传道书 2 – CCB & HCV

Chinese Contemporary Bible 2022 (Simplified)

传道书 2:1-26

1我心里想:“来吧,不妨试试享乐,好好享受!”唉!结果这也是虚空。 2我说:“欢笑只不过是一阵狂妄,享乐又有什么用!” 3于是,我决意用酒使自己快乐,在体验愚昧的同时仍然保持理智,直到我明白在短暂的人生岁月中做何事才有益。 4我大动工程,为自己建造房屋,栽种葡萄园; 5我为自己开垦花圃园囿,在其中种植各种果树; 6我为自己开凿池塘,用来浇灌茂林。 7我买了仆婢,又有生在家中的仆婢,拥有的牛羊远超过历来在耶路撒冷的任何人。 8我为自己积聚金银,搜罗列王和各省的奇珍异宝,得到世人所想望的男女歌优及许多妃嫔。 9这样,我便财势日增,超过耶路撒冷历来所有的人。然而,我仍然保持智慧。 10凡我眼睛爱看的、心里渴慕的,我都随心所欲,尽情享受。我的心从劳碌中得到欢乐,这是我劳碌所得的回报。 11然而,当我回顾双手成就的一切和所付的辛劳时,唉,却发现都是虚空,都是捕风;日光之下的一切都毫无益处。 12于是,我转念思考什么是智慧、狂妄和愚昧。其实以后接替君王的人除了重演历史之外,还能做什么呢? 13我领悟到智慧胜过愚昧,如同光明胜过黑暗。 14智者高瞻远瞩,愚人却在黑暗中摸索。但我知道两者都有同样的命运。 15于是,我想:“既然愚人的命运也将是我的命运,我有智慧又怎么样呢?”我只能说:“这也是虚空。” 16因为智者和愚人一样,不过被人记得一时,日后都会被遗忘。两者都难逃死亡。 17所以,我憎恶生命,因为在日光之下所做的一切都让我愁烦。唉!这一切都是虚空,都是捕风。 18我憎恶自己在日光之下劳碌得来的一切,因为这些必留给后人。 19谁知道后人是智者还是愚人呢?他却要接管我在日光之下用智慧辛劳经营的产业。这也是虚空。 20因此,我对自己在日光之下一切的劳碌感到绝望。 21因为一个人用智慧、知识和技能所得来的一切,却要留给不劳而获的人享用,这也是虚空,是极大的不幸! 22世人在日光之下劳心劳力,究竟得到什么呢? 23他们一生充满痛苦,劳碌中尽是愁烦,即使夜间心里也不安宁。这也是虚空。 24对人而言,没有什么比吃喝并享受劳碌之乐更好,我看这也是出自上帝的手。 25离了上帝,谁还能吃喝享受呢? 26上帝把智慧、知识和喜乐赐给祂喜悦的人,却让罪人忙于积攒财富,然后把他们的财富赐给祂喜悦的人。这也是虚空,也是捕风。

Hindi Contemporary Version

उद्बोधक 2:1-26

समृद्धि और सुख-विलास भी बेकार

1मैंने अपने आपसे कहा, “चलो, मैं आनंद के द्वारा तुम्हें परखूंगा.” इसलिये आनंदित और मगन हो जाओ. मगर मैंने यही पाया कि यह भी बेकार ही है. 2मैंने हंसी के बारे में कहा, “यह बावलापन है” और आनंद के बारे में, “इससे क्या मिला?” 3जब मेरा मन यह सोच रहा था कि किस प्रकार मेरी बुद्धि बनी रहे, मैंने अपने पूरे मन से इसके बारे में खोज कर डाली कि किस प्रकार दाखमधु से शरीर को बहलाया जा सकता है और किस प्रकार मूर्खता को काबू में किया जा सकता है, कि मैं यह समझ सकूं कि पृथ्वी पर मनुष्यों के लिए उनके छोटे से जीवन में क्या करना अच्छा है.

4मैंने अपने कामों को बढ़ाया: मैंने अपने लिए घरों को बनाया, मैंने अपने लिए अंगूर के बगीचे लगाए. 5मैंने बगीचे और फलों के बागों को बनाया और उनमें सब प्रकार के फलों के पेड़ लगाए. 6वनों में सिंचाई के लिए मैंने तालाब बनवाए ताकि उससे पेड़ बढ़ सकें. 7मैंने दास-दासी खरीदें जिनकी मेरे यहां ही संतानें भी पैदा हुईं. मैं बहुत से गाय-बैलों का स्वामी हो गया. जो मुझसे पहले थे उनसे कहीं अधिक मेरे गाय-बैल थे. 8मैंने अपने आपके लिए सोने, चांदी तथा राज्यों व राजाओं से धन इकट्ठा किया, गायक-गायिकाएं चुन लिए और उपपत्नियां भी रखीं जिससे पुरुषों को सुख मिलता है. 9मैं येरूशलेम में अपने से पहले वालों से बहुत अधिक महान हो गया. मेरी बुद्धि ने हमेशा ही मेरा साथ दिया.

