但以理书 6 – CCB & HCV

Chinese Contemporary Bible 2022 (Simplified)

但以理书 6:1-28

但以理在狮子坑

1大流士决定设立一百二十个总督治理全国。 2总督之上设三个总长,负责管理总督,以维护王的统治,但以理是其中之一。 3因为但以理有非凡的心智,远超过其他总长和总督,王便考虑让他治理全国。 4于是,其他总长和总督想在但以理的政务中找把柄控告他,却找不到任何把柄或过失,因为他诚实可靠,毫无过失。 5最后他们说:“除非我们从但以理上帝的律法下手,否则找不到指控他的把柄。”

6于是,这些总长和总督齐来见王,说:“愿大流士王万岁! 7所有总长、行政官、总督、谋士和省长都认为王应该颁布诏书并实施一道禁令,三十天内,任何人不得向王以外的神明或人祷告,违者必被扔进狮子坑。 8王啊,求你颁布并签署这道禁令,使之不可更改,正如玛代人和波斯人的律令是不可更改的。” 9于是大流士王签署了这道禁令。

10但以理知道王签署禁令后,就回到家里,他楼上房间的窗户朝向耶路撒冷。他像往常一样每日三次跪下向上帝祷告、感恩。 11那些官员一同来了,发现但以理向他的上帝祷告、祈求, 12便去见王,提及王的禁令,说:“王啊,你不是签署禁令,三十天内,任何人不得向王以外的神明或人祷告,违者必被扔进狮子坑吗?”王说:“确有此事,按照玛代人和波斯人的律令,这禁令不可更改。” 13他们对王说:“王啊,被掳来的犹大但以理不理会你和你的禁令,仍一日三次向他的上帝祈祷。” 14王听了这些话,十分愁烦,一心想救但以理,直到日落都在筹划解救之道。 15那些人齐来见王,说:“王啊,要知道按照玛代人和波斯人的律令,王颁布的禁令和律例是不可更改的。”

16王便下令把但以理带来扔进狮子坑。他对但以理说:“愿你一直事奉的上帝拯救你!” 17有人搬来一块石头封住坑口,王用他和大臣的印加封,使惩办但以理的事不可更改。 18王回宫后,整夜禁食,拒绝娱乐,无法入睡。

19次日黎明,王起来匆忙赶往狮子坑, 20到了坑边,凄声呼喊但以理:“永活上帝的仆人但以理啊,你一直事奉的上帝有没有救你脱离狮子的口?” 21但以理对王说:“愿王万岁! 22我的上帝差遣天使封住了狮子的口,不让它们伤害我,因为我在上帝面前是清白的。王啊,我在你面前也没有过错。” 23王非常高兴,便命人把但以理从坑中拉上来。于是,但以理从坑中被拉了上来,他因为信靠他的上帝,身上毫无损伤。 24王下令把那些恶意控告但以理的人及其儿女妻子都带来,扔进狮子坑。他们还没到坑底,狮子便扑上去,咬碎了他们的骨头。

25后来,大流士王传谕境内的各族、各邦、各语种的人,说:“愿你们大享平安! 26我下令,我统治的国民都要敬畏但以理的上帝,

“因为祂是永活长存的上帝,

祂的国度永不灭亡,

祂的统治直到永远。

27祂庇护、拯救,

在天上地下行神迹奇事,

但以理脱离狮子的口。”

28因此,在大流士波斯塞鲁士执政期间,但以理凡事亨通。

Hindi Contemporary Version

दानिएल 6:1-28

दानिएल सिंहों की मांद में

1दारयावेश को यह अच्छा लगा कि वह 120 प्रधान नियुक्त करे, जो सारे राज्य में शासन करें, 2और इन सबके ऊपर तीन प्रशासक हों, जिनमें से एक दानिएल था. उन प्रधानों को प्रशासकों के प्रति उत्तरदायी बनाया गया ताकि राजा को किसी प्रकार की हानि न हो. 3दानिएल अपनी असाधारण योग्यताओं के कारण प्रशासकों और प्रधानों के बीच बहुत प्रसिद्ध था, इसलिये राजा ने उसे सारे राज्य का शासक बनाने की योजना बनाई. 4इस पर, प्रशासक और प्रधान सरकारी कार्यों में दानिएल के क्रियाकलापों के विरुद्ध दोष लगाने का आधार खोजने लगे, पर वे ऐसा न कर सके. उन्हें उसमें कोई भ्रष्टाचार की बात न मिली, क्योंकि दानिएल विश्वासयोग्य था और वह न तो भ्रष्टाचारी था और न ही वह किसी बात में असावधानी बरतता था. 5आखिर में, इन व्यक्तियों ने कहा, “उसके परमेश्वर के कानून के विषय को छोड़, हमें और किसी भी विषय में दानिएल के विरुद्ध दोष लगाने का आधार नहीं मिलेगा.”

6इसलिये ये प्रशासक और प्रधान एक दल के रूप में राजा के पास गये और उन्होंने कहा: “राजा दारयावेश, चिरंजीवी हों! 7राज्य के सब शाही प्रशासक, मुखिया, प्रधान, सलाहकार, और राज्यपाल इस बात पर सहमत हुए कि राजा एक राजाज्ञा निकाले और उस आज्ञा को पालन करने के लिये कहें कि अगले तीस दिनों तक कोई भी व्यक्ति महाराजा को छोड़ किसी और देवता या मानव प्राणी से प्रार्थना करे, तो वह सिंहों की मांद में डाल दिया जाए. 8हे महाराज, अब आप ऐसी आज्ञा दें और इसे लिखित में दे दें ताकि यह बदली न जा सके—मेदियों और फ़ारसियों के कानून के अनुसार जिसे रद्द नहीं किया जा सकता.” 9तब राजा दारयावेश ने उस आज्ञा को लिखित में कर दिया.

