स्तोत्र 33:12-22 HCV

स्तोत्र 33:12-22

धन्य है वह राष्ट्र, जिसके परमेश्वर याहवेह हैं,

वह प्रजा, जिसे उन्होंने अपना निज भाग चुन लिया.

याहवेह स्वर्ग से पृथ्वी पर दृष्टि करते हैं,

वह समस्त मनुष्यों को निहारते हैं;

वह अपने आवास से पृथ्वी के

समस्त निवासियों का निरीक्षण करते रहते हैं.

उन्हीं ने सब मनुष्यों के हृदय की रचना की,

वही उनके सारे कार्यों को परखते रहते हैं.

किसी भी राजा का उद्धार उसकी सेना की सामर्थ्य से नहीं होता;

किसी भी शूर योद्धा का शौर्य उसको नहीं बचाता.

विजय के लिए अश्व पर भरोसा करना निरर्थक है;

वह कितना भी शक्तिशाली हो, उद्धार का कारण नहीं हो सकता.

सुनो, याहवेह की दृष्टि उन सब पर स्थिर रहती है,

जो उनके श्रद्धालु होते हैं, जिनका भरोसा उनके करुणा-प्रेम में बना रहता है,

कि वही उन्हें मृत्यु से उद्धार देकर

अकाल में जीवित रखें.

हम धैर्यपूर्वक याहवेह पर भरोसा रखे हुए हैं;

वही हमारे सहायक एवं ढाल हैं.

उनमें ही हमारा हृदय आनंदित रहता है,

उनकी पवित्र महिमा में ही हमें भरोसा है.

याहवेह, आपका करुणा-प्रेम33:22 करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द के अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये सब शामिल हैं हम पर बना रहे,

हमने आप पर ही भरोसा रखा है.

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