अय्योब 11 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

अय्योब 11:1-20

जोफर की पहली प्रतिक्रिया

1इसके बाद नआमथवासी ज़ोफर ने कहना प्रारंभ किया:

2“क्या मेरे इतने सारे शब्दों का उत्तर नहीं मिलेगा?

क्या कोई वाचाल व्यक्ति दोष मुक्त माना जाएगा?

3क्या तुम्हारी अहंकार की बातें लोगों को चुप कर पाएगी?

क्या तुम उपहास करके भी कष्ट से मुक्त रहोगे?

4क्योंकि तुमने तो कहा है, ‘मेरी शिक्षा निर्मल है

तथा आपके आंकलन में मैं निर्दोष हूं,’

5किंतु यह संभव है कि परमेश्वर संवाद करने लगें

तथा वह तुम्हारे विरुद्ध अपना निर्णय दें.

6वह तुम पर ज्ञान का रहस्य प्रगट कर दें,

क्योंकि सत्य ज्ञान के दो पक्ष हैं.

तब यह समझ लो, कि परमेश्वर तुम्हारे अपराध के कुछ अंश को भूल जाते हैं.

7“क्या, परमेश्वर के रहस्य की गहराई को नापना तुम्हारे लिए संभव है?

क्या तुम सर्वशक्तिमान की सीमाओं की जांच कर सकते हो?

8क्या करोगे तुम? वे तो आकाश-समान उन्‍नत हैं.

क्या मालूम कर सकोगे तुम? वे तो पाताल से भी अधिक अथाह हैं.

9इसका विस्तार पृथ्वी से भी लंबा है

तथा महासागर से भी अधिक व्यापक.

10“यदि वह आएं तथा तुम्हें बंदी बना दें, तथा तुम्हारे लिए अदालत आयोजित कर दें,

तो कौन उन्हें रोक सकता है?

11वह तो पाखंडी को पहचान लेते हैं, उन्हें तो यह भी आवश्यकता नहीं;

कि वह पापी के लिए विचार करें.

12जैसे जंगली गधे का बच्चा मनुष्य नहीं बन सकता,

वैसे ही किसी मूर्ख को बुद्धिमान नहीं बनाया जा सकता.

13“यदि तुम अपने हृदय को शुद्ध दिशा की ओर बढ़ाओ,

तथा अपना हाथ परमेश्वर की ओर बढ़ाओ,

14यदि तुम्हारे हाथ जिस पाप में फंसे है,

तुम इसका परित्याग कर दो तथा अपने घरों में बुराई का प्रवेश न होने दो,

15तो तुम निःसंकोच अपना सिर ऊंचा कर सकोगे

तथा तुम निर्भय हो स्थिर खड़े रह सकोगे.

16क्योंकि तुम्हें अपने कष्टों का स्मरण रहेगा,

जैसे वह जल जो बह चुका है वैसी ही होगी तुम्हारी स्मृति.

17तब तुम्हारा जीवन दोपहर के सूरज से भी अधिक प्रकाशमान हो जाएगा,

अंधकार भी प्रभात-समान होगा.

18तब तुम विश्वास करोगे, क्योंकि तब तुम्हारे सामने होगी एक आशा;

तुम आस-पास निरीक्षण करोगे और फिर पूर्ण सुरक्षा में विश्राम करोगे.

19कोई भी तुम्हारी निद्रा में बाधा न डालेगा,

अनेक तुम्हारे समर्थन की अपेक्षा करेंगे.

20किंतु दुर्वृत्तों की दृष्टि शून्य हो जाएगी,

उनके लिए निकास न हो सकेगा;

उनके लिए एकमात्र आशा है मृत्यु.”