10जब दानिएल को मालूम हुआ कि ऐसी आज्ञा निकाली गई है, तो वह अपने घर जाकर ऊपर के कमरे में गया, जहां खिड़कियां येरूशलेम की ओर खुली रहती थी. दिन में तीन बार घुटना टेककर उसने अपने परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए प्रार्थना किया, जैसे कि वह पहले भी करता था. 11तब वे व्यक्ति एक दल के रूप में वहां गये और उन्होंने दानिएल को परमेश्वर से प्रार्थना करते और मदद मांगते हुए पाया. 12अतः वे राजा के पास गये और उसे उसके राजाज्ञा के बारे में कहने लगे: “क्या आपने ऐसी आज्ञा नहीं निकाली है कि अगले तीस दिनों तक कोई भी व्यक्ति महाराजा को छोड़ किसी और देवता या मानव प्राणी से प्रार्थना करे, तो उसे सिंहों की मांद में डाल दिया जाएगा?”

राजा ने उत्तर दिया, “यह आज्ञा तो है—जिसे मेदियों एवं फ़ारसियों के कानून के अनुसार रद्द नहीं किया जा सकता.”

13तब उन्होंने राजा से कहा, “दानिएल, जो यहूदाह से लाये गए बंधुआ लोगों में से एक है, हे महाराज, वह आपकी या आपके द्वारा निकाले गये लिखित आज्ञा की परवाह नहीं करता है. वह अभी भी दिन में तीन बार प्रार्थना करता है.” 14यह बात सुनकर राजा बहुत उदास हुआ; उसने दानिएल को बचाने का संकल्प कर लिया था और सूर्यास्त होने तक वह दानिएल को बचाने की हर कोशिश करता रहा.

15तब लोग एक दल के रूप में राजा दारयावेश के पास गये और उन्होंने उनसे कहा, “हे महाराज, आप यह बात याद रखें कि मेदिया और फ़ारसी कानून के अनुसार राजा के द्वारा दिया गया कोई भी फैसला या राजाज्ञा बदली नहीं जा सकती.”

16तब राजा ने आज्ञा दी, और वे दानिएल को लाकर उसे सिंहों की मांद में डाल दिये. राजा ने दानिएल से कहा, “तुम्हारा परमेश्वर, जिसकी सेवा तुम निष्ठापूर्वक करते हो, वही तुझे बचाएं!”

17एक पत्थर लाकर मांद के मुहाने पर रख दिया गया, और राजा ने अपने स्वयं की मुहरवाली अंगूठी और अपने प्रभावशाली लोगों की अंगूठियों से उस पर मुहर लगा दी, ताकि दानिएल की स्थिति में किसी भी प्रकार का बदलाव न किया जा सके. 18तब राजा अपने महल में लौट आया गया और उसने पूरी रात बिना कुछ खाएं और बिना किसी मनोरंजन के बिताया. और वह सो न सका.

19बड़े सुबह, राजा उठा और जल्दी से सिंहों की मांद पर गया. 20जब वह मांद के पास पहुंचा, तो उसने एक पीड़ा भरी आवाज में दानिएल को पुकारा, “हे दानिएल, जीवित परमेश्वर के सेवक, क्या तुम्हारे उस परमेश्वर ने तुम्हें सिंहों से बचाकर रखा है, जिसकी तुम निष्ठापूर्वक सेवा करते हो?”

21तब दानिएल ने उत्तर दिया, “हे राजा, आप चिरंजीवी हों! 22मेरे परमेश्वर ने अपना स्वर्गदूत भेजकर सिंहों के मुंह को बंद कर दिया. उन्होंने मेरी कुछ भी हानि नहीं की, क्योंकि मैं उसकी दृष्टि में निर्दोष पाया गया. और हे महाराज, आपके सामने भी मैंने कोई अपराध नहीं किया है.”

23तब राजा अति आनंदित हुआ और उसने आज्ञा दी कि दानिएल को मांद से बाहर निकाला जाए. और जब दानिएल को मांद से ऊपर खींचकर बाहर निकाला गया, तो उसमें किसी भी प्रकार का चोट का निशान नहीं पाया गया, क्योंकि उसने अपने परमेश्वर पर भरोसा रखा था.

24वे व्यक्ति, जिन्होंने दानिएल पर झूठा दोष लगाया था, वे राजा की आज्ञा पर लाये गए, और उन्हें उनकी पत्नियों और बच्चों समेत सिंहों के मांद में डाल दिया गया. और इसके पहले कि ये मांद के तल तक पहुंचें, सिंहों ने झपटकर उन्हें पकड़ लिया और हड्डियों समेत उनको चबा डाला.

25तब राजा दारयावेश ने सारी पृथ्वी में सब जाति और हर भाषा के लोगों को यह लिखा:

“आप सब बहुत उन्‍नति करें!

26“मैं यह आज्ञा देता हूं कि मेरे राज्य में हर जगह के लोग दानिएल के परमेश्वर का भय माने और उनका आदर करें.

“क्योंकि वही जीवित परमेश्वर हैं

और वह सदाकाल तक बने रहते हैं;

उनका राज्य कभी नाश नहीं होगा,

और उनका प्रभुत्व कभी समाप्‍त नहीं होगा.

27वह छुड़ाते हैं और वह बचाते हैं;

वह स्वर्ग और पृथ्वी पर

चिन्ह और चमत्कार दिखाते हैं.

उन्होंने दानिएल को

सिंहों की शक्ति से बचाया है.”

28इस प्रकार दानिएल, दारयावेश और फारस देश के कोरेश के शासनकाल में उन्‍नति करते गए.