व्यवस्था 1 – HCV & NRT

Hindi Contemporary Version

व्यवस्था 1:1-46

होरेब छोड़ने की आज्ञा

1मोशेह द्वारा सारे इस्राएल को कहे गए वचन, जो यरदन के पूर्व निर्जन प्रदेश—अराबाह—में दिये गये, जो सूफ के सामने के मैदान में पारान, तोफेल, लाबान, हाज़ोरौथ और दी-ज़ाहाब के पास है. 2(होरेब पर्वत से सेईर पर्वत होते हुए कादेश-बरनेअ तक यात्रा में सिर्फ ग्यारह दिन ही लगते हैं.)

3चालीसवें साल के, ग्यारहवें महीने के पहले दिन मोशेह ने इस्राएलियों को वह सब कह दिया, जिसका आदेश उन्हें याहवेह से मिला था. 4इस समय वह हेशबोनवासी अमोरियों के राजा सीहोन और अश्तारोथ और एद्रेइ के शासक बाशान के राजा ओग को हरा चुके थे.

5जब वे यरदन के पूर्व मोआब देश में ही थे, मोशेह ने व्यवस्था की व्याख्या करना यह कहते हुए शुरू किया कि:

6होरेब पर्वत पर याहवेह हमारे परमेश्वर ने यह कहा था, “पूरी हुई इस पर्वत पर तुम्हारी शांति. 7अब अपनी यात्रा शुरू करो. तुम्हें अमोरियों के पहाड़ी प्रदेश, अराबाह के पास के सारे क्षेत्रों को जो पर्वतों और नेगेव की घाटियों और सागर के किनारे के इलाकों तक, कनानियों के देश और महानद फरात तक फैले हुए लबानोन की ओर निशाना करना है. 8यह समझ लो, कि मैंने यह ज़मीन तुम्हारे सामने रख दी है. इसमें प्रवेश करो और उस ज़मीन पर अपना अधिकार कर लो, जिसे देने की प्रतिज्ञा मैं, याहवेह ने, तुम्हारे पूर्वज अब्राहाम, यित्सहाक और याकोब से और उनके बाद उनके घराने से की थी.”

अगुओं की नियुक्ति

9उसी समय मैं तुम पर यह प्रकट कर चुका था, “मुझमें यह सामर्थ्य नहीं कि मैं अकेला तुम्हारा भार उठा सकूं. 10याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हारी गिनती इस हद्द तक बढ़ा दी है, कि अब तुम्हीं देख लो, कि तुम आकाश के तारों के समान अनगिनत हो चुके हो. 11याहवेह, तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर तुम्हारी गिनती में हज़ार गुणा और बढ़ाकर तुम्हें समृद्ध बना दें; ठीक जैसी प्रतिज्ञा उन्होंने तुमसे की है! 12मैं अकेला ही कैसे तुम्हारा बोझ और तुम्हारे विवादों के बोझ को उठा सकता हूं? 13अपने ही गोत्रों में से बुद्धिमान, समझदार और अनुभवी व्यक्तियों को चुन लो, तो मैं उन्हें तुम्हारे लिए मुखिया बना दूंगा.”

14तुम्हारा उत्तर था, “आपका प्रस्ताव बढ़िया है.”

15फिर मैंने तुम्हारे गोत्रों के अध्यक्षों को, जो बुद्धिमान और अनुभवी व्यक्ति थे, तुम्हारे लिए अगुए बना दिये. इन्हें हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास तथा दस-दस लोगों के समूह के ऊपर अधिकारी नियुक्त किए. 16उसी समय मैंने तुम्हारे न्यायाध्यक्षों को ये आदेश दिए: “अपनी जाति के लोगों के विवाद ध्यान से सुनो और उन्हें निष्पक्ष न्याय दो, चाहे यह विवाद दो सहजातियों के बीच हो या किसी सजातीय और उनके बीच रह रहे परदेशी के बीच. 17न्याय में पक्षपात कभी न हो. सामान्य और विशेष का विवाद तुम एक ही नज़रिए से करोगे. तुम्हें किसी भी मनुष्य का भय न हो, क्योंकि न्याय परमेश्वर का है. वे विवाद, जो कठिन महसूस हों, तुम मेरे सामने लाओगे, ताकि मैं खुद उन्हें सुनूं.” 18तुम्हें क्या-क्या करना है, यह मैं तुम पर पहले ही स्पष्ट कर चुका हूं.

