स्तोत्र 55:1-11 HCV

स्तोत्र 55:1-11

स्तोत्र 55

संगीत निर्देशक के लिये. तार वाद्यों की संगत के साथ. दावीद की मसकील55:0 शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द गीत रचना

परमेश्वर, मेरी प्रार्थना पर ध्यान दीजिए,

मेरी गिड़गिड़ाहट को न ठुकराईए;

मेरी गिड़गिड़ाहट सुनकर, मुझे उत्तर दीजिए.

मेरे विचारों ने मुझे व्याकुल कर दिया है.

शत्रुओं की ललकार ने

मुझे निराश कर छोड़ा है;

उन्हीं के द्वारा मुझ पर कष्ट उण्डेले गए हैं

और वे क्रोध में मुझे खरीखोटी सुना रहे हैं.

भीतर ही भीतर मेरा हृदय वेदना में भर रहा है;

मुझमें मृत्यु का भय समा गया है.

भय और कंपकंपी ने मुझे भयभीत कर लिया है;

मैं आतंक से घिर चुका हूं.

तब मैं विचार करने लगा, “कैसा होता यदि कबूतर समान मेरे पंख होते!

और मैं उड़कर दूर शांति में विश्राम कर पाता.

हां, मैं उड़कर दूर चला जाता,

और निर्जन प्रदेश में निवास बना लेता.

मैं बवंडर और आंधी से दूर,

अपने आश्रय-स्थल को लौटने की शीघ्रता करता.”

प्रभु, दुष्टों के मध्य फूट डाल दीजिए, उनकी भाषा में गड़बड़ी कर दीजिए,

यह स्पष्ट ही है कि नगर में हिंसा और कलह फूट पड़े हैं.

दिन-रात वे शहरपनाह पर छिप-छिप कर घूमते रहते हैं;

नगर में वैमनस्य और अधर्म का साम्राज्य है.

वहां विनाशकारी शक्तियां प्रबल हो रही हैं;

गलियों में धमकियां और छल समाप्‍त ही नहीं होते.

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