پيدايش 44 – PCB & HCV

Persian Contemporary Bible

پيدايش 44:1-34

جام گمشدهٔ يوسف

1وقتی برادران يوسف آمادهٔ حركت شدند، يوسف به ناظر خانه خود دستور داد كه كيسه‌های آنها را تا حدی كه می‌توانستند ببرند از غله پُر كند و پول هر يک را در دهانهٔ كيسه‌اش بگذارد. 2همچنين به ناظر دستور داد كه جام نقره‌اش را با پولهای پرداخت شده در كيسه بنيامين بگذارد. ناظر آنچه كه يوسف به او گفته بود انجام داد.

3برادران صبح زود برخاسته، الاغهای خود را بار كردند و به راه افتادند. 4‏-5اما هنوز از شهر زياد دور نشده بودند كه يوسف به ناظر گفت: «به دنبال ايشان بشتاب و چون به آنها رسيدی بگو: ”چرا به عوض خوبی بدی كرديد؟ چرا جام مخصوص سَروَر مرا كه با آن شراب می‌نوشد و فال می‌گيرد دزديديد؟“»

6ناظر چون به آنها رسيد، هر آنچه به او دستور داده شده بود، به ايشان گفت. 7آنها به وی پاسخ دادند: «چرا سَروَر ما چنين سخنانی می‌گويد؟ قسم می‌خوريم كه مرتكب چنين عمل زشتی نشده‌ايم. 8مگر ما پولهايی را كه دفعهٔ پيش در كيسه‌های خود يافتيم نزد شما نياورديم؟ پس چطور ممكن است طلا يا نقره‌ای از خانهٔ اربابت دزديده باشيم؟ 9جام را پيش هر كس كه پيدا كردی او را بكش و بقيهٔ ما هم بردهٔ سَروَرمان خواهيم شد.»

10ناظر گفت: «بسيار خوب، ولی فقط همان كسی كه جام را دزديده باشد، غلام من خواهد شد و بقيهٔ شما می‌توانيد برويد.»

11آنگاه همگی با عجله كيسه‌های خود را از پشت الاغ بر زمين نهادند و آنها را باز كردند. 12ناظر جستجوی خود را از برادر بزرگتر شروع كرده، به كوچكتر رسيد و جام را در كيسهٔ بنيامين يافت. 13برادران از شدت ناراحتی لباسهای خود را پاره كردند و كيسه‌ها را بر الاغها نهاده، به شهر بازگشتند.

14وقتی يهودا و ساير برادرانش به خانه يوسف رسيدند، او هنوز در آنجا بود. آنها نزد او به خاک افتادند. 15يوسف از ايشان پرسيد: «چرا اين كار را كرديد؟ آيا نمی‌دانستيد مردی چون من به كمک فال می‌تواند بفهمد چه كسی جامش را دزديده است؟»

16يهودا گفت: «در جواب سَروَر خود چه بگوييم؟ چگونه می‌توانيم بی‌گناهی خود را ثابت كنيم؟ خواست خداست كه به سزای اعمال خود برسيم. اينک برگشته‌ايم تا همگی ما و شخصی كه جام نقره در كيسه‌اش يافت شده، غلامان شما شويم.»

17يوسف گفت: «نه، فقط شخصی كه جام را دزديده است غلام من خواهد بود. بقيه شما می‌توانيد نزد پدرتان بازگرديد.»

18يهودا جلو رفته، گفت: «ای سَروَر، می‌دانم كه شما چون فرعون مقتدر هستيد، پس بر من خشمگين نشويد و اجازه دهيد مطلبی به عرض برسانم. 19دفعه اول كه به حضور شما رسيديم، از ما پرسيديد كه آيا پدر و برادر ديگری داريم؟ 20عرض كرديم، بلی. پدر پيری داريم و برادر كوچكی كه فرزندِ زمانِ پيری اوست. اين پسر برادری داشت كه مرده است و او اينک تنها پسر مادرش می‌باشد و پدرمان او را خيلی دوست دارد. 21دستور داديد آن برادر كوچكتر را به حضورتان بياوريم تا او را ببينيد. 22عرض كرديم كه اگر آن پسر از پدرش جدا شود، پدرمان خواهد مرد. 23ولی به ما گفتيد ديگر به مصر برنگرديم مگر اين كه او را همراه خود بياوريم. 24پس نزد غلامت پدر خويش برگشتيم و آنچه به ما فرموده بوديد، به او گفتيم. 25وقتی او به ما گفت كه دوباره به مصر برگرديم و غله بخريم، 26گفتيم كه نمی‌توانيم به مصر برويم مگر اين كه اجازه بدهی برادر كوچک خود را نيز همراه ببريم. چون اگر او را با خود نبريم حاكم مصر ما را به حضور نخواهد پذيرفت. 27پدرمان به ما گفت: ”شما می‌دانيد كه همسرم راحيل فقط دو پسر داشت. 28يكی از آنها رفت و ديگر برنگشت. بدون شک حيوانات وحشی او را دريدند و من ديگر او را نديدم. 29اگر برادرش را هم از من بگيريد و بلايی بر سرش بيايد، پدر پيرتان از غصه خواهد مُرد.“ 30‏-31حال، ای سَروَر، اگر نزد غلامت، پدر خود برگردم و اين جوان كه جان پدرمان به جان او بسته است همراه من نباشد، پدرم از غصه خواهد مُرد. آن وقت ما مسئول مرگ پدر پيرمان خواهيم بود. 32من نزد پدرم ضامن جان اين پسر شدم و به او گفتم كه هرگاه او را سالم برنگردانم، گناهش تا ابد به گردن من باشد. 33بنابراين التماس می‌كنم مرا به جای بنيامين در بندگی خويش نگاه داريد و اجازه دهيد كه او همراه سايرين نزد پدرش برود. 34زيرا چگونه می‌توانم بدون بنيامين نزد پدرم برگردم و بلايی را كه بر سر پدرم می‌آيد ببينم؟»

