स्तोत्र 78:40-55 HCV

स्तोत्र 78:40-55

बंजर भूमि में कितनी ही बार उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया,

कितनी ही बार उन्होंने उजाड़ भूमि में उन्हें उदास किया!

बार-बार वे परीक्षा लेकर परमेश्वर को उकसाते रहे;

वे इस्राएल के पवित्र परमेश्वर को क्रोधित करते रहे.

वे परमेश्वर की सामर्थ्य को भूल गए,

जब परमेश्वर ने उन्हें अत्याचारी की अधीनता से छुड़ा लिया था.

जब परमेश्वर ने मिस्र देश में चमत्कार चिन्ह प्रदर्शित किए,

जब ज़ोअन प्रदेश में आश्चर्य कार्य किए थे.

परमेश्वर ने नदी को रक्त में बदल दिया;

वे जलधाराओं से जल पीने में असमर्थ हो गए.

परमेश्वर ने उन पर कुटकी के समूह भेजे, जो उन्हें निगल गए.

मेंढकों ने वहां विध्वंस कर डाला.

परमेश्वर ने उनकी उपज हासिल टिड्डों को,

तथा उनके उत्पाद अरबेह टिड्डियों को सौंप दिए.

उनकी द्राक्षा उपज ओलों से नष्ट कर दी गई,

तथा उनके गूलर-अंजीर पाले में नष्ट हो गए.

उनका पशु धन भी ओलों द्वारा नष्ट कर दिया गया,

तथा उनकी भेड़-बकरियों को बिजलियों द्वारा.

परमेश्वर का उत्तप्‍त क्रोध,

प्रकोप तथा आक्रोश उन पर टूट पड़ा,

ये सभी उनके विनाशक दूत थे.

परमेश्वर ने अपने प्रकोप का पथ तैयार किया था;

उन्होंने उन्हें मृत्यु से सुरक्षा प्रदान नहीं की

परंतु उन्हें महामारी को सौंप दिया.

मिस्र के सभी पहलौठों को परमेश्वर ने हत्या कर दी,

हाम के मण्डपों में पौरुष के प्रथम फलों का.

किंतु उन्होंने भेड़ के झुंड के समान अपनी प्रजा को बचाया;

बंजर भूमि में वह भेड़ का झुंड के समान उनकी अगुवाई करते रहे.

उनकी अगुवाई ने उन्हें सुरक्षा प्रदान की, फलस्वरूप वे अभय आगे बढ़ते गए;

जबकि उनके शत्रुओं को समुद्र ने समेट लिया.

यह सब करते हुए परमेश्वर उन्हें अपनी पवित्र भूमि की सीमा तक,

उस पर्वतीय भूमि तक ले आए जिस पर उनके दायें हाथ ने अपने अधीन किया था.

तब उन्होंने जनताओं को वहां से काटकर अलग कर दिया

और उनकी भूमि अपनी प्रजा में भाग स्वरूप बाट दिया;

इस्राएल के समस्त गोत्रों को उनके आवास प्रदान करके उन्हें वहां बसा दिया.

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