उद्बोधक 7:1-29, उद्बोधक 8:1-17, उद्बोधक 9:1-12 HCV

उद्बोधक 7:1-29

बुद्धि और मूर्खता के बीच का अंतर

सम्मानित होना इत्र से कहीं ज्यादा बेहतर है,

और मृत्यु के दिन से बेहतर है किसी व्यक्ति के जन्म का दिन.

शोक के घर में जाना

भोज के घर में जाने से कहीं ज्यादा अच्छा है,

क्योंकि हर एक मनुष्य का अंत यही है;

और जीवित इस पर ध्यान दें.

शोक करना हंसने से अच्छा है,

क्योंकि हो सकता है कि चेहरा तो उदास हो मगर हृदय आनंदित.

बुद्धिमान का हृदय तो शोक करनेवालों के घर में होता है,

मगर निर्बुद्धियों का हृदय भोज के घर में ही होता है.

एक बुद्धिमान की फटकार सुनना

मूर्खों के गीतों को सुनने से बेहतर है.

मूर्खों की हंसी किसी

बर्तन के नीचे कांटों के जलने की आवाज के समान होती है.

और यह भी सिर्फ बेकार ही है.

अत्याचार बुद्धिमान को मूर्ख बना देता है

और घूस हृदय को भ्रष्‍ट कर देती है.

किसी काम का अंत उसकी शुरुआत से बेहतर है,

और धैर्य बेहतर है. घमण्ड से.

क्रोध करने में जल्दबाजी न करना,

क्योंकि क्रोध निर्बुद्धियों के हृदय में रहता है.

तुम्हारा यह कहना न हो, “बीता हुआ समय आज से बेहतर क्यों था?”

क्योंकि इस बारे में तुम्हारा यह कहना बुद्धि द्वारा नहीं है.

बुद्धि के साथ मीरास पाना सबसे अच्छा है,

और उनके लिए यह एक फायदा है जो जीवित हैं.

बुद्धि की सुरक्षा

वैसी ही है जैसे धन की सुरक्षा,

मगर ज्ञान का फायदा यह है:

कि बुद्धि बुद्धिमान को जीवित रखती है.

परमेश्वर के कामों पर मनन करो:

क्योंकि वह ही इसके योग्य हैं

कि टेढ़े को सीधा कर सकें.

भरपूरी के दिनों में तो खुश रहो;

मगर दुःख के दिनों में विचार करो:

दोनों ही परमेश्वर ने बनाए हैं,

जिससे मनुष्य को यह मालूम हो कि उसके बाद क्या होगा.

अपने बेकार के जीवन में मैंने हर एक चीज़ देखी:

धर्मी अपनी धार्मिकता में ही खत्म हो जाता है,

किंतु जब दुष्टता करता है तब अपनी उम्र बढ़ाता है.

बहुत धर्मी न होना,

और न ही बहुत बुद्धिमान बनना.

इस प्रकार तुम अपना ही विनाश क्यों करो?

बहुत दुष्ट न होना,

और न ही मूर्ख बनना.

क्योंकि समय से पहले तुम्हारी मृत्यु क्यों हो?

अच्छा होगा कि तुम एक चीज़ पर अधिकार कर लो

और अपने दूसरे हाथ को भी आराम न करने दो.

क्योंकि परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और भय रखनेवाला व्यक्ति ही ये दोनों काम कर पाएगा.

बुद्धिमान के लिए बुद्धि नगर के

दस शासकों से भी बलवान होती है.

पृथ्वी पर एक व्यक्ति भी ऐसा धर्मी नहीं है,

जो अच्छे काम ही करता हो और पाप न करता हो.

लोगों की बातों पर ध्यान न देना,

तो तुम अपने सेवक को तुम्हारी निंदा करते नहीं सुनोगे.

क्योंकि तुम्हें मालूम होगा

कि ठीक इसी तरह तुम भी बहुतों की निंदा कर चुके हो.

इन सभी कामों की छानबीन मैंने बुद्धि द्वारा की और मैंने कहा,

“मैं बुद्धिमान बनूंगा,” 

मगर यह मुझसे बहुत दूर थी.

जो कुछ है वह हमारी बुद्धि से परे है. यह गहरा है, बहुत ही गहरा.

उसकी थाह कौन पाएगा?

