罗马书 1 – CCB & HCV

Chinese Contemporary Bible 2022 (Simplified)

罗马书 1:1-32

问候

1我是基督耶稣的奴仆保罗,蒙召做使徒,特为传上帝的福音。 2这福音是上帝从前借着众先知在圣经中应许的, 3讲的是上帝的儿子——我们主耶稣基督的事。从肉身来看,祂是大卫的后裔; 4从圣洁的灵来看,祂从死里复活,用大能显明自己是上帝的儿子。 5我们从祂领受了恩典并成为使徒,要带领万族的人信从祂,使祂的名得荣耀。 6你们也是其中蒙召信从耶稣基督的人。 7我问候所有住在罗马、上帝所爱、蒙召做圣徒的人。愿我们的父上帝和主耶稣基督赐给你们恩典和平安!

保罗渴望去罗马

8首先,我借着耶稣基督为各位感谢我的上帝,因为你们的信心正在传遍天下。 9-10我在祂儿子的福音事工上全心事奉的上帝可以为我做见证:我如何在祷告中常常想到你们,并求上帝让我照祂的旨意最终能去你们那里。 11因为我实在想见你们,好将一些属灵的恩赐分给你们,使你们坚固, 12也可以说是借着我们彼此的信心互相激励。

13弟兄姊妹,我希望你们知道,我曾多次计划去你们那里,要在你们中间收获一些福音的果子,像在其他外族人中一样,只是至今仍有拦阻。 14不论是希腊人和非希腊1:14 “非希腊人”希腊文是“未开化的人”,指在希腊、罗马文化影响圈之外的人。、智者和愚人,我对他们都有义务。 15所以,我也切望能将福音传给你们在罗马的人。

16我不以福音为耻,因为这福音是上帝的大能,要拯救一切相信的人,先是犹太人,然后是希腊人。 17这福音显明了上帝的义,这义始于信,终于信,正如圣经上说:“义人必靠信心而活。”1:17 哈巴谷书2:4

人类的罪恶

18上帝的烈怒从天上降下,要惩罚一切心中无神、行为不义的人,就是以不义压制真理的人。 19有关上帝的事情,可以让人类知道的都已经显而易见,因为上帝已经向人类显明了。 20自从创造天地以来,上帝永恒的大能和神性是明明可知的,虽然肉眼看不见,但透过受造之物就可以领悟,使人无法推诿。 21他们虽然明知有上帝,却不把祂当作上帝来荣耀祂,也不感谢祂。他们的思想因此变得荒谬无用,无知的心也变得昏暗不明。 22他们自以为聪明,其实愚不可及, 23以必朽的人、飞禽、走兽和爬虫的形象来取代永恒上帝的荣耀。

24因此,上帝任凭他们随从内心的情欲行污秽的事,玷污彼此的身体。 25他们把上帝的真理当作谎言,祭拜、供奉受造之物,却不敬拜、事奉造物主。主是永远值得称颂的。阿们!

26因此,上帝任凭他们放纵可耻的情欲。女人放弃正常的两性关系,做出变态反常的事。 27同样,男人也背弃了和女人正常的两性关系,男与男彼此欲火焚烧,做出羞耻不堪的事。他们必因变态而遭受应得的报应。

28既然他们故意不认识上帝,上帝就任凭他们心思败坏,做不当做的事。 29他们心里塞满了各种不义、邪恶、贪婪、阴险、嫉妒、凶杀、纷争、诡诈和恶毒,他们说长道短、 30造谣中伤、怨恨上帝、欺侮别人、心骄气傲、自高自大、无恶不作、违背父母、 31愚钝无知、言而无信、无情无义、毫无怜悯。 32他们明明知道,按上帝公义的法则,做这些事的人该死,不但执迷不悟,还喜欢别人跟他们同流合污。

Hindi Contemporary Version

रोमियों 1:1-32

1यह पत्र पौलॉस की ओर से है, जो मसीह येशु का दास है, जिसका आगमन एक प्रेरित के रूप में हुआ तथा जो परमेश्वर के उस ईश्वरीय सुसमाचार के लिए अलग किया गया है, 2जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने पहले ही अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्र अभिलेखों में की थी, 3जो उनके पुत्र के संबंध में थी, जो शारीरिक दृष्टि से दावीद के वंशज थे, 4जिन्हें, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से मरे हुओं में से जिलाए जाने के कारण, परमेश्वर का पुत्र ठहराया गया; वही अपना प्रभु येशु मसीह. 5उन्हीं के द्वारा हमने कृपा तथा प्रेरिताई प्राप्‍त की है कि हम उन्हीं के लिए सभी गैर-यहूदियों में विश्वास करके आज्ञाकारिता प्रभावी करें, 6जिनमें से तुम भी मसीह येशु के होने के लिए बुलाए गए हो.

7यह पत्र रोम नगर में उन सभी के नाम है,

जो परमेश्वर के प्रिय हैं, जिनका बुलावा पवित्र होने के लिए किया गया है. परमेश्वर हमारे पिता तथा प्रभु येशु मसीह की ओर से तुममें अनुग्रह और शांति बनी रहे.

रोम जाने के लिये पौलॉस की अभिलाषा

8सबसे पहले, मैं तुम सबके लिए मसीह येशु के द्वारा अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं क्योंकि तुम्हारे विश्वास की कीर्ति पूरे विश्व में फैलती जा रही है. 9परमेश्वर, जिनके पुत्र के ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार मैं पूरे हृदय से कर रहा हूं, मेरे गवाह हैं कि मैं तुम्हें अपनी प्रार्थनाओं में कैसे लगातार याद किया करता हूं 10और विनती करता हूं कि यदि संभव हो तो परमेश्वर की इच्छा अनुसार मैं तुमसे भेंट करने आऊं.