New Arabic Version

أيوب 11:1-20

صوفر

1فَأَجَابَ صُوفَرُ النَّعْمَاتِيُّ: 2«هَلْ يُتْرَكُ هَذَا الْكَلامُ الْمُفَرِّطُ مِنْ غَيْرِ جَوَابٍ، أَمْ يَتَبَرَّأُ الرَّجُلُ الْمِهْذَارُ؟ 3أَيُفْحِمُ لَغْوُكَ النَّاسَ، أَمْ تَهَكُّمُكَ يَحُولُ دُونَ تَسْفِيهِكَ؟ 4إِذْ تَدَّعِي قَائِلاً: مَذْهَبِي صَالِحٌ، وَأَنَا بَارٌّ فِي عَيْنَيِ الرَّبِّ. 5وَلَكِنْ لَيْتَ اللهَ يَتَكَلَّمُ وَيَفْتَحُ شَفَتَيْهِ لِيَرُدَّ عَلَيْكَ، 6وَيَكْشِفَ لَكَ أَسْرَارَ حِكْمَتِهِ، فَلِلْحِكْمَةِ الصَّالِحَةِ وَجْهَانِ، فَتُدْرِكَ آنَئِذٍ أَنَّ اللهَ عَاقَبَكَ عَلَى إِثْمِكَ بِأَقَلَّ مِمَّا تَسْتَحِقُّ.

7أَلَعَلَّكَ تُدْرِكُ أَعْمَاقَ اللهِ، أَمْ تَبْلُغُ أَقْصَى قُوَّةِ الْقَدِيرِ؟ 8هُوَ أَسْمَى مِنَ السَّمَاوَاتِ، فَمَاذَا يُمْكِنُكَ أَنْ تَفْعَلَ؟ وَهُوَ أَبْعَدُ غَوْراً مِنَ الْهَاوِيَةِ، فَمَاذَا تَعْلَمُ؟ 9هُوَ أَطْوَلُ مِنَ الأَرْضِ وَأَعْرَضُ مِنَ الْبَحْرِ. 10فَإِنِ اجْتَازَ وَاعْتَقَلَكَ وَحَاكَمَكَ فَمَنْ يَرُدُّهُ؟ 11لأَنَّهُ عَالِمٌ بِالْمُنَافِقِينَ. إِنْ رَأَى الإِثْمَ، أَفَلا يَنْظُرُ فِي أَمْرِهِ؟ 12يُصْبِحُ الأَحْمَقُ حَكِيماً عِنْدَمَا يَلِدُ حِمَارُ الْوَحْشِ إِنْسَاناً.

13إِنْ هَيَّأْتَ قَلْبَكَ وَبَسَطْتَ إِلَيْهِ يَدَيْكَ، 14وَإِنْ نَبَذْتَ الإِثْمَ الَّذِي تَلَطَّخَتْ بِهِ كَفَّاكَ، فَلَمْ يَعُدِ الْجَوْرُ يُقِيمُ فِي خَيْمَتِكَ. 15حِينَئِذٍ تَرْفَعُ وَجْهَكَ بِكَرَامَةٍ، وَتَكُونُ رَاسِخاً مِنْ غَيْرِ خَوْفٍ، 16فَتَنْسَى مَا قَاسَيْتَ مِنْ مَشَقَّةٍ، وَلا تَذْكُرُهَا إِلّا كَمِيَاهٍ عَبَرَتْ. 17وَتُصْبِحُ حَيَاتُكَ أَكْثَرَ إِشْرَاقاً مِنْ نُورِ الظَّهِيرَةِ، وَيَتَحَوَّلُ ظَلامُهَا إِلَى صَبَاحٍ، 18وَتَطْمَئِنُّ لأَنَّ هُنَاكَ رَجَاءً، وَتَتَلَفَّتُ حَوْلَكَ وَتَرْقُدُ آمِناً. 19تَسْتَكِينُ إِذْ لَيْسَ مِنْ مُرَوِّعٍ، وَكَثِيرُونَ يَتَرَجَّوْنَ رِضَاكَ 20أَمَّا عُيُونُ الأَشْرَارِ فَيُصِيبُهَا التَّلَفُ، وَمَنَافِذُ الْهَرَبِ تَخْتَفِي مِنْ أَمَامِهِمْ، وَلا أَمَلَ لَهُمْ إِلّا فِي الْمَوْتِ».