अय्योब 13 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

अय्योब 13:1-28

1“सुनो, मेरे नेत्र यह सब देख चुके हैं, मेरे कानों ने,

यह सब सुन लिया है तथा मैंने इसे समझ लिया है.

2जो कुछ तुम्हें मालूम है, वह सब मुझे मालूम है;

मैं तुमसे किसी भी रीति से कम नहीं हूं,

3हां, मैं इसका उल्लेख सर्वशक्तिमान से अवश्य करूंगा,

मेरी अभिलाषा है कि इस विषय में परमेश्वर से वाद-विवाद करूं.

4तुम तो झूठी बात का चित्रण कर रहे हो;

तुम सभी अयोग्य वैद्य हो!

5उत्तम तो यह होता कि तुम चुप रहते!

इसी में सिद्ध हो जाती तुम्हारी बुद्धिमानी.

6कृपा कर मेरे विवाद पर ध्यान दो;

तथा मेरे होंठों की बहस की बातों पर ध्यान करो.

7क्या तुम वह बात करोगे, जो परमेश्वर की दृष्टि में अन्यायपूर्ण है?

अथवा वह कहोगे, जो उनकी दृष्टि में छलपूर्ण है?

8क्या तुम परमेश्वर के लिए पक्षपात करोगे?

क्या तुम परमेश्वर से वाद-विवाद करोगे?

9क्या जब तुम्हारी परख की जाएगी, तो यह तुम्हारे हित में होगा?

अथवा तुम मनुष्यों के समान परमेश्वर से छल करने का यत्न करने लगोगे?

10यदि तुम गुप्‍त में पक्षपात करोगे,

तुम्हें उनकी ओर से फटकार ही प्राप्‍त होगी.

11क्या परमेश्वर का माहात्म्य तुम्हें भयभीत न कर देगा?

क्या उनका आतंक तुम्हें भयभीत न कर देगा?

12तुम्हारी उक्तियां राख के नीतिवचन के समान हैं;

तुम्हारी प्रतिरक्षा मिट्टी समान रह गई है.

13“मेरे सामने चुप रहो, कि मैं अपने विचार प्रस्तुत कर सकूं;

तब चाहे कैसी भी समस्या आ पड़े.

14भला मैं स्वयं को जोखिम में क्यों डालूं

तथा अपने प्राण हथेली पर लेकर घुमूं?

15चाहे परमेश्वर मेरा घात भी करें, फिर भी उनमें मेरी आशा बनी रहेगी;

परमेश्वर के सामने मैं अपना पक्ष प्रस्तुत करूंगा.

16यही मेरी छुटकारे का कारण होगा,

क्योंकि कोई बुरा व्यक्ति उनकी उपस्थिति में प्रवेश करना न चाहेगा!

17बड़ी सावधानीपूर्वक मेरा वक्तव्य सुन लो;

तथा मेरी घोषणा को मन में बसा लो.

18अब सुन लो, प्रस्तुति के लिए मेरा पक्ष तैयार है,

मुझे निश्चय है मुझे न्याय प्राप्‍त होकर रहेगा.

19कौन करेगा मुझसे वाद-विवाद?

यदि कोई मुझे दोषी प्रमाणित कर दे, मैं चुप होकर प्राण त्याग दूंगा.

20“परमेश्वर, मेरी दो याचनाएं पूर्ण कर दीजिए,

तब मैं आपसे छिपने का प्रयास नहीं करूंगा.

21मुझ पर से अपना कठोर हाथ दूर कर लीजिए,

तथा अपने आतंक मुझसे दूर कर लीजिए.

22तब मुझे बुला लीजिए कि मैं प्रश्नों के उत्तर दे सकूं,

अथवा मुझे बोलने दीजिए, और इन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कीजिए.

23कितने हैं मेरे पाप एवं अपराध?

प्रकट कर दीजिए, मेरा अपराध एवं मेरा पाप.

24आप मुझसे अपना मुख क्यों छिपा रहे हैं?

आपने मुझे अपना शत्रु क्यों मान लिया है?

25क्या आप एक वायु प्रवाह में उड़ती हुई पत्ती को यातना देंगे?

क्या आप सूखी भूसी का पीछा करेंगे?

26आपने मेरे विरुद्ध कड़वे आरोपों की सूची बनाई है

तथा आपने मेरी युवावस्था के पापों को मुझ पर लाद दिया है.

27आपने मेरे पांवों में बेड़ियां डाल दी है;

आप मेरे मार्गों पर दृष्टि रखते हैं.

इसके लिए आपने मेरे पांवों के तलवों को चिन्हित कर दिया है.

28“तब मनुष्य किसी सड़ी-गली वस्तु के समान नष्ट होता जाता है,

उस वस्त्र के समान, जिसे कीड़े खा चुके हों.