स्तोत्र 34:11-22
मेरे बालको, निकट आकर ध्यान से सुनो;
मैं तुम्हें याहवेह के प्रति श्रद्धा सिखाऊंगा.
तुममें से जिस किसी को जीवन के मूल्य का बोध है
और जिसे सुखद दीर्घायु की आकांक्षा है,
वह अपनी जीभ को बुरा बोलने से
तथा अपने होंठों को झूठ से मुक्त रखे;
बुराई में रुचि लेना छोड़कर परोपकार करे;
मेल-मिलाप का यत्न करे और इसी के लिए पीछा करे.
क्योंकि याहवेह की दृष्टि धर्मियों पर
तथा उनके कान उनकी विनती पर लगे रहते हैं,
परंतु याहवेह बुराई करनेवालों से दूर रहते हैं;
कि उनका नाम ही पृथ्वी से मिटा डालें.
धर्मी की पुकार को याहवेह अवश्य सुनते हैं;
वह उन्हें उनके संकट से छुड़ाते हैं.
याहवेह टूटे हृदय के निकट होते हैं,
वह उन्हें छुड़ा लेते हैं, जो आत्मा में पीसे हुए है.
यह संभव है कि धर्मी पर अनेक-अनेक विपत्तियां आ पड़ें,
किंतु याहवेह उसे उन सभी से बचा लेते हैं;
वह उसकी हर एक हड्डी को सुरक्षित रखते हैं,
उनमें से एक भी नहीं टूटती.
दुष्टता ही दुष्ट की मृत्यु का कारण होती है;
धर्मी के शत्रु दंडित किए जाएंगे.
याहवेह अपने सेवकों को छुड़ा लेते हैं;
जो कोई उनमें आश्रय लेता है, वह दोषी घोषित नहीं किया जाएगा.