Hindi Contemporary Version

उत्पत्ति 44:1-34

योसेफ़ का चांदी का कटोरा

1योसेफ़ ने अपने घर के भंडारी को आदेश दिया: “इनके बोरों को जितना वे ले जा सकते हैं उतने अन्‍न से भर दो और हर एक का दिया गया धन उसी के बोरे में डाल देना. 2तब सबसे छोटे भाई के बोरे में मेरा चांदी का कटोरा तथा अन्‍न के लिए लिया गया धन भी रख देना.” भंडारी ने योसेफ़ के आदेश के अनुरूप ही किया.

3भोर होते ही उन्हें उनके अपने-अपने गधों के साथ विदा कर दिया गया. 4वे नगर के बाहर निकले ही थे कि योसेफ़ ने अपने घर के भंडारी को आदेश दिया, “उठो, उनका पीछा करो. जब तुम उन तक पहुंच जाओ, तो उनसे कहना, ‘भलाई का बदला तुम बुरे से क्यों दे रहे हो? 5क्या यह वही पात्र नहीं है, जिससे हमारे स्वामी पीते हैं, जिससे वह भावी जानते हैं? आप लोगों ने यह उचित नहीं किया है.’ ”

6वह भंडारी उन तक जा पहुंचा और उनसे वही सब कह दिया. 7उन्होंने उसे उत्तर दिया, “मेरे स्वामी, आप यह क्या कह रहे हैं? आपके सेवक ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते! 8आप देख लीजिए कि वह राशि, जो हमारे साथ चली गई थी, कनान देश से हमने आपको लौटा दी है. तो हम आपके स्वामी के आवास से चांदी अथवा स्वर्ण क्यों चुराते? 9जिस किसी के पास वह पात्र पाया जाए, उसे प्राण-दंड दे दिया जाए, और हम सभी आपके अधिपति के दास बन जाएंगे.”

10भंडारी ने उनसे कहा, “ठीक है, जैसा तुम लोगों ने कहा है, वैसा ही होगा, जिसके पास से वह पात्र पाया जाएगा, वह मेरा दास हो जाएगा, शेष निर्दोष होंगे.”

11शीघ्र ही उन्होंने अपने-अपने बोरे नीचे उतारे. हर एक ने अपना बोरा खोल दिया. 12उसने खोजना प्रारंभ किया, सबसे बड़े से सबसे छोटे के क्रम में, और कटोरा बिन्यामिन के बोरे में पाया गया. 13यह देख हर एक ने अपने-अपने वस्त्र फाड़ डाले, गधों पर सामग्री लादी और नगर को लौट गए.

14जब यहूदाह तथा उसके भाई योसेफ़ के आवास पर पहुंचे, योसेफ़ वहीं थे. वे उनके समक्ष नत हुए. 15योसेफ़ ने उनसे कहा, “यह क्या किया है आप लोगों ने? क्या आपको यह बोध नहीं कि मैं अपने इस पद पर होने के कारण वास्तव में भविष्य ज्ञात कर सकता हूं?”

16इसका उत्तर यहूदाह ने दिया, “हम अपने स्वामी से क्या कहें? हमारे पास तो कहने के लिए शब्द ही नहीं हैं. हम स्वयं को निर्दोष प्रमाणित ही नहीं कर सकते. परमेश्वर ही ने आपके सेवकों की पापिष्ठता ज्ञात कर ली है. देखिए, हम अपने अधिपति के दास होने के लिए तैयार हैं; हम सभी तथा वह जिसके बोरे में वह कटोरा पाया गया है.”