जासूसों को भेजते है

19ठीक जैसा आदेश याहवेह हमारे परमेश्वर ने दिया था, हमने होरेब पर्वत से कूच किया और उस विशाल और भयानक निर्जन प्रदेश से होते हुए, जो खुद तुमने अमोरियों के पर्वतीय क्षेत्र के मार्ग पर देखा था; हम कादेश-बरनेअ पहुंच गए. 20मैंने तुम्हें सूचित किया, “तुम अमोरियों के पर्वतीय प्रदेश में आ पहुंचे हो, जो याहवेह, हमारे परमेश्वर हमें देने पर हैं. 21देख लो, याहवेह तुम्हारे परमेश्वर ने यह ज़मीन तुम्हारे सामने रख दी है. आगे बढ़ो और उस पर अधिकार कर लो. यही तो याहवेह, तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर ने तुमसे कह रखा है. तुम न तो भयभीत होना और न ही निराश.”

22यह सुन तुम सभी मेरे पास आ गए और मेरे सामने यह प्रस्ताव रखा, “सही होगा कि हम अपने पहले वहां कुछ व्यक्तियों को उस देश का पता करने के उद्देश्य से भेज दें, कि वे उस देश का समाचार लेकर हमें सही स्थिति बताएं, ताकि हम सही रास्ते से उन नगरों में प्रवेश कर सकें.”

23यह प्रस्ताव मुझे सही लगा. मैंने हर एक गोत्र से एक-एक व्यक्ति लेकर तुममें से बारह व्यक्ति चुन दिए. 24वे पर्वतीय प्रदेश की ओर चले गए. वे एशकोल घाटी में जा पहुंचे और उसका भेद ले लिया. 25इसके बाद उन्होंने उस देश के कुछ फल इकट्‍ठे किए और वे हमें दिखाने के लिए ले आए. वे जो विवरण लेकर आए थे, वह इस प्रकार था: “वह देश जो याहवेह, हमारे परमेश्वर हमें देने जा रहे हैं, वास्तव में एक बढ़िया देश है.”

याहवेह के खिलाफ विद्रोह

26फिर भी तुम आगे बढ़ने के लिए तैयार न हुए, बल्कि तुमने तो याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के आदेश के विरुद्ध विद्रोह ही कर दिया. 27तुम अपने-अपने शिविर में यह कहते हुए बड़बड़ाते रहे, “क्योंकि याहवेह को हमसे घृणा है, इसलिये तो वह हमें मिस्र देश से यहां ले आए हैं, कि हमें अमोरियों के द्वारा नाश करवा दें. 28हम वहां कैसे जा सकते हैं? हमारे बंधुओं ने तो यह सूचित कर हमारा मनोबल खत्म कर दिया है, ‘वहां के निवासी डीलडौल में हमसे बहुत बड़े और शक्तिमान हैं. नगर विशाल हैं और शहरपनाहें गगन को चूमती हैं, इसके अलावा हमने वहां अनाक के वंशज भी देखे हैं.’ ”

29फिर मैंने तुम्हें आश्वस्त किया, “न तो इससे हैरान हो जाओ और न डरो. 30याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर, जो तुम्हारे अगुए हैं, खुद तुम्हारी ओर से युद्ध करेंगे; ठीक जैसा उन्होंने तुम्हारे देखते ही देखते मिस्र देश में तुम्हारे लिए किया था. 31और निर्जन प्रदेश में भी, जहां तुमने देख लिया, कि कैसे याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर पूरे मार्ग में, जिस पर चलते हुए तुम यहां तक आ पहुंचे हो, इस रीति से तुम्हें उठाए रहा, जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपने पुत्र को उठाता है.”

32मगर इतना सब होने पर भी, तुमने याहवेह, अपने परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया, 33जो तुम्हारे ही मार्ग पर तुम्हारे आगे-आगे चलते हुए जा रहे हैं, कि तुम्हारे लिए ऐसा सही स्थान तय करें, जहां तुम पड़ाव डाल सको. वह रात में तो आग के द्वारा और दिन में बादल के द्वारा तुम्हारे मार्गदर्शक हुआ करते थे.

34याहवेह ने तुम्हारी बड़बड़ाहट सुन ली. वह क्रोधित हो गए और तब उन्होंने यह शपथ ली: 35“इस बुरी पीढ़ी में से एक भी व्यक्ति उस अच्छे देश को देख न सकेगा, जिसकी प्रतिज्ञा मैंने तुम्हारे पूर्वजों से की थी, 36सिवाय येफुन्‍नेह के पुत्र कालेब के; वह इस देश में प्रवेश करेगा. उसे और उसकी संतान को मैं यह देश दे दूंगा, जिस पर उसके कदम पड़े थे; क्योंकि उसका मन पूरी तरह याहवेह के प्रति विश्वासयोग्य बना रहा है.”

