विलापगीत 2:7-22
हमारे प्रभु को अब अपनी ही वेदी से घृणा हो गई है
और उन्होंने पवित्र स्थान का त्याग कर दिया है.
राजमहल की दीवारें
अब शत्रु के अधीन हो गई है;
याहवेह के भवन में कोलाहल उठ रहा है
मानो यह कोई निर्धारित उत्सव-अवसर है.
यह याहवेह का संकल्प था कि
ज़ियोन की पुत्री की दीवारें तोड़ी जाएं.
मापक डोरी विस्तीर्ण कर विनाश के लिए
उन्होंने अपने हाथों को न रोका.
परिणामस्वरूप किलेबंदी तथा दीवार विलाप करती रही;
वे वेदना-विलाप में एकजुट हो गईं.
उसके प्रवेश द्वार भूमि में धंस गए;
उन्होंने उसकी सुरक्षा छड़ों को तोड़कर नष्ट कर दिया है.
उसके राजा एवं शासक अब राष्ट्रों में हैं,
नियम-व्यवस्था अब शून्य रह गई है,
अब उसके भविष्यवक्ताओं को याहवेह की
ओर से प्रकाशन प्राप्त ही नहीं होता.
ज़ियोन की पुत्री के पूर्वज
भूमि पर मौन बैठे हुए हैं;
उन्होंने अपने सिर पर धूल डाल रखी है
तथा उन्होंने टाट पहन ली है.
येरूशलेम की युवतियों के
सिर भूमि की ओर झुके हैं.
रोते-रोते मेरे नेत्र अपनी ज्योति खो चुके हैं,
मेरे उदर में मंथन हो रहा है;
मेरा पित्त भूमि पर बिखरा पड़ा है;
इसके पीछे मात्र एक ही कारण है; मेरी प्रजा की पुत्री का सर्वनाश,
नगर की गलियों में
मूर्च्छित पड़े हुए शिशु एवं बालक.
वे अपनी-अपनी माताओं के समक्ष रोकर कह रहे हैं,
“कहां है हमारा भोजन, कहां है हमारा द्राक्षारस?”
वे नगर की गली में
घायल योद्धा के समान पड़े हैं,
अपनी-अपनी माताओं की गोद में
पड़े हुए उनका जीवन प्राण छोड़ रहे है.
येरूशलेम की पुत्री,
क्या कहूं मैं तुमसे,
किससे करूं मैं तुम्हारी तुलना?
ज़ियोन की कुंवारी कन्या,
तुम्हारी सांत्वना के लक्ष्य से
किससे करूं मैं तुम्हारा साम्य?
तथ्य यह है कि तुम्हारा विध्वंस महासागर के सदृश व्यापक है.
अब कौन तुम्हें चंगा कर सकता है?
तुम्हारे भविष्यवक्ताओं ने तुम्हारे लिए व्यर्थ
तथा झूठा प्रकाशन देखा है;
उन्होंने तुम्हारी पापिष्ठता को प्रकाशित नहीं किया,
कि तुम्हारी समृद्धि पुनःस्थापित हो जाए.
किंतु वे तुम्हारे संतोष के लिए ऐसे प्रकाशन प्रस्तुत करते रहें,
जो व्यर्थ एवं भ्रामक थे.
वे सब जो इस ओर से निकलते हैं
तुम्हारी स्थिति को देखकर उपहास करते हुए;
येरूशलेम की पुत्री पर
सिर हिलाते तथा विचित्र ध्वनि निकालते हैं:
वे विचार करते हैं, “क्या यही है वह नगरी,
जो परम सौन्दर्यवती
तथा समस्त पृथ्वी का उल्लास थी?”
तुम्हारे सभी शत्रु तुम्हारे लिए अपमानपूर्ण शब्दों का प्रयोग करते हुए;
विचित्र ध्वनियों के साथ दांत पीसते हुए उच्च स्वर में घोषणा करते हैं,
“देखो, देखो! हमने उसे निगल लिया है! आह, कितनी प्रतीक्षा की है हमने इस दिन की;
निश्चयतः आज वह दिन आ गया है आज वह हमारी दृष्टि के समक्ष है.”