मैंने अपने हृदय से यह मालूम करने की कोशिश की

कि बुद्धि और ज्ञान क्या हैं

और दुष्ट की मूर्खता पता करूं

और मूर्खता जो पागलपन ही है.

मुझे यह मालूम हुआ कि एक स्त्री जिसका हृदय घात लगाए रहता है,

और उसके हाथ बेड़ियां डालते हैं वह मृत्यु से भी कड़वी है.

उस स्त्री से वही व्यक्ति सुरक्षित बच निकलता है जो परमेश्वर के सामने अच्छा है,

मगर पापी व्यक्ति उसका शिकार बन जाता है.

दार्शनिक कहता है, “देखो!” मुझे यह मालूम हुआ:

“मैंने एक चीज़ से दूसरी को मिलाया, कि इसके बारे में मालूम कर सकूं,

जिसकी मैं अब तक खोज कर रहा हूं

मगर वह मुझे नहीं मिली है.

मैंने हज़ार पुरुष तो धर्मी पाए,

मगर एक भी स्त्री नहीं!

मगर मुझे यह ज़रूर मालूम हुआ:

परमेश्वर ने तो मनुष्यों को धर्मी होने के लिए रचा है,

मगर वे अपने ही बनाए हुए निचले रास्ते पर बढ़ने लगे.”

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उद्बोधक 8:1-17

कौन बुद्धिमान के समान है?

किसे इस बात का मतलब मालूम है?

बुद्धि से बुद्धिमान का चेहरा चमक जाता है.

राजाओं की आज्ञा का पालन

दार्शनिक कहता है, परमेश्वर के सामने ली गई शपथ के कारण राजा की आज्ञा का पालन करो. उनके सामने से जाने में जल्दबाजी न करना और बुरी बातों पर हठ न करना, क्योंकि राजा वही करेंगे जो उनकी नज़रों में सही होगा. राजा की बातों में तो अधिकार होता है, उन्हें कौन कहेगा, “आप क्या कर रहे हैं?”

जो व्यक्ति आज्ञा का पालन करता है, बुरा उसका भी न होगा,

क्योंकि बुद्धिमान हृदय को सही समय और सही तरीका मालूम होता है.

क्योंकि हर एक खुशी के लिए सही समय और तरीका होता है,

फिर भी एक व्यक्ति पर भारी संकट आ ही जाता है.

अगर किसी व्यक्ति को यह ही मालूम नहीं है कि क्या होगा,

तो कौन उसे बता सकता है कि क्या होगा?

वायु को रोकने का अधिकार किसके पास है?

और मृत्यु के दिन पर अधिकार कौन रखता है?

युद्ध के समय छुट्टी नहीं होती,

और जो बुराई करते हैं वे इसके प्रभाव से कैसे बचेंगे.

यह सब देख मैंने अपने हृदय को सूरज के नीचे किए जा रहे हर एक काम पर लगाया जब एक मनुष्य दूसरे मनुष्य की बुराई के लिए उसके अधिकार का इस्तेमाल करता है. सो मैंने दुष्टों को गाड़े जाते देखा. वे पवित्र स्थान में आते जाते थे. किंतु जहां वे ऐसा करते थे जल्द ही उस नगर ने उन्हें भुला दिया. यह भी बेकार ही है.

बुरे काम के दंड की आज्ञा जल्दबाजी में नहीं दी जाती, इसलिये मनुष्य का हृदय बुराई करने में हमेशा लगा रहता है, चाहे पापी हज़ार बार बुरा करें और अपने जीवन को बढ़ाते रहें, मगर मुझे मालूम है कि जिनमें परमेश्वर के लिए श्रद्धा और भय की भावना है उनका भला ही होगा, क्योंकि उनमें परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और भय की भावना हैं. मगर दुष्ट के साथ अच्छा न होगा और न ही वह परछाई के समान अपने सारे जीवन को बड़ा कर सकेगा, क्योंकि उसमें परमेश्वर के लिए श्रद्धा और भय की भावना नहीं है.

पृथ्वी पर एक और बात बेकार होती है: धर्मियों के साथ दुष्टों द्वारा किए गए कामों के अनुसार घटता है और दुष्टों के साथ धर्मियों द्वारा किए गए कामों के अनुसार. मैंने कहा कि यह भी बेकार ही है. सो मैं आनंद की तारीफ़ करता हूं, सूरज के नीचे मनुष्य के लिए इससे अच्छा कुछ नहीं है कि वह खाए-पिए और खुश रहे क्योंकि सूरज के नीचे परमेश्वर द्वारा दिए गए उसके जीवन भर में उसकी मेहनत के साथ यह हमेशा रहेगा.