11तुमसे भेंट करने के लिए मेरी बहुत इच्छा इसलिये है कि तुम्हें आत्मिक रूप से मजबूत करने के उद्देश्य से कोई आत्मिक वरदान प्रदान करूं 12कि तुम और मैं आपस में एक दूसरे के विश्वास द्वारा प्रोत्साहित हो जाएं. 13प्रिय भाई बहिनो, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनजान रहो कि मैंने अनेक बार तुम्हारे पास आने की योजना बनाई है कि मैं तुम्हारे बीच वैसे ही उत्तम परिणाम देख सकूं जैसे मैंने बाकी गैर-यहूदियों में देखे हैं किंतु अब तक इसमें रुकावट ही पड़ती रही है.

14मैं यूनानियों तथा बरबरों, बुद्धिमानों तथा निर्बुद्धियों दोनों ही का कर्ज़दार हूं. 15इसलिये मैं तुम्हारे बीच भी—तुम, जो रोम नगर में हो—ईश्वरीय सुसमाचार सुनाने के लिए उत्सुक हूं.

16ईश्वरीय सुसमाचार मेरे लिए लज्जा का विषय नहीं है. यह उन सभी के उद्धार के लिए परमेश्वर का सामर्थ्य है, जो इसमें विश्वास करते हैं. सबसे पहले यहूदियों के लिए और यूनानियों के लिए भी. 17क्योंकि इसमें विश्वास से विश्वास के लिए परमेश्वर की धार्मिकता का प्रकाशन होता है, जैसा कि पवित्र शास्त्र का लेख है: वह, जो विश्वास द्वारा धर्मी है, जीवित रहेगा.1:17 हब 2:4

गैर-यहूदियों और यहूदियों पर परमेश्वर का क्रोध

18स्वर्ग से परमेश्वर का क्रोध उन मनुष्यों की अभक्ति तथा दुराचरण पर प्रकट होता है, जो सच्चाई को अधर्म में दबाए रहते हैं 19क्योंकि परमेश्वर के विषय में जो कुछ भी जाना जा सकता है, वह ज्ञान मनुष्यों पर प्रकट है—इसे स्वयं परमेश्वर ने उन पर प्रकट किया है. 20सच यह है कि सृष्टि के प्रारंभ ही से परमेश्वर के अनदेखे गुण, उनकी अनंत सामर्थ्य तथा उनका परमेश्वरत्व उनकी सृष्टि में स्पष्ट है और दिखाई देता है. इसलिये मनुष्य के पास अपने इस प्रकार के स्वभाव के बचाव में कोई भी तर्क शेष नहीं रह जाता.

21परमेश्वर का ज्ञान होने पर भी उन्होंने न तो परमेश्वर को परमेश्वर के योग्य सम्मान दिया और न ही उनका आभार माना. इसके विपरीत उनकी विचार शक्ति व्यर्थ हो गई तथा उनके जड़ हृदयों पर अंधकार छा गया. 22उनका दावा था कि वे बुद्धिमान हैं किंतु वे बिलकुल मूर्ख साबित हुए, 23क्योंकि उन्होंने अविनाशी परमेश्वर के प्रताप को बदलकर नाशमान मनुष्य, पक्षियों, पशुओं तथा रेंगते जंतुओं में कर दिया.

24इसलिये परमेश्वर ने भी उन्हें उनके हृदय की अभिलाषाओं की मलिनता के लिए छोड़ दिया कि वे आपस में बुरे कामों में अपने शरीर का अनादर करें. 25ये वे हैं, जिन्होंने परमेश्वर के सच का बदलाव झूठ से किया. ये वे हैं, जिन्होंने सृष्टि की वंदना अर्चना की, न कि सृष्टिकर्ता की, जो सदा-सर्वदा वंदनीय हैं. आमेन.

26यह देख परमेश्वर ने उन्हें निर्लज्ज कामनाओं को सौंप दिया. फलस्वरूप उनकी स्त्रियों ने प्राकृतिक यौनाचार के स्थान पर अप्राकृतिक यौनाचार अपना लिया. 27इसी प्रकार स्त्रियों के साथ प्राकृतिक यौनाचार को छोड़कर पुरुष अन्य पुरुष के लिए कामाग्नि में जलने लगे. पुरुष, पुरुष के साथ ही निर्लज्ज व्यवहार करने लगे, जिसके फलस्वरूप उन्हें अपने ही शरीर में अपनी अपंगता का दुष्परिणाम प्राप्‍त हुआ.

28इसके बाद भी उन्होंने यह उचित न समझा कि परमेश्वर के समग्र ज्ञान को स्वीकार करें, इसलिये परमेश्वर ने उन्हें वह सब करने के लिए, जो अनुचित था, निकम्मे मन के वश में छोड़ दिया. 29उनमें सब प्रकार की बुराइयां समा गईं: दुष्टता, लोभ, दुष्कृति, जलन, हत्या, झगड़ा, छल, दुर्भाव, कानाफूसी, 30दूसरों की निंदा, परमेश्वर से घृणा, असभ्य, घमंड, डींग मारना, षड़्‍यंत्र रचना, माता-पिता की आज्ञा टालना, 31निर्बुद्धि, विश्वासघाती, कठोरता और निर्दयता. 32यद्यपि वे परमेश्वर के धर्ममय अध्यादेश से परिचित हैं कि इन सबका दोषी व्यक्ति मृत्यु दंड के योग्य है, वे न केवल स्वयं ऐसा काम करते हैं, परंतु उन्हें भी पूरा समर्थन देते हैं, जो इनका पालन करते हैं.