1. Janův 5 – SNC & HCV

Slovo na cestu

1. Janův 5:1-21

Víra v Božího Syna

1Kdo věří, že Ježíš je Spasitel, patří do Boží rodiny, a kdo miluje Otce, miluje i jeho děti. 2-4Naše vzájemná láska prozrazuje, jak milujeme a posloucháme Boha.

Jeho přikázání nejsou těžká, plníme-li je z lásky. Když posloucháme Boha jako děti, nepodléháme zlu. Vítězství v tomto zápase nám přináší víra v Ježíše Krista jako Božího Syna. Bez ní nemáme naději.

5-6K víře, že jsme zachráněni, nás opravňují tři skutečnosti: to, že se dal Ježíš pokřtít, jako by byl hříšník; to, že místo nás zemřel na kříži jako zločinec; a to, že jsme obdrželi Ducha svatého, který nám to potvrzuje. 7Máme tedy tři svědky: 8Ducha svatého, vodu a krev, a ti tři svědčí shodně.

9Přijímáme-li svědectví lidí, proč nevěřit tomu, co o svém Synu říká Bůh? 10-12Kdo tedy věří v Ježíše jako v Božího Syna, dává Bohu za pravdu. Kdo Bohu nevěří, dělá z něho lháře, protože odmítá svědectví Otce o Synu. Kdo přijímá toto svědectví, stojí na prahu věčného života. Dveře nám otevřel Boží Syn. Bez něho se dovnitř nedostaneme.

Závěr

13To je smysl mého dopisu, abyste měli jistotu, že věříte-li v Božího Syna, máte věčný život.

14-15Můžeme si však být jisti i tím, že už dnes nás slyší, když o něco prosíme v souladu s jeho vůlí. A nejen slyší, ale dává nám to, oč ho prosíme.

16Vidíte-li, že bratr hřeší, proste za něj, aby neztratil život. Ale nemyslete si, že modlitbami zachráníte člověka, který se zatvrdil a odmítá činit pokání. 17Každá neposlušnost je hřích, ale hřích bez pokání vede k smrti. 18Víme, že kdo je skutečně Boží dítě, nehřeší, protože ho Boží Syn chrání a ten zlý na něho nemá právo. 19Jenom pod Boží mocí jsme v bezpečí, všude jinde jsme vydáni zlému napospas.

20Boží Syn, Ježíš Kristus, přišel, abychom v něm poznali zachránce a přimkli se k němu. On je pravý Bůh a dárce věčného života. 21A proto si ho nedejte nikým a ničím zastínit.

Hindi Contemporary Version

1 योहन 5:1-21

परमेश्वर-पुत्र में विश्वास द्वारा प्रेम

1हर एक, जिसका विश्वास यह है कि येशु ही मसीह हैं, वह परमेश्वर से उत्पन्‍न हुआ है तथा हर एक जिसे पिता से प्रेम है, उसे उससे भी प्रेम है, जो परमेश्वर से उत्पन्‍न हुआ है. 2परमेश्वर की संतान से हमारे प्रेम की पुष्टि परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम और उनकी आज्ञाओं का पालन करने के द्वारा होती है. 3परमेश्वर के आदेशों का पालन करना ही परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम का प्रमाण है. उनकी आज्ञा बोझिल नहीं हैं, 4जो परमेश्वर से उत्पन्‍न हुआ है, वह संसार पर विजयी है. वह विजय, जो संसार पर है, यह है; हमारा विश्वास. 5कौन है वह, जो संसार पर विजयी होता है? क्या वही नहीं, जिसका यह विश्वास है कि मसीह येशु ही परमेश्वर-पुत्र हैं?

6यह वही हैं, जो जल व लहू के द्वारा प्रकट हुए मसीह येशु. उनका आगमन न केवल जल से परंतु जल तथा लहू से हुआ इसके साक्षी पवित्र आत्मा हैं क्योंकि पवित्र आत्मा ही वह सच हैं 7सच तो यह है कि गवाह तीन हैं: 8पवित्र आत्मा, जल तथा लहू. ये तीनों एक मत हैं. 9यदि हम मनुष्यों की गवाही स्वीकार कर लेते हैं, परमेश्वर की गवाही तो उससे श्रेष्ठ है क्योंकि यह परमेश्वर की गवाही है, जो उन्होंने अपने पुत्र के विषय में दी है. 10जो कोई परमेश्वर-पुत्र में विश्वास करता है, उसमें यही गवाही भीतर छिपी है. जिसका विश्वास परमेश्वर में नहीं है, उसने उन्हें झूठा ठहरा दिया है क्योंकि उसने परमेश्वर के अपने पुत्र के विषय में दी गई उस गवाही में विश्वास नहीं किया. 11वह साक्ष्य यह है: परमेश्वर ने हमें अनंत जीवन दिया है. यह जीवन उनके पुत्र में बसा है. 12जिसमें पुत्र का वास है, उसमें जीवन है, जिसमें परमेश्वर का पुत्र नहीं, उसमें जीवन भी नहीं.

समापन की पुष्टि

13मैंने तुम्हें यह सब इसलिये लिखा है कि तुम, जो परमेश्वर के पुत्र की प्रधानता में विश्वास करते हो, यह जान लो कि अनंत काल का जीवन तुम्हारा है. 14परमेश्वर के विषय में हमारा विश्वास यह है: जब हम उनकी इच्छा के अनुसार कोई विनती करते हैं, वह उसे सुनते हैं. 15जब हम यह जानते हैं कि वह हमारी हर एक विनती को सुनते हैं, तब हम यह भी जानते हैं कि उनसे की गई हमारी विनती पूरी हो चुकी है.

16यदि कोई साथी विश्वासी को ऐसा पाप करते हुए देखे, जिसका परिणाम मृत्यु न हो, वह उसके लिए प्रार्थना करे और उसके लिए परमेश्वर उन लोगों को जीवन प्रदान करेंगे, जिन्होंने ऐसा पाप किया है, जिसका परिणाम मृत्यु नहीं है. एक पाप ऐसा है जिसका परिणाम मृत्यु है. इस स्थिति के लिए प्रार्थना करने के लिए मैं नहीं कह रहा. 17हर एक अधर्म पाप है किंतु एक पाप ऐसा भी है जिसका परिणाम मृत्यु नहीं है.

18हम इस बात से परिचित हैं कि कोई भी, जो परमेश्वर से जन्मा है, पाप करता नहीं रहता परंतु परमेश्वर के पुत्र उसे सुरक्षित रखते हैं तथा वह दुष्ट उसे छू तक नहीं सकता. 19हम जानते हैं कि हम परमेश्वर से हैं और सारा संसार उस दुष्ट के वश में है. 20हम इस सच से परिचित हैं कि परमेश्वर के पुत्र आए तथा हमें समझ दी कि हम उन्हें, जो सच हैं, जानें. हम उनमें स्थिर रहते हैं, जो सच हैं अर्थात् उनके पुत्र मसीह येशु. यही वास्तविक परमेश्वर और अनंत काल का जीवन हैं.

21बच्चों, स्वयं को मूर्तियों से बचाए रखो.