स्तोत्र 106:40-48 HCV

स्तोत्र 106:40-48

ये सभी वे कार्य थे, जिनके कारण याहवेह अपने ही लोगों से क्रोधित हो गए

और उनको अपना निज भाग उनके लिए घृणास्पद हो गया.

परमेश्वर ने उन्हें अन्य राष्ट्रों के अधीन कर दिया,

उनके विरोधी ही उन पर शासन करने लगे.

उनके शत्रु उन पर अधिकार करते रहे

और उन्हें उनकी शक्ति के सामने समर्पण करना पड़ा.

कितनी ही बार उन्होंने उन्हें मुक्त किया,

किंतु वे थे विद्रोह करने पर ही अटल,

तब वे अपने ही अपराध में नष्ट होते चले गए.

किंतु उनका संकट परमेश्वर की दृष्टि में था.

तब उन्होंने उनकी पुकार सुनी;

उनके कल्याण के निमित्त परमेश्वर ने अपनी वाचा का स्मरण किया,

और अपने करुणा-प्रेम की परिणामता में परमेश्वर ने उन पर कृपा की.

परमेश्वर ने उनके प्रति, जिन्होंने उन्हें बंदी बना रखा था,

उनके हृदय में कृपाभाव उत्पन्‍न किया.

याहवेह, हमारे परमेश्वर, हमारी रक्षा कीजिए,

और हमें विभिन्‍न राष्ट्रों में से एकत्र कर लीजिए,

कि हम आपके पवित्र नाम के प्रति आभार व्यक्त कर सकें

और आपका स्तवन हमारे गर्व का विषय बन जाए.

आदि से अनंत काल तक धन्य हैं.

याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर,

इस पर सारी प्रजा कहे, “आमेन,”

याहवेह की स्तुति हो.

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