स्तोत्र 104:31-35 HCV

स्तोत्र 104:31-35

याहवेह का तेज सदा-सर्वदा स्थिर रहे;

याहवेह की कृतियां उन्हें प्रफुल्लित करती रहें.

जब वह पृथ्वी की ओर दृष्टिपात करते हैं, वह थरथरा उठती है,

वह पर्वतों का स्पर्श मात्र करते हैं और उनसे धुआं उठने लगता है.

मैं आजीवन याहवेह का गुणगान करता रहूंगा;

जब तक मेरा अस्तित्व है, मैं अपने परमेश्वर का स्तवन गान करूंगा.

मेरा मनन-चिन्तन उनको प्रसन्‍न करनेवाला हो,

क्योंकि याहवेह मेरे परम आनंद का उगम हैं.

पृथ्वी से पापी समाप्‍त हो जाएं,

दुष्ट फिर देखे न जाएं.

मेरे प्राण, याहवेह का स्तवन करो.

याहवेह का स्तवन हो.

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