37तुम्हारे कारण याहवेह मुझ पर ही क्रोधित हो गए और उन्होंने मुझसे कहा, “तुम भी उस देश में प्रवेश न करोगे. 38मगर नून का पुत्र यहोशू, जो तुम्हारा सेवक है, उस देश में प्रवेश करेगा. तुम उसकी हिम्मत बनाए रखो. वही इस्राएल को उस देश पर अधिकार करने के लिए प्रेरित करेगा. 39इनके अलावा तुम्हारे बालक, जिनके लिए तुम यह कहते रहे हो, कि वे तो उनके शिकार हो जाएंगे, और तुम्हारी वह संतान, जिन्हें आज सही गलत का पता ही नहीं है, उस देश में प्रवेश करेंगी; मैं उन्हें यह देश दे दूंगा और वे इस पर अधिकार कर लेंगे. 40मगर तुम मुड़कर लाल सागर पथ पर निर्जन प्रदेश की ओर लौट जाओ.”

41तब तुमने मेरे सामने यह स्वीकार किया, “हमने याहवेह के विरुद्ध पाप किया है; अब हम पहाड़ी प्रदेश पर चढ़ेंगे, और ठीक जैसा आदेश याहवेह हमारे परमेश्वर ने दिया है, उन जातियों से युद्ध करेंगे.” तुममें से हर एक ने हथियार धारण कर लिए. तुम्हें तो पहाड़ी क्षेत्र में जाकर हमला करना सरल प्रतीत हो रहा था.

42मगर मुझे याहवेह की ओर से यह आदेश मिला: “उनसे यह कहो, ‘न तो वहां जाना और न ही उनसे युद्ध करना, क्योंकि इसमें मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं; नहीं तो तुम अपने शत्रुओं द्वारा हरा दिए जाओगे.’ ”

43इसलिये मैंने तुम्हारे सामने ये बातें रख दीं, मगर तुमने इसकी उपेक्षा करके याहवेह के आदेश के विरुद्ध विद्रोह कर दिया. अपने हठ में तुम उस पर्वतीय क्षेत्र में पहुंच गए. 44उस क्षेत्र के अमोरी बाहर निकल आए और तुम्हें इस रीति से खदेड़ दिया मानो तुम्हारे पीछे मधुमक्खियां लगी हों. वे तो तुम्हें सेईर से होरमाह तक कुचलते गए. 45तुम लौट आए और याहवेह के सामने रोते रहे; मगर याहवेह पर तुम्हारे इस रोने का कोई असर न पड़ा. 46फलस्वरूप तुम्हें कादेश में ही लंबे समय तक ठहरना पड़ा. ऐसे ही रहे वहां तुम्हारे दिन.

New Russian Translation

Второзаконие 1:1-46

Повеление Господа покинуть Хорив

1Вот слова, которые Моисей сказал всему Израилю в пустыне, что к востоку от Иордана — то есть в Иорданской долине — напротив Суфа, между Параном и Тофелом, Лаваном, Хацеротом и Ди-Загавом. 2(На расстоянии одиннадцати дней от Хорива по дороге от горы Сеир к Кадеш-Барнеа.)

3В сороковой год после выхода из Египта, в первый день одиннадцатого месяца Моисей объявил израильтянам всё, что повелел ему о них Господь. 4Это было после того, как он разбил Сигона, царя аморреев, который правил в Хешбоне, а в Эдреи разбил Ога, царя Башана, который правил в Аштароте1:4 Букв.: царя Башана, который правил в Аштароте в Эдреи..

5К востоку от Иордана на земле Моава Моисей начал разъяснять этот Закон, говоря:

6— Господь, наш Бог, говорил нам на Хориве: «Довольно вам жить у этой горы. 7Сверните лагерь и идите в аморрейские нагорья и ко всем соседним народам, живущим в Иорданской долине, в горах, в западных предгорьях, в Негеве и вдоль побережья, идите в землю хананеев и на Ливан, даже до великой реки Евфрат. 8Смотрите, Я дал вам эту землю. Войдите и овладейте землей, которую Господь клялся отдать вашим отцам Аврааму, Исааку и Иакову — и их семени».

Назначение судей

(Исх. 18:13–27)

9В то время я сказал вам: «Вы — слишком тяжелое бремя для меня одного. 10Господь, ваш Бог, умножил ваше число, и сегодня вы многочисленны, как звезды на небе. 11Пусть Господь, Бог ваших отцов, умножит ваше число в тысячу раз больше и благословит вас, как обещал! 12Но как я могу нести тяжелое бремя ваших споров один? 13Изберите мудрых, понимающих и уважаемых людей от каждого вашего рода, а я поставлю их над вами».

