सूक्ति संग्रह 17:15-24 HCV

सूक्ति संग्रह 17:15-24

याहवेह की दृष्टि में दोनों ही घृणित हैं;

वह, जो दोषी को छोड़ देता है तथा जो धर्मी को दोषी घोषित कर देता है.

ज्ञानवर्धन के लिए किसी मूर्ख के धन का क्या लाभ?

जब उसे ज्ञान का मूल्य ही ज्ञात नहीं है.

मित्र वह है, जिसका प्रेम चिरस्थायी रहता है,

और भाई का अस्तित्व विषम परिस्थिति में सहायता के लिए ही होता है.

वह मूर्ख ही होता है, जो हाथ पर हाथ मारकर शपथ करता

तथा अपने पड़ोसी के लिए आर्थिक ज़मानत देता है.

जो कोई झगड़े से प्यार रखता है, वह पाप से प्यार करता है;

जो भी एक ऊंचा फाटक बनाता है विनाश को आमंत्रित करता है.

कुटिल प्रवृत्ति का व्यक्ति अवश्य ही विपत्ति में जा पड़ेगा;

वैसे ही वह भी, जो झूठ बोलने वाला है.

वह, जो मन्दबुद्धि पुत्र को जन्म देता है, अपने ही ऊपर शोक ले आता है;

मूर्ख के पिता के समक्ष आनंद का कोई विषय नहीं रह जाता.

आनंदित हृदय स्वास्थ्य देनेवाली औषधि है,

किंतु टूटा दिल अस्थियों को तक सुखा देता है.

दुष्ट गुप्‍त रूप से घूस लेता रहता है,

कि न्याय की नीति को कुटिल कर दे.

बुद्धिमान सदैव ज्ञान की ही खोज करता रहता है,

किंतु मूर्ख का मस्तिष्क विचलित होकर सर्वत्र भटकता रहता है.

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