याहवेह ने अपने लक्ष्य की पूर्ति कर ही ली है;
उन्होंने अपनी पूर्वघोषणा की निष्पत्ति कर दिखाई;
वह घोषणा, जो उन्होंने दीर्घ काल पूर्व की थी.
जिस रीति से उन्होंने तुम्हें फेंक दिया उसमें थोड़ी भी करुणा न थी,
उन्होंने शत्रुओं के सामर्थ्य को ऐसा विकसित कर दिया,
कि शत्रु तुम्हारी स्थिति पर उल्लसित हो रहे हैं.
ज़ियोन की पुत्री की दीवार
उच्च स्वर में अपने प्रभु की दोहाई दो.
दिन और रात्रि
अपने अश्रुप्रवाह को उग्र जलधारा-सदृश
प्रवाहित करती रहो;
स्वयं को कोई राहत न दो,
और न तुम्हारी आंखों को आराम.
उठो, रात्रि में दोहाई दो,
रात्रि प्रहर प्रारंभ होते ही;
जल-सदृश उंडेल दो अपना हृदय
अपने प्रभु की उपस्थिति में.
अपनी संतान के कल्याण के लिए
अपने हाथ उनकी ओर बढ़ाओ,
उस संतान के लिए, जो भूख से
हर एक गली के मोड़ पर मूर्छित हो रही है.
“याहवेह, ध्यान से देखकर विचार कीजिए:
कौन है वह, जिसके साथ आपने इस प्रकार का व्यवहार किया है?
क्या यह सुसंगत है कि स्त्रियां अपने ही गर्भ के फल को आहार बनाएं,
जिनका उन्होंने स्वयं ही पालन पोषण किया है?
क्या यह उपयुक्त है कि पुरोहितों एवं भविष्यवक्ताओं का संहार
हमारे प्रभु के पवित्र स्थान में किया जाए?
“सड़क की धूलि में
युवाओं एवं वृद्धों के शव पड़े हुए हैं;
मेरे युवक, युवतियों का संहार
तलवार से किया गया है.
अपने कोप-दिवस में
आपने उनका निर्दयतापूर्वक संहार कर डाला है.
“आपने तो मेरे आतंकों का आह्वान चारों ओर से इस ढंग से किया,
मानो आप इन्हें किसी उत्सव का आमंत्रण दे रहे हैं.
यह सब याहवेह के कोप के दिन हुआ है,
इसमें कोई भी बचकर शेष न रह सका;
ये वे सब थे, जिनका आपने अपनी गोद में रखकर पालन पोषण किया था,
मेरे शत्रुओं ने उनका सर्वनाश कर दिया है.”
विलापगीत 3:1-39
मैं वह व्यक्ति हूं,
जिसने याहवेह के कोप-दण्ड में पीड़ा का साक्षात अनुभव किया है.
उन्होंने हकालते हुए मुझे घोर अंधकार में डाल दिया है
कहीं थोड़ा भी प्रकाश दिखाई नहीं देता;
निश्चयतः बार-बार, सारे दिन
उनका कठोर हाथ मेरे विरुद्ध सक्रिय बना रहता है.
मेरा मांस तथा मेरी त्वचा गलते जा रहे हैं
और उन्होंने मेरी अस्थियों को तोड़ दिया है.
उन्होंने मुझे पकड़कर कष्ट
एवं कड़वाहट में लपेट डाला है.
उन्होंने मुझे इस प्रकार अंधकार में रहने के लिए छोड़ दिया है
मानो मैं दीर्घ काल से मृत हूं.
उन्होंने मेरे आस-पास दीवार खड़ी कर दी है, कि मैं बचकर पलायन न कर सकूं;
उन्होंने मुझे भारी बेड़ियों में बांध रखा है.
मैं सहायता की दोहाई अवश्य देता हूं,
किंतु वह मेरी पुकार को अवरुद्ध कर देते हैं.
उन्होंने मेरे मार्गों को पत्थर लगाकर बाधित कर दिया है;
उन्होंने मेरे मार्गों को विकृत बना दिया है.