जब मैंने अपने हृदय को बुद्धि के और पृथ्वी पर के कामों के बारे में मालूम करने के लिए लगाया (हालांकि एक व्यक्ति को दिन और रात नहीं सोना चाहिए). और मैंने परमेश्वर के हर एक काम को देखा, तब मुझे मालूम हुआ कि सूरज के नीचे किया जा रहा हर एक काम मनुष्य नहीं समझ सकता. जबकि मनुष्य बहुत मेहनत करे फिर भी उसे यह मालूम न होगा और चाहे बुद्धिमान का यह कहना हो कि, मुझे मालूम है, फिर भी वह इसे मालूम नहीं कर सकता.

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उद्बोधक 9:1-12

सभी मनुष्य मृत्यु के अधीन

मैंने सभी कामों में अपना मन लगाया और यह मतलब निकाला कि धर्मी, बुद्धिमान और उनके सारे काम परमेश्वर के हाथ में हैं. मनुष्य को यह मालूम नहीं होता कि उसके सामने क्या होगा; प्रेम या नफ़रत. यह सभी के लिए बराबर है. धर्मी और दुष्ट, भले और बुरे, शुद्ध और अशुद्ध, जो बलि चढ़ाता है और जो बलि नहीं चढ़ाता, सभी का अंत एक समान है.

जिस तरह एक भला व्यक्ति है,

उसी तरह एक पापी भी है;

और जिस तरह एक शपथ खानेवाला है,

उसी तरह वह व्यक्ति है जिसके सामने शपथ खाना भय की बात है.

सूरज के नीचे किए जा रहे हर एक काम में मैंने यही बुराई देखी कि सभी मनुष्यों का एक ही अंत है. मनुष्यों के हृदय बुराई से भरे हैं और उनके पूरे जीवन में पागलपन उनके हृदयों में भरा रहता है. इसके बाद उनकी मृत्यु हो जाती है. जो जीवित है उसके लिए आशा है क्योंकि निश्चय ही मरे हुए शेर से जीवित कुत्ता ज्यादा अच्छा है.

जीवितों को यह मालूम होता है कि उनकी मृत्यु ज़रूर होगी,

मगर मरे हुओं को कुछ भी मालूम नहीं होता;

उन्हें तो कोई ईनाम भी नहीं मिलता,

और जल्द ही उन्हें भुला दिया जाता है.

इस तरह उनका प्रेम, घृणा और उत्साह खत्म हो गया,

और सूरज के नीचे किए गए किसी भी काम में उनका कोई भाग न होगा.

इसलिये जाओ और आनंद से भोजन करो और मन में सुख मानकर अंगूर का रस पिया करो क्योंकि पहले ही परमेश्वर तुम्हारे कामों से खुश हैं. तुम्हारे कपड़े हमेशा उजले रहें और तुम्हारे सिर पर तेल की कमी न हो. सूरज के नीचे परमेश्वर द्वारा दिए गए बेकार के जीवन में अपनी प्यारी पत्नी के साथ खुश रहो, क्योंकि तुम्हारे जीवन का और सूरज के नीचे की गई मेहनत का ईनाम यही है. अपने सामने आए हर एक काम को पूरी लगन से करो क्योंकि अधोलोक में जिसकी ओर तुम बढ़ रहे हो, वहां न तो कोई काम या तरकीब, न ज्ञान और न ही बुद्धि है.

मैंने दोबारा सूरज के नीचे देखा,

कि न तो दौड़ में तेज दौड़ने वाले

और न युद्ध में बलवान ही जीतते हैं,

न बुद्धिमान को भोजन मिलता है

और न ही ज्ञानवान को धन-दौलत

और न ही योग्य को अनुग्रह;

क्योंकि ये समय और संयोग के वश में हैं.

मनुष्य अपने समय के बारे में नहीं जानता:

जैसे बुरे जाल में फंसी एक मछली के,

और फंदे में फंसे पक्षियों के समान,

वैसे ही मनुष्य बुरे समय में जा फंसेगा

जब यह अचानक ही उस पर आ पड़ेगा.

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