उद्बोधक 4:1-16, उद्बोधक 5:1-20, उद्बोधक 6:1-12 HCV

उद्बोधक 4:1-16

अत्याचार के दुष्प्रभाव

धरती पर किए जा रहे अत्याचार को देखकर मैंने दोबारा सोचा:

मैंने अत्याचार सहने वाले व्यक्तियों के आंसुओं को देखा

और यह भी कि उन्हें शांति देने के लिए कोई भी नहीं है;

अत्याचारियों के पास तो उनका अधिकार था,

मगर अत्याचार सहने वालों के पास शांति देने के लिए कोई भी न था.

सो मैंने जीवितों की तुलना में,

मरे हुओं को, जिनकी मृत्यु हो चुकी है, अधिक सराहा कि वे अधिक खुश हैं.

मगर इन दोनों से बेहतर तो वह है

जो कभी आया ही नहीं

और जिसने इस धरती पर किए जा रहे

कुकर्मों को देखा ही नहीं.

मैंने यह भी पाया कि सारी मेहनत और सारी कुशलता मनुष्य एवं उसके पड़ोसी के बीच जलन के कारण है. यह भी बेकार और हवा से झगड़ना है.

मूर्ख अपने हाथ पर हाथ रखे बैठा रहता है,

और खुद को बर्बाद करता4:5 बर्बाद करता मूल में अपना ही मांस खाता है है.

दो मुट्ठी भर मेहनत और हवा से संघर्ष की बजाय बेहतर है

जो कुछ मुट्ठी भर तुम्हारे पास है

उसमें आराम के साथ संतुष्ट रहना.

तब मैंने धरती पर दोबारा बेकार की बात देखी:

एक व्यक्ति जिसका कोई नहीं है;

न पुत्र, न भाई.

उसकी मेहनत का कोई अंत नहीं.

वह पर्याप्‍त धन कमा नहीं पाता,

फिर भी वह यह प्रश्न कभी नहीं करता,

“मैं अपने आपको सुख से दूर रखकर यह सब किसके लिए कर रहा हूं?”

यह भी बेकार,

और दुःख भरी स्थिति है!

एक से बेहतर हैं दो,

क्योंकि उन्हें मेहनत का बेहतर प्रतिफल मिलता है:

यदि उनमें से एक गिर भी जाए,

तो दूसरा अपने मित्र को उठा लेगा,

मगर शोक है उस व्यक्ति के लिए जो गिरता है

और उसे उठाने के लिए कोई दूसरा नहीं होता.

अगर दो व्यक्ति साथ साथ सोते हैं तो वे एक दूसरे को गर्म रखते हैं.

मगर अकेला व्यक्ति अपने आपको कैसे गर्म रख सकता है?

अकेले व्यक्ति पर तो हावी होना संभव है,

मगर दो व्यक्ति उसका सामना कर सकते हैं:

तीन डोरियों से बनी रस्सी को आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता.

उन्‍नति की व्यर्थता

एक गरीब मगर बुद्धिमान नौजवान एक निर्बुद्धि बूढ़े राजा से बेहतर है, जिसे यह समझ नहीं रहा कि सलाह कैसे ली जाए. वह बंदीगृह से सिंहासन पर जा बैठा हालांकि वह अपने राज्य में गरीब ही जन्मा था. मैंने धरती पर घूमते हुए सभी प्राणियों को उस दूसरे नौजवान की ओर जाते देखा, जो पहले वालों की जगह लेगा. अनगिनत थे वे लोग जिनका वह राजा था. फिर भी जो इनके बाद आएंगे उससे खुश न होंगे. निश्चित ही यह भी बेकार और हवा से झगड़ना है.

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उद्बोधक 5:1-20

परमेश्वर से अपनी मन्‍नतें पूरी करें

परमेश्वर के भवन में जाने पर अपने व्यवहार के प्रति सावधान रहना और मूर्खों के समान बलि भेंट करने से बेहतर है परमेश्वर के समीप आना. मूर्ख तो यह जानते ही नहीं कि वे क्या गलत कर रहे हैं.

अपनी किसी बात में उतावली न करना,

न ही परमेश्वर के सामने किसी बात को रखने में जल्दबाजी करना,

क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग में हैं

और तुम पृथ्वी पर हो,

इसलिये अपने शब्दों को थोड़ा ही रखना.

स्वप्न किसी काम में बहुत अधिक लीन होने के कारण आता है,

और मूर्ख अपने बक-बक करने की आदत से पहचाना जाता है.

यदि तुमने परमेश्वर से कोई मन्नत मानी तो उसे पूरा करने में देर न करना; क्योंकि परमेश्वर मूर्ख से प्रसन्‍न नहीं होते; पूरी करो अपनी मन्नत. मन्नत मानकर उसे पूरी न करने से कहीं अधिक अच्छा है कि तुम मन्नत ही न मानो. तुम्हारी बातें तुम्हारे पाप का कारण न हों. परमेश्वर के स्वर्गदूत के सामने तुम्हें यह न कहना पड़े, “मुझसे गलती हुई.” परमेश्वर कहीं तुम्हारी बातों के कारण क्रोधित न हों और तुम्हारे कामों को नाश कर डालें. क्योंकि स्वप्नों की अधिकता और बक-बक करने में खोखलापन होता है, इसलिए तुम परमेश्वर के प्रति भय बनाए रखो.

धन भी व्यर्थ

अगर तुम अपने क्षेत्र में गरीब पर अत्याचार और उसे न्याय और धर्म से दूर होते देखो; तो हैरान न होना क्योंकि एक अधिकारी दूसरे अधिकारी के ऊपर होता है और उन पर भी एक बड़ा अधिकारी. वास्तव में जो राजा खेती को बढ़ावा देता है, वह सारे राज्य के लिए वरदान साबित होता है.