14Вы отвечали мне: «То, что ты предлагаешь, — хорошо».

15Я выбрал из ваших родов мудрых и уважаемых людей и поставил их вождями над вами: начальниками над тысячами, сотнями, полусотнями и десятками и старейшинами в родах. 16Я повелел в то время вашим судьям: выслушивайте споры между вашими братьями и судите справедливо, будет ли тяжба между израильтянами или между израильтянином и чужеземцем. 17Когда будете судить, не будьте пристрастны. Выслушивайте как великого, так и малого. Никого не бойтесь, потому что суд принадлежит Богу. Приносите мне всякое дело, которое слишком трудно для вас, и я выслушаю его. 18В то время я сказал вам всё, что вы должны были делать.

Посланные лазутчики

(Чис. 13:1–33)

19Затем мы тронулись в путь, как повелел нам Господь, наш Бог. Вышли из Хорива и пошли к аморрейским нагорьям через всю огромную и ужасную пустыню, которую вы видели, и достигли Кадеш-Барнеа. 20Тогда я сказал вам: «Вы достигли аморрейских нагорий, которые Господь, наш Бог, отдает нам. 21Смотри, Господь, твой Бог, отдал тебе землю. Поднимись и завладей ею, как сказал тебе Господь, Бог твоих отцов. Не бойся; не будь малодушным».

22Тогда вы все пришли ко мне и сказали: «Пошлем вперед людей, пусть они разведают нам эту землю и расскажут о дороге, по которой нам идти, и о городах, куда мы вступим».

23Мне понравилось это предложение, и я выбрал из вас двенадцать человек, по одному из каждого рода. 24Они пошли, поднялись в нагорья, пришли в долину Эшкол и исследовали ее. 25Взяв с собой плоды с той земли, они принесли их вниз к нам и доложили: «Хорошую землю дает нам Господь, наш Бог».

Восстание против Господа

(Чис. 14:1–45)

26Но вы не захотели подниматься; вы взбунтовались против повеления Господа, вашего Бога. 27Вы роптали у себя в шатрах и говорили: «Господь ненавидит нас. Поэтому Он вывел нас из Египта, чтобы отдать в руки аморреев и погубить. 28Куда нам идти? Наши братья лишили нас смелости.1:28 Букв.: размягчили наше сердце. Они говорят: „Тот народ сильнее и выше ростом; города там большие, со стенами до небес. Мы даже видели там потомков Анака“».

29Тогда я сказал вам: «Не страшитесь, не бойтесь их. 30Господь, ваш Бог, идет впереди, чтобы сражаться за вас, как Он сделал в Египте у вас на глазах 31и в пустыне, где вы видели, как Господь, ваш Бог, носил вас, словно отец своего сына, на всем вашем пути вплоть до этого места».

32Но вы не доверились Господу, вашему Богу, 33Который шел перед вами во время путешествия ночью в огне, а днем в облаке, чтобы найти вам места для остановки и показать путь, которым вы должны идти.

34Когда Господь услышал ваши речи, Он разгневался и поклялся: 35«Ни один человек из этого злого поколения не увидит благодатной земли, которую Я клялся отдать вашим отцам, 36кроме Халева, сына Иефоннии. Он увидит ее, и Я дам ему и его потомкам землю, через которую он проходил, потому что он от всего сердца последовал Господу».

37Из-за вас Господь разгневался и на меня и сказал: «Ты тоже не войдешь туда. 38Но твой помощник Иисус, сын Навин, войдет в эту землю. Ободряй его, потому что он поведет Израиль, чтобы унаследовать ее. 39А дети, о которых вы говорили, что они попадут в плен, — ваши дети, которые еще не отличают хорошее от плохого, войдут в землю. Я отдам ее им, и они овладеют ею. 40А вы повернитесь и отправляйтесь в пустыню, что на пути к Красному морю».

41Тогда вы отвечали: «Мы согрешили против Господа. Мы поднимемся и сразимся, как повелел нам Господь, наш Бог». Вы взяли оружие, думая, что подняться в нагорья легко.

42Но Господь сказал мне: «Скажи им: „Не поднимайтесь и не сражайтесь, потому что Меня не будет с вами. Ваши враги разобьют вас“».

43Я сказал вам, но вы не послушали. Вы взбунтовались против повеления Господа и в своей гордыне поднялись в нагорья. 44Аморреи, жившие в тех нагорьях, вышли против вас. Они преследовали вас, как пчелиный рой, и били вас от Сеира до самого города Хормы. 45Вы вернулись и плакали перед Господом, но Он не внял вашему плачу и отказался услышать вас. 46И много дней вы оставались в Кадеше — всё то время, которое вы там провели.