10मेरी आंखों ने जिस किसी चीज़ की इच्छा की;

मैंने उन्हें उससे दूर न रखा और न अपने मन को किसी आनंद से;

क्योंकि मेरी उपलब्धियों में मेरी संतुष्टि थी,

और यही था मेरे परिश्रम का पुरुस्कार.

11इसलिये मैंने अपने द्वारा किए गए सभी कामों को,

और अपने द्वारा की गई मेहनत को नापा,

और यही पाया कि यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना था;

और धरती पर इसका कोई फायदा नहीं.

बुद्धि मूर्खता से बड़ी

12सो मैंने बुद्धि, बावलेपन

तथा मूर्खता के बारे में विचार किया.

राजा के बाद आनेवाला इसके अलावा और क्या कर सकता है?

केवल वह जो पहले से होता आया है.

13मैंने यह देख लिया कि बुद्धि मूर्खता से बेहतर है,

जैसे रोशनी अंधकार से.

14बुद्धिमान अपने मन की आंखों से व्यवहार करता है,

जबकि मूर्ख अंधकार में चलता है.

यह सब होने पर भी मैं जानता हूं

कि दोनों का अंतिम परिणाम एक ही है.

15मैंने मन में विचार किया,

जो दशा मूर्ख की है वही मेरी भी होगी.

तो मैं अधिक बुद्धिमान क्यों रहा?

“मैंने स्वयं को याद दिलाया,

यह भी बेकार ही है.”

16बुद्धिमान को हमेशा याद नहीं किया जाएगा जैसे मूर्ख को;

कुछ दिनों में ही वे भुला दिए जाएंगे.

बुद्धिमान की मृत्यु कैसे होती है? मूर्ख के समान ही न!

मेहनत की व्यर्थता

17इसलिये मुझे जीवन से घृणा हो गई क्योंकि धरती पर जो कुछ किया गया था वह मेरे लिए तकलीफ़ देनेवाला था; क्योंकि सब कुछ बेकार और हवा से झगड़ना था. 18इसलिये मैंने जो भी मेहनत इस धरती पर की थी उससे मुझे नफ़रत हो गई, क्योंकि इसे मुझे अपने बाद आनेवाले के लिए छोड़ना पड़ेगा. 19और यह किसे मालूम है कि वह बुद्धिमान होगा या मूर्ख. मगर वह उन सभी वस्तुओं का अधिकारी बन जाएगा जिनके लिए मैंने धरती पर बुद्धिमानी से मेहनत की. यह भी बेकार ही है. 20इसलिये धरती पर मेरे द्वारा की गई मेहनत के प्रतिफल से मुझे घोर निराशा हो गई. 21कभी एक व्यक्ति बुद्धि, ज्ञान और कुशलता के साथ मेहनत करता है और उसे हर एक वस्तु उस व्यक्ति के आनंद के लिए त्यागनी पड़ती है जिसने उसके लिए मेहनत ही नहीं की. यह भी बेकार और बहुत बुरा है. 22मनुष्य को अपनी सारी मेहनत और कामों से, जो वह धरती पर करता है, क्या मिलता है? 23वास्तव में सारे जीवन में उसकी पूरी मेहनत दुःखों और कष्टों से भरी होती है; यहां तक की रात में भी उसके मन को और दिमाग को आराम नहीं मिल पाता. यह भी बेकार ही है.

24मनुष्य के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं है कि वह खाए, पिए और खुद को विश्वास दिलाए कि उसकी मेहनत उपयोगी है. मैंने यह भी पाया है कि इसमें परमेश्वर का योगदान होता है, 25नहीं तो कौन परमेश्वर से अलग हो खा-पीकर सुखी रह सकता है? 26क्योंकि जो मनुष्य परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है, उसे परमेश्वर ने बुद्धि, ज्ञान और आनंद दिया है, मगर पापी को परमेश्वर ने इकट्ठा करने और बटोरने का काम दिया है सिर्फ इसलिये कि वह उस व्यक्ति को दे दे जो परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है. यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना है.