ปัญญาจารย์ 1 – TNCV & HCV

Thai New Contemporary Bible

ปัญญาจารย์ 1:1-18

ทุกสิ่งล้วนอนิจจัง

1ถ้อยคำของปัญญาจารย์1:1 หรือผู้นำของชุมชนเช่นเดียวกับข้อ 2 และ 12 กษัตริย์ในเยรูซาเล็ม เชื้อสายดาวิด

2ปัญญาจารย์กล่าวว่า

“อนิจจัง! อนิจจัง!

อนิจจังแท้ๆ!

ทุกสิ่งล้วนอนิจจัง”

3มนุษย์ได้ประโยชน์อะไรจากการงานทั้งสิ้น

ที่เขาตรากตรำภายใต้ดวงอาทิตย์?

4คนรุ่นหนึ่งผ่านมาแล้วอีกรุ่นหนึ่งผ่านไป

แต่โลกยังคงอยู่ตลอดกาล

5ดวงอาทิตย์ขึ้นแล้วก็ลับไป

และรีบวนมาขึ้นที่เดิมอีก

6ลมพัดไปทางใต้แล้ว

กลับมาทางเหนือ

มันพัดวนไปเวียนมา

เป็นวัฏจักร

7แม่น้ำไหลลงสู่ทะเล

แต่ทะเลก็ไม่เคยอิ่ม

และน้ำกลับไปสู่แม่น้ำอีกครั้ง

แล้วไหลลงสู่มหาสมุทรอยู่ร่ำไป

8ทุกสิ่งทุกอย่างอ่อนระโหย

เกินที่จะบรรยาย

ไม่ว่าเห็นสักเท่าไร เราก็ไม่อิ่ม

ไม่ว่าได้ยินสักแค่ไหน เราก็ไม่จุใจ

9อะไรที่เกิดขึ้นแล้วก็เกิดขึ้นอีก

สิ่งที่ทำไปแล้วก็ทำกันอีก

ไม่มีอะไรใหม่ภายใต้ดวงอาทิตย์

10อะไรบ้างที่เราจะบอกได้ว่า

“ดูเถิด นี่เป็นสิ่งใหม่”

เพราะมันมีมาตั้งนานแล้ว

มีมาตั้งแต่ก่อนยุคสมัยของเรา

11ไม่มีการระลึกถึงคนรุ่นก่อน

และแม้แต่คนรุ่นที่กำลังจะเกิดมา

คนรุ่นต่อจากเขา

ก็ยังไม่ระลึกถึงพวกเขา

สติปัญญาอนิจจัง

12ข้าพเจ้าปัญญาจารย์ เป็นกษัตริย์ปกครองอิสราเอลอยู่ในเยรูซาเล็ม 13ได้ทุ่มเทศึกษาและใช้สติปัญญาใคร่ครวญทุกสิ่งที่ทำกันใต้ฟ้าสวรรค์ พระเจ้าทรงวางภาระหนักแก่มนุษย์จริงๆ! 14ข้าพเจ้าได้เห็นทุกสิ่งซึ่งทำกันภายใต้ดวงอาทิตย์ ล้วนแต่อนิจจังเหมือนวิ่งไล่ตามลม

15สิ่งที่คดงอก็ทำให้เหยียดตรงไม่ได้

สิ่งที่ขาดอยู่ก็นับไม่ได้

16ข้าพเจ้ารำพึงว่า “ดูเถิด เรามีสติปัญญามากกว่ากษัตริย์องค์ก่อนๆ ที่ครองเยรูซาเล็ม เราเข้าถึงสติปัญญาและความรู้” 17แล้วข้าพเจ้าก็ทุ่มเทสุดตัวที่จะเข้าใจสติปัญญา ความบ้าคลั่ง และความโฉดเขลาด้วย แต่ได้เรียนรู้ว่านี่ก็วิ่งไล่ตามลมเช่นกัน

18เพราะยิ่งฉลาดมากก็ยิ่งโศกเศร้ามาก

ยิ่งรู้ก็ยิ่งทุกข์โศก

Hindi Contemporary Version

उद्बोधक 1:1-18

सब कुछ व्यर्थ है

1दावीद के पुत्र, येरूशलेम में राजा, दार्शनिक के वचन:

2“बेकार ही बेकार!”

दार्शनिक का कहना है.

“बेकार ही बेकार!

बेकार है सब कुछ.”

3सूरज के नीचे मनुष्य द्वारा किए गए कामों से उसे क्या मिलता है?

4एक पीढ़ी खत्म होती है और दूसरी आती है,

मगर पृथ्वी हमेशा बनी रहती है.

5सूरज उगता है, सूरज डूबता है,

और बिना देर किए अपने निकलने की जगह पर पहुंच दोबारा उगता है.

6दक्षिण की ओर बहती हुई हवा

उत्तर दिशा में मुड़कर निरंतर घूमते हुए अपने घेरे में लौट आती है.

7हालांकि सारी नदियां सागर में मिल जाती हैं,

मगर इससे सागर भर नहीं जाता.

नदियां दोबारा उसी जगह पर बहने लगती हैं,

जहां वे बह रही थीं.

8इतना थकाने वाला है सभी कुछ,

कि मनुष्य के लिए इसका वर्णन संभव नहीं.

आंखें देखने से तृप्‍त नहीं होतीं,

और न कान सुनने से संतुष्ट.

9जो हो चुका है, वही है जो दोबारा होगा,

और जो किया जा चुका है, वही है जो दोबारा किया जाएगा;

इसलिये धरती पर नया कुछ भी नहीं.

10क्या कुछ ऐसा है जिसके बारे में कोई यह कह सके,

“इसे देखो! यह है नया?”

यह तो हमसे पहले के युगों से होता आ रहा है.

11कुछ याद नहीं कि पहले क्या हुआ,

और न यह कि जो होनेवाला है.

और न ही उनके लिए कोई याद बची रह जाएगी

जो उनके भी बाद आनेवाले हैं.

बुद्धि की व्यर्थता

12मैं, दार्शनिक, येरूशलेम में इस्राएल का राजा रहा हूं. 13धरती पर जो सारे काम किए जाते हैं, मैंने बुद्धि द्वारा उन सभी कामों के जांचने और अध्ययन करने में अपना मन लगाया. यह बड़े दुःख का काम है, जिसे परमेश्वर ने मनुष्य के लिए इसलिये ठहराया है कि वह इसमें उलझा रहे! 14मैंने इन सभी कामों को जो इस धरती पर किए जाते हैं, देखा है, और मैंने यही पाया कि यह बेकार और हवा से झगड़ना है.

15जो टेढ़ा है, उसे सीधा नहीं किया जा सकता;

और जो है ही नहीं, उसकी गिनती कैसे हो सकती है.

16“मैं सोच रहा था, येरूशलेम में मुझसे पहले जितने भी राजा हुए हैं, मैंने उन सबसे ज्यादा बुद्धि पाई है तथा उन्‍नति की है; मैंने बुद्धि और ज्ञान के धन का अनुभव किया है.” 17मैंने अपना हृदय बुद्धि को और बावलेपन और मूर्खता को जानने में लगाया, किंतु मुझे अहसास हुआ कि यह भी हवा से झगड़ना ही है.

18क्योंकि ज्यादा बुद्धि में बहुत दुःख होता है;

ज्ञान बढ़ाने से दर्द भी बढ़ता है.