वह एक ऐसा रीछ है, ऐसा सिंह है,
जो मेरे लिए घात लगाए हुए बैठा है,
मुझे भटका कर मुझे टुकड़े-टुकड़े कर डाला
और उसने मुझे निस्सहाय बना छोड़ा है.
उन्होंने अपना धनुष चढ़ाया
तथा मुझे अपने बाणों का लक्ष्य बना लिया.
अपने तरकश से बाण लेकर
उन्होंने उन बाणों से मेरा हृदय बेध दिया.
सभी के लिए अब तो मैं उपहास पात्र हूं;
सारे दिन उनके व्यंग्य-बाण मुझ पर छोड़े जाते हैं.
उन्होंने मुझे कड़वाहट से भर दिया है
उन्होंने मुझे नागदौने से सन्तृप्त कर रखा है.
उन्होंने मुझे कंकड़ों पर दांत चलाने के लिए विवश कर दिया है;
मुझे भस्म के ढेर में जा छिपने के लिए विवश कर दिया है.
शांति ने मेरी आत्मा का साथ छोड़ दिया है;
मुझे तो स्मरण ही नहीं रहा कि सुख-आनन्द क्या होता है.
इसलिये मुझे यही कहना पड़ रहा है,
“न मुझमें धैर्य शेष रहा है और न ही याहवेह से कोई आशा.”
स्मरण कीजिए मेरी पीड़ा और मेरी भटकन,
वह नागदौन तथा वह कड़वाहट.
मेरी आत्मा को इसका स्मरण आता रहता है,
मेरा मनोबल शून्य हुआ जा रहा है.
मेरी आशा मात्र इस स्मृति के
आधार पर जीवित है:
याहवेह का करुणा-प्रेम3:22 करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द का अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये सब शामिल हैं, के ही कारण हम भस्म नही होते!
कभी भी उनकी कृपा का ह्रास नहीं होता.
प्रति प्रातः वे नए पाए जाते हैं;
महान है आपकी विश्वासयोग्यता.
मेरी आत्मा इस तथ्य की पुष्टि करती है, “याहवेह मेरा अंश हैं;
इसलिये उनमें मेरी आशा रखूंगा.”
याहवेह के प्रिय पात्र वे हैं, जो उनके आश्रित हैं,
वे, जो उनके खोजी हैं;
उपयुक्त यही होता है कि हम धीरतापूर्वक
याहवेह द्वारा उद्धार की प्रतीक्षा करें.
मनुष्य के लिए हितकर यही है
कि वह आरंभ ही से अपना जूआ उठाए.
वह एकाकी हो शांतिपूर्वक इसे स्वीकार कर ले,
जब कभी यह उस पर आ पड़ता है.
वह अपना मुख धूलि पर ही रहने दे—
आशा कभी मृत नहीं होती.
वह अपना गाल उसे प्रस्तुत कर दे, जो उस प्रहार के लिए तैयार है,
वह समस्त अपमान स्वीकार कर ले.
प्रभु का परित्याग
चिरस्थायी नहीं हुआ करता.
यद्यपि वह पीड़ा के कारण तो हो जाते हैं, किंतु करुणा का सागर भी तो वही हैं,
क्योंकि अथाह होता है उनका करुणा-प्रेम.
पीड़ा देना उनका सुख नहीं होता
न ही मनुष्यों को यातना देना उनका आनंद होता है.
पृथ्वी के समस्त
बंदियों का दमन,
परम प्रधान की उपस्थिति
में न्याय-वंचना,
किसी की न्याय-दोहाई में
की गई विकृति में याहवेह का समर्थन कदापि नहीं होता?
यदि स्वयं प्रभु ने कोई घोषणा न की हो,
तो किसमें यह सामर्थ्य है, कि जो कुछ उसने कहा है, वह पूरा होगा?
क्या यह तथ्य नहीं कि अनुकूल अथवा प्रतिकूल,
जो कुछ घटित होता है, वह परम प्रधान के बोलने के द्वारा ही होता है?
भला कोई जीवित मनुष्य
अपने पापों के दंड के लिए परिवाद कैसे कर सकता है?