17योसेफ़ ने उत्तर दिया, “मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता. मेरा दास वही व्यक्ति बनाया जाएगा, जिसके बोरे में वह कटोरा पाया गया है. शेष आप सभी अपने पिता के पास शांतिपूर्वक लौट जाएं.”

18यह सुन यहूदाह योसेफ़ के निकट गए और उनसे आग्रह किया, “मेरे अधिपति महोदय, क्या आप अपने सेवक को अपने कानों में कुछ कहने की अनुमति प्रदान करेंगे? कृपया आप मुझ अपने सेवक पर क्रुद्ध न हों, क्योंकि आप तो पद में फ़रोह के समान हैं. 19मेरे अधिपति, आपने अपने सेवकों से पूछा था, ‘क्या तुम्हारे पिता अथवा भाई हैं?’ 20हमने अपने अधिपति को उत्तर दिया था, ‘हमारे वयोवृद्ध पिता हैं तथा उनकी वृद्धावस्था में एक बालक भी है. हां, उसके भाई की मृत्यु हो चुकी है. अब वह अपनी माता का एकमात्र पुत्र रह गया है. वह अपने पिता का अत्यंत प्रिय पुत्र है.’

21“तब महोदय ने अपने इन सेवकों को आदेश दिया था, ‘उस पुत्र को यहां ले आओ, कि मैं उसे देख सकूं.’ 22किंतु हमने अपने अधिपति से निवेदन किया था, ‘यह किशोर अपने पिता से दूर नहीं रह सकता, क्योंकि यदि उसे पिता से दूर किया जाएगा, तो उसके पिता की मृत्यु हो जाएगी.’ 23किंतु आपने तो अपने इन सेवकों से कहा था, ‘यदि तुम्हारा वह कनिष्ठ भाई तुम्हारे साथ यहां नहीं आएगा, तो तुम मेरा मुख न देखोगे.’ 24तब हुआ यह कि जब हम लौटकर अपने पिता के यहां पहुंचे, हमने उन्हें अपने अधिपति, आप का आदेश सुना दिया.

25“हमारे पिता का आदेश था, ‘पुनः मिस्र जाकर हमारे उपभोग के लिए कुछ अन्‍न ले आओ.’ 26हमने प्रतिवाद किया, ‘हम वहां बिना हमारे कनिष्ठ भाई के नहीं जा सकते; क्योंकि हम अधिपति की उपस्थिति में बिना अपने कनिष्ठ भाई के प्रवेश कर ही नहीं सकेंगे.’

27“आपके सेवक हमारे पिता ने हमें स्मरण दिलाया, ‘तुम्हें स्मरण ही है कि मेरी पत्नी से मुझे दो पुत्र पैदा हुए थे, 28एक तो मैं खो चुका हूं. निश्चय ही वह कोई हिंसक पशु द्वारा फाड़ डाला गया है, तब से मैंने उसे नहीं देखा है. 29अब यदि तुम इस कनिष्ठ को भी मुझसे दूर ले जाना चाह रहे हो और यदि उसका भी कुछ अनिष्ट हो जाता है, तो इस वृद्धावस्था में तुम मुझ पर विषादपूर्ण मृत्यु ले आओगे.’

30“इसलिये अब आपके सेवक मेरे पिता के पास लौटूंगा और यदि यह किशोर हमारे साथ न होगा तो; वस्तुस्थिति यह है कि हमारे पिता का प्राण इस किशोर के प्राणों से संयुक्त है, 31जब वह यह पाएंगे, कि हम इस किशोर को साथ लेकर नहीं लौटे हैं, तो उनके प्राण ही निकल जाएंगे. हम, आपके सेवक, हमारे पिता को उनकी वृद्धावस्था में घोर शोक के साथ अधोलोक भेज देंगे. 32मैं आपका सेवक, अपने पिता के समक्ष इस किशोर के लिए प्रतिभूति होकर आया हूं. मैंने पिता को आश्वासन दिया था, ‘यदि मैं उसे लौटाकर आपके समक्ष लाने में असमर्थ पाया जाऊं, तो मैं अपने पिता के समक्ष सदा-सर्वदा के लिए दोषी बना रहूंगा.’

33“तब हे स्वामी, अब कृपा कर इस किशोर के स्थान पर मुझे अपना दास बना लीजिए. 34क्योंकि मैं अब अपने पिता के समक्ष कैसे जा सकता हूं, यदि यह किशोर हमारे साथ न होगा? मुझे भय है कि इससे मेरे पिता पर अनिष्ट ही आ पड़ेगा!”