پيدايش 2 – PCB & HCV

Persian Contemporary Bible

پيدايش 2:1-25

1به اين ترتيب آسمانها و زمين و هر چه در آنها بود، تكميل گرديد. 2با فرا رسيدن روز هفتم، خدا كار آفرينش را تمام كرده، دست از كار كشيد. 3خدا روز هفتم را بركت داده، آن را مقدس اعلام فرمود، زيرا روزی بود كه خدا پس از پايان كار آفرينش، آرام گرفت. 4به اين ترتيب آسمانها و زمين آفريده شد.

آدم و حوا

هنگامی كه خداوند آسمانها و زمين را ساخت، 5هيچ بوته و گياهی بر زمين نروييده بود، زيرا خداوند هنوز باران نبارانيده بود، و همچنين آدمی نبود كه روی زمين كشت و زرع نمايد؛ 6اما آب از زمين بيرون می‌آمد و تمام خشكی‌ها را سيراب می‌كرد.

7آنگاه خداوند از خاکِ زمين، آدم را سرشت. سپس در بينی آدم روح حيات دميده، به او جان بخشيد و آدم، موجود زنده‌ای شد.

8پس از آن، خداوند در سرزمين عدن، واقع در شرق، باغی به وجود آورد و آدمی را كه آفريده بود در آن باغ گذاشت. 9خداوند انواع درختان زيبا در آن باغ رويانيد تا ميوه‌های خوش طعم دهند. او در وسط باغ، «درخت حيات» و همچنين «درخت شناخت نيک و بد» را قرار داد. 10از سرزمين عدن رودخانه‌ای به سوی باغ جاری شد تا آن را آبياری كند. سپس اين رودخانه به چهار رود كوچكتر تقسيم گرديد. 11‏-12رود اول «فيشون» است كه از سرزمين حَويله می‌گذرد. در آنجا طلای خالص، مرواريد و سنگ جزع يافت می‌شود. 13رود دوم «جيحون» است كه از سرزمين كوش عبور می‌كند. 14سومين رود، «دجله» است كه به سوی شرق آشور جاری است و رود چهارم «فرات» است.

15خداوند، آدم را در باغ عدن گذاشت تا در آن كار كند و از آن نگهداری نمايد، 16‏-17و به او گفت: «از همهٔ ميوه‌های درختان باغ بخور، به‌جز ميوهٔ درخت شناخت نيک و بد، زيرا اگر از ميوهٔ آن بخوری، مطمئن باش خواهی مرد.»

18خداوند فرمود: «شايسته نيست آدم تنها بماند. بايد برای او يار مناسبی به وجود آورم.» 19آنگاه خداوند همهٔ حيوانات و پرندگانی را كه از خاک سرشته بود، نزد آدم آورد تا ببيند آدم چه نامهايی بر آنها خواهد گذاشت. بدين ترتيب تمام حيوانات و پرندگان نامگذاری شدند. 20پس آدم تمام حيوانات و پرندگان را نامگذاری كرد، اما برای او يار مناسبی يافت نشد.

21آنگاه خداوند آدم را به خواب عميقی فرو برد و يكی از دنده‌هايش را برداشت و جای آن را با گوشت پُر كرد، 22و از آن دنده، زنی سرشت و او را پيش آدم آورد. 23آدم گفت:

«اين است استخوانی از استخوانهايم

و گوشتی از گوشتم.

نام او ”نسا“2‏:23 «نسا» يعنی زن.‏ باشد،

چون از انسان گرفته شد.»

24به اين سبب است كه مرد از پدر و مادر خود جدا می‌شود و به همسر خود می‌پيوندد، و از آن پس، آن دو يكی می‌شوند.

25آدم و همسرش، هر چند برهنه بودند، ولی احساس خجالت نمی‌كردند.

Hindi Contemporary Version

उत्पत्ति 2:1-25

1इस प्रकार परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी के लिए सब कुछ बनाकर अपना काम पूरा किया.

2सातवें दिन परमेश्वर ने अपना सब काम पूरा कर लिया था; जो उन्होंने शुरू किया था; अपने सभी कामों को पूरा करके सातवें दिन उन्होंने विश्राम किया. 3परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी तथा उसे पवित्र ठहराया, क्योंकि यह वह दिन था, जब उन्होंने अपनी रचना, जिसकी उन्होंने सृष्टि की थी, पूरी करके विश्राम किया.