जो धन से प्रेम रखता है, वह कभी धन से संतुष्ट न होगा;

और न ही वह जो बहुत धन से प्रेम करता है.

यह भी बेकार ही है.

जब अच्छी वस्तुएं बढ़ती हैं,

तो वे भी बढ़ते हैं, जो उनको इस्तेमाल करते हैं.

उनके स्वामी को उनसे क्या लाभ?

सिवाय इसके कि वह इन्हें देखकर संतुष्ट हो सके.

मेहनत करनेवाले के लिए नींद मीठी होती है,

चाहे उसने ज्यादा खाना खाया हो या कम,

मगर धनी का बढ़ता हुआ धन

उसे सोने नहीं देता.

एक और बड़ी बुरी बात है जो मैंने सूरज के नीचे देखी:

कि धनी ने अपनी धन-संपत्ति अपने आपको ही कष्ट देने के लिए ही कमाई थी.

उसने धन-संपत्ति निष्फल जगह लगा दी है,

वह धनी एक पुत्र का पिता बना.

मगर उसकी सहायता के लिए कोई नहीं है.

जैसे वह अपनी मां के गर्भ से नंगा आया था,

उसे लौट जाना होगा, जैसे वह आया था.

ठीक वैसे ही वह अपने हाथ में

अपनी मेहनत के फल का कुछ भी नहीं ले जाएगा.

यह भी एक बड़ी बुरी बात है:

ठीक जैसे एक व्यक्ति का जन्म होता है, वैसे ही उसकी मृत्यु भी हो जाएगी.

तो उसके लिए इसका क्या फायदा,

जो हवा को पकड़ने के लिए मेहनत करता है?

वह अपना पूरा जीवन रोग,

क्रोध और बहुत ही निराशा में बिताता है.

मैंने जो एक अच्छी बात देखी वह यह है: कि मनुष्य परमेश्वर द्वारा दिए गए जीवन में खाए, पिए और अपनी मेहनत में, जो वह सूरज के नीचे करता है, के ईनाम में खुश रहे. और हर एक व्यक्ति जिसे परमेश्वर ने धन-संपत्ति दी है तो परमेश्वर ने उसे उनका इस्तेमाल करने, उनके ईनाम को पाने और अपनी मेहनत से खुश होने की योग्यता भी दी है; यह भी परमेश्वर द्वारा दिया गया ईनाम ही है. मनुष्य अपने पूरे जीवन को हमेशा के लिए याद नहीं रखेगा, क्योंकि परमेश्वर उसे उसके दिल के आनंद में व्यस्त रखते हैं.

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उद्बोधक 6:1-12

मैंने सूरज के नीचे एक बुरी बात देखी जो मनुष्य पर बहुत अधिक हावी है. एक व्यक्ति जिसे परमेश्वर ने धन-संपत्ति और सम्मान दिया है जिससे उसे उस किसी भी वस्तु की कमी न हो जिसे उसका मन चाहता है; मगर परमेश्वर ने उसे उनको इस्तेमाल करने की समझ नहीं दी, उनका आनंद तो एक विदेशी लेता है. यह बेकार और बड़ी ही बुरी बात है.

यदि एक व्यक्ति सौ पुत्रों का पिता है और वह बहुत साल जीवित रहता है, चाहे उसकी आयु के साल बहुत हों, पर अगर वह अपने जीवन भर में अच्छी वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करता और उसे क्रिया-कर्म ही नहीं किया गया तो मेरा कहना तो यही है कि एक मरा हुआ जन्मा बच्चा उस व्यक्ति से बेहतर है, क्योंकि वह बच्चा बेकार में आता है और अंधेरे में चला जाता है. अंधेरे में उसका नाम छिपा लिया जाता है. उस बच्‍चे ने सूरज को नहीं देखा और न ही उसे कुछ मालूम ही हुआ था. वह बच्चा उस व्यक्ति से कहीं अधिक बेहतर है. दो बार जिसका जीवन दो हज़ार साल का हो मगर उस व्यक्ति ने किसी अच्छी वस्तु का इस्तेमाल न किया हो, क्या सभी लोग एक ही जगह पर नहीं जाते?

मनुष्य की सारी मेहनत उसके भोजन के लिए ही होती है,

मगर उसका मन कभी संतुष्ट नहीं होता.

बुद्धिमान को निर्बुद्धि से क्या लाभ?

और गरीब को यह मालूम होने से

क्या लाभ कि उसे बुद्धिमानों के सामने कैसा व्यवहार करना है?

आंखों से देख लेना

इच्छा रखने से कहीं अधिक बेहतर है.

मगर यह भी बेकार ही है,

सिर्फ हवा को पकड़ने की कोशिश.

जो हो चुका है उसका नाम भी रखा जा चुका है,

और यह भी मालूम हो चुका है कि मनुष्य क्या है?

मनुष्य उस व्यक्ति पर हावी नहीं हो सकता

जो उससे बलवान है.

शब्द जितना अधिक है,

अर्थ उतना कम होता है.

इससे मनुष्य को क्या फायदा?

जिसे यह मालूम है कि उसके पूरे जीवन में मनुष्य के लिए क्या अच्छा है, अपने उस व्यर्थ जीवन के थोड़े से सालों में. वह एक परछाई के समान उन्हें बिता देगा. मनुष्य को कौन बता सकता है कि सूरज के नीचे उसके बाद क्या होगा?

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