सूक्ति संग्रह 16:8-17
सीमित संसाधनों के साथ धर्मी का जीवन
अनुचित रूप से अर्जित अपार संपत्ति से उत्तम है.
मानवीय मस्तिष्क अपने लिए उपयुक्त मार्ग निर्धारित कर लेता है,
किंतु उसके पैरों का निर्धारण याहवेह ही करते हैं.
राजा के मुख द्वारा घोषित निर्णय दिव्य वाणी के समान होते हैं,
तब उसके निर्णयों में न्याय-विसंगति अनुपयुक्त है.
शुद्ध माप याहवेह द्वारा निर्धारित होते हैं;
सभी प्रकार के माप पर उन्हीं की स्वीकृति है.
बुराई राजा पर शोभा नहीं देती,
क्योंकि सिंहासन की स्थिरता धर्म पर आधारित है.
राजाओं को न्यायपूर्ण वाणी भाती है;
जो जन सत्य बोलता है, वह उसे ही मान देता है.
राजा का कोप मृत्यु के दूत के समान होता है,
किंतु ज्ञानवान व्यक्ति इस कोप को ठंडा कर देता है.
राजा के मुखमंडल का प्रकाश जीवनदान है;
उसकी कृपादृष्टि उन मेघों के समान है, जो वसन्त ऋतु की वृष्टि लेकर आते हैं.
स्वर्ण की अपेक्षा ज्ञान को प्राप्त करना कितना अधिक उत्तम है,
और बुद्धिमत्ता की उपलब्धि चांदी पाने से.
धर्मी का राजमार्ग कुटिलता को देखे बिना उसे दूर छोड़ता हुआ आगे बढ़ जाता है.
जो अपने चालचलन के प्रति न्यायी रहता है, अपने जीवन की रक्षा ही करता है.