आदम और हव्वा

4यही वर्णन है कि जिस प्रकार याहवेह परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी को बनाया.

5उस समय तक पृथ्वी में2:5 पृथ्वी में या ज़मीन पर कोई हरियाली और कोई पौधा नहीं उगा था, क्योंकि तब तक याहवेह परमेश्वर ने पृथ्वी पर बारिश नहीं भेजी थी. और न खेती करने के लिए कोई मनुष्य था. 6भूमि से कोहरा उठता था जिससे सारी भूमि सींच जाती थी. 7फिर याहवेह परमेश्वर ने मिट्टी से मनुष्य2:7 हिब्री भाषा में मिट्टी को अदमाह कहते है जिससे आदम शब्द आया को बनाया तथा उसके नाक में जीवन की सांस फूंक दिया. इस प्रकार मनुष्य जीवित प्राणी हो गया.

8याहवेह परमेश्वर ने पूर्व दिशा में एदेन नामक स्थान में एक बगीचा बनाया और उस बगीचे में मनुष्य को रखा. 9याहवेह परमेश्वर ने सुंदर पेड़ और जिनके फल खाने में अच्छे हैं, उगाए और बगीचे के बीच में जीवन का पेड़ और भले या बुरे के ज्ञान के पेड़ भी लगाया.

10एदेन से एक नदी बहती थी जो बगीचे को सींचा करती थी और वहां से नदी चार भागों में बंट गई. 11पहली नदी का नाम पीशोन; जो बहती हुई हाविलाह देश में मिल गई, जहां सोना मिलता है. 12(उस देश में अच्छा सोना है. मोती एवं सुलेमानी पत्थर भी वहां पाए जाते हैं.) 13दूसरी नदी का नाम गीहोन है. यह नदी कूश देश में जाकर मिलती है. 14तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल2:14 हिद्देकेल अर्थात् तिगरिस नदी है; यह अश्शूर के पूर्व में बहती है. चौथी नदी का नाम फरात है.

15याहवेह परमेश्वर ने आदम को एदेन बगीचे में इस उद्देश्य से रखा कि वह उसमें खेती करे और उसकी रक्षा करे. 16याहवेह परमेश्वर ने मनुष्य से यह कहा, “तुम बगीचे के किसी भी पेड़ के फल खा सकते हो; 17लेकिन भले या बुरे के ज्ञान का जो पेड़ है उसका फल तुम कभी न खाना, क्योंकि जिस दिन तुम इसमें से खाओगे, निश्चय तुम मर जाओगे.”

18इसके बाद याहवेह परमेश्वर ने कहा, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं है. मैं उसके लिए एक सुयोग्य साथी बनाऊंगा.”

19याहवेह परमेश्वर ने पृथ्वी में पशुओं तथा पक्षियों को बनाया और उन सभी को मनुष्य के पास ले आए, ताकि वह उनका नाम रखे; आदम ने जो भी नाम रखा, वही उस प्राणी का नाम हो गया. 20आदम ने सब जंतुओं का नाम रख दिया.

किंतु आदम के लिए कोई साथी नहीं था, जो उसके साथ रह सके. 21इसलिये याहवेह परमेश्वर ने आदम को गहरी नींद में डाला; जब वह सो गया, याहवेह परमेश्वर ने उसकी एक पसली निकाली और उस जगह को मांस से भर दिया. 22फिर याहवेह परमेश्वर ने उस पसली से एक स्त्री बना दी और उसे आदम के पास ले गए.

23आदम ने कहा,

“अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी

और मेरे मांस में का मांस है;

उसे ‘नारी’2:23 नारी मूल में ईशा अर्थात् स्त्री और नर मूल में ईश अर्थात् पुरुष नाम दिया जायेगा,

क्योंकि यह ‘नर’ से निकाली गई थी.”

24इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा तथा वे दोनों एक देह होंगे.

25आदम एवं उसकी पत्नी नग्न तो थे पर लजाते न थे.