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

अय्योब 32:1-22

एलिहू

1तब इन तीनों ने ही अय्योब को प्रत्युत्तर देना छोड़ दिया, क्योंकि अय्योब स्वयं की धार्मिकता के विषय में अटल मत के थे. 2किंतु राम के परिवार के बुज़वासी बारकएल के पुत्र एलिहू का क्रोध भड़क उठा-उसका यह क्रोध अय्योब पर ही था, क्योंकि अय्योब स्वयं को परमेश्वर के सामने नेक प्रमाणित करने में अटल थे. 3इसके विपरीत अय्योब अपने तीनों मित्रों पर नाराज थे, क्योंकि वे उनके प्रश्नों के उत्तर देने में विफल रहे थे. 4अब तक एलिहू ने कुछ नहीं कहा था, क्योंकि वह उन सभी से कम उम्र का था. 5तब, जब एलिहू ने ध्यान दिया कि अन्य तीन प्रश्नों के उत्तर देने में असमर्थ थे, तब उसका क्रोध भड़क उठा.

6तब बुज़वासी बारकएल के पुत्र एलिहू ने कहना प्रारंभ किया:

“मैं ठहरा कम उम्र का

और आप सभी बड़े;

इसलिये मैं झिझकता रहा

और मैंने अपने विचार व्यक्त नहीं किए.

7मेरा मत यही था, ‘विचार वही व्यक्त करें,

जो वर्षों में मुझसे आगे हैं, ज्ञान की शिक्षा वे ही दें, जो बड़े हैं.’

8वस्तुतः सर्वशक्तिमान की श्वास तथा परमेश्वर का आत्मा ही है,

जो मनुष्य में ज्ञान प्रगट करता है.

9संभावना तो यह है कि बड़े में विद्वत्ता ही न हो,

तथा बड़े में न्याय की कोई समझ न हो.

10“तब मैंने भी अपनी इच्छा प्रकट की ‘मेरी भी सुन लीजिए;

मैं अपने विचार व्यक्त करूंगा.’

11सुनिए, अब तक मैं आप लोगों के वक्तव्य सुनता हुआ ठहरा रहा हूं,

आप लोगों के विचार भी मैंने सुन लिए हैं,

जो आप लोग घोर विचार करते हुए प्रस्तुत कर रहे थे.

12मैं आपके वक्तव्य बड़े ही ध्यानपूर्वक सुनता रहा हूं. निःसंदेह ऐसा कोई भी न था

जिसने महोदय अय्योब के शब्दों का विरोध किया हो;

आप में से एक ने भी उनका उत्तर नहीं दिया.

13अब यह मत बोलना, ‘हमें ज्ञान की उपलब्धि हो गई है;

मनुष्य नहीं, स्वयं परमेश्वर ही उनके तर्कों का खंडन करेंगे.’

14क्योंकि अय्योब ने अपना वक्तव्य मेरे विरोध में लक्षित नहीं किया था,

मैं तो उन्हें आप लोगों के समान विचार से उत्तर भी न दे सकूंगा.

15“वे निराश हो चुके हैं, अब वे उत्तर ही नहीं दे रहे;

अब तो उनके पास शब्द न रह गए हैं.

16क्या उनके चुप रहने के कारण मुझे प्रतीक्षा करना होगा, क्योंकि अब वे वहां चुपचाप खड़े हुए हैं,

उत्तर देने के लिए उनके सामने कुछ न रहा है.

17तब मैं भी अपने विचार प्रस्तुत करूंगा;

मैं भी वह सब प्रकट करूंगा, जो मुझे मालूम है.

18विचार मेरे मन में समाए हुए हैं,

मेरी आत्मा मुझे प्रेरित कर रही है.

19मेरा हृदय तो दाखमधु समान है, जिसे बंद कर रखा गया है,

ऐसा जैसे नये दाखरस की बोतल फटने ही वाली है.

20जो कुछ मुझे कहना है, उसे कहने दीजिए, ताकि मेरे हृदय को शांति मिल जाए;

मुझे उत्तर देने दीजिए.

21मैं अब किसी का पक्ष न लूंगा

और न किसी की चापलूसी ही करूंगा;

22क्योंकि चापलूसी मेरे स्वभाव में नहीं है, तब यदि मैं यह करने लगूं,

मेरे रचयिता मुझे यहां से उठा लें.